दोस्तो, स्वागत है आपका हमारे ब्लॉग पर। दोस्तो, दिल और आंखें, ये मानव के दो अंग ऐसे हैं कि जो सबसे महत्वपूर्ण माने जाते हैं। दिल में धड़कन नहीं तो इंसान नहीं और आंखों में रोशनी नहीं तो जहां (दुनियां) में कोई खुशी के रंग नहीं तो किसी के गम का फ़साना नहीं। पूरी दुनियां में दिल और आंखों पर लिखा भी सबसे ज्यादा गया है। आंखों के बारे में तो यहां तक कहा गया है कि ये “खुदा की नेमत हैं”। इन पर चिकित्सा विज्ञान में भी बहुत लिखा गया, बहुत रिसर्च हुईं, नई-नई आधुनिक मशीनें आयीं, नई तकनीक आई और दिल और आंखों की चिकित्सा पर उन्नति होती गई। जहां तक आंखों की बात है तो कभी-कभी हम किसी वस्तु पर ठीक से फोकस नहीं कर पाते इसलिये हमें सही से देखने में परेशानी होती है। कॉर्निया और लेंस का आकार बदल जाने पर या इनमें कर्व असामान्य हो जाने पर वस्तु अस्पष्ट और धुंधली दिखाई देती है, हमारी दृष्टि तिरछी हो जाती है। चिकित्सा विज्ञान में इस समस्या को एस्टिग्मेटिज्म कहा जाता है। आखिर ये है क्या और इससे बचाव के उपाय क्या हैं। दोस्तो, यही है हमारा आज का टॉपिक “एस्टिग्मेटिज्म से बचाव के उपाय”। देसी हैल्थ क्लब इस लेख के माध्यम से आज आपको एस्टिग्मेटिज्म के बारे में विस्तार से जानकारी देगा और यह भी बतायेगा कि इसका इलाज क्या है और इससे बचने के उपाय क्या हैं। यह सब जानने से पहले हमें कुछ और जानना होगा। तो, सबसे पहले जानते हैं कि कॉर्निया क्या होती है, रिफ्रैक्टिव एरर किसे कहते हैं, रिफ्रैक्टिव एरर के प्रकार क्या हैं। फिर जानेंगे एस्टिग्मेटिज्म के बारे में और बाकी बिन्दुओं पर जानकारी देंगे।
कॉर्निया क्या होती है? – What is Cornea?
कॉर्निया यानी स्वच्छ मण्डल गुंबद का आकार लिये आंखों का पारदर्शी भाग है जिस पर बाह्य प्रकाश पड़ता है और उसका प्रत्यावर्तन (Repatriation) होता है। कॉर्निया का यह गुंबदाकार ही निर्धारित करता है कि आंख का दृष्टि दोष दूर का है यानी दूरदृष्टि दोष है या नजदीक का यानी निकट दृष्टि दोष। कॉर्निया का काम प्रकाश को आंख की पुतली में भेजना है। इसका उत्तल भाग, प्रकाश को आगे पुतली और लेंस में भेजता है। इस प्रकार कॉर्निया दृष्टि के लिये बहुत मददगार होती है। कॉर्निया में तंत्रिकाओं का जाल बिछा होता इसमें कोई रक्त वाहिका नहीं होती। इसको पोषण देने का काम वही द्रव्य करते हैं जो आंसू व आंख के अन्य पारदर्शी द्रव का निर्माण करते हैं।
रिफ्रैक्टिव एरर किसे कहते हैं? – What is a Refractive Error Called?
