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सीओपीडी क्या है? – What is COPD in Hindi

सीओपीडी क्या है

स्वागत है आपका हमारे ब्लॉग पर। दोस्तो, आप अस्थमा रोग के बारे में तो जानते ही होंगे जिसमें व्यक्ति को सांस लेने में बहुत दिक्कत होती है परन्तु इससे भी और अधिक खतरनाक तथा गंभीर बीमारी होती है जिसे सीओपीडी कहा जाता है।  सीओपीडी अर्थात् क्राॅनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज (Chronic obstructive pulmonary disease), एक ऐसी गंभीर बीमारी जिसके लक्षण देखने में तो अस्थमा जैसे लगते हैं परन्तु है एकदम अस्थमा से भिन्न। यह बीमारी, सांस द्वारा ऑक्सिजन शरीर में जाने और कार्बन डाइऑक्साइड के बाहर निकलने की प्रक्रिया को ही रोक देती है। इसी विषय पर हम और अधिक जानेंगे और यही है हमारा आज का टॉपिक “सीओपीडी क्या है?”। 

देसी हैल्थ क्लब इस आर्टिकल के माध्यम से आज आपको सीओपीडी के बारे में विस्तार से जानकारी देगा और यह भी बताएगा कि इसके उपचार क्या हैं। तो, सबसे पहले जानते हैं कि सीओपीडी क्या है और सीओपीडी से फेफड़े खराब होने की प्रक्रिया। फिर इसके बाद बाकी बिन्दुओं पर जानकारी देंगे।

सीओपीडी क्या है? – What is COPD?

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सीओपीडी यानि क्राॅनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज (Chronic obstructive pulmonary disease) फेफड़ों की एक गंभीर बीमारी है जिसमें व्यक्ति सामान्य रूप से सांस लेने में असमर्थ होता है। सांस लेने की एक प्राकृतिक प्रक्रिया है जिसमें मनुष्य नाक के जरिये ऑक्सिजन अंदर खींचता है और यह ऑक्सिजन रक्त में घुल जाती है तथा कार्बन डाइऑक्साइड बाहर छोड़ता है।

सीओपीडी रोग इस प्राकृतिक प्रक्रिया को बाधित कर देता है जिससे मनुष्य सामान्य रूप से सांस नहीं ले पाता। वस्तुतः सीओपीडी, एम्फायसेमा (Emphysema) और क्राॅनिक ब्रोंकाइटिस (Chronic Bronchitis ) दो आम परिस्थितियों का मेल है। श्वासनलिकाओं (Bronchial tubes) का काम फेफड़ों में हवा ले जाने का होता है। इन श्वासनलिकाओं में आई सूजन को क्राॅनिक ब्रोंकाइटिस कहा जाता है। 

जब फेफड़ों की थैली (Bronchial) जो कि सबसे छोटे हवा के अंश से बनी होती है; धीरे-धीरे खत्म होने लगती है तब इस स्थिति को वातस्फीति (Emphysema) कहा जाता है। अतः श्वासनलिकाओं की सूजन और श्वासनलिकाओं का नष्ट होते रहना, इन दो स्थितियों का संगम ही सीओपीडी कहलाता है। इन दो स्थितियों के परिणाम स्वरूप मरीज, सांस पूरी तरह नहीं ले पाता, इस वजह से उसके शरीर में ऑक्सीजन पर्याप्त मात्रा में नहीं पहुंच पाती।

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पहले यह बीमारी अक्सर 40 वर्ष से अधिक आयु वाले लोगों को हुआ करती थी परन्तु बढ़ते प्रदूषण के कारण अब छोटे बच्चे तथा युवक भी इसकी चपेट में आ रहे हैं। यहां तक कि दो वर्ष के बच्चे भी इससे प्रभावित हो रहे हैं, उनको भी सांस लेने में दिक्कत होती है। 

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सीओपीडी से फेफड़े खराब होने की प्रक्रिया? – The Process of Lung Damage from COPD?

