दोस्तो, स्वागत है आपका हमारे ब्लॉग पर। दोस्तो, चिकित्सा विज्ञान में जो आविष्कार हुऐ हैं, तरक्की हुई है, उन सब से मानव जाति का कल्याण हुआ है। इनके द्वारा अनेक गंभीर और जानलेवा बीमारियों का इलाज संभव हो पाया है। दोस्तो, ट्रांसप्लांट आपने बहुत सुने होंगे जैसे किडनी ट्रांसप्लांट, लिवर ट्रांसप्लांट, हार्ट ट्रांसप्लांट आदि परन्तु आज हम एक ऐसे ट्रांसप्लांट की बात करेंगे जो अंग ट्रांसप्लांट की श्रेणी में नहीं आता बल्कि यह एक ऊतक है जिसको मरीज के शरीर के अन्य हिस्से से निकाल कर या दानकर्ता के शरीर से लेकर ट्रांसप्लांट किया जाता है ताकि मरीज की जान बचाई जा सके। जी हां, हम बात कर रहे हैं बोन मेरो ट्रांसप्लांट की। आखिर यह बोन मेरो ट्रांसप्लांट है क्या? दोस्तो, यही है हमारा आज का टॉपिक “बोन मेरो ट्रांसप्लांट क्या है?”। देसी हैल्थ क्लब इस लेख के माध्यम से आज आपको बोन मेरो ट्रांसप्लांट के बारे में विस्तार से जानकारी देगा और यह भी बतायेगा कि यह क्यों जरूरी है और कैसे किया जाता है। तो, सबसे पहले जानते हैं कि बोन मेरो क्या है, स्टेम सेल क्या है और बोन मेरो ट्रांसप्लांट क्या है। इसके बाद, फिर बाकी बिन्दुओं पर जानकारी देंगे।
बोन मेरो क्या है? – What is Bone Marrow
अस्थि मज्जा यानी बोन मेरो (Bone Marrow) हड्डियों के अन्दर भरा हुआ स्पंज के समान नरम पदार्थ (ऊतक) है, जिसमें स्टेम सेल होते हैं। बोन मेरो रीढ़ की, कूल्हे और जांघ की हड्डियों में होता है और इन्हीं जगह पर स्टेम सेल की अधिकता होती है। यद्यपि 90 प्रतिशत तक ट्रांसप्लांट में स्टेम सेल खून में से ही लिये जाते हैं। वयस्कों में बड़ी हड्डियों में मैरो, रक्त कोशिकाओं के निर्माण कार्य में सहायक होता है। इसमें शरीर के कुल भार का 4 प्रतिशत यानी लगभग 2.6 किलोग्राम समाहित रहता है। बौन मेरो, रक्त निर्माण कोशिकाओं (हेमटोपोइएटिक) को बनाता है, अन्य सभी निम्नलिखित रक्त कोशिकाऐं इन्हीं से बनती हैं –
(i) लाल रक्त कोशिकाएं (जो ऑक्सीजन ले जाती हैं)।
(ii) सफेद रक्त कोशिकाएं (ये संक्रमण से लड़ती हैं)।
(iii) प्लेटलेट्स (ये खून जमने में मदद करती हैं)
स्टेम सेल क्या है? – What is a Stem Cell
ये शरीर की मूल कोशिकाऐं होती हैं जो शरीर के किसी भी अंग को कोशिका के रूप में विकसित करने की सक्षम होती हैं। इन कोशिकाओं का उपयोग शरीर की किसी भी कोशिका की मरम्मत के लिये किया जाता है। उदहारण के तौर पर खराब हृदय की कोशिकाओं की मरम्मत स्टेम कोशिका द्वारा की जा सकती है। मनुष्य के लिए अत्यावश्यक और महत्वपूर्ण विटामिन-सी को, रोगों के इलाज के हेतू स्टेम कोशिका उत्पन्न करने के लिए भी उपयोग किया जा सकता है। वस्तुतः स्टेम कोशिकाऐं अपने मूल रूप में ऐसी अविकसित कोशिकाऐं होती हैं जिनमें शरीर की अन्य कोशिकाओं को विकसित करने की क्षमता होती है।
बोन मेरो ट्रांसप्लांट क्या है? – What is a Bone Marrow Transplant?
सरल भाषा में कहा जाये तो बोन मेरो ट्रांसप्लांट वह सर्जिकल प्रक्रिया है जिसके द्वारा क्षतिग्रस्त हुऐ स्टेम सेल को स्वस्थ बोन मेरो स्टेम सेल से बदल दिया जाता है। ये स्वस्थ बोन मेरो स्टेम सेल मरीज के या किसी अन्य डोनर के शरीर से ली जाती हैं। कूल्हे, जांघ और रीढ़ की हड्डी में इन कोशिकाओं की अधिकता होती है, यद्यपि, 90 प्रतिशत तक स्टेम सेल से ही लिया जाता है। इनको ट्रांसप्लांट करने से पहले फ़िल्टर किया जाता है। ट्रांसप्लांट किये गए बोन मेरो को ग्राफ्ट कहते हैं। ट्रांसप्लांट किये गये बोन मेरो स्टेम सेल को मरीज के शरीर में काम करने में 14 से 28 दिन तक का समय लग जाता है।
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बोन मेरो कौन डोनेट कर सकता है? – Who Can Donate Bone Marrow?
