Advertisements

कुष्ठ रोग क्या है? – What is Leprosy in Hindi

कुष्ठ रोग क्या है?

स्वागत है आपका हमारे ब्लॉग पर। दोस्तो, एक समय था जब भारत में “कुष्ठ रोग” को देवी, देवताओं का प्रकोप तथा अभिशाप माना जाता था। समाज में इसे कलंक समझा जाता था। रोगी को समाज में घृणा की दृष्टि से देखा जाता था। आज भी कहीं-कहीं दूर दराज क्षेत्रों में इसे अभिशाप ही माना जाता है। समय के साथ लोगों की सोच बदली और जनसंख्या का बहुत बड़ा भाग इसे एक बीमारी का रूप मानने लगा है। वास्तविकता भी यही है कि कुष्ठ रोग एक बीमारी है जो “माइकोबैक्टीरियम लेप्री” नाम के बैक्टीरिया के संक्रमण की वजह से पैदा होती है और इसका इलाज संभव है। आखिर ऐसा क्या है इस बीमारी में जो सदियों तक रोगी समाज में घृणा का पात्र बना रहा और लोगों की सोच में बदलाव आया। दोस्तो, यही है हमारा आज का टॉपिक “कुष्ठ रोग क्या है?”। 

देसी हैल्थ क्लब इस आर्टिकल के माध्यम से आज आपको कुष्ठ रोग के बारे में विस्तार से जानकारी देगा और यह भी बताएगा कि इसके घरेलू उपाय क्या हैं? तो, सबसे पहले जानते हैं कि कुष्ठ रोग क्या है, कुष्ठ रोग और महात्मा गांधी तथा कुष्ठ रोग कितने प्रकार का होता है। फिर इसके बाद बाकी बिन्दुओं पर जानकारी देंगे।

कुष्ठ रोग क्या है? – What is Leprosy?

दोस्तो, कुष्ठ रोग (Leprosy) वास्तव में एक बैक्टीरियल संक्रमण का परिणाम है जो “माइकोबैक्टीरियम लेप्री” (Mycobacterium leprae) नामक जीवाणुओं द्वारा फैलता है। सन् 1873 में कुष्ठ रोग के जीवाणुओं की खोज महान चिकित्सक गेरहार्ड आर्मोर हैन्सेन (Gerhard Armauer Hansen) ने की थी इसलिए रोग को “हन्सेन रोग” भी कहा जाता है। 

Advertisements

कुष्ठ रोग को आम भाषा में कोढ़ कहा जाता है और इससे पीड़ित रोगी को कोढ़ी। यह एक ऐसा संक्रमण है जो लंबे समय तक रहता है और लगातार बढ़ता रहता है। इस संक्रमण से मुख्य रुप से शरीर की नसें, हाथ-पैरों, नाक की परत और ऊपरी श्वसन तंत्र प्रभावित होते हैं। यह रोग नसों को नुकसान पहुंचाता है, त्वचा में घाव कर देता है तथा मांसपेशियों को कमजोर बना देता है। इसका इतिहास सदियों पुराना है।

600 सदी ईसा पूर्व, भारत की सुश्रुत संहिता में इसका उल्लेख मिलता है और साथ ही उपचार के लिए सलाह भी। ब्राजील बाइबिल के अतिरिक्त विश्व की कई धार्मिक पुस्तकों में इस रोग का वर्णन मिलता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार, आज भी विश्व के 159 देश कुष्ठ रोग के प्रभाव में हैं तथा लगभग 1,80,000 लोग कुष्ठ रोग से संक्रमित हैं, जिनमें अधिकतर अफ्रीका और एशिया के लोग हैं।

कुष्ठ रोग और महात्मा गांधी – Leprosy and Mahatma Gandhi

दोस्तो, हमने ऊपर बताया है कि भारत में कुष्ठ रोग को देवी, देवता का अभिशाप माना जाता था, समाज में इसे कलंक समझा जाता था, लोग कुष्ठ रोगियों से नफरत करते थे। उनका समाज में उठने-बैठने का कोई स्थान नहीं था और उनके सम्मान का तो प्रश्न ही उपस्थित नहीं होता। उनकी स्थिति दयनीय थी। ऐसे में महात्मा गांधी कुष्ठ रोगियों के लिए देवदूत बनकर आए। ये कुष्ठ रोगियों के प्रति स्नेह और सहानुभूति रखते थे। 

