स्वागत है आपका हमारे ब्लॉग पर। दोस्तो, प्रकृति अपना संतुलन बनाए रखती है। जब इसका संतुलन बिगड़ता है तो धरा पर बहुत उथल-पुथल होती है। यही बात हमारे जीवन में और शरीर पर लागू होती है। संतुलन बिगड़ने पर जीवन की सुचारु रूप से चलने वाली गतिविधियां प्रभावित होती हैं और शरीर में किसी भी वस्तु का संतुलन बिगड़ने पर हम बीमार पड़ जाते हैं। ऐसी ही एक स्थिति बनती है जब रक्त में सफेद रक्त कोशिकाओं का एक प्रकार, इओसिनोफिल की संख्या बढ़ जाती है तो इसे इओसिनोफिलिया कहा जाता है। इसके बढ़ने से फेफड़े, हृदय, किडनी, मस्तिष्क आदि प्रभावित होते हैं। दोस्तो, आज का हमारा टॉपिक भी यही है “इओसिनोफिलिया क्या है?”।
देसी हैल्थ क्लब इस आर्टिकल के माध्यम से आज आपको इओसिनोफिलिया के बारे में विस्तार से जानकारी देगा यह भी बताएगा कि इओसिनोफिलिया के घरेलू उपाय क्या है? तो, सबसे पहले जानते हैं कि इओसिनोफिलिया क्या हैं और यह कितना होना चाहिए? फिर इसके बाद बाकी बिन्दुओं पर जानकारी देंगे।
इओसिनोफिलिया क्या है? – What is Eosinophilia?
दोस्तो, हमारे रक्त में तीन प्रकार की कोशिकाएं होती हैं – लाल रक्त कोशिकाएं, सफेद रक्त कोशिकाएं और प्लाज्मा। इओसिनोफिल, वस्तुतः सफेद रक्त कोशिकाओं ल्यूकोसाइट (Leukocyte) का एक प्रकार होता है जो कि प्रतिरक्षा प्रणाली का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।
इसका काम किसी भी प्रकार की एलर्जी, इंफेक्शन और रसायनिक प्रतिक्रियाओं (Chemical reactions) के विरुद्ध लड़कर, इनसे होने वाली बीमारियों से रक्षा करता है। इओसिनोफिल कोशिकाओं का निर्माण अस्थि मज्जा (Bone Marrow) में होता है और इनका पूरी तरह से विकास होने में आठ दिन का समय लग जाता है। रक्त में इओसिनोफिल कोशिकाओं की मात्रा निश्चित होती है।
रक्त में जब इओसिनोफिल की मात्रा (संख्या) बढ़ जाती है तो ये इओसिनोफिल्स शरीर के विभिन्न अंगों में जमा होकर इन अंगों को क्षति पहुंचाते हुए धीरे-धीरे नष्ट करने लगते हैं। यह एक रोग है और इस रोग को इओसिनोफिलिया (Eosinophilia) कहा जाता है। इओसिनोफिलिया रोग से फेफड़े, हृदय, रक्त वाहिकाएं, किडनी, साइनस, मस्तिष्क आदि प्रभावित हो सकते हैं।
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इओसिनोफिलिया कितना होना चाहिए? – How much Should be Eosinophils?
