स्वागत है आपका हमारे ब्लॉग में। दोस्तो, पहले कभी किसी को कुत्ता काट लेता था तो वह रेबीज के इंजेक्शन लगवाने से बहुत डरता था। क्यों कि सरकारी अस्पताल में इसके 14 इंजेक्शन लगते थे और वह भी पेट में। इसी डर के कारण अधिकतर ग्रामीणवासी इंजेक्शन नहीं लगवाते थे। शहरों में भी कुछ लोग घबराते थे और रेबीज के इंजेक्शन नहीं लेते थे। इसके परिणाम स्वरूप मृत्यु दर भी ज्यादा थी।
मगर अब मामला बहुत बदल चुका है। यदि कुत्ते का यह पता चल जाए कि पालतू था और यह पता चल जाए कि किस नस्ल का था तो एंजेक्शन की संख्या कम हो जाती है। यदि किसी को प्री एक्सपोजर रेबीज की खुराक दी जा चुकी हैं तो भी एंजेक्शन की संख्या भी कम हो जाती है। रेबीज एक ऐसा रोग है कि यदि यह मस्तिष्क में पहुंच गया तो फिर इसका कोई इलाज नहीं है और अंततः रोगी की मृत्यु हो जाती है। इसलिये किसी जानवर द्वारा काटे जाने पर इसका तुरन्त उपचार कराना ही जान बचा सकता है। आखिर क्या है ये रेबीज जो इतना खतरनाक है। दोस्तो, यही है हमारा आज का टॉपिक “रेबीज क्या है?”।
देसी हैल्थ क्लब इस आर्टिकल के माध्यम से आपको रेबीज के बारे में विस्तार से जानकारी देगा और इसके उपचार के बारे में भी बताएगा। तो, सबसे पहले जानते हैं कि रेबीज क्या है और रेबीज फैलाने वाले जानवर। फिर, इसके बाद बाकी बिंदुओं पर जानकारी देंगे।
रेबीज क्या है? – What is Rabies?
रेबीज एक घातक संक्रमण रोग है जो संक्रमित जानवरों की लार, काटने और खरोचने से मानव में फैलता है। इस रोग को जूनोटिक रोगों के अंतर्गत वर्गीकृत किया गया है। न्यूरोट्रोपिक लाइसिसिवर्स (Neurotropic Lyssavirus) नामक वायरस से रेबीज से पनपता है। न्यूरोट्रोपिक वायरस इतना शक्तिशाली है कि यह लार ग्रंथियों और केंद्रीय तंत्रिका तंत्र को प्रभावित करने में सक्षम होता है। रेबीज को हाइड्रोफोबिया या लिसा (Hydrophobia or Lisa) के नाम से भी जाना जाता है।
भारत सहित कई देश ऐसे हैं जहां सामान्यतः कुत्तों में रेबीज होता है, 99% से अधिक मामले कुत्तों के काटने के नोटिस किए गए हैं। अमेरिका जैसे देश जहां चमगादड़ों में रेबिज अधिक होता है, कुत्तों के काटने के मामले केवल 5% हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के आंकड़े बताते हैं कि हर वर्ष विश्व में 59,000 लोगों की मृत्यु रेबीज के कारण होती है जिनमें 90% मामले संक्रमित कुत्तों से रेबीज के होते हैं। भारत में ही हर वर्ष रेबीज से बच्चों सहित 18,000 से 20,000 लोगों की मृत्यु होती है।
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रेबीज फैलाने वाले जानवर – Animals that Spread Rabies
दोस्तो वो स्तनधारी जानवर जो अपने बच्चों को दूध पिलाते हैं, रेबीज फैलाने में सक्षम होते हैं। इनमें कुछ जंगली जानवर और कुछ पालतू जानवर सम्मलित होते हैं। ये पशु निम्नलिखित हैं –
- चमगादड़
- बंदर
- लोमड़ी
- बीवर (Beaver)
- काइओट (Coyotes)
- वुडचुक्स (Woodchucks)
- रैकून
- कुत्ता
- बिल्ली
- बकरी
- गाय
- घोड़ा
रेबीज किसे हो सकता है? – Who can Get Rabies?
- अंटार्कटिका महाद्वीप को छोड़ कर विश्व के हर देश के लोगों को रेबीज हो सकता है।
- व्यस्कों की तुलना में बच्चों को रेबीज होने की संभावना अधिक होती है क्यों कि बच्चों की इम्युनिटी कमजोर होती है।
रेबीज कैसे काम करता है? – How does Rabies Work?
