स्वागत है आपका हमारे ब्लॉग में। दोस्तो, आपने ऐसे लोग बहुत देखे होंगे जो दिन में बस में या रेलगाड़ी में खड़े-खड़े या बैठे हुए सो जाते हैं। ये काम करते हुए सो जाते हैं या किसी मीटिंग में सो जाते हैं। आंखों पर अच्छी तरह पानी के छींटे मारने के बावजूद भी इनकी नींद नहीं भागती। यह एक बीमारी है, एक प्रकार का स्लीप डिसऑर्डर है। इसे मेडिकल भाषा में नार्कोलेप्सी कहा जाता है। नार्कोलेप्सी से ग्रस्त व्यक्ति को दिन में बहुत नींद आती है, वह अपनी नींद को कंट्रोल करने में पूरी तरह असफल रहता है। वह कहीं भी किसी भी स्थिति में सो जाता है। उसकी आंखों में हमेशा नींद भरी रहती है। चाहे उसे एक झपकी ही लेनी हो, मगर वह सोएगा जरूर। आखिर यह नार्कोलेप्सी है क्या?। दोस्तो, यही है हमारा आज का टॉपिक “नार्कोलेप्सी क्या है?”।
देसी हैल्थ क्लब इस आर्टिकल के माध्यम से आपको नार्कोलेप्सी के बारे में विस्तार से जानकारी देगा और यह भी बताएगा कि इसका उपचार क्या है। नार्कोलेप्सी को जानने से पहले नींद के बारे में जानना बहुत जरूरी है। तो, सबसे पहले जानते हैं कि नींद क्या है और नींद के प्रकार। फिर इसके बाद बाकी बिंदुओं पर जानकारी देंगे।
नींद क्या है?- What is Sleep?
दोस्तो, नींद प्राकृतिक क्रिया है जो मानव और सभी स्तनधारी जीवों के लिए आवश्यक है। यह प्रकृति का नियम ही है कि हम सारा दिन काम करने के बाद रात को सोते हैं। हमें रात को ही नींद आती है क्योंकि प्रकृति ने रात बनाई ही सोने के लिये है और दिन काम करने के लिये। जिस प्रकार भोजन, हवा, और पानी जिंदा रहने के लिए जरूरी हैं उसी प्रकार 6 से 8 घंटे की नींद लेना शारीरिक और मानसिक स्वास्थ के लिए जरूरी है।
नींद को एनाबॉलिक (Anabolic) स्थिति भी कहा जाता है क्योंकि नींद के दौरान ही मेटाबॉलिज्म अच्छी प्रकार काम करता है। मेटाबॉलिज्म को काम करने के लिये नींद ही सबसे अच्छा समय होता है। अच्छी नींद के दौरान मांसपेशियां, प्रतिरक्षा प्रणाली तथा तंत्रिका तंत्र अपने को मरम्मत करने का काम करते हैं।
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नींद के प्रकार – Types of Sleep
नींद के दो ही प्रकार होते हैं। विवरण निम्न प्रकार है –
1. नॉन-रैपिड आई मूवमेंट (NREM)– इसमें नींद की पहली, दूसरी और तीसरी तीन अवस्थाएं शामिल होती हैं। यह नींद का लगभग 75 प्रतिशत होता है। नींद के इस प्रकार में व्यक्ति की नींद हल्की, सामान्य और गहरी होती है। इसमें शरीर, ऊतकों में वृद्धि करने, मांसपेशियों और हड्डियों को स्वस्थ तथा मजबूत बनाने और प्रतिरक्षा प्रणाली में सुधार करने का काम करता है। उम्र बढ़ते रहने के साथ-साथ नींद कम गहरी होती रहती है।
2. रैपिड आई मूवमेंट (REM)- इसमें व्यक्ति बहुत गहरी नींद में होता है उसकी आंखों की मूवमेंट अलग-अलग दिशाओं में होती है। यह नींद की चौथी अवस्था होती है जो कि सामान्यतः नींद आने के 90 मिनट बाद शुरु होती है। रेम स्लीप का समय सामान्यतः दस मिनट तक होता है लेकिन नार्कोलेप्सी के मामले में यह समय कई घंटे तक हो सकता है। रैपिड आई मूवमेंट में हृदय दर में बढ़ोतरी होती है तथा सांस लेने की क्षमता में इजाफा होता है।
नींद की अवस्थाएं – Stages of Sleep