जब आंखें प्रकाश को, आंखों के पीछे पाये जाने वाले रेटीना के ऊपर ठीक से फोकस नहीं कर पातीं बल्कि रेटिना के पहले या बाद में फोकस करती हैं तब रेटिना पर स्पष्ट छवि नहीं बनती। इस स्थिति को रिफ्रैक्टिव एरर (Refractive Error) यानी आंखों का अपवर्तन दोष कहा जाता है। इसको इस तरह समझिये कि यदि आंख का आकार सही है तो कॉर्निया और लेंस, जिनकी सतह एक चिकनी गेंद की सतह के समान ही होती है, प्रकाश को फोकस करके एक छवि बनाते हैं। कॉर्निया या लेंस आंख में पड़ने वाले सारे प्रकाश को एक दिशा में परिवर्तित कर देता है जिससे रेटिना पर एक स्पष्ट छवि बन जाती है। यदि कॉर्निया या लेंस समान रूप से घुमावदार नहीं है और सतह चिकनी नहीं है, तो इस स्थिति में कॉर्निया या लेंस प्रकाश को असमान रूप से केंद्रित करता है। यही असमानता “रिफ्रैक्टिव एरर” कहलाती है। आंखों का यह अपवर्तन दोष तीन प्रकार का होता है
रिफ्रैक्टिव एरर के प्रकार – Types of Refractive Errors
दोस्तो, रिफ्रैक्टिव एरर यानी आंखों का अपवर्तन दोष निम्नलिखित तीन प्रकार का होता है –
1. निकट दृष्टि दोष (Myopia) – दृष्टि दोष की इस स्थिति में आंख की पुतली का आकार बढ़ जाता है या कॉर्निया की वक्रता (Curvature) बढ़ जाती है। इससे प्रकाश सही से फोकस नहीं हो पाता, प्रतिबिंब रेटिना के थोड़ा आगे बनता है। परिणामस्वरुप दूर का स्पष्ट दिखाई नहीं देता यानी दूर की वस्तुएं धुंधली दिखाई देती हैं परन्तु पास का देखने में कोई दिक्कत नहीं होती, वे स्पष्ट नजर आती हैं। भारत में लगभग 20-30 प्रतिशत व्यक्ति निकट दृष्टि दोष से पीड़ित हैं। निकट दृष्टि दोष से मोतियाबिंद और ग्लुकोमा होने की संभावना बढ़ जाती है।
2. दूर दृष्टि दोष (Hyperopia) – इसमें स्थिति निकट दृष्टि दोष से एकदम विपरीत होती है अर्थात् इस दोष में दूर की वस्तुऐं एकदम स्पष्ट दिखाई देती हैं लेकिन नजदीक की वस्तुऐं अस्पष्ट और धुंधली दिखाई देती हैं। इस दोष में वस्तु का प्रकाश रेटिना पर फोकस होने की अपेक्षा रेटिना के पीछे फोकस होता है। दूर दृष्टि दोष अधिकतर चालीस वर्ष की आयु के बाद वाले व्यक्तियों में पाया जाता है।
3. दृष्टिवैषम्य (Astigmatism) – कॉर्निया या लेंस में आये परिवर्तन के कारण रेटीना पर प्रकाश का ठीक से फोकस ना हो पाने की स्थिति को दृष्टिवैषम्य कहा जाता है। इस स्थिति में वस्तुऐं अस्पष्ट और धुंधली दिखाई देती हैं। इस पर विस्तार से जानकारी आगे देंगे।
एस्टिगमैटिस्म क्या है? – What is Astigmatism?
दोस्तो, हमने ऊपर रिफ्रैक्टिव एरर के बारे में जानकारी दी। उससे स्पष्ट हो जाता है कि एस्टिग्मेटिज्म रिफ्रैक्टिव एरर का ही एक प्रकार है जो कि आंख का रोग है। इसमें रोगी को नजदीक या दूर की कोई भी वस्तु अस्पष्ट और धुंधली दिखाई देने लगती ही है या उसकी दृष्टि तिरछी हो जाती है। यह एक ऐसा रोग है कि यदि इसका इलाज ना कराया जाये या जरा भी लापरवाही की जाये तो आंख में भैंगापन आने की संभावना बन जाती है। आखिर यह एस्टिग्मेटिज्म है क्या?। वस्तुतः कॉर्निया या लेंस के आकार में आया परिवर्तन ही एस्टिग्मेटिज्म है अर्थात् कॉर्निया या