मैरो डोनर रजिस्ट्री ऑफ़ इंडिया के अनुसार बोन मेरो डोनेशन की सामान्य प्रक्रिया निम्न प्रकार है –
1. कोई भी जिसकी आयु 18 वर्ष से 50 वर्ष के बीच हो।
2. डोनर ओवर वेट ना हो यानी वजन ज्यादा ना हो।
3. डोनर को कोई हृदय रोग, किडनी या लिवर से संबंधित रोग नहीं होने चाहिये।
4. कैंसर, डायबिटीज, एचआईवी/एड्स जैसी बीमारी ना हो।
5. डोनर के शरीर में छह प्रकार के ह्यूमन ल्यूकोसाइट्स एंटीजन (HLA) होने आवश्यक हैं (2 HLA-A, 2 HLA-B और 2 HLA-DR) तभी डोनर एमडीआरआई में स्वयं को डोनर के रूप में रजिस्टर करवा पायेगा। HLA एक ऐसा प्रोटीन जो कोशिकाओं की सतह पर पाया जाता है।
6. ब्लड ग्रुप मैच करने की ज़रूरत नहीं होती। डोनर और मरीज के HLA प्रकार का आपस में मेल होना चाहिये। यह सबसे महत्पूर्ण है। इसके लिये पहले डोनर का टैस्ट किया जाता है जिसकी रिपोर्ट आने में एक या दो हफ्ते लग जाते हैं। यदि मैच हो जाता है तो कॉउंसलर स्टेम सेल ट्रांसप्लांट के बारे में डोनर से बात करते हैं। इस समय भी डोनर के पास बोन मेरो देने या ना देने का विकल्प होता है। यदि वह डोनेट करने को राजी होता है तो फिर डोनर की पूरी मेडिकल जांच की जाती है।
डोनर से स्टेम सेल कैसे लिए जाते हैं? – How are Stem Cells Taken from a Donor?
दोस्तो, मेडिकल और कानूनी कागजी कार्यवाही पूरी होने के बाद डोनर के शरीर से एफेरिस मशीन द्वारा रक्त से स्टेम सेल लिये जाते हैं। लगभग 90 प्रतिशत डोनेशन इस प्रक्रिया द्वारा किये जाते हैं। विवरण निम्न प्रकार है –
1. डोनर बांह की नस में इंट्रावेनस लाइन या आइवी से रक्त निकाल कर एक मशीन, जो बहुत तेजी से घूम रही होती है, में प्रवाहित किया जाता है। यह मशीन कोशिकाओं के वजन के अनुसार, रक्त के तत्वों को भिन्न परतों में विभाजित कर देती है। डॉक्टर स्टेम सेल की परत एकत्रित कर लेते हैं। इसके बाद डोनर की दूसरी बांह में आइवी ट्यूब लगाकर डोनर के शरीर में रक्त वापस भेज दिया जाता है। इस प्रक्रिया में लगभग चार से छह घंटे लग जाते हैं।
2. कूल्हे की हड्डी से लिया जाने वाले स्टेम सेल के लिये, बाकी बचे दस प्रतिशत मामलों में, कोशिकाऐं श्रोणि की हड्डी के पिछले भाग से ली जाती हैं। इसके लिये डोनर को सामान्य एनेस्थीसिया देकर उसका वह भाग सुन्न कर दिया जाता है। ताकि बोन मेरो निकालते समय उसका वह भाग सुन्न रहे। इस प्रक्रिया में एक से दो घंटे लग जाते हैं। बोन मेरो डोनेट करने के बाद ज्यादातर डोनर एक हफ्ते में दिनचर्या के सामान्य कार्य करने में सक्षम होते हैं और अपने काम पर लौट जाते हैं। लेकिन कई मामलों में ऐसा होता है कि डोनर को किसी तरह का कोई दर्द नहीं होता और ना कोई बेचैनी महसूस होती है। वे उसी दिन अपनी सामान्य दिनचर्या करने लगते हैं और काम पर लौट जाते हैं।
बोन मेरो ट्रांसप्लांट क्यों किया जाता है? – Why is a Bone Marrow Transplant Done?