नींद की चार अवस्थाएं होती हैं। विवरण निम्न प्रकार है –
1. पहली अवस्था (First Stage)- यह नींद की आरम्भिक अवस्था होती है जो सोने के बाद शुरु होती है और पांच से दस मिनट तक रहती है। इसमें व्यक्ति हल्की नींद में होता है और उसे जगाना आसान होता है। यह कुल सोने के समय का लगभग 5 प्रतिशत होता है।
2. दूसरी अवस्था (Second Stage)- इस अवस्था में भी व्यक्ति हल्की नींद से होता है मगर थोड़ा सा ज्यादा। इस अवस्था में शरीर हल्की नींद से गहरी नींद में प्रवेश करने को तैयार होता है यह नींद के समय का लगभग 45 से 50 प्रतिशत होता है। इसमें भी व्यक्ति को उठया जा सकता है। इसमें हार्ट रेट धीमा और शरीर का तापमान कम हो जाता है।
3. तीसरी अवस्था (Third Stage)- इस अवस्था में व्यक्ति गहरी नींद में सोया हुआ होता है और उसे उठाना बेहद कठिन होता है। यह नींद में बिताए हुए समय का लगभग 25 प्रतिशत होता है। नींद के इसी चरण में व्यक्ति का नींद में बड़बड़ाना, बात करना या नींद में चलना जैसे लक्षण देखे जा सकते हैं।
4. चौथी अवस्था (Fourth Stage)- नींद के प्रकार रैपिड आई मूवमेंट के अंतर्गत, नींद की यह चौथी अवस्था है। इसमें व्यक्ति बहुत गहरी नींद में होता है। सोने के लगभग 90 मिनट बाद व्यक्ति रेम स्लीप में पहुंच जाता है। इस अवस्था में व्यक्ति सपने देख रहा होता है तथा पलकों के नीचे उसकी आंखों की गतिविधि स्पष्ट रूप से देखी जा सकती है।
नार्कोलेप्सी क्या है? – What is Narcolepsy?
नार्कोलेप्सी निद्रा विकार (Sleep disorder) है। चूंकि यह समस्या तंत्रिका तंत्र से जुड़ी है इसलिए इसे न्यूरोलॉजिकल डिसऑर्डर (Neurological disorder) भी कहा जाता है। यह एक ऐसा विकार है जिसमें व्यक्ति दिन में बहुत ज्यादा सोता है, हर समय उसकी आंखों में नींद भरी होती है और सारा दिन उबासी लेता रहता है। काम करते हुए भी उसकी आंखें नींद के कारण बंद होने लगती हैं। जबरदस्ती आंख खोलता भी है तो दिमाग में नींद के झटके लगते रहते हैं।
मेडिकल भाषा में इस समस्या को नार्कोलेप्सी (Narcolepsy) कहा जाता है। यह समस्या 10 से 25 वर्ष की आयु के बीच महिला और पुरुष किसी को भी हो सकती है। आंकड़ों की मानें तो 2000 में से एक व्यक्ति नार्कोलेप्सी की समस्या से ग्रस्त है। सामान्यतः व्यक्ति सोने के लगभग 90 मिनट बाद रेम स्लीप में होता है परन्तु नार्कोलेप्ली से ग्रस्त व्यक्ति नींद आने के तुरंत बाद ही रेम स्लीप में पहुंच जाता है तथा वह कई घंटों तक सोया हुआ रह सकता है।
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नार्कोलेप्सी के प्रकार – Types of Narcolepsy
नार्कोलेप्सी के दो प्रकार होते हैं, एक टाइप 1 और दूसरा टाइप 2। विवरण निम्न प्रकार है –
1. टाइप 1 नार्कोलेप्सी (Type 1 Narcolepsy)- यह नार्कोलेप्सी का सबसे सामान्य है। इसमें मरीज में कैटाप्लेक्सी के लक्षण सम्मलित होते हैं। कैटाप्लेक्सी क्या है, इसका जिक्र हम आगे करेंगे। टाइप 1 नार्कोलेप्सी से पीड़ित व्यक्ति के मस्तिष्क में हाइपोक्रेटिन नामक प्रोटीन की मात्रा कम हो जाती है जिसके कारण नींद अधिक आती है। यह समस्या बच्चों को भी हो सकती है।