लेंस का गोल आकार बिगड़ जाये, कर्व या घुमाव असामान्य हो जाने पर प्रकाश के गुजरने या रिफ्रेक्ट होने का उसका तरीका बदल जाता है। किसी वस्तु से टकराने के बाद वापस आने वाला प्रकाश रेटिना पर ठीक से केन्द्रित नहीं हो पाता जिससे वस्तु अस्पष्ट और धुंधली दिखाई देती है। आंखों की सामान्य बनावट थोड़ा कर्व लिये हुऐ यानी घुमावदार तो होती है परन्तु यह कर्व जब असामान्य हो जाये तो इससे कॉर्निया और लेंस का गोल आकार भी प्रभावित होता है। एस्टिग्मेटिज्म, जन्म से भी हो सकता है और बाद में भी बन सकता है परन्तु इसका इलाज आसानी से हो जाता है। अब जानते हैं एस्टिगमैटिज्म के प्रकार के बारे में कि यह कितने प्रकार का होता है।
एस्टिग्मेटिज्म के प्रकार – Types of Astigmatism
दोस्तो, एस्टिग्मेटिज्म को कई प्रकार में वर्गीकृत किया जा सकता है जिनका विवरण निम्न प्रकार है –
1. आंखों की संरचना में विकृति के आधार पर –
(i) कॉर्निया एस्टिग्मेटिज्म – जब कॉर्निया के आकार में बदलाव आ जाये/कर्व या घुमाव असामान्य हो जाये तो इसे कॉर्नियल एस्टिग्मेटिज्म कहा जाता है।
(ii) लेंटिकुलर एस्टिग्मेटिज्म – आंख के लेंस की आकृति में बदलाव/कर्व की गड़बड़ी से उत्पन्न स्थिति को लेंटिकुलर एस्टिग्मेटिज्म कहते हैं।
2. रिफ्रैक्टिव एरर के आधार पर –
(i) मायोपिक एस्टिग्मेटिज्म – यह स्थिति बहुत सामान्य है, यह निकट दृष्टि दोष यानी मायोपिया के साथ होता है और कॉर्निया के कर्व्स के फोकस रेटिना के सामने केंद्रित होते हैं।
(ii) हाईपरऑपिक एस्टिग्मेटिज्म – यह स्थिति होना भी बहुत सामान्य है। इस प्रकार का एस्टिग्मेटिज्म दूर दृष्टि दोष यानी हाईपरोपिया एरर के साथ होता है। इसमें कॉर्निया के दोनों घुमावों (कर्व्स) के फोकस, रेटिना के सामने ना होकर पीछे केंद्रित होते हैं,
(iii) मिक्स्ड एस्टिग्मेटिज्म – इसमें कॉर्निया के दोनों घुमावों (कर्व्स) के कारण भिन्न होते हैं अर्थात् एक घुमाव का कारण दूरदृष्टि दोष होता है तो और दूसरे का कारण निकट दृष्टिदोष।
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3. कर्व्स (घुमावों) के आधार पर –
(i) रेगुलर एस्टिग्मेटिज्म – दोनों घुमाव जब एक दूसरे से 90 डिग्री के कोण पर हों तो यह रेगुलर एस्टिग्मेटिज्म कहलाता है।
(ii) इर्रेगुलर एस्टिग्मेटिज्म – जब दोनों घुमाव 90 डिग्री के कोण पर ना हों तो यह इर्रेगुलर एस्टिग्मेटिज्म कहलाता है। यह ट्रॉमा, सर्जरी या आंखों से जुड़ी किसी समस्या के कारण हो सकता है, इसे केरैटोकोनस कहा जाता है। इसमें कॉर्निया धीरे-धीरे पतला होता चला जाता है। अब यहां पर प्रश्न उठता है कि दोनों घुमावों का 90 डिग्री कोण पर होना या ना होना एस्टिग्मेटिज्म है तो फिर सही कोण क्या है? इस बारे में देसी हैल्थ क्लब स्पष्ट करता है कि यदि कॉर्निया और लेंस की शेप सही है, अपनी जगह पर फिट हैं और कर्व्स एकदम सामान्य हैं तो किसी भी प्रकार का एस्टिग्मेटिज्म नहीं है, इसमें कोण की बात नहीं होती है। कर्व्स का असामान्य होना यानी 90 डिग्री कोण पर होना या ना होना रेगुलर/इर्रेगुलर एस्टिग्मेटिज्म की श्रेणी में आता है।