यहां हम स्पष्ट कर दें कि जब कोई संक्रमित जानवर काटता है तो उसके काटने से उस जानवर की लार शरीर में प्रवेश कर जाती है। रेबीज, नसों में बहुत कम गति से आगे बढ़ता है। फिर केंद्रीय तंत्रिका तंत्र में पहुँच कर न्यूरोलॉजिकल तथा अन्य समस्याओं की वजह बनता है। सिलसिलेवार इसकी यात्रा और प्रभाव निम्नलिखित हैं –
1. आरम्भ (Beginning)- शुरुआत में ही तुरन्त इसका उपचार करवाना चाहिए, अन्यथा यह शरीर में रह जाएगा। यह शरीर में कई दिनों या हफ्तों तक रह सकता है। इसके कोई लक्षण प्रकट नहीं होते। फिर यह धीरे-धीरे नसों के जरिए तंत्रिका तंत्र (ऊष्मायन) (Nervous System – Incubation) में पहुंचता है।
2. दूसरा चरण (Second Phase)- इस चरण में रेबीज तंत्रिका तंत्र (ऊष्मायन) में पहुंचकर तंत्रिका कोशिकाओं के जरिए मस्तिष्क और रीढ़ की हड्डी में फैल जाता है और तंत्रिका को क्षतिग्रस्त करने लगता है। इसे प्रोड्रोमल फेस (Prodromal phase) कहा जाता है। तंत्रिका के क्षतिग्रस्त होने के कारण, जहां जानवर ने काटा था वहां दर्द, सुन्नता और झुनझुनी जैसे लक्षण महसूस होते हैं। रेबीज, तंत्रिका तंत्र में दो या दस दिन तक रहता है।
3. तीसरा चरण (Third Step)- मस्तिष्क और रीढ़ की हड्डी में पहुंचकर, रेबीज रीढ़ की हड्डी और मस्तिष्क का नुकसान करने लगता है। ये रेबीज उग्र हो चुके होते हैं और लगभग दो तिहाई लोगों में पाए जाते हैं। प्रलाप (अपने आप ही बोलते रहना), दौरे पड़ना, व्यवहार में आक्रामकता जैसे लक्षण इस चरण में प्रकट होते हैं। अन्य लोगों को लकवाग्रस्त रेबीज (Paralytic rabies) होता है जो एक महीने तक रह सकता है। यह प्रभावित त्वचा से शरीर के अन्य भागों में फैलने लगता है। इसे एक्यूट न्यूरोलॉजिकल फेस कहा जाता है।
4. अंतिम चरण (Last Stage)- यह रेबीज का अंतिम चरण होता है जिसे कोमा या मौत का चरण कहा जाता है क्योंकि जानवर के काटने के समय ही इसका इलाज हो जाए तो ठीक है। फिर किसी भी चरण के रेबीज का इलाज नहीं होता। रेबीज के इस चरण में मरीज या तो कोमा में चला जाता है या उसकी मृत्यु हो जाती है।
रेबीज के कारण – Cause of Rabies
रेबीज के कारण निम्नलिखित हैं –
- न्यूरोट्रोपिक लाइसिसिवर्स नामक वारस रेबीज संक्रमण का मुख्य कारण होता है।
- रेबीज संक्रमित जानवर के काटे जाने से उसकी लार के कारण रेबीज होता है।
- त्वचा के घाव को संक्रमित जानवर द्वारा चाटे जाने पर जानवर की लार का शरीर में चले जाना।
रेबीज के जोखिम कारक – Risk Factors for Rabies
रेबीज होने के निम्नलिखित जोखिम कारक हो सकते हैं –
- ऐसे देशों की यात्रा जहां कुत्ते, बिल्ली, चमगादड़ बहुतायत में हों और रेबीज होना आम हो।
- अपने ही देश में उस स्थान पर जाना जहां कुत्ते, बिल्ली, चमगादड़ अधिक हों।
- जंगलों में जाना और जंगली जानवरों से सावधान ना रहना या सुरक्षा के इंतजाम ना करना।
- ऐसी गुफाओं/पुरानी हवेलियों, महलों को खोजना जहां चमगादड़ों का वास हो।
- पशु अस्पताल में, पशु चिकित्सक/कर्मचारी के रूप में कार्य करना।
- अपने पालतू पशु (कुत्ता) को समय-समय पर एंटीरेबीज टीका ना लगवाना।
- रेबीज वायरस के साथ लैब में काम करना।
रेबीज के लक्षण – Symptoms of Rabies
शुरुआत में जानवर द्वारा काटे जाने पर रेबीज के कोई लक्षण नहीं होते परन्तु जब ये तंत्रिका तंत्र में प्रवेश करता है और विकसित होकर नुकसान पहुंचाता रहता है तो इनके निम्नलिखित लक्षण प्रकट होते हैं –
- प्रभावित त्वचा में जलन, खुजली, झुनझुनी, सुन्नता दर्द महसूस होना।
- बुखार
- खांसी
- थकावट
- मांसपेशियों में दर्द
- गला खराब होना
- मितली, उल्टी
- दस्त लगना
- व्यवहार में आक्रामकता
- बैचैनी
- आप ही आप बोलते रहना
- दौरे पड़ना
- मतिभ्रम
- पानी से डर लगना