दोस्तो, हमने ऊपर बताया है कि श्वासनलिकाओं (Bronchial tubes) का काम फेफड़ों में हवा ले जाने का काम होता है। हवा, श्वासनली ट्रेकिआ (Trachea) और दो बड़ी ट्यूब ब्राँची (Bronchi) के जरिए फेफड़ों में पहुंचती है। श्वासनलिकाओं (Bronchial tubes) की, वृक्ष की शाखाओं की भांति छोटी-छोटी शाखाएं होती हैं और इनके दूसरे छोर पर छोटे-छोटे हवा की थैलियों का समूह होता है जिनको एलवीओली (Alveoli) कहा जाता है।

हवा की इन थैलियों में बहुत पतली सी दीवारें छोटी-छोटी रक्त केशिकाओं से भरी हुई होती हैं। जब श्वासनलिकाओं से हवा के अंदर जाने और बाहर निकलने की प्रक्रिया में रुकावट आती है तो हवा की इन थैलियों का लचीलापन खत्म हो जाता है। इस कारण सांस बाहर छोड़े जाने पर हवा के छोटे-छोटे अंश फेफड़ों में फंस जाते हैं। परिणाम स्वरूप की इन थैलियों की दीवारें क्षतिग्रस्त होने लगती हैं। वायुमार्ग की ये दीवारें मोटी हो जाती हैं और सूख जाती हैं। वायुमार्ग में सामान्य से बहुत अधिक बलगम बन जाने से हवा का मार्ग अवरुद्ध हो जाता है जिससे सामान्य रूप से सांस नहीं लिया जा सकता। 

सीओपीडी और अस्थमा में क्या अंतर है? – What is the Difference between COPD and Asthma?

सीओपीडी और अस्थमा इन दोनों बीमारियों के लक्षण देखने में एक जैसे होते हैं जैसे खांसी, बलगम और सांस लेने में परेशानी आदि परन्तु ये दोनों रोग एक-दूसरे से एकदम अलग हैं। इनमें निम्नलिखित अंतर स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है –

अस्थमा – अस्थमा भड़काऊ फेफड़े की स्थिति (inflammatory lung condition) है जिसमें श्वसन वायुमार्ग को प्रभावित होता है और सांस लेने में बहुत दिक्कत होती है। सांस की दवा इस रोग में काफी अच्छा प्रभाव डालती है। दवा से वायुमार्ग के संकुचन को खोलकर सांस लेने की दिक्कत से राहत दिलाती है। 

सीओपीडी – मुख्य रूप से दो परिस्थितियों वातस्फीति (Emphysema) और क्राॅनिक ब्रोंकाइटिस समूह से उत्पन्न भड़काऊ फेफड़ों की स्थिति है। इस रोग में वायुमार्ग स्थायी रूप से संकुचित हो जाते हैं क्योंकि फेफड़ों की थैलियां नष्ट हो जाती हैं। इसमें दवाएं बहुत कम काम करती हैं। ये वायुमार्ग के संकुचन को खोल भी सकती हैं और नहीं भी। 

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सीओपीडी के कारण – Cause of to COPD

दोस्तो, यह तो स्पष्ट है कि सीओपीडी, क्राॅनिक ब्रोंकाइटिस और वातस्फीति स्थितियों का परिणाम है। ये स्थितियां क्यों उत्पन्न होती हैं तो इसके कारण निम्नलिखित हैं –

1. प्रदूषण (Pollution)- सड़कों पर गाड़ियों से निकलने वाला धूंआ वायु में जहर घोलता है जो सांस के जरिये अंदर जाकर श्वासनलिकाओं और फेफड़ों को नुकसान पहुंचाता है। 

2. अस्वच्छ वातावरण (Unhygienic Environment)- धूल, मिट्टी, कीचड़, गंदगी आदि के कण शरीर में अंदर जाकर नुकसान पहुंचाते हैं।