एस्टिग्मेटिज्म के कारण – Cause of astigmatism
दोस्तो, चिकित्सा विज्ञान में एस्टिग्मेटिज्म होने के प्रमाणिक कारण उपलब्ध नहीं हैं। हां इतना तय है कि 50 वर्ष की आयु के बाद यह रोग होने की संभावना अधिक होती है। कुछ बच्चों में जन्मजात होने के अतिरिक्त केवल संभावनाओं के आधार पर इसके कारण निर्धारित किये जा सकते हैं जो कि निम्न प्रकार हैं –
1. आंख में चोट लगना।
2. आंख से जुड़ा कोई रोग भी एस्टिग्मेटिज्म का कारण बन सकता है।
3. आंख की हुई कोई सर्जरी भी एस्टिग्मेटिज्म की वजह बन सकती है।
4. आंखों का तनाव।
5. कम या खराब प्रकाश में पढ़ाई करना।
6. लंबे समय तक कंप्यूटर पर काम करना और आड़े तिरछे होकर काम करना यानी सही पॉस्चर में ना बैठना।
7. लंबे समय तक टीवी देखना और आड़े तिरछे होकर, लेटकर टीवी देखना।
8. बहुत बारीक काम करना जैसे कढ़ाई, बुनाई, आभूषणों के डिजाईन का काम आदि।
9. आंखों के लिये आवश्यक पोषक तत्वों का भोजन से प्राप्त ना हो पाना।
10. आंखों को हाइड्रेटेड रखने के लिये पर्याप्त मात्रा में पानी ना पीना।
बच्चों में एस्टिग्मेटिज्म – Astigmatism in Children
हम ऊपर बता चुके हैं कि एस्टिग्मेटिज्म, जन्म से भी हो सकता है अर्थात् कुछ बच्चे एस्टिग्मेटिज्म रोग के साथ जन्म लेते हैं। ऐसे मामलों में अधिकतर यह समस्या एक वर्ष की आयु होने तक अपने आप ठीक हो जाती है। परन्तु कुछ बच्चों के साथ ऐसा नहीं होता और ना ही वे इस बारे में बता सकते हैं। इसलिये बच्चे की छः महीने की आयु में ही आंखों की जांच करानी चाहिये, और यदि एस्टिग्मेटिज्म की समस्या डिटेक्ट हो जाती है तो तुरन्त उसका उपचार करा लेना चाहिये ताकि वे भविष्य में इस रोग की गंभीरता से ग्रस्त ना हों। बच्चों में एस्टिग्मेटिज्म के लक्षणों का जिक्र हम आगे करेंगे।
एस्टिग्मेटिज्म के लक्षण – Symptoms of Astigmatism
एस्टिग्मेटिज्म के निम्नलिखित लक्षण हो सकते हैं –
1. स्पष्ट दिखाई ना देना, धुंधला दिखाई देना।
2. पढ़ने, लिखने में परेशानी होना।
3. छोटे प्रिंट धुंधले दिखना।
4. दोहरा दिखना यानी डबल विजन
5. आंखों पर जोर पड़ना।
6. सिर में दर्द रहना।
7. स्किविंटिंग (आंखें छोटी करके देखना) के बिना नजदीक या दूर की वस्तु को ना देख पाना।
बच्चों में एस्टिग्मेटिज्म के लक्षण – Symptoms of Astigmatism in Children
बच्चों में एस्टिग्मेटिज्म के निम्नलिखित लक्षण प्रकट हो सकते हैं –
1. प्रिंटेड शब्दों, ब्लैक बोर्ड पर लिखे शब्दों और लाइनों पर ध्यान केंद्रित ना कर पाना।
2. आंखों पर दबाव बने रहना।
3. आंखें थकी-थकी रहना।
4. सिर दर्द की शिकायत रहना।
5. अच्छा देखने के लिये सिर को झुका कर पढ़ना लिखना। ऐसा करते रहने से आंखें लाल हो जाना या आंखों में खुजली की शिकायत होना।
6. किताब पढ़ने से कतराना। पढ़ना भी तो जोर जोर से पढ़ना, आधा अधूरा पढ़ना यानी कुछ लाइनों को पूरा छोड़ देना।
7. स्मरण शक्ति कमजोर हो जाना। रिकॉल करने परेशानी होना।
एस्टिग्मेटिज्म का परीक्षण – Test of Astigmatism
नेत्र रोग विशेषज्ञ, डॉक्टर आंखों की पूरी तरह जांच के लिये निम्नलिखित टेस्ट कर सकते हैं –