Advertisements

महात्मा गांधी ने कुष्ट रोगियों के प्रति समाज को जागरूक किया, उन्होंने लोगों को समझाया कि यह कुष्ठ, अन्य रोगों की भांति ही रोग है, इसलिये रोग को दूर करो ना कि रोगी को। रोगी को आप लोगों की सेवा की जरूरत है। महात्मा गांधी ने व्यक्तिगत रूप से कुष्ठ रोगियों की सेवा की। वे उनकी मरहम पट्टी खुद किया करते थे। यह देख लोगों का नज़रिया बदला, वे भी कुष्ठ रोगियों की सेवा से जुड़ने लगे। और इस प्रकार महात्मा गांधी का, कुष्ठ रोगियों को समाज की मुख्य धारा में जोड़ने का प्रयास सफल रहा। महात्मा गांधी के इस योगदान के लिये राष्ट्र, 30 जनवरी यानि महात्मा गांधी की पुण्य तिथि को “कुष्ठ रोग निवारण दिवस” के रूप में मनाता है।

ये भी पढ़ें- चिकन पॉक्स क्या है?

कुष्ठ रोग के प्रकार – Types of Leprosy

दोस्तो, यदि आयुर्वेद की बात की जाए तो समझिये कि आयुर्वेद में 18 प्रकार के कुष्ठ रोग बताए गए हैं जिनमें 8 महाकुष्ठ और 11 क्षुद्रकुष्ठ कहलाते हैं। आयुर्वेद सभी प्रकार के त्वचा रोगों को “कुष्ठ” की श्रेणी में रखता है। आधुनिक चिकित्सा पद्धति में कुष्ठ रोग निम्नलिखित तीन भागों में विभाजित करता है –

1. ट्यूबरकुलॉइड लेप्रोसी (Tuberculoid Leprosy) –  इस प्रकार के लेप्रोसी में त्वचा पर घाव बनते हैं, सफेद धब्बे होते हैं और त्वचा का रंग पीला पड़ जाता है। इसमें तंत्रिकाओं की भी क्षति होती है। इस प्रकार की लेप्रोसी के अपने आप ठीक होने की संभावना होती है।

2. लेप्रोमेटस लेप्रोसी (Lepromatous Leprosy) – यह, ट्यूबरकुलॉइड लेप्रोसी की तुलना में अधिक गंभीर होती है। इसमें भी त्वचा पर घाव बनते हैं। मांसपेशियों की कमजोर हो जाती हैं, प्रभावित हिस्सों का मांस बढ़ने लगता है और गांठ बनने लगती हैं। इस प्रकार के लेप्रोसी में किडनी, नाक और प्रजनन अंग प्रभावित हो सकते हैं। 

3. बॉर्डरलाइन लेप्रोसी (Borderline Leprosy) – लेप्रोसी के इस प्रकार में त्वचा पर लाल रंग के अनियमित आकार के कई घाव हो जाते हैं। लेप्रोसी के इस प्रकार को “त्वचा संबंधी त्वचा की स्थिति” भी कहा जाता है। डब्ल्यूएचओ ने लेप्रोसी को निम्नलिखित दो भागों में विभाजित किया है –

1. पॉसिबैसिलरी (Paucibacillary) – इसमें बिना बैक्टीरिया की मौजूदगी के त्वचा पर कम घाव बनते हैं।

2. मल्टीबैसिलरी (Multibacillary) – इसमें बैक्टीरिया की मौजूदगी होती है त्वचा पर अधिक घाव होते हैं।

कुष्ठ रोग कैसे फैलता है? – How is Leprosy Spread?