2. टाइप 2 नार्कोलेप्सी (Type 2 Narcolepsy)– नार्कोलेप्सी के इस प्रकार में मरीज में कैटाप्लेक्सी के कोई लक्षण नहीं होते। यानि यह कैटाप्लेक्सी रहित नार्कोलेप्सी होती है। इससे पीड़ित व्यक्ति में हाइपोक्रेट्रिन प्रोटीन का स्तर सामान्य होता है।
कैटाप्लेक्सी क्या है? – What is Cataplexy
कैटाप्लेक्सी (Cataplexy) एक प्रकार से मस्तिष्क विकार (Brain disorder) है जिसमें जागृत और पूर्ण सचेत अवस्था में हंसने पर अचानक से मांसपेशियों में ऐंठन हो जाती है, व्यक्ति का मांसपेशियों पर कोई नियंत्रण नहीं रहता। यह स्थिति खुशी जाहिर करने, ज्यादा गुस्सा करने, रोने या आतंक के समय भी हो सकती है।
यह समस्या नार्कोलेप्सी से पीड़ित लगभग 70 प्रतिशत लोगों में देखी जा सकती है। कैटाप्लेक्सी का अटैक सेकंड से 2 मिनट तक रह सकता है। इसमें व्यक्ति गिर सकता है, चोट लग सकती है, सिर आगे की ओर झुक सकता है, उसके जबड़े या मुंह खुल सकते हैं, घुटने मुड़ सकते हैं तथा वह पेरेलाइज भी हो सकता है।
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नार्कोलेप्सी के कारण – Causes of Narcolepsy
नार्कोलेप्सी के सटीक व प्रमाणिक कारण अज्ञात हैं। अनुमान के अनुसार नार्कोलेप्सी के निम्नलिखित कारण हो सकते हैं –
- कुछ ऐसे कारक हो सकते हैं जो मस्तिष्क में विकार उत्पन्न कर नींद के पैटर्न में बाधक बन सकते हैं।
- मस्तिष्क में हाइपोक्रेटिन नामक प्रोटीन का स्तर कम हो जाना।
- आनुवंशिकता। यानि यदि माता या पिता को नार्कोलेप्सी की समस्या है तो उनके बच्चों को नार्कोलेप्सी होने की एक प्रतिशत संभावना हो सकती है।
- यद्यपि नार्कोलेप्सी की समस्या किसी भी आयु में हो सकती है परन्तु 15-25 वर्ष की आयु के बीच किसी को भी होने की संभावना अधिक रहती है।
- कुछ स्वास्थ्य स्थितियां या वायरस नार्कोलेप्सी को ट्रिगर कर सकते हैं।
- हार्मोन्स में परिवर्तन तथा ऑटोइम्यून स्थिति नार्कोलेप्सी के कारण बन सकते हैं।
नार्कोलेप्सी के लक्षण – Symptoms of Narcolepsy
नार्कोलेप्सी के निम्नलिखित लक्षण प्रकट हो सकते हैं –
- कैटाप्लेक्सी के लक्षण प्रकट हो सकते हैं जैसे मांसपेशियों में अचानक से ऐंठन महसूस करना, सिर आगे हो जाना, मुंह खुला रहना आदि।
- दिन में अधिक नींद आना। आंखों में नींद भरी रहना। सारे दिन उबासी आती रहना। कभी ये एक झपकी लेकर ही ये तरोताजा हो जाते हैं। कभी-कभी इनको थकावट महसूस होती है।
- ये लोग कहीं भी सो जाते हैं, यहां तक कि ये बस में ट्रेन में सफर करते हुए सो जाते हैं। कभी-कभी खड़े होकर भी।
- कई बार ये ड्राइविंग करते हुए भी नींद में आ जाते हैं। यह स्थिति बेहद खतरनाक और जानलेवा हो सकती है।
- जब इनको स्लीप अटैक आता है तो ये नींद को कंट्रोल नहीं कर पाते।
- इन लोगों को स्लीप पैरालिसिस होने की संभावना रहती है। इस स्थिति में नींद से जगे होने पर भी शरीर की कोई प्रतिक्रिया नहीं होती। शरीर हिलने, डुलने में सक्षम नहीं होता।
- सोते समय या जागने के बाद इन लोगों को मतिभ्रम हो सकता है जिसके अनुभव बुरे और भयानक भी हो सकते हैं।
- ये लोग बहुत जल्दी रेम स्लीप में चले जाते हैं और कई घंटों तक रह सकते हैं। पलकों के नीचे आंखों की मूवमेंट हर दिशा में देखी जा सकती है।
नार्कोलेप्सी के प्रभाव – Effects of Narcolepsy
नार्कोलेप्सी समस्या व्यक्ति के जीवन निम्न प्रकार से प्रभावित कर सकती है –
- यह प्रोफेशनल और पर्सनल लाइफ को प्रभावित करती है। कार्य स्थल पर उसके काम की मात्रा तथा गुणवत्ता कम हो जाती है। कुछ कार्य जोखिम भरे होते हैं जिनमें नींद से शारीरिक हानि हो सकती है जैसे कि कारखानों में मशीनों पर करना या आग का काम करना या बिजली का काम करना आदि। स्कूली जिन्दगी में भी परफॉर्मेंस पर बुरा असर पड़ता है।
- अधिक गुस्सा, हंसी आना या उत्तेजना का अनुभव।
- स्फूर्ति की जगह शरीर सुस्ती और आलस से भर जाता है।
- चयापचय की प्रक्रिया धीमी हो जाना।
- प्रतिरक्षा प्रणाली का कमजोर हो जाना।
- वजन तेजी से बढ़ना।
- तनाव, चिंता और डिप्रेशन होने की संभावना।
- ड्राइविंग करते समय नींद आना दुर्घटना का कारण बन सकती है।
- यदि नार्कोलेप्सी, कैटाप्लेक्सी के साथ है तो लक्षण प्रकट होने पर व्यक्ति दुर्घटना का शिकार हो सकता है और उसे चोट लग सकती है।
- यह समस्या सामाजिक जीवन को भी प्रभावित कर सकती है।
- स्लीप एप्निया (Sleep Apnea) की शिकायत हो सकती है।
- आवधिक अंग आंदोलन विकार (periodic limb movement disorder) हो सकता है।
- भावनात्मक लगाव में बिखराव यानि अलगाव की भावना उत्पन्न हो जाना।
- जिन लोगों को यह समस्या है, उनकी बच्चों को यह प्रभावित कर सकती है।
नार्कोलेप्सी का निदान – Diagnosis of Narcolepsy
नार्कोलेप्सी के निदान के लिए निम्नलिखित विधि अपनाई जा सकती हैं –
1. वार्तालाप (Conversations)- डॉक्टर, मरीज के साथ बातचीत करके उसकी पिछली और वर्तमान मेडिकल स्थिति के बारे में जानकरी लेते हैं। पारिवारिक इतिहास के बारे में जानकारी हासिल की जाती है। इसके अतिरिक्त मरीज से स्लीप पैटर्न से संबंधित कुछ प्रश्न पूछे जा सकते हैं।
2. पॉलीसोम्नोग्राम टेस्ट(Polysomnogram Test) – यह टेस्ट नींद का अध्ययन करने के लिये किया जाता है जो कि पूरी रात चलता है। इस टेस्ट में इलेक्ट्रोएन्सेफलोग्राम (EEG) सेंसर शामिल होते हैं जो कि मस्तिष्क की तरंगों को ट्रैक करते हैं।
टेस्ट करने के लिये मरीज की कलाई पर एक्टिग्राफी (actigraphy) घड़ी नुमा डिवाइस पहना दी जाती है। यह नींद के पैटर्न को ट्रैक करती है। मरीज कब सोता है कैसे सोता है, यह सब एक्टिग्राफी के जरिए मॉनिटर किया जाता है। इसके अतिरिक्त मरीज के पलक झपकने की दर को भी नोट किया जाता है।
3. मल्टीपल स्लीप लैटेंसी टेस्ट (Multiple Sleep Latency Test)- यह टेस्ट यह जानने के लिए किया जाता है कि क्या मरीज को दिन में अत्यधिक नींद आती है। यह टेस्ट लैब या स्पेशल क्लिनिक में किया जाता है और अक्सर सारी रात की नींद के अध्ययन के बाद अगले दिन होता है। इसमें मरीज से स्लीप पैटर्न से संबंधित कुछ प्रश्न पूछे जाते हैं।
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4. स्पाइनल टैप लंबर पंक्चर (Spinal tap / lumbar Puncture) – यह टेस्ट यह जानने के लिए किया जाता है कि मरीज के सेरेब्रोस्पाइनल फ्लूइड (CSF) में ऑरेक्सिन का स्तर कितना है। सेरेब्रोस्पाइनल फ्लूइड एक स्पष्ट, रंगहीन तरल पदार्थ होता है जो मस्तिष्क और रीढ़ की हड्डी में और इनके आसपास बहता है। इसका काम चलने, सांस लेने, देखने और सोचने की क्षमता आदि जैसे हर गतिविधि को निर्देशित और समन्वित करना है।
ऑरेक्सिन को हाइपोक्रेट्रिन प्रोटीन के नाम से भी जाना जाता है। ऑरेक्सिन का कम स्तर यह बताता है कि नार्कोलेप्सी से पीड़ित मरीज कैटाप्लेक्सी को विकसित कर सकता है। यह टाइप 1 नार्कोलेप्सी की जांच का सबसे अच्छा तरीका है जबकि टाइप 2 नार्कोलेप्सी वाले मरीज में ऑरेक्सिन के स्तर में परिवर्तन नहीं होता।
नार्कोलेप्सी का उपचार – Treatment of Narcolepsy
दोस्तो, नार्कोलेप्सी का कोई समुचित उपचार उपलब्ध नहीं है। हां, जीवनशैली में बदलाव करके तथा कुछ दवाओं के द्वारा इस समस्या से काफी हद तक राहत पाई जा सकती है। विवरण निम्न प्रकार है –
1. जीवनशैली में परिवर्तन – lifestyle changes
(i) रात को जल्दी सोएं ताकि आपको 6 से 8 घंटे की नींद मिल सके। इससे आपकी नींद पूरी हो जाएगी और दिन में नींद नहीं सताएगी।
(ii) रात को सोने से पहले हाथ, पैर और मुंह धोकर सोएं। इससे आप तनावमुक्त रहेंगे और आपको अच्छी नींद आएगी।
(iii) जिस कमरे में आप सोते हैं उसका तापमान सामान्य होना चाहिए, ना ज्यादा ठंडा और ना ज्यादा गर्म।
(iv) सोते समय कमरे में अंधेरा रखें। इससे स्लीप पैटर्न में सुधार होगा।
(v) रात का हल्का और सुपाच्य खाना खाएं।
(vi) रात को सोने से पहले चाय या कॉफी बिल्कुल ना पीएं।
(vii) सुबह सूरज निकलने से पहले उठें। नित्य कर्म से निपट कर मॉर्निंग वॉक पर चले जाएं।
(viii) ध्यान, प्राणायाम, योगा को अपनाएं। इससे शरीर में स्फूर्ति बनी रहेगी। फेफड़े मजबूत होंगे, प्रतिरक्षा प्रणाली में सुधार होगा। श्वसन प्रक्रिया में भी सुधार होगा। शारीरिक और मानसिक स्वास्थ ठीक रहेगा।
(ix) विटामिन और खनिज युक्त, पोषक तत्वों से भरपूर संतुलित भोजन करें। फास्ट फूड का अधिक सेवन ना करें।
(x) शराब का कम सेवन करें।
(xi) धूम्रपान ना करें। तंबाकू का उपयोग किसी भी रूप में ना करें।
(xii) ड्रग्स और नशीले पदार्थों का सेवन ना करें।
2. दवाएं – Medicines
(i) दिन में नींद ना आए, इसके लिए सेंट्रल नर्वस सिस्टम को कंट्रोल करने वाली दवाएं – मोडाफिनिल, अर्मोडाफिनिल, डेक्साम्फेटामाइन आदि दी जा सकती हैं।
(ii) रात को नींद बढ़ाने तथा नार्कोलेप्सी के प्रभाव को कम करने के लिए सोडियम ऑक्सीबेट जैसी दवा दी जा सकती है।
(iii) कैटाप्लेक्सी, हिप्नागोजिक हैलुसिनेशन तथा स्लीप पैरालिसिस से राहत पाने के लिए वेनलाफैक्सि दवा दी जा सकती है।
(iv) कुछ एंटीडिप्रेसेंट दवाएं दी जा सकती हैं जैसे कि प्रोट्रिप्टिलिन, सेरोटोनिन-नॉरपेनेफ्रिन रीअपटेक इनहिबिटर, इमिप्रामिन, क्लोमिप्रामिन आदि।
Conclusion –
दोस्तो, आज के आर्टिकल में हमने आपको नार्कोलेप्सी के बारे में विस्तार से जानकारी दी। नींद क्या है?, नींद के प्रकार, नींद की अवस्थाएं, नार्कोलेप्सी क्या है?, नार्कोलेप्सी के प्रकार, कैटाप्लेक्सी क्या है, नार्कोलेप्सी के कारण, नार्कोलेप्सी के लक्षण, नार्कोलेप्सी के प्रभाव और नार्कोलेप्सी का निदान, इन सब के बारे में भी विस्तार पूर्वक बताया। देसी हैल्थ क्लब ने इस आर्टिकल के माध्यम से नार्कोलेप्सी के उपचार के बारे में भी जानकारी दी। आशा है आपको ये आर्टिकल अवश्य पसन्द आयेगा।
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