1. विजुअल एक्यूटी असेसमेंट टेस्ट (Visual Acuity Assessment Test) – इस टेस्ट में डॉक्टर एक निर्धारित दूरी से चार्ट पर लिखे अक्षरों को पढ़ने के लिये कहते हैं इससे यह पता चलता है कि रोगी को कितना स्पष्ट दिख रहा है।
2. केराटोमेट्री टेस्ट (Keratometry Test)- इस टेस्ट में कॉर्निया की सतह से प्रतिबिंबित प्रकाश को माप कर केराटोमीटर नामक उपकरण के माध्यम से कॉर्निया की सतह की गोलाई को मापा जाता है यानी कार्निया के कर्वेचर को मापते हैं। इससे एस्टिग्मेटिज़्म के होने की पुष्टि होती है।
3. कॉर्नियल मैपिंग (Corneal Mapping)- कॉर्नियल सतह में गोलाई भिन्नता की जांच के लिये कंप्यूटर के द्वारा कॉर्नियल मैपिंग नामक प्रक्रिया की जाती है। यह प्रक्रिया कॉन्टैक्ट लेंस फिटिंग के लिये की जाती है, इससे कॉर्निया की गोलाई का पता चल जाता है। कॉर्निया की सतह का मानचित्र बनाने के लिये एक वीडियो कैमरा के साथ केराटोस्कोप भी लगाया जाता है।
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एस्टिग्मेटिज्म का इलाज – Treatment of Astigmatism
एस्टिग्मेटिज्म के उपचार के लिये निम्नलिखित विकल्प अपनाये जा सकते हैं –
1. चश्मा (Spectacles)- दृष्टि से संबन्धित समस्या को दूर करने के लिये सबसे पहले चश्मे का विकल्प चुना जाता है। एस्टिग्मेटिज्म की समस्या से राहत दिलाने के लिये विशेष लेंस के साथ चश्मा बनाया जाता है जो आंख के असमान आकार के कारण हुई समस्याओं को कम करने में सहायक होता है। इस प्रकार के चश्मे एस्टिग्मेटिज़्म के साथ-साथ रिफ्रैक्टिव को भी सही करने में मदद करते हैं।
2. कॉन्टेक्ट लेंस (Contact Lenses)- दूसरे विकल्प के रूप में कॉन्टेक्ट लेंस को चुना जाता है। कॉन्टेक्ट लेंस सख्त, मुलायम, अधिक समय तक पहने जाने वाले, डिस्पोजेबल बायफोकल आदि उपलब्ध होते हैं। रोगी के लिये कौन से प्रकार का कॉन्टेक्ट लेंस उपयुक्त रहेगा यह आंखों के अनुसार और एस्टिग्मेटिज्म की स्थिति को देखते हुऐ डॉक्टर निर्धारित करते हैं।
3. ऑर्थोकेराटोलॉजी /ऑर्थो-के(Orthokeratology) – उपचार की इस प्रक्रिया में कठोर लेंस का उपयोग किया जाता है। कॉर्निया के कर्वेचर की अनियमितता को अस्थायी रूप से ठीक करने के लिये यह विकल्प अपनाया जाता है। इसमें एक कठोर लेंस कई दिनों तक पहनना होता है। स्थिति के आधार पर डॉक्टर दिन में या रात को पहनने की सलाह दे सकते हैं। यदि रात को पहनने के लिये कहा जाता है तो सुबह उठने के बाद इसे निकाल दिया जाता है। यह कठोर लेंस तब तक पहनना होता है जब तक कि आंखों की गोलाई में सुधार ना हो जाये। जब तक इसका उपयोग किया जाता है, तब तक इसका फायदा होता है परन्तु इसका उपयोग बंद करने पर आंख फिर पहले वाली स्थिति में आ जाती है। वैसे भी लंबे समय तक कठोर लेंस का उपयोग करने से आंखों में संक्रमण की संभावना बढ़ जाती है।
4. फोटो रिफ्रैक्टिव केराटेक्टोमी /पीआरके (Photorefractive Keratectomy) – यह विकल्प कॉर्निया की गोलाई को ठीक करने के लिये अपनाया जाता है। इसमें डॉक्टर को एक्सीमर लेज़र का उपयोग करने से पहले कॉर्निया की बाहरी सुरक्षात्मक परत को हटाना होता है।
