स्वागत है आपका हमारे ब्लॉग पर। दोस्तो, आपने “स्ट्रोक” के बारे तो सुना ही होगा जिसे ब्रेन अटैक कहा जाता है। ब्रेन पर आक्रमण होने से शरीर के किसी हिस्से को लकवा होने का रिस्क होता है। मगर इसका स्क्रीन के साथ क्या संबंध है यह भी हम आपको बताएंगे। स्ट्रोक के सन्दर्भ में स्क्रीन से तात्पर्य उन उपकरणों से है जिनके पटल (Screen) की चमक हमारी आंखों में लगती है और जिनसे निकलने वाला रेडिएशन हमारे मस्तिष्क को प्रभावित करता है। इसी को कहते हैं स्ट्रोक रिस्क स्क्रीन और यही है हमारा आज का टॉपिक “स्ट्रोक रिस्क स्क्रीन क्या है?”।
देसी हैल्थ क्लब इस आर्टिकल के माध्यम से आपको स्ट्रोक के बारे में विस्तार से जानकारी देगा और यह भी बताएगा कि इससे कैसे बचाव किया जाये। तो, सबसे पहले जानते हैं कि स्ट्रोक क्या है और स्क्रीन क्या है। फिर इसके बाद बाकी बिंदुओं पर जानकारी देंगे।
स्ट्रोक क्या है? – What is a Stroke
स्ट्रोक एक तंत्रिका संबंधी समस्या (Neurological problem) है जिसको ब्रेन अटैक के रूप में भी जाना जाता है। यह एक ऐसी मेडिकल स्थिति है जहां मस्तिष्क में रक्त प्रवाह में अवरोध के कारण मस्तिष्क के ऊतकों में ऑक्सीजन और पोषक तत्वों की कमी हो जाने पर, कुछ ही क्षणों में मस्तिष्क की कोशिकाओं की मृत्यु होने लगती है। इसके परिणाम स्वरूप मस्तिष्क के कुछ हिस्से स्थाई रूप से क्षतिग्रस्त हो सकते हैं या शरीर के किसी हिस्से की विकलांगता हो सकती है (क्योंकि शरीर के अंगों को कार्य करने का आदेश मस्तिष्क देता है और मस्तिष्क का वह विशेष हिस्सा क्षतिग्रस्त हो चुका होता है), या मृत्यु हो जाती है। रक्त प्रवाह में अवरोध ब्लड क्लॉटिंग या ब्रेन हेमरेज़ होने पर रक्तस्राव की वजह से आता है।
स्क्रीन क्या है? – What is a Screen
हमने ऊपर बताया है कि स्क्रीन से तात्पर्य उन उपकरणों से है जिनके पटल (Screen) की चमक हमारी आंखों में लगती है और जिनसे निकलने वाला रेडिएशन हमारे मस्तिष्क को प्रभावित करता है। ऐसे उपकरणों में कंप्यूटर मॉनिटर, लेपटॉप, टैब, टीवी मोबाइल फोन आदि आते हैं। इनके उपयोग को हमने अपनी जीवनशैली का अभिन्न अंग बना लिया है। हमारे सुबह की शुरुआत ही मोबाइल फोन की स्क्रीन से होती है (Good Morning Msg) और दिन का अंत देर रात को (Good Night) से होता है। इस दौरान हम कितनी बार और कितनी देर हम स्क्रीन के सामने रहते हैं इसका कोई हिसाब नहीं, कोई सीमा नहीं।
युवा पीढ़ी को मोबाइल पर लगे रहने के लिये बदनाम किया जाता है जबकि वास्तविकता यह है कि युवाओं के पास इतना वक्त ही नहीं है, उनको अपना कैरियर बनाने की फिक्र लगी होती है। मोबाइल पर सबसे ज्यादा चिपके रहने वालों में बुजुर्ग लोग होते हैं, फिर टीन एजर्स और फिर बहुत छोटे बच्चे। बच्चों का स्कीन पर अधिक समय तक रहना, भविष्य में उनके जीवन को खतरे की तरफ ले जा सकता है। आखिर इस चमकदार स्क्रीन का कुछ तो प्रभाव हमारे शारीरिक और मानसिक स्वास्थ पर पड़ता ही है ना। जानते हैं कैसे?।