- अत्याधिक लार का बनना
- गर्दन में अकड़न
- सिर में दर्द
- त्वचा में सुन्नता, संवेदनहीनता
- चेहरा टेढ़ा पड़ जाना
- शरीर के किसी हिस्से का लकवाग्रस्त हो जाना।
रेबीज का निदान – Rabies Diagnosis
कुत्ता, बंदर आदि के काट लेने पर मरीज को तुरन्त डॉक्टर के पास जाना चाहिए। डॉक्टर शारीरिक परीक्षण के बाद निम्न लिखित टेस्ट कराने को कह सकते हैं –
1. शारीरिक परीक्षण और वार्तालाप (Physical Examination and Conversation)- डॉक्टर मरीज के घाव की जांच करते हैं और मरीज से जानवर के बारे में पूछते हैं। यदि कुत्ते ने काटा है तो यह जानकारी ली जाती है कि कुत्ता पालतू था या आवारा। वार्तालाप द्वारा डायग्नोज करके टीकों की संख्या निर्धारित करते हैं कि कितने टीके लगाए जाएंगे।
2. लार परीक्षण (Saliva Test)- यह टेस्ट रेबीज के लक्षणों और उनके बढ़ने की गति की जानकारी के लिए किया जाता है।
3. त्वचा बायोप्सी (Skin Biopsy)- रेबीज के लक्षणों की जांच के लिए गर्दन के पीछे से त्वचा का एक सेंपल लेकर लैब भेज दिया जाता है।
4. मस्तिष्कमेरु द्रव परीक्षण (Cerebrospinal fluid test (Lumbar Puncture) – यह टेस्ट भी रेबीज के लक्षणों की जांच के लिए किया जाता है। इसके लिए कमर के निचले भाग से Cerebrospinal fluid का सेंपल लेकर लैब भेज दिया जाता है।
5. एमआरआई (MRI) – रेबीज की वजह से मस्तिष्क में हो रहे परिवर्तनों की जांच के लिये यह टेस्ट करवाया जाता है।
6. रक्त परीक्षण (Blood Test)- बहुत ही कम मामलों में रेबीज के लक्षणों की जांच के लिए बांह से बल्ड सेंपल लेकर लैब भेज दिया जाता है।
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रेबीज से बचाव के उपाय – Rabies Prevention Measures
दोस्तो, निम्नलिखित उपाय अपना कर रेबीज के संक्रमण से बचा जा सकता है और इसे मस्तिष्क में जाने से रोका जा सकता है –
- किसी भी पशु द्वारा काटे जाने पर या खंरोंच आने पर उस स्थान को कम से कम 15 मिनट तक साबुन और पानी, पोवीडोन आयोडीन या डिटर्जेंट से अचछी तरह धोना चाहिए। इससे विषाणुओं के मरने की संभावना 50% तक हो जाएगी। इसके बाद डॉक्टर के पास जाएं ताकि फौरन उचित उपचार हो सके।
- कुत्ता, बिल्ली या बंदर द्वारा काटे जाने के पर 24 घंटे के अंदर रेबीज का पहला टीका अवश्य लगवाएं।
- ऐसे देशों की यात्रा को अवॉइड करें जहां रेबीज के मामले अधिक हों या रेबीज फैलाने वाले पशु अधिक हों।
- अपने देश में भी उन स्थानों पर जाने से बचें जहां कुत्ते, बंदर, चमगादड़ अधिक हों।
- गुफाओं, खंडहरों, पुराने महलों, हवेलियों में जाने से बचें।
- अपने पालतू कुत्तों, बिल्लियों को रेबीज का टीका लगवाएं।
- ऐसे स्थान जहां पशुओं के साथ या पशुओं के लिए काम करना होता है जैसे कि पशु अस्पताल, रेबीज लैब आदि, तो पहले अपने को रेबीज टीकाकरण प्राप्त करें।
- जंगली जानवरों के संपर्क में ना आएं।
- पालतू जानवरों को बाहर घूमने के लिए ना छोड़ें।
- अपने घर, पड़ोस या आसपास के क्षेत्र में आवारा कुत्तों, बन्दर तथा चमगादड़ों के आतंक की खबर स्थानीय पशु नियंत्रण विभाग को दें।
भारत में कानूनी स्थिति – Legal Status in India
भारत में कानूनी स्थिति निम्न प्रकार है –
- किसी के पालतू कुत्ते द्वारा काटे जाने पर IPC की धारा 289 के अंतर्गत FIR दर्ज हो सकती है।
- IPC की धारा 289 के अंतर्गत कुत्ते के मालिक अथवा मालकिन को अधिकतम 6 महीने की जेल या 1 हजार रुपए का जुर्माना अथवा दोनों हो सकते हैं।
- आवारा कुत्तों की शिकायत, अपने शहर की नगर निगम अथवा वहां काम कर रहे संबंधित NGO को कर सकते हैं जहां कुत्तों को वैक्सीनेट कर दिया जाता है।
रेबीज का उपचार क्यों काम नहीं करता? – Why Doesn’t Rabies Treatment Work?