5. रिफ्रेक्टिव सर्जरी (Refractive Surgery)- चिकित्सा की इस प्रक्रिया में एस्टिग्मेटिज्म की समस्या स्थायी रूप से ठीक हो जाती है। इसमें लेज़र या छोटे चाकू की मदद से कॉर्निया को दोबारा सही आकार में लाया जाता है।
6. लेज़र-असिस्टेड इन सीटू केराटोमिलेसिस सर्जरी (LASIK) – इस प्रक्रिया में कॉर्निया में एक पतला, गोलाकार कट बनाने के लिए केराटोम नामक एक उपकरण का उपयोग किया जाता है। इस कट को, विशेष काटने वाले लेज़र के साथ भी बनाया जा सकता है। यह सर्जरी कॉर्निया को फिर से सही आकार देती है जिससे आंखों में आने वाले प्रकाश को चश्मे या कॉन्टैक्ट लेंस के बिना रेटिना पर केंद्रित किया जा सके।
7. लेज़र-असिस्टेड एपिथेलियल केराटोमिलेसिस सर्जरी (LASEK) – यदि कॉर्निया पतला है और आंख पर चोट लगने की संभावना बनी रहती है तो यह सर्जरी उत्तम विकल्प है। इस प्रक्रिया में कॉर्निया के आकार में सुधार के लिये एक्सीमर लेज़र का उपयोग किया जाता है। सर्जरी के समय ट्रेफिन ब्लेड की मदद से कॉर्निया के किनारों पर आंशिक कट लगाया जाता है फिर एक साइड से उपकला (Epithelium) को अलग करने के लिये बाँझ इथेनॉल समाधान (Sterile Ethanol Solution) का इस्तेमाल किया जाता है। इसके बाद एक्सीमर लेज़र से एब्लेशन किया जाता है और कॉर्निया फ्लैप को पहले जैसी मूल स्थिति में ला दिया जाता है।
एस्टिग्मेटिज्म से बचाव के उपाय – Measures to Prevent Astigmatism
दोस्तो, अब आपको बताते हैं कुछ निम्नलिखित सावधानियां जिनको अपनाने से एस्टिग्मेटिज्म से बचाव हो जायेगा।
1. खानपान (Food and Drink)- अपने भोजन में ऐसे खाद्य पदार्थों का सेवन करें जिनसे उच्च स्तर के पोषक तत्व मिल सकें जैसे कि विटामिन-सी और ई, कॉपर, जिंक और एंटीऑक्सीडेंट आदि।
2. ओमेगा फैटी एसिड (Omega Fatty Acids)- भोजन में ऐसे खाद्य पदार्थों को शामिल करें जिनसे ओमेगा 3 फैटी एसिड की प्राप्ति हो, ये शुष्क आंखों के लक्षणों को दूर कर आंखों में नमी बनाये रखता है। विकल्प के तौर पर डॉक्टर की सलाह से इसके कैप्सूल लिये जा सकते हैं।
3.पर्याप्त पानी पियें (Drink Enough Water) – आंखों की शुष्कता को दूर करने के लिये और नमी बरकरार रखने के लिये दिन में 8 से 10 गिलास पानी अवश्य पीयें।
4. धूम्रपान ना करें (Do not Smoke)- अस्थिरता के जोखिम को कम करने के लिये धूम्रपान करने से बचें।
5. पर्याप्त रोशनी में काम करें (Work in Adequate light)- प्राकृतिक प्रकाश ना मिलने की स्थिति में यह सुनिश्चित करें कि घर पर, कार्यस्थल पर या अन्य स्थान पर काम करने के लिये जैसे पढ़ाई, लिखाई, कढ़ाई, बुनाई या कुछ और, पर्याप्त प्रकाश व्यवस्था हो। कम या मध्यम प्रकाश में काम ना करें।
6. पलक झपकते रहें (Keep Blinking)- आंखों को तनाव मुक्त रखने के लिये यह आवश्यक है कि बीच-बीच में पलक झपकाते रहें अर्थात् टकटकी लगाकर किसी वस्तु, टीवी आदि को ना देखें। विशेषतौर पर पढ़ाई, लिखाई करते समय। इससे आंखों में शुष्कता नहीं आयेगी, प्राकृतिक रूप से आंखों में नमी बनी रहेगी और आंखों में तनाव भी नहीं रहेगा।