कुष्ठ रोग निम्न प्रकार से फैलता है –

1. संक्रमित व्यक्ति के खांसने और छींकने से उसके मुंह से तरल पदार्थ की सूक्ष्म बूंदे हवा में फैल जाती हैं। इन बूंदों में कुष्ठ रोग के बैक्टीरिया होते हैं। यदि कोई अन्य व्यक्ति इन बूंदों के सम्पर्क में आता है तो सांस के जरिये यह बैक्टीरिया उसके अंदर चले जाते हैं। फिर वह भी संक्रमित हो जाता है।

2. संक्रमित व्यक्ति को यदि जुकाम है तो उसकी नाक से निकलने वाले म्यूकस से हवा में कुष्ठ रोग के बैक्टीरिया फैल सकते हैं।

3. संक्रमित व्यक्ति से निरन्तर शारीरिक संबंध बनाते रहना।

4. बच्चे तथा कमजोर प्रतिरक्षा प्रणाली वाले लोग जल्दी संक्रमित होते हैं।

किन स्थितियों में संक्रमण नहीं फैलता – In which Situations the Infection does not Spread

निम्नलिखित स्थितियों में कुष्ठ रोग का संक्रमण नहीं फैलता –

1. यह वंशानुगत नहीं है यानि परिवार में किसी को कुष्ठ रोग है तो जरूरी नहीं कि उसकी संतान को भी भविष्य में कुष्ठ रोग हो।

2. कुष्ठ रोग से पीड़ित व्यक्ति के साथ थोड़े समय के लिए संपर्क रहने से।

3. संक्रमित व्यक्ति को गले लगाने या हाथ मिलाने से।

4. संक्रमित व्यक्ति के सामने बैठने से।

5. भोजन करते समय एक साथ बैठने से।

6. शारीरिक सम्बन्ध बनाने से।

7. संक्रमित गर्भवती मां से उसके बच्चे को कोई खतरा नहीं।

ये भी पढ़ें- मंकी पॉक्स क्या है?

कुष्ठ रोग की जटिलताएं – Complications of Leprosy

यदि कुष्ठ रोग का उपचार ना करवाया जाये तो निम्नलिखित जटिलताएं उत्पन्न हो सकती हैं –

1. हाथ पैरों में लकवा मार सकता है।

2. गंभीर घाव होने के कारण हाथ पैरों की उंगलियों का आकार छोटा हो सकता है या बिगड़ सकता है।

3. पैरों के तलवों में, ना ठीक होने वाले गंभीर छाले हो सकते हैं।

4. बाल झड़ सकते हैं। पलकों और भवों पर भी बुरा असर पड़ सकता है।

5. दृष्टि जा सकती है।

6. नाक की मुद्रा बदल सकती है।

7. किडनी खराब हो सकती हैं।

8. त्वचा में जलन बनी रह सकती है।

9. नसों में लगातार दर्द बने रह सकता है।

10. नपुंसकता तथा बांझपन।

कुष्ठ रोग के कारण  – Cause of Leprosy

कुष्ठ रोग क्यों होता है, इस सम्बन्ध में कोई स्पष्ट और प्रमाणिक जानकारी उपलब्ध नहीं है। फिर भी इसके निम्नलिखित कारण हो सकते हैं –

1. माइकोबैक्टीरियम लेप्री नामक बैक्टीरिया कुष्ठ रोग का आधार है।

2. कुष्ठ रोग के जीवाणुओं के हवा में फैलने पर इनके सम्पर्क में आने वाले व्यक्ति को कुष्ठ रोग होने का खतरा हो जाता है।

3. कुष्ठ रोग से पीड़ित व्यक्ति जिसका इलाज ना चल रहा  हो, यदि उसके संपर्क में कोई लंबे समय तक रहता है तो उसे कुष्ठ रोग हो सकता है।