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स्क्रीन का प्रभाव – Screen Effect
जैसा कि हमने ऊपर बताया है कि सुबह की शुरुआत ही मोबाइल की स्क्रीन से होती है और दिन का अंत देर रात को होता है। इस दौरान कंप्यूटर, लेपटॉप, टीवी आदि का भी दौर चलता है। जैसे-जैसे स्क्रीन का समय बढ़ता है स्ट्रोक का खतरा भी बढ़ता जाता है। स्क्रीन समय का प्रत्येक घंटा, जीवन के 22 मिनट की अपेक्षा (Expectancy) कम करने में मदद कर देता है। इतना ही नहीं बढ़ता हुआ स्क्रीन समय हार्ट अटैक, कैंसर आदि को उकसाता है।
निरन्तर 2 घंटे स्क्रीन के संपर्क में रहने से स्ट्रोक की संभावना अधिक प्रबल हो जाती है। दो घंटे से अधिक का डिजिटली स्क्रीन और नशे की लत के मामलों में, स्ट्रोक का जोखिम 20 प्रतिशत तक बढ़ जाता है। विश्व स्ट्रोक संगठन (World Stroke Organisation) के अनुसार प्रत्येक चार में से एक व्यक्ति को जीवनकाल में स्ट्रोक पड़ सकता है। स्क्रीन से पड़ने वाले कुछ प्रभाव निम्नलिखित हैं –
1. सोना जागना मुश्किल (Hard to Sleep)- मेलाटोनिन नामक हार्मोन, नींद लाने के लिये जिम्मेदार होता है जोकि शाम से स्रवित होना शुरु हो जाता है फिर धीरे-धीरे इसकी मात्रा बढ़ती जाती है। आधी रात को यह अपने चरम पर होता है। यह मेलाटोनिन हार्मोन पीनियल ग्लैंड से स्रवित होता है जो कि मस्तिष्क में स्थित होता है।
यदि इस हार्मोन के स्रवित होने में कोई बाधा उत्पन्न होती है और यह समस्या कई महीनों तक बनी रहे तो यह अनिद्रा की समस्या का रूप ले लेती है जिसे मेडिकल भाषा में इंसोमनिया (Insomnia) कहा जाता है। स्क्रीन से निकलने वाला नीला प्रकाश मेलाटोनिन के उत्पादन को कम कर देता है। यह मेलाटोनिन हार्मोन सोने-जागने के चक्र या सर्कैडियन रिदम के नियंत्रण से जुड़ा होता है। मेलाटोनिन के कम होने से समय पर सोने और जागने का सामान्य चक्र बिगड़ जाता है जिससे समय पर सोना और जागना बहुत मुश्किल हो जाता है।
2. शारीरिक गतिविधियों में रुकावट (Inhibition of Physical Activity)- सुबह का समय पूर्ण रूप से अपने लिये होता है, अपने शारीरिक और मानसिक स्वास्थ के लिये। यह समय मॉर्निंग वॉक का होता है, व्यायाम करने का होता है। घूमना, फिरना, भागना-दौड़ना, योगा, ध्यान, प्राणायाम व्यायाम आदि से हमारा शरीर और मस्तिष्क चुस्त-दुरुस्त, तंदुरुस्त और एक्टिव रहता है। इससे मोटापा नहीं बढ़ता, रक्त संचार बना रहता है।