इओसिनोफिल, एक परिधीय (Peripheral) रक्त कणों का हिस्सा होता है। यह शून्य (0) से 7 प्रतिशत तक होना सामान्य माना जाता है। इसका एब्सोल्यूट (Absolute Count) 500 इओसिनोफिल्स प्रति माइक्रोलीटर होता है। यदि वयस्कों में इस्नोफिल्स की मात्रा 500 इओसिनोफिल्स प्रति माइक्रोलीटर से अधिक हो तो इसे मेडिकल भाषा में इओसिनोफिलिया कहा जाता है।
मेडिकल टर्म में इओसिनोफिलिया को एक परिधीय (Peripheral) रक्त इओसिनोफिलिया गिनती > 500 / एमसीएल (> 0।5 × 10⁹ /एल), के रूप में परिभाषित किया गया है।
इओसिनोफिलिया से होने वाले रोग – Diseases Caused by Eosinophilia
इओसिनोफिलिया का इलाज कराना बेहद जरूरी होता है क्यों कि इसके कारण निम्नलिखित गंभीर रोग होने की संभावना रहती है –
1. इओसिनोफिलिक एसोफेगेटिस (Eosinophilic Esophagitis) – यह अन्नप्रणाली का एक विकार है। जिसमें रोगी को सांस लेने में दिक्कत भी होती, है गले में सूजन आ जाती है तथा इससे मस्तिष्क भी प्रभावित होता है।
2. इओसिनोफिलिक कोलाइटिस (Eosinophilic Colitis) – यह बड़ी आंत का एक विकार है।
3. इओसिनोफिलिक गैस्ट्रिटिस (Eosinophilic Gastritis) – यह पेट का एक विकार है।
4. इओसिनोफिलिक गैस्ट्रोएंटेराइटिस (Eosinophilic gastroenteritis) – यह पेट और छोटी आंत दोनों का विकार है।
5. इओसिनोफिलिक निमोनिया (Eosinophilic Pneumonia) – यह फेफड़ों का विकार है।
6. इओसिनोफिलिक सिस्टिटिस (Eosinophilic Cystitis) – यह मूत्राशय से संबंधित विकार है।
7. इओसिनोफिलिक एन्टराइटिस (Eosinophilic enteritis)।
8. हाइपेरोसिनोफिलिक सिंड्रोम (Hypereosinophilic Syndrome)।
इओसिनोफिलिया के कारण – Cause of Eosinophilia
रक्त में इओसिनोफिल बढ़ने के निम्नलिखित कारण हो सकते हैं –
1. अस्थमा
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2. एलर्जी
3. एलर्जिक राइनाइटिस
4. परजीवी और फंगल इंफेक्शन
5. कैंसर होना
6. त्वचा संबंधी रोग/विकार
7. कोई ऑटोइम्यून रोग होना
8. बोन मैरो संबंधी कोई रोग/विकार
9. रक्त में कोई विकार
10. गठिया या अन्य कोई कोलेजन (Collagen) रयूमेटिक (Rheumatic) की समस्या
11. पेट में कीड़े होना
12. कुछ दवाओं की प्रतिक्रिया जैसे सल्फोनामाइड्स, पेनिसिलीन्स, नाइट्रोफ्यूरेटिन आदि
13. बहुत अधिक मात्रा में ऑयली, तीखा, तेज मिर्च मसाले वाले और मीठी-खट्टी खाद्य पदार्थों का सेवन करना
14. दोपहर में सोना
इओसिनोफिलिया के लक्षण – Symptoms of Eosinophilia
इओसिनोफिलिया के निम्नलिखित लक्षण प्रकट हो सकते हैं –
1. कमजोरी, थकावट
2. वजन कम होना
3. पेट में दर्द
4. मांसपेशियों में दर्द
5. भोजन का अन्नप्रणाली (Esophagus) में अटक जाना
6. छाती में दर्द, जलन
7. सांस लेने में दिक्कत
8. गले में सूजन
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9. पेट के ऊपरी भाग में दर्द
10. बुखार
11. त्वचा पर रैशेज पड़ जाना
12. गैस्ट्रोइसोफेगल रिफ्लक्स रोग की दवा की प्रतिक्रिया
इओसिनोफिलिया का परीक्षण – Test for Eosinophilia
इओसिनोफिलिया के परीक्षण के लिए निम्नलिखित टेस्ट किए जाते हैं –
