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दिल में छेद क्या होता है? – What is a Hole in the Heart in Hindi

दिल में छेद क्या होता है?

स्वागत है आपका हमारे ब्लॉग पर। दोस्तो, जन्मजात हृदय दोष (Congenital Heart Defects – CHD) के साथ पैदा होते हैं। जन्मजात हृदय दोष का पता या तो गर्भावस्था के दौरान अल्ट्रासाउन्ड के जरिये पता चल जाता है या बाद में पता चलता है जब बच्चा बड़ा होता है। जन्मजात हृदय दोष वस्तुतः अनेक दोषों का एक समूह है। इस समूह में एक दोष होता है जिसे दिल में छेद” होना कहते हैं। 

यह हृदय के कक्षों (Chambers) के बीच की दीवार में छेद होता है। इसे मेडिकल साइंस में वेंट्रिकुलर सेप्टल डिफेक्ट (Ventricular Septum Defect – VSD) या एट्रियल सेप्टल डिफेक्ट (Atrial Septum Defect – ASD) कहते हैं। हृदय में छेद होने के कारण रक्त का बहाव असामान्य हो जाता है। यह एक कक्ष से दूसरे कक्ष में बहता है। आखिर दिल में छेद क्या होता है और क्यों होता है। दोस्तो, यही है हमारा आज का टॉपिक “दिल में छेद क्या होता है?”। 

देसी हैल्थ क्लब इस आर्टिकल के माध्यम से आज आपको दिल में छेद होने के बारे में विस्तार से जानकारी देगा और यह भी बताएगा इसका उपचार क्या है। तो, सबसे पहले जानते हैं कि दिल में छेद क्या होता है और इसके क्या कारण होते हैं। फिर इसके बाद बाकी बिंदुओं पर जानकारी देंगे।

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दिल में छेद होना क्या होता है? – What is a Hole in the Heart?

दोस्तो, जन्मजात हृदय दोष (Congenital Heart Defects – CHD) में कई दोष शामिल होते हैं जैसे कि हृदय वाल्व दोष, हृदय की रक्त वाहिका में दोष, हृदय की मांसपेशियों में दोष, हृदय की दीवार में दोष। जन्मजात हृदय दोष के प्रकार में एक और हृदय दोष शामिल होता है जिसे “दिल में छेद होना” कहा जाता है। यह हृदय की संरचनात्मक दोष है जिसके परिणाम स्वरूप हृदय के अंदर रक्त का सामान्य स्राव में परिवर्तन आ जाता है।

दरअसल, गर्भस्थ शिशु में हृदय का विकास 22 दिनों में एक बड़ी ट्यूब से आरम्भ होता है,एक बड़ी ट्यूब से विकसित होता है जो खंडों में बंटा होता है तथा अंत में 28वें दिन तक दीवारें और कक्ष (chambers) बनने लगते हैं। हृदय की इस विकास की प्रक्रिया के दौरान कोई समस्या उत्पन्न होने से हृदय के बीच की दीवार में छेद हो जाता है। इस दीवार को सेप्टम कहा जाता है। यह छेद वेंट्रिकुलर सेप्टम या एट्रियल सेप्टम में हो सकता है। इसीलिये मेडिकल साइंस में इसे वेंट्रिकुलर सेप्टल डिफेक्ट (Ventricular Septum Defect – VSD) या एट्रियल सेप्टल डिफेक्ट (Atrial Septum Defect – ASD) कहा जाता है। 

वेंट्रिकुलर सेप्टल डिफेक्ट का मतलब है कि हृदय के दोनों निचले भाग अर्थात् बाएं और दाएं मुख्य पंपिंग चैंबर्स यानि वेंट्रिकल के बीच दिल की दीवार में एक छेद हो जाना। एट्रियल सेप्टल डिफेक्ट का अर्थ है हृदय के ऊपरी दोनों कक्षों यानि बाएं और दाएं एट्रिआ के बीच में छेद हो जाना। दोष की दोनों ही अवस्था में रक्त एक कक्ष से दूसरे कक्ष में स्रवित होने लगता है। हृदय के ऊपर के दोनों चैम्बर्स को एट्रिआ (Atria) और नीचे के दोनों हिस्सों को वेंट्रिकल (Ventricle) कहा जाता है। अतः हृदय के दांये भाग में दांया एट्रिआ और दांया वेंट्रिकल तथा बाएं भाग में बांया एट्रिआ और बांया वेंट्रिकल उपस्थित होते हैं।

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दिल में छेद होने के कारण – Cause of a Hole in the Heart

दिल में छेद होना जन्मजात हृदय संबंधी दोष है परन्तु जन्मजात हृदय संबंधी दोष के सटीक और प्रमाणिक कारण अज्ञात हैं। परन्तु अनुमानतः दिल में छेद होने के निम्नलिखित कारण हो सकते हैं –

1. गर्भावस्था में बच्चे में हृदय का सामान्य रूप से विकास ना होना इसका मुख्य कारण है।

2. हृदय की संरचना में कमी होना यानि कुछ निम्नलिखित जन्मजात हृदय दोष, हृदय में छेद का कारण बन सकते हैं –

(i) हृदय की आंतरिक दीवारों में कमी।

(ii) हृदय के वॉल्व में कमी।

,(iii) हृदय/शरीर में रक्त ले जाने वाली रक्त धमनियों या तथा रक्त वाहिनी नसों में कमी।

दिल में छेद होने के जोखिम कारक – Risk Factors for a Hole in the Heart

निम्नलिखित कारक दिल में छेद की संभावना को जन्म दे सकते हैं –

1. आनुवंशिकता (Heredity)- परिवार में किसी को हृदय से जुड़ी समस्याएं हैं या जन्मजात हृदय दोष है तो उनकी संतान को भी यह दोष होने की संभावना रहती है।  

2. उत्परिवर्तन (Mutations) – कुछ उत्परिवर्तन हृदय की संरचना में अर्ट्रियल सेप्टल डिफेक्ट जैसे दोष उत्पन्न कर सकते हैं। 

3. जन्मजात दोषों से जुड़ा होना (Be Associated with Birth Defects)- कुछ जन्मजात दोष जैसे डाउन सिंड्रोम या टर्नर सिंड्रोम दिल में छेद दोष को ट्रिगर कर सकते हैं। 

3. रूबेला (Rubella)- गर्भवती महिलाओं के पहले तीन महीने में रूबेला (जर्मनी खसरा) के संपर्क में आने से जन्मजात हृदय दोष का जोखिम बढ़ जाता है।

4. कुछ दवाएं (Some Medicines)- बाइपोलर डिसऑर्डर, मुहांसे तथा दौरे आदि के लिए ली जाने वाली दवाएं दिल में छेद जैसे जन्मजात दोष का जोखिम बढ़ा सकती हैं।

5. शराब व अन्य नशीले पदार्थ (Alcohol and Other Drugs)- गर्भावस्था के दौरान शराब का सेवन करना या ड्रग्स आदि नशीले पदार्थों का सेवन करना दिल में छेद के खतरे को बढ़ा सकते हैं।

6. धूम्रपान (Smoking)- गर्भवती जो महिलाओं द्वारा धूम्रपान करना या सेकेंड हेंड स्मोकिंग के संपर्क में आना, दोनों ही स्थितियां दिल में छेद होने की संभावना को बढ़ा सकती हैं। 

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दिल में छेद होने के लक्षण – Symptoms of Hole in the Heart 

दिल में छेद होने के निम्नलिखित लक्षण नजर आ सकते हैं :-

1. बच्चे में – Children

  • सांस लेने में दिक्कत होना यानि सांस लेने में कमी या  तेज-तेज सांस लेना।
  • स्तनपान के दौरान शिशु का जल्दी थक जाना।
  • बच्चा भोजन करते समय, खेलते हुए या रोते हुए बहुत तेजी से सांस लेता है। 
  • हृदय गति तेज होना। 
  • वजन ना बढ़ना।
  • बच्चे का बहुत अधिक रोना।
  • त्वचा का रंग पीला होना।
  • होंठ और नाखूनों के पास नील जैसे निशान दिखना।
  • बच्चे का सामान्य रूप से विकास ना हो पाना।
  • शारीरिक गतिविधियों करते हुए जल्दी थक जाना और सांस फूलना। 

2. बड़े व्यक्ति में – Adult Person

  • शारीरिक गतिविधियों या परिश्रम करने पर जल्दी थक जाना और सांस फूलना। 
  • होंठ, नाखून और त्वचा आदि पर नीले रंग के निशान पड़ जाना। 
  • एडेमा यानि शरीर के ऊतकों तथा आंतरिक अंगों में सूजन।
  • हृदय की असामान्य लय।

दिल में छेद का निदान – Diagnosing a Hole in the Heart

वैसे तो गर्भवती महिला की नियमित रूप से जांच होती रहती है, कई बार अल्ट्रासाउंड भी किया जाता है। तो शुरुआत में ही जन्मजात हृदय संबंधी दोष की संभावना का पता चल जाता है। गंभीर जन्मजात हृदय दोष के मामले में गर्भावस्था के समय में या प्रसव के बाद जल्दी ही परीक्षण कर लिया जाता है, कम गंभीर, मामलों में, जिनमें लक्षण दिखाई नहीं देते हैं, बच्चों के बड़ा होने पर ही परीक्षण किया जाता है। इसके लिये निम्नलिखित टेस्ट किए जा सकते हैं 

1. शारीरिक परीक्षण (Physical Examination)- शारीरिक परीक्षण के लिये स्टेथोस्कोप के जरिये बच्चे के हृदय और फेफड़ों की आवाजें सुनते हुए, सांस फूलना, सांस तेज होना, सांस की गति, आदि संकेतों का पता लगाने की कोशिश की जाती है। इसके अतिरिक्त नाखून, होंठ, त्वचा के रंग का जायजा लिया जाता है।

2. इकोकार्डियोग्राफी (Echocardiography)- यह टेस्ट यदि गर्भावस्था में किया जाना है तो 18 से 22 सप्ताह के बीच किया जाता है। बाद में बच्चे के बड़े होने पर किया जा सकता है। इस टेस्ट में ध्वनि तरंगों के जरिये मूविंग इमेज बनती है। इससे हृदय की संरचना और हृदय से जुड़ी समस्याओं का पता चल जाता है।

3. इकोकार्डियोग्राम (Echocardiogram)- ईसीजी के जरिये हृदय की विद्युत गतिविधियों, हृदय गति, हृदय कक्ष की सूजन, उसका आकार की विषमता आदि का पता चल जाता है।

4. एक्स-रे (Chest X-Ray) – हृदय के आकार की जानकारी कि वह सामान्य है अथवा बढ़ा हुआ है, फेफड़ों में अतिरिक्त रक्त या द्रव आदि भरा हुआ है या नहीं आदि की जानकारी लेने के लिए छाती का एक्स रे किया जाता है।

5. पल्स ऑक्सिमेट्री (Pulse Oximetry)- इस टेस्ट के लिये हाथ या पैर की उंगली पर पल्स ऑक्सिमेट्री नामक सेंसर उपकरण लगा दिया जाता है। इससे रक्त में ऑक्सिजन की मात्रा का पता लगा लिया जाता है।

6. कार्डियक कैथीटेराइजेशन (Cardiac Catheterization)- इस टेस्ट के लिए डॉक्टर  कैथेटर द्वारा एक विशेष डाई को किसी रक्तवाहिका या हृदय के किसी कक्ष में इंजेक्ट कर देते हैं जिससे डॉक्टर एक्स-रे में हृदय और रक्त वाहिकाओं में रक्त प्रवाह को देखकर विश्लेषण करते हैं।

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दिल में छेद का उपचार –  Hole in Heart Treatment

किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी लखनऊ में पिडियेट्रिक विभाग की एचओडी प्रो। रश्मि कुमार के अनुसार अधिकतर बच्चों के दिल का छेद एक वर्ष में अपने-आप भर जाता है, परन्तु ऐसा न होने पर इसका इलाज सरलता से हो जाता है। इसके लिए निम्नलिखित उपचार विधि अपनाई जा सकती हैं –

1. दवाएं (Medicines)- हृदय संबंधी दोषों के कुछ ऐसे मामले जो हल्के हैं और गंभीर नहीं हैं, इन में कुछ ऐसी दवाएं दी जाती हैं हृदय को अच्छी तरह से कार्य करने में मदद करती हैं।

2. इम्प्लान्टेबल हार्ट डिवाइस (Implantable Heart Device)- हृदय गति की दर को नियंत्रित करने वाला उपकरण पेसमेकर अथवा हृदय की धड़कनों को ठीक करने वाले उपकरण इम्प्लांटेबल कार्डियोवर्टर-डेफीबिलेटर, इम्प्लान्ट किया जा सकता है।

3. कैथेटर (Catheter)- कैथेटर प्रक्रिया में, एनेस्थीसिया का उपयोग करते हुए कैथेटर को ग्रोइन की नस में डालाकर सेप्टम की ओर ले जाया जाता है।  कैथेटर से जुड़ी दो छोटी डिस्क को बाहर धकेल दिया जाता है और हृदय के छेद को प्लग कर दिया जाता है

4. ऑपन हार्ट सर्जरी (Open Heart Surgery)- ऑपन हार्ट सर्जरी तब की जाती है जब कैथेटर प्रक्रिया से उपचार सफल नहीं हो पाता। ऑपन हार्ट सर्जरी में टांके या पैच के द्वारा दिल के छेद को बंद करना, दिल के वॉल्व को ठीक करना या बदलना, रक्त वाहिनियों को चौड़ा करना आदि उपचार सम्मलित होते हैं।

5. हृदय प्रत्यारोपण (Heart Transplant)- इस विधि का उपयोग अति गंभीर मामलों में उस समय किया जाता है जब उपचार का कोई और विकल्प ना हो। इस प्रक्रिया में हृदय को दान में मिले हुए हृदय से बदल दिया जाता है। दान में हृदय पाने के लिये प्रक्रिया पूरी करने के बाद भी बहुत लंबा इंतजार करना पड़ता है।

Conclusion –

दोस्तो, आज के आर्टिकल में हमने आपको दिल में छेद के बारे में विस्तार से जानकारी दी। दिल में छेद होना क्या होता है, दिल में छेद होने के कारण, दिल में छेद होने के जोखिम कारक, दिल में छेद होने के लक्षण और दिल में छेद का निदान, इन सब के बारे में भी विस्तार पूर्वक बताया। देसी हैल्थ क्लब ने इस आर्टिकल के माध्यम से दिल में छेद के उपचार के बारे में भी बताया। आशा है आपको ये आर्टिकल अवश्य पसन्द आयेगा।

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Disclaimer – यह आर्टिकल केवल जानकारी मात्र है। किसी भी प्रकार की हानि के लिये ब्लॉगर/लेखक उत्तरदायी नहीं है। कृपया डॉक्टर/विशेषज्ञ से सलाह ले लें।

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दोस्तो, आज के आर्टिकल में हमने आपको दिल में छेद के बारे में विस्तार से जानकारी दी। दिल में छेद होना क्या होता है, दिल में छेद होने के कारण, दिल में छेद होने के जोखिम कारक, दिल में छेद होने के लक्षण और दिल में छेद का निदान, इन सब के बारे में भी विस्तार पूर्वक बताया।
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