परन्तु यह बेशकीमती समय जब मोबाइल पर बीतने लगे तो समझो कि आप स्वयं रक्त संचार में बाधक बन रहे हो और मोटापा बढ़ा रहे हो। इसके अतिरिक्त दिन में कोई शारीरिक गतिविधि ना करना या कम करना, जानबूझ कर बीमारियों को न्योता दे रहे हो। अपना अधिकतर समय स्क्रीन के साथ शेयर करने से दिमाग में रक्त प्रवाह में रुकावट का खतरा बना रहता है।
3. डायबिटीज (Diabetes)- जो लोग डायबिटीज से पीड़ित हैं उनमें स्क्रीन से स्ट्रोक पड़ने की संभावना दोगुनी हो जाती है, क्योंकि खराब रक्त वाहिकाएं इस्केमिक स्ट्रोक की संभावना तेज कर देती हैं। ऐसा रक्त के थक्के के अवरुद्ध होने या धमनियों के संकुचित होने से होता है। स्क्रीन की भूमिका इसमें इतनी है कि यह व्यक्ति को उठने नहीं देती, शारीरिक गतिविधि से दूर रखती है, ऐसे में डायबिटीज एक जगह बैठा ही रहेगा तो कुछ खायेगा भी और जो खायेगा उससे रक्त में ग्लुकोज लेवल बढ़ेगा।
4. खराब कोलेस्ट्रॉल का बढ़ता स्तर (Increasing Levels of Bad Cholesterol)- खराब वाले कोलेस्ट्रॉल LDL के बढ़ने से आर्टरीज में प्लाक जमने लगता है जिससे आर्टरीज संकुचित हो जाती हैं और मस्तिष्क में रक्त प्रवाह में रुकावट आती है। यह अधिक वसा के कारण होता है। वसा को काटने के लिये शारीरिक मेहनत की जरुरत होती है जिसके लिये समय निकालना पड़ता है ना कि स्क्रीन के लिये बैठे रहना।
5. उच्च रक्तचाप (High Blood Pressure)- इस्केमिक स्ट्रोक लगभग 50 प्रतिशत उच्च रक्तचाप के कारण होता है। उच्च रक्तचाप तनाव को भी जन्म देता है। उच्च रक्तचाप में मॉर्निंग वॉक दवा के रूप में काम करती है ना कि स्क्रीन।
स्ट्रोक के प्रकार – Types of Stroke
स्ट्रोक के तीन प्रकार होते हैं, विवरण निम्न प्रकार है –
1. इस्कीमिक स्ट्रोक (Ischemic Stroke) – माना जाता है कि विश्व में 85% से अधिक स्ट्रोक इस्केमिक होते हैं। यह स्ट्रोक अवरोध के कारण या धमनियों के संकुचन के कारण होता है। यह अवरोध रक्त के थक्के की वजह से होता है जो मस्तिष्क में रक्त प्रवाह तथा आपूर्ति को बाधित करता है। ये थक्के मुख्य धमनियों के अंदर बनते हैं जो मस्तिष्क से जुड़ते हैं, या फिर मस्तिष्क के अंदर संकुचित धमनियों में भी बन सकते हैं। धमनियों में संकुचन वसा के जमने के कारण होता है जो रक्त रक्त प्रवाह तथा आपूर्ति में बाधक बनता है। इस्कीमिक स्ट्रोक के भी निम्नलिखित दो रूप होते हैं –
(i) एंबोलिक स्ट्रोक (embolic stroke) – इस्कीमिक स्ट्रोक के इस प्रकार में रक्त के थक्के शरीर के दूसरे भाग से जो कि सामान्य तौर पर जो थक्के हृदय में होते हैं, रक्त वाहिकाओं के द्वारा मस्तिष्क तक पहुंचते हैं।
(ii) थ्रोम्बोटिक स्ट्रोक (thrombotic stroke) – इस्केमिक स्ट्रोक के इस रूप में मस्तिष्क की रक्त वाहिकाओं में ही रक्त के थक्के बनते हैं, ये घातक होते हैं और बिना उपचार के ठीक नहीं होते।