7. आंखों को शांत और प्रसन्न रखें (Keep Eyes Calm and Happy)- जब हम शांत रहते हैं तो हमारी प्रसन्नता बनी रहती है उसी प्रकार हमारी आंखें भी प्राकृतिक दृश्य देखकर विशेषकर हरियाली और फूलों को देखकर खुश होती हैं। आप जहां कहीं बैठे हैं वहां बाहर के दृश्यों को देखिये जैसे कि कमरे में बैठे हैं तो खिड़की से बाहर आकाश, बादल, पेड़ पौधे आदि देखिये। यदि बाहर नहीं देख पा रहे हैं तो कमरे की वस्तुओं को देखिये जैसे पेन्टिंग, कलाकृति, कोई फोटो या अन्य कोई वस्तु। इससे आप तनाव मुक्त रहेंगे और आपकी आंखें शांत और प्रसन्न।
8. आंखों को आराम दें (Rest your Eyes)- यह अत्यंत महत्वपूर्ण है कि आप काम के बीच छोटा-छोटा ब्रेक लें। लगातार काम करते रहने से आंखें पथरा जाती हैं, इनमें थकान होती है फिर ये दुखने लगती हैं। विशेषकर कंप्यूटर पर, मोबाइल पर काम करते समय या बहुत बारीक श्रेणी का काम करते समय। इसके लिये प्रति 10 मिनट के अंतराल पर 10 सेकंड के लिये 10 फीट की दूरी तक देखें। यह छोटा सा सरल नियम आंखों को बहुत बड़ी राहत देगा। इससे आंखें रिलेक्स फील करेंगी।
9. ह्यूमिडिफायर का उपयोग करें (Use a Humidifier)- यह हम सभी जानते हैं कि हीटर या एयर कंडीशनर का उपयोग हवा में नमी को कम कर देता है। परिणामस्वरूप आंखों में जलन हो जाती है। इस समस्या से निपटने के लिये घर और कार्यस्थल पर एक ह्यूमिडिफायर अवश्य रखें।
10. डॉक्टर से मिलें (Mee a Doctor)- आंखों की कोई भी छोटी बड़ी समस्या होने पर लापरवाही ना करें, नेत्र रोग विशेषज्ञ से मिलें। वैसे भी समय-समय पर आंखों की जांच करवाते रहें।
आंखों की जांच कब-कब कराये? – When to Get an Eye Exam
1. 40 वर्ष से अधिक आयु के स्वस्थ व्यक्ति को 55 वर्ष की आयु होने तक आंखों की जांच 2 से 4 वर्ष के अन्तरकाल पर जांच करवानी चाहिये।
2. 55 वर्ष से अधिक आयु के व्यक्ति को 65 वर्ष की आयु होने तक आंखों की जांच 1 से 3 वर्ष के अन्तरकाल पर जांच करवानी चाहिये।
3. आप किसी भी आयु के हैं आंखों में समस्या होने पर तुरंत डॉक्टर से संपर्क करके आंखों की जांच करवानी चाहिये।
Conclusion –
दोस्तो, आज के लेख में हमने आपको एस्टिग्मेटिज्म से बचाव के उपाय के बारे में विस्तार से जानकारी दी। कॉर्निया क्या होती है, रिफ्रैक्टिव एरर किसे कहते हैं?, रिफ्रैक्टिव एरर के प्रकार, एस्टिग्मेटिज्म क्या है?, एस्टिग्मेटिज्म के प्रकार, एस्टिग्मेटिज्म के कारण, बच्चों में एस्टिग्मेटिज्म, एस्टिग्मेटिज्म के लक्षण, बच्चों में एस्टिग्मेटिज्म के लक्षण, एस्टिग्मेटिज्म का परिक्षण और एस्टिग्मेटिज्म का इलाज, इन सब के बारे में भी विस्तार पूर्वक बताया। देसी हैल्थ क्लब ने इस लेख के माध्यम से एस्टिग्मेटिज्म से बचाव के उपाय बताये और यह भी बताया कि आंखों की जांच कब-कब करायें। आशा है आपको ये लेख अवश्य पसन्द आयेगा।
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Disclaimer – यह लेख केवल जानकारी मात्र है। किसी भी प्रकार की हानि के लिये ब्लॉगर/लेखक उत्तरदायी नहीं है। कृपया डॉक्टर/विशेषज्ञ से सलाह ले लें।
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Nice article