3. रासायनिक वातावरण (Chemical Environment)- काम-काज का ऐसा वातावरण जहां रसायन, पेंट आदि का उपयोग होता है या कपड़ों की रंगाई में प्रयुक्त होने वाले रंगों की गंध अंदर पहुंचकर, श्वसन प्रणाली को हानि पहुंचाते हैं।

4. कुछ विशेष फैक्ट्रियां/खदान (Certain Factories/Mines)- कुछ ऐसी फैक्ट्रियां होती हैं जहां का वातावरण सीधे तौर पर श्वसन प्रणाली को प्रभावित कर नुकसान पहुंचाता है जैसे धागा और कपड़ा बनाने वाली फैक्ट्री जहां धागे के बहुत बारीक अदृश्य कण नुकसान पहुंचाते हैं। सीमेंट बनाने वाली फैक्ट्रियां, अनाज पीसने वाली बड़ी-बड़ी फैक्ट्रियां। ये सब स्वास्थ की दृष्टि से अच्छे नहीं कहे जा सकते। इसी प्रकार कोयला, बदरपुर, पत्थर खादान भी श्वसन प्रणाली को प्रभावित कर नुकसान पहुंचाते हैं। 

5. धूंआ (Fume)- गाड़ियों से निकलने वाले धूंऐ की बात हमने ऊपर कर दी है जो वायु को प्रदूषित करता है। परन्तु कुछ और भी प्रकार के धूंऐ होते हैं जो सीधे तौर पर श्वसन प्रणाली को ट्रिगर कर फेफड़ों को नुकसान पहुंचाते हैं जैसे कि धूम्रपान करना, चाहे आप सिगरेट पी रहे हों या बीड़ी या हुक्का सभी का धूंआ सीधे तौर पर फेफड़ों को खराब करता है। 

इसी प्रकार दूर दराज गांवों में जहां सभी के घर खाना बनाने के लिए गैस का इस्तेमाल नहीं होता वहां के कुछ लोग उपला, लकड़ी का इस्तेमाल करते हैं। इनसे निकलने वाला धूंआ भी सीधा फेफड़ों में जाता है। पराली जलाने से निकलने वाला धूंआ, हवन का धूंआ, शमशान में जलती चिताओं से उठने वाला धूंआ हवा में ऑक्सीजन लेवल को कम कर देता है। यद्यपि यह विवाद का प्रश्न हो सकता है परन्तु सत्य यही है इससे भी हवा की क्वालिटी खराब होती है। 

सीओपीडी के लक्षण – Symptoms of COPD

सीओपीडी के निम्नलिखित स्पष्ट लक्षण देखने को मिलते हैं –

1. डिस्पनिया यानि सांस की तकलीफ जो हल्की गतिविधि से बिगड़ जाती है।

2. सांस लेने में बहुत तकलीफ़ होना।

3. जल्दी-जल्दी तेजी से सांस लेना जैसे अक्सर एक्सरसाइज करने के बाद सांस चलती है। 

4. बलगम के साथ या बिना बलगम के खांसी उठना। 

5. खांसी में कभी-कभी खून आना 

6. गले में खिचखिच।

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7. सीने में जकड़न।

8. छाती में इंफेक्शन होना।

9. छाती में दर्द रहना

10. सांस लेने में घरघराहट की आवाज आना।

11. सर्दी, जुकाम होना।

12. घुटनों में सूजन होना।

13. वजन कम हो जाना।

14. थकावट रहना।

15. कमजोरी महसूस करना।

सीओपीडी की जटिलताएं – Complications of COPD

सीओपीडी स्वयं अपने आप में जटिलता है। इसका उपचार यदि तुरन्त ना किया जाये निम्नलिखित जटिलताएं बन सकती हैं – 