2. रक्तस्रावी स्ट्रोक (Hemorrhagic Stroke) – इस प्रकार का स्ट्रोक मस्तिष्क में रक्त वाहिकाओं के फटने पर रक्तस्राव के कारण होता है। रक्तस्राव होने के कारण मस्तिष्क के ऊतक क्षतिग्रस्त होने लगते हैं। ये रक्त वाहिकाएं मस्तिष्क के बीच में या मस्तिष्क की कोशिकाओं की सतह के पास कहीं भी फट सकती हैं। इसके भी दो रूप होते हैं विवरण निम्न प्रकार है –
(i) एन्यूरिज्म (Aneurysm) – यह ऐसी स्थिति होती है जिसमें मस्तिष्क की धमनी की दीवार बाहर की तरफ फूल जाने से या सूज जाने से टूट जाती है और रक्तस्राव होने लगता है। ये रक्त मस्तिष्क और आसपास के ऊतकों में फैलने लगता है। ब्रेन पर अधिक जानकारी के लिये हमारे पिछले आर्टिकल “ब्रेन एन्यूरिज्म क्या है?” पढ़ें।
(ii) आर्टिरियोवेनस मैलफॉर्मेशन (Arteriovenous malformation) – यह एक ऐसी स्थिति है जिसमें असामान्य रूप से निर्मित रक्त वाहिकाएं आती हैं और टूटने लगती हैं। इस गतिविधि से भी रक्तस्रावी स्ट्रोक होने की संभावना रहती है।
3. क्षणिक इस्केमिक अटैक (Transient Ischemic Attack – TIA) – इस स्थिति में मस्तिष्क में रक्त प्रवाह बहुत थोड़े समय के लिये रुकता है। यह अक्सर धमनियों में छोटे रक्त के थक्कों की वजह से होता है। ये थक्के बेशक छोटे होते हैं परन्तु भविष्य के लिये चेतावनी भरे संकेत होते हैं। यह नोटिस किया गया है कि जिस मरीज को TIA अटैक हुआ है उसे एक वर्ष के अंदर बड़े स्ट्रोक हो जाते हैं।
स्ट्रोक के कारण – Cause of Stroke
वैसे तो एक्सपर्ट स्ट्रोक के कारण, स्ट्रोक के प्रकार के आधार पर बताते हैं परन्तु सभी कारण केवल दो ही कारणों पर की ओर इशारा करते हैं जो निम्न प्रकार हैं –
1. रक्त के थक्के (Blood Clots)- रक्त के थक्के चाहे मस्तिष्क की रक्त वाहिकाओं में बनें या हृदय से चल कर मस्तिष्क में आयें, हर सूरत में रक्त प्रवाह में रुकावट डालेंगे जिससे स्ट्रोक का अटैक होगा।
2. रक्त वाहिकाओं का संकुचित होना और फटना (Constriction and Rupture of Blood Vessels)- रक्त वाहिकाओं के संकुचित होने का मुख्य कारण रक्त वाहिकाओं में वसा का जमाव होना होता है जिसके लिये खराब वाला LDL कोलेस्ट्रॉल होता है। रक्त वाहिकाओं के संकुचित होने की वजह से मस्तिष्क को रक्त का सामान्य प्रवाह और आपूर्ति रुक जाएगी। यदि रक्त वाहिकाएं फट जाएं तो रक्त स्राव होने लगता है जो मस्तिष्क के और आसपास के ऊतकों को क्षति पहुंचाता है। रक्त वाहिकाओं के फटने की वजह ब्रेन हेमरेज भी सकता है और ब्रेन एन्यूरिज्म भी।
स्ट्रोक के लक्षण – Symptoms of Stroke
मस्तिष्क शरीर के अंगों को नियंत्रित करता है। मस्तिष्क के आदेश (संकेत) पर ही शरीर के अंग काम करते हैं। इसलिये यदि स्ट्रोक के कारण मस्तिष्क के क्षतिग्रस्त हिस्से से संबंधित शरीर के विशेष हिस्से को आदेश नहीं जायेगा। परिणामतः शरीर का वह हिस्सा काम नहीं करेगा। कहने का तात्पर्य यह है कि मस्तिष्क में स्ट्रोक पड़ने से शरीर इसके लक्षण शरीर में दिखाई देने लगते हैं। ये निम्नलिखित लक्षण हो सकते हैं –