कुष्ठ रोग के लक्षण – Symptoms of Leprosy

कुष्ठ रोग के निम्नलिखित लक्षण हो सकते हैं –

1. त्वचा में संवेदन शून्यता अर्थात् स्पर्श महसूस ना होना।

2. तापमान में परिवर्तन का अनुभव ना होना।

3. नसों का क्षतिग्रस्त हो जाना।

4. जोड़ों में दर्द रहना।

ये भी पढ़ें- यूरिक एसिड के घरेलू उपाय

5.  वजन घटना।

6. त्वचा पर घाव और चकत्ते बनना।

7. त्वचा के रंग में परिवर्तन।

8. त्वचा पर पीले रंग के घाव होना और लाल रंग के धब्बे पड़ना।

9. बालों का झड़ना।

10. चेहरे का रूप बिगड़ जाना तथा नाक की आकृति में परिवर्तन

11. पलक झपकने की गति कम होना।

12. लंबे समय में दृष्टिपात तथा उंगलियों का आकार छोटा हो जाना।

कुष्ठ रोग का निदान – Diagnosis of Leprosy

निम्न प्रकार से कुष्ठ रोग का निदान किया जाता  है –

1. शारीरिक परीक्षण (Physical Examination)- आमतौर पर कुष्ठ रोग की पहचान, मरीज के लक्षण देखकर ही आसानी से हो जाती है। डॉक्टर शारीरिक परीक्षण करते हैं।

2. बायोप्सी (Biopsy)- शारीरिक परीक्षण के बाद कुष्ठ रोग को कन्फर्म करने के लिए डॉक्टर बायोप्सी करते हैं जिसे “स्किन बायोप्सी” कहा जाता है। इसके लिए प्रभावित त्वचा के ऊतक का सेंपल लेते हैं या घाव को खुरच कर सेंपल लेते हैं, इसे “स्क्रैपिंग” कहा जाता है। सेंपल लेकर इसे लैब में जांच के लिए भेज दिया जाता है।

3. लेप्रोमिन स्किन टेस्ट (Lepromin Skin Test)- इस टेस्ट के लिये डॉक्टर इंजेक्शन के कुष्ठ रोग उत्पन्न करने वाले बैक्टीरिया की एक छोटी मात्रा को शरीर में (बाजू के अगले हिस्से में) डालते हैं। यदि कुष्ठ रोग है तो मरीज को इंजेक्शन वाले स्थान पर तकलीफ होती है।

कुष्ठ रोग का उपचार – Treatment of Leprosy

कुष्ठ रोग का उपचार इस बात पर निर्भर करता है कि कुष्ठ रोग किस प्रकार का है। देसी हैल्थ क्लब यहां स्पष्ट करता है कि कुष्ठ रोग में बैक्टीरिया के कारण जो नसें क्षतिग्रस्त हो गईं, तो हो गईं, ये दुबारा से ठीक नहीं हो सकतीं। हां, इतना जरूर है कि नसें भविष्य में और क्षतिग्रस्त ना हों, इसके प्रयास किए जाते हैं। सन् 1995 में, विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कुष्ठ रोग के इलाज के लिए मल्टीपल थेरेपी को विकसित किया था। कुष्ठ रोग के उपचार के लिये एंटीबायोटिक्स दवाओं का सहारा लिया जाता है। विवरण निम्न प्रकार है –

1. एंटीबायोटिक (Antibiotic)- कुष्ठ रोग के उपचार के लिए दो या इससे ज्यादा प्रकार की एंटीबायोटिक दी जा सकती हैं। इन दवाओं का कोर्स छः महीने या एक वर्ष का हो सकता है। गंभीर कुष्ठ रोग के मामलों में यह कोर्स और भी लंबा चल सकता है। एंटीबायोटिक्स में निम्न लिखित दवाएं सम्मलित हो सकती हैं –

(i) डैपसोन (Dapsone)

(ii) रिफैम्पिन (Rifampin)

(iii) क्लोफैजामिन (Clofazimine)

(iv) मिनोसाइक्लिन (Minocycline)

(v) ओफ़्लॉक्सासिन (Ofloxacin)

2. एंटी इंफ्लेमेटरी दवाएं (Anti Inflammatory Medicines)- भविष्य में नसों की और क्षति को रोकने के उद्देश्य से तथा नसों के दर्द और सूजन को कम करने के लिए प्रेडनीसोन जैसी कुछ स्टेरॉयड दवाएं दी जा सकती हैं।