1. फेफड़े बहुत कठोर हो जाते हैं जिससे अनेक प्रकार की बीमारियां हो सकती हैं।

2. फेफड़ों में पस पड़ सकती है।

3. फेफड़ों का कैंसर होने की संभावना बढ़ जाती है।

सीओपीडी का निदान – COPD Diagnosis

सीओपीडी के निदान के लिए डॉक्टर सबसे पहले प्राथमिक जांच करते हैं, फिर यह निर्धारित करते हैं कि कौन-कौन से टेस्ट करवाये जाने चाहियें। विवरण निम्न प्रकार है –

1. प्राथमिक जांच – प्राथमिक जांच के अंतर्गत डाक्टर निम्नलिखित जानकारी प्राप्त करते हैं –

(i) मरीज के लक्षणों का मूल्यांकन किया जाता है।

(ii) स्टेथस्कोप के जरिए, सांसों को सुनकर छाती का परीक्षण करते हैं।

(iii) मरीज की पिछली और वर्तमान मेडिकल हिस्ट्री की जानकारी लेते हैं।

(iv) मरीज के कार्य का प्रकार और कार्य स्थल के वातावरण की जानकारी ली जाती है कि मरीज प्रदूषण युक्त वातावरण में तो काम नहीं कर रहा या ऐसा कोई काम तो नहीं कर रहा जिसमें धूल, धूंआ, मिट्टी, प्रदूषित हवा, रसायनिक प्रभाव शामिल है।

(v) मरीज धूम्रपान करता है या नहीं। यदि करता है तो कब से और कितना धूम्रपान करता है।

(vi) मरीज को पुरानी खांसी तो नहीं है या कभी थी।

(vii) परिवार के किसी सदस्य को कभी फेफड़ों से संबंधित बीमारी तो नहीं रही, या है।

2. टेस्ट – प्राथमिक परीक्षण के बाद निम्नलिखित टेस्ट करवाए जा सकते हैं – 

(i) स्पिरोमेट्री (Spirometry) – इस टेस्ट के लिये मरीज को स्पिरोमीटर मशीन से सांस लेने को कहा जाता है। इससे जो रीडिंग मिलती है उसकी तुलना मरीज की आयु के हिसाब से की जाती है। इससे यह पता चलता है कि मरीज के वायुमार्ग में कोई रुकावट है अथवा नहीं। 

(ii) एक्स-रे (x-ray)- फेफड़ों से संबंधित किसी भी रोग के लिए छाती का एक्स-रे जरूरी माना जाता है। सीओपीडी के मामले में भी छाती का एक्स-रे करवाया जाता है। इससे फेफड़ों में संक्रमण तथा अन्य समस्या का पता लग जाता है।

(iii) रक्त परीक्षण (Blood Test)- रक्त में आयरन का स्तर जानने के लिये तथा अन्य स्थितियों की जानकारी के लिये रक्त परीक्षण किया जाता है जैसे कि रक्त में ऑक्सीजन की मात्रा कितनी है, फेफड़े, रक्त में ऑक्सीजन को सही से स्थानांतरित करने में सक्षम हैं या नहीं और रक्त से कार्बन डाइऑक्साइड को हटा रहे हैं या नहीं आदि। 

(iv) अन्य परीक्षण (Other Tests)- रक्त परीक्षण के अतिरिक्त कुछ अन्य टेस्ट भी कराए जा सकते हैं जैसे कि धमनी रक्त गैस परीक्षण या नाड़ी ऑक्सीमेट्री आदि। 

सीओपीडी के उपचार – Treatment of COPD

दोस्तो, यह एक विडंबना है कि सीओपीडी का कोई समुचित उपचार नहीं है परन्तु फिर भी इस बीमारी का इलाज किया जाता है ताकि इसके लक्षणों में सुधार कर, मरीज को राहत पहुंचाई जा सके। इसके लिए, कुछ थेरेपी और दवाओं का सहारा लिया जाता है। कुछ मामलों में मरीज की जान बचाने के लिए सर्जरी भी की जा सकती है। विवरण निम्न प्रकार है – 