1. स्ट्रोक से शरीर का कोई अंग पैरालाइज (लकवा ग्रस्त) हो सकता है।
2. स्ट्रोक पड़ने से हाथ, चेहरा और पैर में सुन्नता आ सकती है या कमजोरी महसूस हो सकती है। ये पैरालाइज हो सकते हैं।
3. स्ट्रोक पड़ने पर व्यक्ति को बोलने या समझने में दिक्कत होती है।
4. चक्कर आ सकता है, बिना किसी कारण वह गिर सकता है।
5. चलने में दिक्कत होना।
6. दृष्टि धुंधली हो जाना, एक या दोनों आंखों से स्पष्ट दिखाई ना देना।
7. अचानक सिर में दर्द होना। दर्द तेज भी हो सकता है और हल्का भी बीच-बीच में इसका पेटर्न बदल सकता है यानि कभी तेज तो कभी हल्का।
8. निगलने में परेशानी होना।
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स्ट्रोक के लक्षण दिखने पर क्या करें? – What to do if you have Symptoms of a Stroke?
यदि आप किसी व्यक्ति में उपरोक्त लक्षण देखते हैं तो आपको क्या करना चाहिये, इसके लिये बहुत ही अच्छा फार्मूला है “फास्ट” (FAST), यानि fast सोचें और इसे तुरन्त फोलो करें। विवरण निम्न प्रकार है –
1. F – FACE चेहरा) – व्यक्ति को मुस्कराने के लिए कहें और अच्छी तरह देखें कि क्या चेहरे का झुकाव एक तरफ है?
2. A – ARMS (बाहें) – व्यक्ति को दोनों हाथों को उठाने के लिए कहें। क्या वह दोनों हाथों उठा पाता है या नहीं। या एक हाथ उठा पाता है। हाथ उठाने पर क्या हाथ नीचे गिरता है।
3. S – SPEECH (बोलना) – व्यक्ति से बात कीजिये और उससे कुछ बोलने के लिये कहिये। नोटिस कीजिये कि क्या वह सामान्य रूप से और स्पष्ट तौर पर बोल पा रहा है या उसे बोलने में दिक्कत महसूस हो रही है।
4. T – TIME (समय) – यदि आप उस व्यक्ति में, इनमें से कोई भी एक या ज्यादा संकेत देख रहे हैं तो, बिना समय व्यर्थ किये तुरन्त उस व्यक्ति को अस्पताल लेकर जायें क्यों कि स्ट्रोक एक गंभीर आपातकालीन स्थिति होती है। यदि व्यक्ति को तुरन्त इलाज ना मिले तो पीड़ित व्यक्ति की मृत्यु भी हो सकती है।
स्ट्रोक का परीक्षण – Test of Stroke
स्ट्रोक के लिये निम्नलिखित टेस्ट किये जा सकते हैं –
1. शारीरिक परीक्षण (Physical Examination)- सबसे पहले डॉक्टर मरीज के परिवार के किसी सदस्य से बातचीत करेंगे (क्योंकि मरीज तो कुछ बताने की हालत में नहीं होता) मरीज के लक्षणों के बारे में, दवाईयों के बारे में (यदि मरीज ले रहा हो तो), सिर की चोट के बारे में (यदि पहले लगी हो तो), व्यक्तिगत और पारिवारिक इतिहास के बारे में आदि। फिर ब्लड प्रेशर, हृदय गति आदि की जांच की जाती है।
2. ब्लड टेस्ट (Blood Test)- रक्त के थक्के बनने की रफ्तार,थक्के बनने में लगने वाला समय, ब्लड शुगर लेवल आदि की जानकारी के लिये ब्लड टेस्ट किया जाता है।