1. ब्लड टेस्ट (Blood Test)- ब्लड सेंपल लेकर पूर्ण रक्त गणना (Complete Blood Count) की जाती है। इससे रक्त में इओसिनोफिल्स कोशिकाओं के बढ़े हुए स्तर का पता चल जाता है। इसकी पुष्टि के लिए कुछ अन्य निम्नलिखित टेस्ट किये जाते हैं
2. कुछ अन्य प्रकार के ब्लड टेस्ट
3. लिवर फंक्शन टेस्ट
4. किडनी फंक्शन टेस्ट
5. यूरिन टेस्ट
6. स्टूल टेस्ट
7. छाती का एक्स-रे
8. ऊतकों और बोन मेरो की बायोप्सी
9. बलगम आदि अन्य द्रवों की जांच
इओसिनोफिलिया का इलाज – Treatment of Eosinophilia
इओसिनोफिलिया का इलाज उसके कारण और लक्षणों को जानने के बाद उसी के अनुसार पर किया जाता है अर्थात् –
1. यदि किसी को इओसिनोफिलिया अस्थमा के कारण हुआ है तो, इसका उपचार फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन (FDA) के द्वारा स्वीकृत दवाओं के जरिये किया जाता है। इन दवाओं द्वारा उपचार केवल अस्पताल में ही किया जाता है।
2. यदि किसी दवाई या खाद्य पदार्थ के कारण इओसिनोफिलिया की समस्या बनी है तो इन दवाओं को बंद किया जा सकता है।
3. इनके लक्षणों को कम करने के लिए एंटीइंफ्लेमेटरी जैसी विशेष दवाएं दी जा सकती हैं जो सूजन और जलन को कम करती हैं।
इओसिनोफिलिया में परहेज – Contraindications in Eosinophilia
इओसिनोफिलिया की समस्या होने पर निम्नलिखित खाद्य पदार्थों का परहेज करना आवश्यक समझा जाता है –
1. दूध और दूध से बने उत्पाद।
2. विशेष रूप से दही का सख्त परहेज होता है।
3. मीठे पदार्थ।
4. खट्टे पदार्थ जैसे नींबू, अचार, इमली, खटाई आदि।
5. बहुत अधिक ऑयली, तीखे, तेज मिर्च मसाले वाले खाद्य पदार्थ।
इओसिनोफिलिया के घरेलू उपाय – Home Remedies for Eosinophilia
और अब बताते हैं आपको कुछ घरेलू उपाय जो इओसिनोफिलिया से राहत दिलाने में मददगार होते हैं। विवरण निम्न प्रकार हैं –
1. नीम (Neem)- नीम एक प्राकृतिक उपचार का उत्तम स्रोत है। यह औषधीय गुणों का खजाना है। यह रक्त विकार को दूर करता है, रक्त का शुद्धीकरण करता है। इओसिनोफिलिया से राहत पाने के लिये प्रतिदिन भोजन करने के बाद नीम की पत्तियों का एक चम्मच जूस पीएं।
2. प्याज (Onion)- प्याज भी औषधीय गुणों से सम्पन्न होती है। प्रतिदिन सुबह एक चम्मच प्याज का रस निकालकर, एक गिलास पानी में मिलाकर पीएं। इससे इओसिनोफिलिया में राहत मिलेगी।
3. शहद(Honey) – एंटीबायोटिक गुणों से समृद्ध शहद अनेक बीमारियों के उपचार में काम आता है। यह इओसिनोफिलिया की समस्या से भी राहत दिला सकता है। इसके लिए प्रतिदिन सुबह गिलास गुनगुने पानी में एक चम्मच शहद मिलाकर पीएं। इससे प्रतिरक्षा प्रणाली में भी वृद्धि होगी और सफेद रक्त कोशिकाओं की मात्रा भी सामान्य रहेगी।
4. काली मिर्च (Black Paper)- काली मिर्च मसाले की श्रेणी में आती है परन्तु औषधीय गुणों से भरपूर होने के कारण अनेक रोगों के उपचार में काम आती है। इओसिनोफिलिया से राहत पाने के लिए प्रतिदिन आधा चम्मच काली मिर्च पाउडर, एक चम्मच शहद में मिलाकर खाएं। इससे प्रतिरक्षा प्रणाली में भी बढ़ोतरी होगी।