1. निकोटीन रिप्लेसमेंट थेरेपी (Nicotine Replacement Therapy)- इस थेरेपी से मरीज को धूम्रपान छोड़ने में मदद मिलती है। इस थेरेपी में धूम्रपान छोड़ने के लिए कुछ दवाओं का इस्तेमाल किया जाता है।

2. ऑक्सीजन थेरेपी (Oxygen Therapy)- यह थेरेपी रक्त में ऑक्सीजन के गिरते स्तर को रोकने के लिए की जाती है। जांच के दौरान जब किसी मरीज के रक्त में, ऑक्सीजन के स्तर में कमी पाई जाती है तब नाक की ट्यूबों और मास्क के जरिये ऑक्सीजन लेने की सलाह दी जाती है। इसे मरीज अपने घर पर ही ले सकता है। 

3. गैर-आक्रामक वेंटिलेशन (Non-invasive ventilation) – उपचार की इस विधि को उस समय अपनाया जाता है जब मरीज को अस्पताल में भर्ती कराना पड़ता है। इस विधि में मरीज को नाक प्रवेशनी (आपकी नाक में डाली गई एक नरम ट्यूब) या एक मशीन से जुड़ा फेस मास्क पहना दिया जाता है।

यह हवा को मरीज के फेफड़ों में पहुंचाता है। इससे मांसपेशियों को आराम मिलता है और सांस लेने में मदद मिलती है। यह ऑक्सीजन स्तर को बढ़ाता है तथा कार्बन डाइऑक्साइड बाहर निकालने का काम करता है। 

4. इनहेलर (Inhaler)- इस उपकरण के द्वारा सांस के  जरिये मरीज के अंदर दवा पहुंचाई जाती है। विवरण निम्न प्रकार है –

(i) ब्रोंकोडायलेटर्स (Bronchodilators) – आम तौर सीपीओडी के मरीजों के लिये, सबसे अधिक इसी का उपयोग किया जाता है। इसका उपयोग दवा के रूप में किया जाता है जो वायुमार्ग को खोलकर सांस लेने को आसान बनाता है।

(ii) स्टेरॉयड (Steroids) – इसमें कॉर्टिकोस्टेरॉयड (Corticosteroid) दवाएं होती हैं जो वायुमार्ग में सूजन को कम करने का काम करती हैं। 

5.दवाएं (Medicines)- सीओपीडी की गंभीरता को ध्यान में रखते हुए डॉक्टर कुछ दवाएं दे सकते हैं जो सीओपीडी के लक्षणों में सुधार ला सकती हैं। विवरण निम्न प्रकार है –

(i) म्यूकोलाईटिक (Mucolytic) – ये टेबलेट, कैप्सूल और सिरिप फॉर्म में होती हैं। इनसे थूक पतला हो जाता है और गले में जमे बलगम को हटाने का काम करती हैं, खांसी में आराम पहुंचाती हैं।  इससे सांस लेना आसान हो जाता है।

(ii) थियोफिल्लाइन (Theophylline) – यह वायुमार्ग को खोलती है जिससे सांस लेना आसान हो जाता है।

6. सर्जरी (Surgery) – सीओपीडी और वातस्फीति (Emphysema) के कुछ मामलों में सर्जरी की भी आवश्यकता होती है। विवरण निम्न प्रकार है – 

(i) लंग वॉल्यूम रिडक्शन सर्जरी (LVRS) – इस सर्जरी में फेफड़ों के क्षतिग्रस्त ऊतकों (Tissues) को हटा दिया जाता है। इससे फेफड़ों को फैलाव की जगह मिल जाती है। इससे फेफड़े स्वस्थ रहते हैं और सांस लेने में आसानी रहता है। यद्यपि यह जोखिम भरी सर्जरी होती है परन्तु वातस्फीति के लिये महत्वपूर्ण और Perfect सर्जरी उपचार है। 