3. गर्भवती महिलाओं के लिए (Pregnant Women)- गर्भवती महिलाओं के लिए या वे महिलाएं जो गर्भवती हो सकती हैं उनको थैलिडोमाइड (Thalidomide) नहीं दी जाती क्योंकि ये बच्चे में गंभीर जन्म दोष की वजह बन सकती हैं।

कुष्ठ रोग से बचाव – Prevention of Leprosy

निम्नलिखित उपाय अपनाकर कुष्ठ रोग से काफी हद तक बचाव किया जा सकता है –

1. टीकाकरण (Vaccination)- यद्यपि अब तक ऐसा कोई टीका नहीं बना जो कुष्ठ रोग से पूरी तरह सुरक्षित कर सके परन्तु बीसीजी (BCG) तथा अन्य टीके कुष्ठ रोग से काफी हद तक बचाव कर सकते हैं।

2. जागरूकता (Awareness)- सार्वजनिक शिक्षा और सामुदायिक जागरूकता बेहद जरूरी है। समय-समय पर कुष्ठ रोग के बारे में लोगों को जागरूक करने के लिये अभियान चलाये जाने चाहियें। इसके लिए केंप लगाए जा सकते हैं ताकि जो लोग पहले से ही इस रोग का शिकार हैं वे जल्दी से जल्दी अपना इलाज करायें।

3. निगरानी (Supervision)- कुष्ठ रोग से पीड़ित व्यक्ति के सम्पर्क में आने वाले हर व्यक्ति पर नज़र बनाए रखनी चाहिए ताकि कुष्ठ रोग से जुड़े किसी भी प्रकार के लक्षणों या संकेतों का पता तुरंत चल सके।

4. परीक्षण और इलाज (Test and Treat)- जिन लोगों में कुष्ठ रोग कन्फ़र्म हो चुका है उनको तुरन्त इलाज कराना चाहिए तथा जिनको अपने में या किसी अन्य व्यक्ति में कुष्ठ रोग होने शक है उनको परीक्षण तुरन्त करवाना चाहिए ताकि समय रहते इलाज हो सके।

5. सम्पर्क में ना आना (Don’t Get in Touch)- लंबे समय तक ऐसे लोगों के सम्पर्क में ना आयें जो कुष्ठ रोग से पीड़ित होने के बावजूद इलाज नहीं करवा रहे। यही सबसे बड़ा बचाव है।

कुष्ठ रोग के घरेलू उपाय – Home Remedies for Leprosy

दोस्तो, अब बताते हैं आपको निम्नलिखित कुछ घरेलू उपाय जिनके जरिये कुष्ठ रोग से राहत पाई जा सकती है –

1. हल्दी (Turmeric)- दोस्तो, हल्दी केवल मसाला ही नहीं है बल्कि अयुर्वेदिक दवा भी है। इसमें एंटीऑक्सीडेंट, एंटीइंफ्लामेट्री और एंटीबैक्टीरियल गुण होते हैं। ये गुण संक्रमण को दूर कर सूजन को कम करने में मदद करते हैं। इसके एंटीऑक्सीडेंट गुण प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत करती है जो किसी भी संक्रमण के विरुद्ध लड़कर शरीर को संक्रमण से बचाती है और स्वास्थ की रक्षा करती है। 

हल्दी में हाइडेकोटायल (Hypocotyl) भी उपलब्ध होता है। हल्दी कुष्ठ रोग के उपचार के लिए अत्यंत लाभदायक होती है। हल्दी पाउडर को पट्टी में लगाकर प्रभावित त्वचा पर लपेट दें। इससे नसों में दर्द और सूजन खत्म हो जाएंगे। लंबे समय तक इस प्रकार हल्दी का उपयोग करने से त्वचा में सुधार होगा।

2. नीम (Neem Tree)- नीम को वृक्षराज कहा जाता है। यह औषधी के रूप अनेक रोगों के उपचार में लाभ पहुंचाता है। त्वचा से सम्बन्धित रोगों के उपचार में लिए यह रामबाण उपाय है। इसमें उपस्थित एंटीबैक्टीरियल गुण बैक्टीरिया से लड़कर संक्रमण को खत्म करता है। कुष्ठ रोग के उपचार के लिये नीम की पत्तियों को पीसकर पेस्ट बना लें। इस पेस्ट में काली मिर्च पाउडर मिलाकर प्रभावित त्वचा पर लगाएं।