दोस्तो, रेबीज का उपचार यदि शुरुआत में ही कर लिया जाए तो बेहतर है अन्यथा रेबीज का मस्तिष्क में प्रवेश करने के बाद इसका कोई भी इलाज काम नहीं करता। इसका कारण है यह कि रेबीज, मस्तिष्क की सुरक्षा कवच की कार्य प्रणाली को ही बंद कर देता है।
इसको इस तरह समझिए कि सिर में मस्तिष्क और रक्त वाहिकाओं के बीच, बहुत बारीक छलनी की तरह एक सुरक्षा परत होती है जिसे रक्त-मस्तिष्क बाधा कहा जाता है। यह सुरक्षा परत रक्त में उपस्थित विषाक्त पदार्थों व अन्य खतरनाक पदार्थों को मस्तिष्क में जाने से रोकती है और मस्तिष्क की रक्षा करती है।
रेबीज, इस सुरक्षा परत की कार्य प्रणाली को ही शट-डाउन कर देता है और मस्तिष्क में “दवाओं की पहुंच” रुक जाती है। आज तक शोधकर्ता इसका कारण नहीं जान पाए हैं। यह ठीक इसी तरह है जैसे कि कोई वायरस किसी कंप्यूटर की सिस्टम और एक्जीक्युटिव फाइलस् को खा जाता है अथवा किसी स्थान/देश की सुरक्षा प्रणाली को तहस-नहस कर देना।
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रेबीज का उपचार – Rabies Treatment
दोस्तो, जैसा कि हमने ऊपर बताया है कि रेबीज का उपचार यदि शुरुआत में ही कर लिया जाए तो बेहतर है अन्यथा रेबीज का मस्तिष्क में प्रवेश करने के बाद इसका कोई भी इलाज काम नहीं करता। इसलिए इसका उपचार किसी जानवर के काटने के समय ही तुरन्त करवा लेना चाहिए। इसके लिए उपचार की निम्नलिखित विधि अपनाई जा सकती हैं –
- किसी भी जानवर के काटने पर 15 मिनट तक घाव को पानी साबुन, पोवीडोन आयोडीन या डिटर्जेंट से अच्छी तरह धोकर डॉक्टर के पास जाएं और विस्तार से बताएं कि किस जानवर ने काटा है और क्या वह पालतू था।
- डॉक्टर रेबीज की रोकथाम के लिए कई टीके लगाए जा सकते हैं और यदि पहले कभी टीका नहीं लगा है तो घाव के लिए एंटीबॉडी उपचार भी दिया जाएगा।
- रेबीज एक्सपोजर होने से पहले “प्री एक्सपोजर रेबीज वैक्सीन” लगायी जाती है, इसका विवरण निम्न प्रकार है –
(i) पहली खुराक (खुराक 1) – उचित समय पर
(ii) खुराक 2 – पहली खुराक के 7 दिन बाद
(3) खुराक 3 – पहली खुराक के 21 या 28 दिन बाद
- डॉक्टर, रेबीज के टीके के 14 दिनों में चार शॉट देगा। यदि एक्सपोजर से पहले टीका लग चुका है, तो केवल दो शॉट्स दिये जाते हैं। यह टीका रेबीज के वायरस को मस्तिष्क में पहुंचने से पहले ही खत्म कर देता है।
Conclusion –
दोस्तो, आज के आर्टिकल में हमने आपको रेबीज के बारे में विस्तार से जानकारी दी। रेबीज क्या है, रेबीज फैलाने वाले जानवर, रेबीज किसे हो सकता है, रेबीज कैसे काम करता है, रेबीज के कारण, रेबीज के जोखिम कारक, रेबीज के लक्षण, रेबीज का निदान, रेबीज से बचाव के उपाय, भारत में कानूनी स्थिति और रेबीज का उपचार क्यों काम नहीं करता, इन सब के बारे में भी विस्तार पूर्वक बताया। देसी हैल्थ क्लब ने इस आर्टिकल के माध्यम से रेबीज के उपचार के बारे में भी बताया। आशा है आपको ये आर्टिकल अवश्य पसन्द आयेगा।
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