(ii) बुलेक्टॉमी (Bullectomy) – जब फेफड़ों में बुलै (Bullae) नामक बड़े एयर स्पेस बनते हैं तो इनको सर्जरी प्रक्रिया द्वारा हटाना पड़ता है। इनके हटने से वायु प्रवाह में सुधार आता है। ये बुलै एयर स्पेस फेफड़ों में तब बनते हैं जब एयर सैक्स (Air sacs) क्षतिग्रस्त हो जाते हैं।

(iii) लंग ट्रांसप्लांट (Lung Transplant) – यह सर्जरी बहुत ही Rare case में की जाती है जब सीओपीडी बहुत ही गंभीर स्थिति में पहुंच जाती है और फेफड़े इस हद तक खराब हो जाते हैं कि उनको बदलना मरीज का जीवन बचाने के लिए जरूरी हो जाता है। फेफड़े का प्रत्यारोपण मरीज की आयु, उसके कुल स्वास्थ की स्थिति, अन्य बीमारियों की जांच रिपोर्ट के आधार पर किया जाता है। यह प्रत्यारोपण हर किसी के लिये suitable नहीं होता क्योंकि इसके साइड इफैक्ट्स भी बहुत होते हैं।

सीओपीडी से बचाव के उपाय – Ways to Prevent COPD 

दोस्तो, अब बताते हैं आपको कुछ निम्नलिखित उपाय जिनको अपनाकर सीओपीडी की स्थिति से बच सकते हैं।

1. धूम्रपान न करें (Don’t Smoke)- यदि आप अपने फेफड़ों को स्वस्थ और स्वच्छ  रखना चाहते हैं तो आप तंबाकू का सेवन किसी भी रूप में ना करें। सिगरेट, बीड़ी, हुक्का, सिगार आदि या खैनी, गुटखा अथवा तंबाकू वाला पान कभी इस्तेमाल ना करें। यदि आप करते हैं तो इनको अभी तुरन्त छोड़ें और इनसे तौबा करें। क्योंकि ये फेफड़ों के स्वास्थ के लिये सबसे ज्यादा खतरनाक पदार्थ होते हैं।

2. पैसिव स्मोकिंग से बचें (Avoid Passive Smoking)- दोस्तो, जितना स्मोकिंग करना फेफड़ों के लिए खतरनाक है, उससे कहीं ज्यादा खतरनाक पैसिव स्मोकिंग है। पैसिव स्मोकिंग को सेकेन्ड हेंड स्मोकिंग भी कहा जाता है। जब कोई स्मोकिंग ना करने वाला व्यक्ति बीड़ी, सिगरेट आदि के धूंए की चपेट में आता है तो इसे पैसिव स्मोकिंग कहा जाता है। इससे अपना बचाव करना चाहिए।

ये भी पढ़े- पैसिव स्मोकिंग क्या है?

3. प्रदूषण से बचें (Avoid Pollution)- मिट्टी, धूल, धूंआ युक्त वायु प्रदूषित वातावरण में जाने से बचें क्योंकि इनके सूक्षम कण सांस के जरिये अंदर जाकर सीधे फेफड़ों पर अटैक करते हैं। इनसे फेफड़े खराब होते हैं।

4. रासायनिक और गैसीय वातावरण से बचें (Avoid Chemical and Gaseous Environment)- उन स्थानों पर ना जाऐं जहां का वातावरण रसायनों और गैसों से भरा हो। यदि आपका कार्य और कार्य-स्थल ही ऐसा है तो इनसे बचने के सुझाए गये उपायों का पालन करें ताकि आपके स्वास्थ का नुकसान ना हो।

5. व्यायाम करें (Exercise)- नियमित रूप से व्यायाम करें। इससे आपका शारीरिक और मानसिक स्वास्थ सही रहेगा और फेफड़े भी स्वस्थ रहेंगे।