इस पेस्ट में काली मिर्च पाउडर मिलाकर प्रभावित त्वचा पर लगाएं। इससे सूजन कम हो जाएगी, दर्द में भी आराम लग जाएगा और घाव भी भर जाएगा। यह एक बेहतरीन एंटीसेप्टिक के रूप में काम करता है। नीम की पत्तियों को पानी में उबालकर, पानी ठंडा करके इस नीम वाले पानी से नहाएं।

3. राइजोम (Rhizome) – इसे हिंदी में प्रकंद कहा जाता है। यह पौधे का मुख्य तना होता है जो भूमि के अंदर चलता है। राइजोम को रेंगने वाले रूटस्टॉक्स या रूटस्टॉक्स के रूप में जाना जाता है। यह अनेक रोगों के उपचार में लाभदायक होता है। इसमें उपस्थित एंटीफंगल गुण शरीर में मौजूद माइकोबैक्टीरियम को कम करने में मदद करते हैं और साथ ही स्वास्थ में सुधार करता है। इसे कुष्ठ रोग के उपचार के लिए भी उपयोग में लाया जा सकता है।

4. व्हीट ग्रास (Wheat Grass)- व्हीट ग्रास कुष्ठ रोग के उपचार के लिये बहुत ही बेहतरीन उपाय है। यह शरीर के अनेक रोगों को दूर करने में सक्षम होती है। निरन्तर, केवल तीन महीने तक इसका उपयोग करने से कुष्ठ रोग के लक्षणों को कम किया जा सकता है। व्हीट ग्रास को पीसकर इसका पेस्ट बनाएं और इस पेस्ट को प्रभावित त्वचा पर लगाएं। पहले ही दिन इससे आराम महसूस होगा।

5. चालमोगरा का तेल (Kalmogra Oil) – चालमोगरा का तेल कुष्ठ रोग के लक्षणों को कम करने में मददगार होता है। इसके तेल में नींबू की कुछ बूंदे मिलाकर या नीम के तेल की कुछ बूंदे मिलाकर प्रभावित त्वचा पर लगाकर मालिश करें। इस तेल में मौजूद एंटीबैक्टीरियल गुण बैक्टीरिया को खत्म करने में मदद करते हैं। इससे घाव भी जल्दी भरते हैं। 

पतंजलि के अनुसार “कुष्ठ रोगी को पहले 10 बूंदें तेल की पिलानी चाहिए, जिससे वमन होकर शरीर के सब दोष बाहर आ जायें। तत्पश्चात् 5-6 बूंदों को कैप्सूल में डालकर या दूध व मक्खन में भोजनोपरांत सुबह-शाम दें। धीरे-धीरे मात्रा बढ़ाकर 60 बूंदें तक ले जायें”।

6. अमलतास (Amaltas)- अमलतास त्वचा के रोगों में लाभकारी होता है। इसकी जड़, पत्तियां और फली कुष्ठ रोग में फायदा पहुंचाती है। अमलतास की 10-12 पत्तियों को सिरका के साथ पीसकर पेस्ट बना लें। इस पेस्ट को प्रभावित त्वचा पर लगाएं। या अमलतास की जड़ को पीसकर, इसके पेस्ट को त्वचा पर लगाएं। कुष्ठ रोग ठीक हो जाएगा। विकल्प स्वरूप अमलतास की फली (मज्जा) की 5-10 ग्राम मात्रा लेकर एक गिलास गाय के गुनगुने दूध के साथ सेवन करें।

7. तुलसी (Basil)- भारत में तुलसी का पौधा लगभग हर घर में मिल जाएगा क्योंकि यह औषधिय गुणों का भंडार है। इसमें एंटीऑक्सीडेंट, एंटीइंफ्लामेट्री, एंटीबैक्टीरियल आदि अनेक गुण मौजूद होते हैं। 