5. हल्दी (Turmeric)– अनेक औषधीय गुणों से भरपूर हल्दी एक प्राकृतिक एंटीसेप्टिक है। इसे एंटीबायोटिक माना जाता है। प्रतिदिन रात को सोने से पहले एक गिलास गुनगुने दूध में एक चम्मच हल्दी पाउडर मिलाकर पीएं।
हल्दी के एनाल्जेसिक गुण मांसपेशियों के दर्द को खत्म करते हैं और एंटीइंफ्लामेटरी गुण सूजन को कम करने में मदद करते हैं। इसे गोल्डन मिल्क भी कहा जाता है। इससे प्रतिरक्षा प्रणाली में भी वृद्धि होगी।
6. अदरक (Ginger)- अदरक भी मसाले की श्रेणी में आती है। औषधीय गुणों से समृद्ध होने के कारण भारत में इसका उपयोग मसाले के रूप में, के अतिरिक्त इसका उपयोग चाय में भी किया जाता है, विशेषकर सर्दियों के मौसम में।
इसके बिना चाय अपूर्ण मानी जाती है। इओसिनोफिलिया से राहत पाने के लिए भोजन में उपयोग करने के अतिरिक्त इसे अच्छी तरह कूटकर प्रतिदिन चाय बनाते समय, चाय में डालकर पीएं। इसके एंटीइंफ्लामेटरी गुण सूजन को खत्म करने में मदद करेंगे।
7. मेथी (Fenugreek)- मेथी, साक सब्जी के उपयोग के अतिरिक्त, अनेक रोगों के निवारण में भी काम आती है, विशेषकर डायबिटीज में। शरीर में किसी भी प्रकार के संक्रमण को खत्म करने के लिए मेथी रामबाण उपाय है।
यह प्रतिरक्षा प्रणाली को भी बढ़ाती है। इओसिनोफिलिया में रोजाना एक गिलास गुनगुने पानी में एक चम्मच मेथी पाउडर मिलाकर गरारे करें, इससे गले की सूजन कम हो जाएगी और इओसिनोफिलिया की समस्या भी।
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8. नीलगिरी का तेल (Nilgiri Oil)- नीलगिरी के तेल में एंटीवायरल, एंटीमाइक्रोबियल, एंटीइंफ्लेमेटरी, एनाल्जेसिक, एंटीसेप्टिक, एंटीइंफेक्टिव, एंटीफंगल आदि अनेक गुण होते हैं। इसके एनाल्जेसिक और एंटीइंफ्लेमेटरी गुण दर्द से राहत दिलाते हैं और सूजन को खत्म करते हैं।
उष्णकटिबंधीय ईओसिनोफिलिया की स्थिति में बलगम बहुत सख्त हो जाता है जिसके निकलने में बहुत दिक्कत होती है। इसके लिए रोजाना गर्म पानी में नीलगिरी तेल की कुछ बूंदें डालकर भाप लें। इससे बलगम पतला होकर कट जाएगा और आसानी से बाहर निकल जाएगा।
इओसिनोफिलिया के लिए योग और व्यायाम – Yoga and Exercise for Eosinophilia
घरेलू उपायों के अतिरिक्त, योग और व्यायाम भी इओसिनोफिलिया से राहत दिला सकते हैं। इसके लिये निम्नलिखित योग, योग गुरू की देखरेख में कर सकते हैं –
1. प्राणायाम
2. सूर्य नमस्कार
3. त्रिकोणप्रणामासन
4. वज्रासन
5. शशांकासन
Conclusion –
दोस्तो, आज के आर्टिकल में हमने आपको इओसिनोफिलिया के बारे में विस्तार से जानकारी दी। इओसिनोफिलिया क्या है?, इओसिनोफिल कितना होना चाहिए, इओसिनोफिलिया से होने वाले रोग, इओसिनोफिलिया के कारण, इओसिनोफिलिया के लक्षण, इओसिनोफिलिया का परीक्षण, इओसिनोफिलिया का इलाज और इओसिनोफिलिया में परहेज, इन सब के बारे में भी विस्तार पूर्वक बताया। देसी हैल्थ क्लब ने इस आर्टिकल के माध्यम से इओसिनोफिलिया के बहुत सारे घरेलू उपाय बताए और इओसिनोफिलिया के लिए योग और व्यायाम भी बताए। आशा है आपको ये आर्टिकल अवश्य पसन्द आयेगा।
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