6. योग, ध्यान, प्राणायाम (Yoga, Meditation, Pranayama)- नियमित रूप से योग, ध्यान, प्राणायाम, अनुलोम-विलोम करें। सूर्य नमस्कार, भुजंगासन, शलभासन, दंडासन, बितिलासन आदि योगासन करें। इन सभी से श्वसन प्रणाली साफ रहती है, स्वस्थ बनती है और फेफड़ों को मजबूती मिलती है। श्वसन और फेफड़ों संबंधी समस्याएं दूर रहती हैं।

7. पौष्टिक आहार (Nutritious Food)- शारीरिक और मानसिक स्वास्थ के लिए पौष्टिक आहार बेहद जरूरी है। इससे प्रतिरक्षा प्रणाली मजबूत होती है जिससे संक्रमण से होने वाली बीमारियों से बचाव होता है। शरीर का प्रत्येक अंग श्वसन प्रणाली और फेफड़े आदि स्वस्थ रहते हैं।

अपने आहार में फलों, हरी सब्जियों, साबुत अनाज आदि को सम्मलित करें। पानी पर्याप्त मात्रा में पीएं ताकि शरीर हायड्रेट रहे। हां, सर्दी के मौसम में, रात्री के भोजन के पश्चात् थोड़ा सा गुड़ अवश्य खाएं, इससे शरीर के अंदर की सारी गंदगी निकल जाएगी और पाचन तंत्र स्वस्थ रहेगा।

Conclusion – 

दोस्तो, आज के आर्टिकल में हमने आपको सीओपीडी के बारे में विस्तार से जानकारी दी। सीओपीडी क्या है?, सीओपीडी से फेफड़े खराब होने की प्रक्रिया, सीओपीडी और अस्थमा में क्या अंतर है, सीओपीडी के कारण, सीओपीडी के लक्षण, सीओपीडी की जटिलताएं और सीओपीडी का निदान, इन सब के बारे में भी विस्तार पूर्वक बताया। देसी हैल्थ क्लब ने इस आर्टिकल के माध्यम से सीओपीडी के उपचार बताये और सीओपीडी से बचाव के उपाय भी बताये। आशा है आपको ये आर्टिकल अवश्य पसन्द आयेगा। 

दोस्तो, इस आर्टिकल से संबंधित यदि आपके मन में कोई शंका है, कोई प्रश्न है तो आर्टिकल के अंत में, Comment box में, comment करके अवश्य बताइये ताकि हम आपकी शंका का समाधान कर सकें और आपके प्रश्न का उत्तर दे सकें। और यह भी बताइये कि यह आर्टिकल आपको कैसा लगा। आप इस पोस्ट को अपने दोस्तों और सगे – सम्बन्धियों के साथ भी शेयर कीजिये ताकि सभी इसका लाभ उठा सकें। दोस्तो, आप अपनी टिप्पणियां (Comments), सुझाव, राय कृपया अवश्य भेजिये ताकि हमारा मनोबल बढ़ सके। और हम आपके लिए ऐसे ही Health-Related Topic लाते रहें। धन्यवाद।

Disclaimer – यह आर्टिकल केवल जानकारी मात्र है। किसी भी प्रकार की हानि के लिये ब्लॉगर/लेखक उत्तरदायी नहीं है। कृपया डॉक्टर/विशेषज्ञ से सलाह ले लें।

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दोस्तो, आज के आर्टिकल में हमने आपको सीओपीडी के बारे में विस्तार से जानकारी दी। सीओपीडी क्या है?, सीओपीडी से फेफड़े खराब होने की प्रक्रिया, सीओपीडी और अस्थमा में क्या अंतर है, सीओपीडी के कारण, सीओपीडी के लक्षण, सीओपीडी की जटिलताएं और सीओपीडी का निदान, इन सब के बारे में भी विस्तार पूर्वक बताया।
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