3. सीटी स्कैन (CT Scan)- सीटी स्कैन के जरिये रक्तस्राव, ट्यूमर, स्ट्रोक और अन्य स्थितियों के विस्तृत चित्र एक्स-रे की श्रृंखला के रूप में मिल जाते हैं।
4. एमआरआई (MRI) – एमआरआई में शक्तिशाली रेडियो तरंगों और मैग्नेट का उपयोग का उपयोग मस्तिष्क के विस्तृत चित्र बनाने के लिये किया जाता है। इसके द्वारा इस्केमिक स्ट्रोक और मस्तिष्क रक्तस्राव द्वारा नष्ट हुए मस्तिष्क के ऊतकों का पता लगा जाता है।
5. कैरोटिड अल्ट्रासाउंड (Carotid Ultrasound) – इस टेस्ट में, ध्वनि तरंगों के जरिये गले में कैरोटिड धमनियों के अंदर का विस्तृत चित्र दीख जाता है और कैरिटिड धमनियों में रक्त के प्रवाह का भी दृश्य मिल जाता है।
6. सेरेब्रल एंजियोग्राम (Cerebral Angiogram) – इस टेस्ट के लिये एक छोटा चीरा लगाकर कैथेटर को मरीज के जांघों तथा कमर के हिस्सों में डाला जाता है। फिर इसे प्रमुख धमनियों और कैरोटीड या कशेरुका धमनी तक पहुंचाया जाता है। इस प्रक्रिया में मरीज के मस्तिष्क और गर्दन की धमनियों का विस्तृत दृश्य मिल जाता है।
7. इकोकार्डियोग्राम (Echocardiogram) – एकोकार्डियोग्राम में हृदय के विस्तृत चित्र बनाने के लिए ध्वनि तरंगों का उपयोग किया जाता है। इससे हृदय में बने उन रक्त के थक्कों का पता चल जाता है जो मस्तिष्क तक जाकर स्ट्रोक का कारण बनते हैं।
स्ट्रोक का इलाज – Treatment of Stroke
स्ट्रोक का इलाज, स्ट्रोक के प्रकार के आधार पर किया जाता है। विवरण निम्न प्रकार है –
1. इस्कीमिक स्ट्रोक (Ischemic Stroke)- इस्कीमिक स्ट्रोक के मामले में यदि मरीज तीन घंटे के अंदर अस्पताल पहुंच जाता है तो उसे ऊतक प्लास्मिनोज़ उत्प्रेरक (Tissue Plasminogen Activator -TPA) के रूप में जानी जाने वाली दवा इंजेक्शन के जरिये दी जा सकती है। यह रक्त के थक्के मिटाने का काम करती है। अन्य आपातकालीन एंडोवास्कुलर प्रक्रियाओं में एक स्टेंट रिट्रीवर के साथ थक्के को हटाना, कैरोटिड एंडाटेरेक्टॉमी तथा मस्तिष्क को सीधे दी जाने वाली दवाईयां आदि उपचार में शामिल हैं।
2. रक्तस्रावी स्ट्रोक (Hemorrhagic Stroke)- ऐसे मामलों में रक्तस्राव को रोकने का प्रयास किया जाता है। रक्त के थक्कों को रोकने के लिए वारफेरिन और अन्य एंटी-प्लेटलेट दवाएं इंजेक्शन के जरिये दी जा सकती हैं। क्षतिग्रस्त रक्त वाहिकाओं की मरम्मत के लिये सर्जरी प्रक्रिया में, सर्जिकल क्लिपिंग, कॉइलिंग, सर्जिकल एवीएम हटाने और स्टीरियोटैक्टिक रेडियोसर्जरी आदि सम्मलित हो सकती हैं।
3. क्षणिक इस्कीमिक अटैक (TIA) – इस उपचार में ऐसी दवाओं को शामिल किया जाता है जो भविष्य में स्ट्रोक को रोकने में मदद कर सकें। इनमें एंटीप्लेटलेट्स और एंटीकोआगुलंट्स दवाओं को शामिल किया जाता है। विवरण निम्न प्रकार है –