ये गुण दर्द को खत्म करके सूजन को कम करते हैं। इसके एंटीबैक्टीरियल गुण कुष्ठ रोग के बैक्टीरिया को खत्म करते हैं। कुष्ठ रोग से राहत पाने के लिए प्रतिदिन तुलसी की 15-20 पत्तियों को पीसकर दही में मिलाकर खाएं। 4-5 सप्ताह खाने के बाद कुष्ठ रोग समाप्त हो जाएगा।

ये भी पढ़ें- तुलसी के फायदे

8. एरोमाथेरेपी (Aromatherapy) – थेरेपी भी रोगों के उपचार की विधि एक अहम हिस्सा है। कुष्ठ रोग के निवारण के लिए एरोमाथेरेपी लाभदायक होती है। इस थेरेपी में अनेक गुणकारी तेलों का उपयोग किया जाता है। यह तेल एक प्रकार से शरीर के लिए एंटी-सेप्टिक एजेंट के रूप में कार्य करता है तथा टॉनिक के रूप में भी। 

Conclusion –

दोस्तो, आज के आर्टिकल में हमने आपको कुष्ठ रोग के बारे में विस्तार से जानकारी दी। कुष्ठ रोग क्या है?, कुष्ठ रोग और महात्मा गांधी, कुष्ठ रोग के प्रकार, कुष्ठ रोग कैसे फैलता है, किन स्थितियों में संक्रमण नहीं फैलता, कुष्ठ रोग की जटिलताएं, कुष्ठ रोग के कारण, कुष्ठ रोग के लक्षण, कुष्ठ रोग का निदान, कुष्ठ रोग का उपचार और कुष्ठ रोग से बचाव, इन सब के बारे में भी विस्तार पूर्वक बताया। देसी हैल्थ क्लब ने इस आर्टिकल के माध्यम से कुष्ठ रोग के बहुत सारे घरेलू उपाय भी बताये। आशा है आपको ये आर्टिकल अवश्य पसन्द आयेगा।

दोस्तो, इस आर्टिकल से संबंधित यदि आपके मन में कोई शंका है, कोई प्रश्न है तो आर्टिकल के अंत में, Comment box में, comment करके अवश्य बताइये ताकि हम आपकी शंका का समाधान कर सकें और आपके प्रश्न का उत्तर दे सकें। और यह भी बताइये कि यह आर्टिकल आपको कैसा लगा। आप इस पोस्ट को अपने दोस्तों और सगे – सम्बन्धियों के साथ भी शेयर कीजिये ताकि सभी इसका लाभ उठा सकें। दोस्तो, आप अपनी टिप्पणियां (Comments), सुझाव, राय कृपया अवश्य भेजिये ताकि हमारा मनोबल बढ़ सके। और हम आपके लिए ऐसे ही Health-Related Topic लाते रहें। धन्यवाद।

Disclaimer – यह आर्टिकल केवल जानकारी मात्र है। किसी भी प्रकार की हानि के लिये ब्लॉगर/लेखक उत्तरदायी नहीं है। कृपया डॉक्टर/विशेषज्ञ से सलाह ले लें।

Summary
Advertisements
कुष्ठ रोग क्या है?
Advertisements
Article Name
कुष्ठ रोग क्या है?
Description
दोस्तो, आज के आर्टिकल में हमने आपको कुष्ठ रोग के बारे में विस्तार से जानकारी दी। कुष्ठ रोग क्या है?, कुष्ठ रोग और महात्मा गांधी, कुष्ठ रोग के प्रकार, कुष्ठ रोग कैसे फैलता है, किन स्थितियों में संक्रमण नहीं फैलता, कुष्ठ रोग की जटिलताएं, कुष्ठ रोग के कारण, कुष्ठ रोग के लक्षण, कुष्ठ रोग का निदान, कुष्ठ रोग का उपचार और कुष्ठ रोग से बचाव, इन सब के बारे में भी विस्तार पूर्वक बताया।
Author
Publisher Name
Desi Health Club
Publisher Logo

One thought on “कुष्ठ रोग क्या है? – What is Leprosy in Hindi

  1. An excellent Article. Contribution of Mahatma Gandhi to aware the Society and his personal services to the patients is supreme

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *