दोस्तो, कुछ बुजुर्ग लोग जब चलते हैं तो आगे की ओर झुके होते हैं। बहुत धीरे-धीरे चलते हैं। चलते समय पैर पूरी तरह उठ नहीं रहे, वे जमीन पर पैर घिसट कर चल रहे होते हैं। इससे भी अजीब ये कि उनकी बाजुएं सीधी रहती हैं, वे हिल नहीं रहीं, कोई मूवमेंट नहीं। ये सब लक्षण पार्किंसन रोग के होते हैं। जी हां, पार्किंसन रोग जो अधिकतर 60 वर्ष की आयु के बाद बुजुर्गों को होता है। होता तो मध्यम वर्ग की आयु वालों को भी है मगर बहुत ही कम। यह एक मानसिक विकार है जो तंत्रिका तंत्र से जुड़ा है। जब मस्तिष्क में मौजूद तंत्रिका कोशिकाएं को क्षति होने लगती है तब डोपामाइन रसायन के उत्पादन में कमी आती है। डोपामाइन की इस कमी के कारण पार्किंसन रोग होता है। परिणामस्वरूप मस्तिष्क का गतिविधियों पर नियंत्रण नहीं रहता। आखिर क्या है ये पार्किंसन रोग। दोस्तो, यही है हमारा आज का टॉपिक “पार्किंसन रोग क्या है”?
देसी हैल्थ क्लब इस आर्टिकल के माध्यम से आपको पार्किंसन रोग के बारे में विस्तार से जानकारी देगा और यह भी बताएगा कि इसका उपचार क्या है। तो, सबसे पहले जानते हैं कि पार्किंसन रोग क्या है और आयुवर्ग और प्रभावित व्यक्ति। फिर, इसके बाद बाकी बिंदुओं पर जानकारी देंगे।
पार्किंसन रोग क्या है? – What is Parkinson’s Disease?
दोस्तो, पार्किंसन (Parkinson) मस्तिष्क के एक विशेष हिस्से से जुड़ी चिकित्सीय स्थिति है। यह मस्तिष्क में तंत्रिका तंत्र का प्रगतिशील रोग है जो गतिविधि को प्रभावित करती है। इस रोग का विकास बहुत धीरे-धीरे होता है और पता तब चलता है जब कई सप्ताह या महीने बीत जाने पर लक्षणों की तीव्रता बढ़ जाती है। इस रोग की शुरुआत एक हाथ के कंपन से होती है और चेहरे के हाव-भाव कम हो जाते हैं या समाप्त हो जाते हैं। इस रोग का सीधा संबंध मस्तिष्क के बेसल गैन्ग्लिया के अध:पतन और न्यूरोट्रांसमीटर डोपामाइन की कमी से है।
कंपकंपी, मांसपेशियों में अकड़न, धीमी और अनिश्चित गति, चलते समय झुककर चलना, बाजुओं का मूवमेंट ना होना अर्थात् बाजू सीधे रहना, धीमी और अस्पष्ट आवाज इस रोग के मुख्य लक्षण हैं। यह रोग मध्यम आयु वर्ग और वृद्ध आयु वर्ग लोगों को होता है। यदि आंकड़ों की बात की जाए तो भारत में प्रतिवर्ष 10 लाख से भी अधिक मामले सामने आते हैं। यद्यपि उपचार से इस रोग के लक्षणों को मैनेज किया जा सकता है परन्तु इसका कोई सटीक इलाज नहीं है। यह रोग कई वर्षों तक या सारा जीवन रह सकता है। अल्जाइमर रोग के बाद, पार्किंसन रोग को केन्द्रीय तंत्रिका तंत्र का दूसरा सबसे आम रोग माना जाता है।
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आयुवर्ग और प्रभावित व्यक्ति – Age group and Affected Individuals
दोस्तो, पार्किंसन रोग बहुत दुर्लभ मामलों में बच्चों में देखा जाता है। आयुवर्ग और प्रभावित मरीजों का विवरण निम्न प्रकार है –
1. 40 वर्ष से 64 वर्ष के बीच – 250 व्यक्तियों में से लगभग 1 व्यक्ति।
2. 65 वर्ष से 79 वर्ष के बीच – 100 व्यक्तियों में से लगभग 1 व्यक्ति।
3. 80 वर्ष से अधिक आयु – 10 व्यक्तियों में से लगभग 1 व्यक्ति।
पार्किंसन रोग के कारण – Causes of Parkinson’s Disease
पार्किंसन रोग के सटीक और प्रमाणित कारण अज्ञात हैं परन्तु अनुमान के अनुसार इसके निम्नलिखित कारण हो सकते हैं –
1. पार्किंसन रोग में का मुख्य कारण मस्तिष्क में डोपामाइन नामक रसायन की कमी होना है। यह एक संदेशवाहक के रूप में कार्य करते हुए, मस्तिष्क और अन्य महत्वपूर्ण क्षेत्रों में संकेतों के ट्रांसमिशन में मदद करता है। इस बारे में स्पष्टीकरण निम्न प्रकार है –
(i) हम यहां स्पष्ट कर दें कि मस्तिष्क में मौजूद तंत्रिका कोशिकाएं (Neurons) डोपामाइन का निर्माण करते हैं। जब बेसल गैन्ग्लिया (basal ganglia) में तंत्रिका कोशिकाओं (neurons) का अधःपतन (degeneration) होने लगता है अर्थात् इनकी क्षति होकर नष्ट होने लगती हैं तो उस स्थिति में डोपामाइन का उत्पादन कम होने लगता है। इस स्थिति में पार्किंसन रोग के लक्षण उभरने लगते हैं।
(ii) यहां हम और स्पष्ट कर दें कि बेसल गैन्ग्लिया मस्तिष्क संरचनाओं का एक समूह है जिसका काम जटिल प्रक्रियाओं को संभालना है और शरीर की गतिविधियों की क्षमता को कंट्रोल करते हैं। इतना ही नहीं बेसल गैन्ग्लिया, सीखने, भावनात्मक प्रसंस्करण (Emotional Processings) तथा अन्य कार्यों में भी अपनी सक्रिय भूमिका निभाते हैं।
2. फोर्टिस अस्पताल के न्यूरोलोजिस्ट डॉ कपिल सिंघल पार्किंसन रोग की वजह कीटनाशक दवाओं को मानते हैं जिनका उपयोग फलों और सब्जियों को उगाने के लिए उनको कीड़ों से बचाने के लिए किया जाता है। डॉ कपिल सिंघल के अनुसार इन कीटनाशक दवाओं के कारण 60 वर्ष की आयु के बाद एक से दो प्रतिशत व्यक्ति पार्किंसन रोग की चपेट में आ जाते हैं।
पार्किंसन रोग के जोखिम कारक – Risk Factors for Parkinson’s Disease
निम्नलिखित कारक पार्किंसन रोग की संभावना को बढ़ा सकते हैं –
1. लिंग – पार्किंसन रोग होने की संभावना महिलाओं की तुलना में पुरुषों को अधिक होती है।
2. आयु – 60 वर्ष और उससे अधिक आयु के व्यक्तियों को यह रोग होने की संभावना अधिक होती है।
3. आनुवांशिकता – परिवार में यदि किसी को यह रोग हो तो अन्य सदस्यों को भी होने की संभावना रहती होती है।
4. रसायनों से संपर्क – कुछ कार्य ऐसे होते हैं जिनमें विभिन्न प्रकार के रसायनों के संपर्क में आना पड़ता है जैसे कि पेन्ट बनाने की फैक्ट्री, कैमिकल फैक्ट्री, खेतीबाड़ी, भवन निर्माण आदि।
5. सिर पर लगी गंभीर चोट।
6. कुछ दवाओं की प्रतिक्रिया।
पार्किंसन रोग के लक्षण – Symptoms of Parkinson’s Disease
पार्किंसन रोग के निम्नलिखित लक्षण देखे जा सकते हैं –
- हाथ की अंगुलियों में। या कलाई में या पूरी बाजू में कंपन होना।
- खड़े होने पर या चलने पर सीधा ना रह पाना। आगे की तरफ झुकाव। चाल की गति में कमी, छोटे कदम। पैर जमीन पर घिसटते हुए चलना, घुटने और कुहनी भी थोड़े मुड़े हुए।
- चलते हुए बाजुओं का मूवमेंट ना हो पाना।
- पलकों का कम झपकना। आंखों में चौड़ापन।
- अस्पष्ट आवाज, धीरे बोलना।
- शरीर का संतुलन ना बना पाना।
- मनोभ्रंश और मतिभ्रम।
- भोजन निगले में दिक्कत।
- सूंघने की क्षमता में कमी।
- वजन कम होना।
- कब्ज की शिकायत।
- सांस फूलना।
- कमजोरी, चक्कर आना।
- खड़े होते समय आंखों में अंधेरा छा जाना।
- जोड़ों में दर्द रहना।
- सेक्स में रुचि ना होना। कामशक्ति और कामक्षमता, में कमी।
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पार्किंसन रोग का निदान – Diagnosis of Parkinson’s Disease
दोस्तो, पार्किंसन के निदान के लिए कोई विशेष टेस्ट निर्धारित नहीं है। मानसिक कार्य में परिवर्तन, समन्वय आदि पर नजर रखने के लिए समय-समय पर कुछ शारीरिक और मानसिक परीक्षण किये जाते हैं। डॉक्टर, उस चिकित्सा स्थितियों की जांच करने के लिए निम्नलिखित टेस्ट करवा सकते हैं जो पार्किंसन के कारण/कारक बन सकते हैं –
1. ब्लड टेस्ट (Blood Tests)- मल्टीपल सिस्टम एट्रोफी या कॉर्टिकोबेसल डिजनरेशन जैसे पार्किंसनिज़्म के वैकल्पिक कारणों को जानने के लिये ब्लड टेस्ट किया जा सकता है।
2. डैटस्कैन (DaTscan)- इस इमेजिंग टेस्ट के जरिए मस्तिष्क में डोपामाइन के स्तर का पता चल जाता है। इसकी कमी के आधार पर ही डॉक्टर पार्किंसंस को कंफ़र्म करते हैं।
3. जेनेटिक परीक्षण (Genetic Testing)- पार्किंसनिज़्म का पारिवारिक इतिहास होने की स्थिति में यह टेस्ट पार्किंसंस का प्रमुख कारण से अवगत करा सकता है।
4. एमआरआई (MRI)- इस टेस्ट के जरिए मस्तिष्क के ट्यूमर, सामान्य दबाव हाइड्रोसिफ़लस, या संवहनी पार्किंसनिज़्म आदि का पता चल जाता है।
पार्किंसन रोग का इलाज – Treatment of Parkinson’s Disease
दोस्तो, पार्किंसंस रोग का कोई समुचित इलाज उपलब्ध नहीं है। परन्तु दवाओं और विभिन्न प्रकार की थेरेपी के माध्यम से इसके लक्षणों का प्रबंधन किया जा सकता है। बहुत दुर्लभ मामलों में सर्जरी की आवश्यकता पड़ सकती है।
1. दवाएं (Medicines)- पार्किंसंस रोग में निम्नलिखित दवाएं दी जा सकती हैं –
(i) कार्बिडोपा-लेवोडोपा (Carbidopa-Levodopa) – ये दवाइयां कंपकंपी को कंट्रोल करती हैं। इनको पार्किंसन रोग के उपचार में सबसे अधिक प्रभावशाली माना जाता है। कार्बिडोपा को लेवोडोपा के साथ लिया जाता है। कार्बिडोपा, लीवोडोपा के टूटने से रोकता है जिससे अधिक मात्रा में लीवोडोपा मस्तिष्क में प्रवेश करती है। लेवोडोपा एक प्राकृतिक रसायन है। यह दवा मस्तिष्क में पहुंचकर डोपामाइन में बदल जाती है। मतली, उल्टी, चक्कर आना आदि इसके साइड इफेक्ट्स हो सकते हैं।
(ii) डोपामाइन एगोनिस्ट (Dopamine Agonists) – यह दवा लेवोडोपा के समान तो प्रभावकारी नहीं है परन्तु इसका प्रभाव लंबे समय तक रहता है। लेवोडोपा के अधिक प्रभाव को रोकने के लिए लेवोडोपा के साथ डोपामाइन एगोनिस्ट को दिया जा सकता है। मतली, उल्टी, चक्कर आना जैसे साइड इफेक्ट्स में मतिभ्रम, सूजन, बार-बार दोहराये जाने वाले व्यवहार भी शामिल हो सकते हैं।
(iii) एमएओ-बी अवरोधक (MAO-B inhibitors) – यह दवा, मोनोअमैन ऑक्सीडेज बी (माओ-बी) नामक मस्तिष्क एंजाइम में बाधा बनकर मस्तिष्क में डोपामाइन की हो रही हानि को रोकने में अपनी भूमिका निभाती है। यह डोपामाइन को छोटे-छोटे हिस्सों में बांट देती है। मतली या सिरदर्द इस दवा के साइड इफेक्ट्स हैं।
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(iv) कैटेकॉल ओ-मेथिलट्रांसफेरेज (सीओएमटी) अवरोधक (Catechol O-methyltransferase (COMT) inhibitors) – यह दवा भी डोपामाइन को तोड़ने वाले एंजाइम को बाधित करती है और लेवोडोपा के प्रभाव को बढ़ाने में मदद करती है। अनैच्छिक गतिविधियों की संभावनाएं इसके साइड इफेक्ट में शामिल हो सकती हैं।
(v) एंटीकोलिनर्जिक (Anticholinergics) – यद्यपि इन इन दवाओं का उपयोग कंपन को कंट्रोल करने के लिए बहुत वर्षों से किया जा रहा है परन्तु स्मरणशक्ति का होना, मतिभ्रम, कब्ज, मूत्र संबंधी समस्या आदि में इनका कोई प्रभाव नहीं होता।
(vi) एमान्टाडाइन (Amantadine) – पार्किंसन रोग के शुरुआती चरण में राहत प्रदान करने के लिए यह दवा दी जा सकती है। इसे लेवोडोपा के साथ भी दिया जा सकता है। स्किन पर बैंगनी रंग के धब्बे, टखने की सूजन, मतिभ्रम आदि इसके साइड इफेक्ट हो सकते हैं।
2. सर्जरी (Surgery)- पार्किंसंस के उपचार में सर्जरी उन मामलों में की जाती है जहां यह रोग हाई स्टेज पर पहुंच चुका होता है और दी गई दवाओं से आराम नहीं लगता। पार्किंसंस के उपचार में सर्जरी के तीन प्रकार होते हैं। विवरण निम्न प्रकार है –
(i) पल्लिडोटॉमी (Pallidotomy)- मस्तिष्क का वह भाग जिसे ग्लोबस पल्लीडस कहा जाता है, यह मरीज की मूवमेंट्स को बहुत कठोर बनाने के लिए जिम्मेदार होता है। सर्जरी के बाद इसे नष्ट कर दिया जाता है।
(ii) थैलोमोटॉमी (Thalamotomy)- मस्तिष्क का एक भाग जिसे थैलेमस कहा जाता है, इसके एक भाग को सर्जरी द्वारा नष्ट कर दिया जाता है। यह भाग कंपकंपी का कारण माना जाता है।
(iii) डीप ब्रेन स्टिमुलेशन (Deep Brain Stimulation)- इस सर्जरी के द्वारा मस्तिष्क के विशेष चयन किए गए क्षेत्रों में इलेक्ट्रोड प्रत्यारोपित करना होता है। इसके लिए छाती में एक उपकरण डाला जाता है। डिवाइस को मस्तिष्क में ‘लीड’ से जोड़ने के लिए एक तार त्वचा के नीचे चलता है।
3. थेरेपी (Therapy)- फिजियो थेरेपी, कॉग्निटिव थेरेपी, व्यवहार थेरेपी, स्पीच थेरेपी आदि का सहारा लिया जा सकता है।
Conclusion –
दोस्तो, आज के आर्टिकल में हमने आपको पार्किंसन रोग क्या है? के बारे में विस्तार से जानकारी दी। पार्किंसंस क्या है?, आयुवर्ग और प्रभावित व्यक्ति, पार्किंसंस रोग के कारण, पार्किंसंस रोग के जोखिम कारक, पार्किंसंस रोग के लक्षण और पार्किंसंस रोग का निदान, इन सब के बारे में भी विस्तार पूर्वक बताया। देसी हैल्थ क्लब ने इस आर्टिकल के माध्यम से पार्किंसंस रोग का इलाज भी बताया। आशा है आपको ये आर्टिकल अवश्य पसन्द आयेगा।
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