(i) एंटीप्लेटलेट्स – इनमें एस्पिरिन (बफ़रिन) और क्लॉपिडोग्रेल (प्लाविक्स) दवाएं शामिल हैं जो प्लेटलेट के आपस में चिपकने की तथा थक्का बनाने की संभावना को कम करती हैं।
(ii) एंटीकोआगुलंट्स – इन दवाओं में वारफेरिन (कौमडिन) और दाबीगट्रान (पेरडाक्सा) शामिल हैं। ये दवाएं प्रोटीन के निर्माण को रोकती हैं जो थक्के जमाने के लिए जिम्मेदार होते हैं।
T.A के उपचार में कैरोटिड एंडराटेक्टोमी नामक सर्जरी की भी सलाह दी जा सकती है जिसमें गर्दन की मन्या धमनी (carotid artery) में पट्टिका निर्माण को हटा दिया जाता है। यह स्ट्रोक का एक प्रमुख कारण हो सकता है।
स्ट्रोक में क्या खाना चाहिए?- What to Eat in a Stroke
स्ट्रोक में निम्नलिखित खाद्य पदार्थों को अपने भोजन में शामिल करें –
1. हरी सब्जियां और फल। फलों में एंटीऑक्सिडेंट और फाइटोस्टेरॉल से भरपूर फल खाएं जैसे अनार।
2. विटामिन और खनिज युक्त पोषक तत्वों से भरपूर भोजन करें।
3. संपूर्ण अनाज, उच्च फाइबर युक्त खाद्य पदार्थों को भोजन में शामिल करें।
4. सैचुरेटिड और ट्रांस फैट का बहुत कम सेवन करें।
5. हल्का मांस और पोल्ट्री को चुनें और बिना सैचुरेटिड और ट्रांस फैट के बनाकर सेवन करें।
6. कम फैट वाले डेयरी उत्पाद का सेवन करें।
7. सप्ताह में कम से कम दो बार मछली खाएं।
8. नमक और चीनी का सेवन कम करें।
9. ब्लैक टी या ग्रीन टी का सेवन करें। ये पोषक तत्वों से भरपूर होती हैं और हाई ब्लड प्रेशर और कोलेस्ट्रॉल को कम करने में मदद करती हैं।
10. शराब का सेवन कम कर दें।
स्ट्रोक में क्या नहीं खाना चाहिए? – What should not be Eaten in a Stroke?
स्ट्रोक में निम्नलिखित वस्तुओं से परहेज करें –
1. धूम्रपान को तुरन्त बंद कर दें।
2. पेसिव स्मोकिंग से बचें।
3. अधिक मात्रा में शराब का सेवन ना करें।
4. नशीले पदार्थों से दूर रहें।
5. अधिक फैट वाले खाद्य पदार्थों का सेवन ना करें।
6. अधिक समय तक स्क्रीन के संपर्क में ना रहें।
स्ट्रोक से बचाव के उपाय – Tips of Stroke Prevention
यद्यपि स्ट्रोक को पूरी तरह रोक पाना संभव नहीं है परन्तु अपनी जीवनशैली में बदलाव करके इससे बचा जा सकता है। हम बता रहे हैं कुछ निम्नलिखित उपाय जो स्ट्रोक के खतरे को कम करने में मदद करेंगे।
1. खानपान (Food and Drink)- सबसे पहले अपना खानपान ऐसा रखें जो पोषक तत्वों से भरपूर हो, फाइबर से भरपूर हो मगर सैचुरेटिड और ट्रांस फैट वाला ना हो।
2. फल और सब्जियां (Fruits and Vegetables)- एंटीऑक्सिडेंट से समृद्ध फलों का और हरी सब्जियों का इस्तेमाल करें। ऑलिव ऑयल का इस्तेमाल फायदेमंद रहता है।
3. वजन मेंटेन करें (Maintain Weight)- अपने वजन पर नजर रखें। इसे बढ़ने ना दें। इसके लिये संतुलित आहार लें और शारीरिक गतिविधियां अधिक करें।
4. ब्लड प्रेशर को नियंत्रित करें (Control Blood Pressure)- संतुलित भोजन करें, नमक कम खाएं। भोजन में अतिरिक्त नमक कभी ना डालें। इससे ब्लड प्रेशर को नियंत्रित रहेगा। तनाव नहीं होगा, सिर दर्द नहीं होगा और स्ट्रोक का खतरा भी नहीं होगा।
5. कोलेस्ट्रॉल पर नज़र रखें (Keep an Eye on Cholesterol)- आपका भोजन सैचुरेटिड और ट्रांस फैट से रहित होना चाहिये क्योंकि रक्त धमनियों में फैट जम जाने से ये संकुचित हो जाती हैं जिससे रक्त प्रवाह में रुकावट आती है। ध्यान रखें कि खराब वाला कोलेस्ट्रॉल LDL बढ़ने ना पाए।
6. डायबिटीज को नियंत्रित करें (Control Diabetes)- चीनी कम करें। अतिरिक्त मीठे को अवॉइड करें। डायबिटीज को नियंत्रित करने के लिये, व्यायाम, संतुलित आहार, वजन पर नियंत्रण आदि का सहारा लिया जा सकता है।
7. धूम्रपान और नशीले पदार्थों को अलविदा (Quit Smoking and Drugs)- तम्बाकू का किसी भी रूप में सेवन तथा नशीले पदार्थों का सेवन हमेशा ही घातक होता है। इनको तुरन्त छोड़ें, तथा शराब की मात्रा कम करें।
8. गजट्स का उपयोग कम करें (Reduce the Use of Gadgets)- हमने अधिक समय तक स्क्रीन के संपर्क में रहने से शरीर और मस्तिष्क पर पड़ने वाले प्रभाव के बारे में ऊपर बताया है। इसलिये गजट्स का उपयोग अधिक समय तक ना करें।
9. शारीरिक गतिविधियां बनाए रखें (Maintain Physical Activity)- किसी भी बीमारी से बचाव के लिये या उससे छुटकारा पाने के लिये यह सबसे महत्वपूर्ण है कि आप खाली ना बैठें। कुछ ना कुछ शारीरिक गतिविधि होती रहनी चाहिये। इसके लिये मॉर्निंग वॉक, घूमना, फिरना, भागना-दौड़ना, ध्यान, योग, प्राणायाम, व्यायाम आदि सबसे अच्छे विकल्प हैं।
10. मेडिकल चेकअप (Medical Checkup)- कोलेस्ट्रॉल, डायबिटीज, ब्लड प्रेशर का समय-समय पर चेकअप कराते रहें। साल में एक बार फुल बॉडी चेकअप करायें तथा किसी भी प्रकार की समस्या होने पर तुरन्त डॉक्टर से संपर्क करें।
Conclusion –
दोस्तो, आज के आर्टिकल में हमने आपको स्ट्रोक रिस्क स्क्रीन क्या है? के बारे में विस्तार से जानकारी दी। स्ट्रोक क्या है?, स्क्रीन क्या है?, स्क्रीन का प्रभाव, स्ट्रोक के प्रकार, स्ट्रोक के कारण, स्ट्रोक के लक्षण, स्ट्रोक के लक्षण दिखने पर क्या करें, स्ट्रोक का परीक्षण, स्ट्रोक का इलाज, स्ट्रोक में क्या खाना चाहिए और स्ट्रोक में परहेज, इन सब के बारे में भी विस्तार पूर्वक बताया। देसी हैल्थ क्लब ने इस आर्टिकल के माध्यम से स्ट्रोक से बचाव के बहुत सारे उपाय भी बताये। आशा है आपको ये आर्टिकल अवश्य पसन्द आयेगा।
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Disclaimer – यह आर्टिकल केवल जानकारी मात्र
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