दोस्तो, लंबे समय से चल रही बीमारियों, संक्रमण, या कीमोथेरेपी नष्ट हुऐ या क्षतिग्रस्त स्टेम सेल को स्वस्थ बोन मेरो को बदलने के लिये ट्रांसप्लांट किया जाता है। विवरण निम्न प्रकार है –
1. ल्यूकेमिया (Leukemia)- यह एक प्रकार का ब्लड कैंसर है। इसमें सफेद रक्त कोशिकाओं की संख्या असामान्य रूप से बढ़ती हैं, ये अपरिपक्व (Immature) होती हैं और इनको ब्लास्ट कहा जाता है। इनके आकार में भी परिवर्तन होता है।
2. एक्यूट लिम्फेटिक ल्यूकेमिया (Acute Lymphatic Leukemia)- यह ब्लड और बोन मेरो (हड्डी के अंदर जहां खून बनता है) में होने वाला कैंसर है। यह बच्चों में होने वाला सबसे सामान्य प्रकार का कैंसर है।
3. क्रोनिक लिम्फेटिक ल्यूकेमिया(Chronic Lymphocytic Leukemia) – यह कैंसर लिम्फोसाइट्स नामक सफेद रक्त कोशिकाओं को प्रभावित करता है।
4. लिंफोमा (Lymphoma)- यह भी कैंसर का एक प्रकार है जो प्रतिरक्षा प्रणाली की संक्रमण से लड़ने वाली कोशिकाओं में होता है। इनको लिम्फोसाइट्स कहा जाता है। ये कोशिकाऐं लिम्फ नोड्स, प्लीहा, थाइमस, बोन मेरो और शरीर के अन्य हिस्सों में होती हैं।
5. मल्टीपल मायलोमा (Multiple Myeloma)- यह सफ़ेद रक्त कोशिकाओं का कैंसर है। इसमें कैंसर वाली कोशिकाऐं बोन मेरो में स्वस्थ कोशिकाओं में अपनी जगह बना ले लेती हैं।
6. माइलोडिस्प्लास्टिक सिंड्रोम(Myelodysplastic Syndrome) – यह विकारों का एक समूह है जिसमें शरीर में असामान्य लाल रक्त कोशिकाऐं बनती हैं। ये बोन मेरो में असमय ही नष्ट होती रहती हैं और पूरी तरह विकसित नहीं हो पाती हैं।
7. अप्लास्टिक एनीमिया (Aplastic Anemia)- यह एनीमिया का ऐसा प्रकार है जिसमें बोन मेरो नई लाल रक्त कोशिकाओं का निर्माण करने में सक्षम नहीं होता। इस स्थिति में एरिथमिया (असामान्य दिल की धड़कन), हृदय के आकार बढ़ जाना, हार्ट फेल होना, संक्रमण और रक्तश्राव आदि होने की संभावना बढ़ जाती है।
8. सिकल सेल एनीमिया (Sickle Cell Anaemia)- यह गंभीर एनीमिया का प्रकार है जिसमें लाल रक्त कोशिकाओं का आकार बिगड़ने लगता है। ये गोलाकार ना रह कर दरांती के आकृति जैसी हो जाती हैं।
8. प्राइमरी इम्यूनो डेफिशियेंसी (Primary Immunodeficiency)- यह व्यक्ति की प्रतिरक्षा प्रणाली को प्रभावित करने वाला विकार है और शरीर को कमजोर बनाता है। इस वजह से व्यक्ति जल्दी-जल्दी संक्रमित होता है और बीमार पड़ता है। यह एक जन्मजात विकार है।
9. हीमोग्लोबिन पैथी (Hemoglobin Pathology)- इसे आनुवंशिक विकारों का समूह कहा जाता है, जो सिकल सेल रोग से संबंधित होता है। इस विकार में लाल रक्त कोशिकाए शरीर के भिन्न भागों तक ऑक्सीजन पहुंचा पाने में सक्षम नहीं होतीं।
10. अमायलोडोसिस (Amyloidosis)- यह एक दुर्लभ रोग है जिसमें बोन मेरो में असामान्य प्रोटीन बनने लगता है और अंगों तथा ऊतकों में जमा होने लगता है।
बोन मेरो परीक्षण – Bone Marrow Test
बोन मेरो परीक्षण के लिये या तो बोन मेरो के तरल पदार्थ को सिरिंज और सुई के जरिये निकाला जाता है जिसे एस्पिरेशन कहते हैं या बायोप्सी के लिये टुकड़ा निकाला जाता है या दोनों ही लिये जाते हैं। विवरण निम्न प्रकार है –
1. बोन मेरो निकालना (Bone Marrow Removal)- आमतौर पर बोन मेरो से तरल पदार्थ कूल्हे की हड्डी से लिया जाता है। बच्चों के मामले में, बच्चों को बेहोशी की दवा देनी पड़ती है ताकि वे सोते रहें और उनको दर्द ना हो। दवा देने से पहले खाने पीने के बारे में कुछ सलाह दी जाती है जिसका पालन करना होता है। बड़ों के मामले में मरीज को करवट से लेटना होता है और सुन्न करने के लिये क्रीम लगाई जाती है या इंजेक्शन के जरिये सुन्न किया जाता है।
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कीटाणु मारने वाली तरल दवाई से उस स्थान को साफ़ किया जाता है, फिर प्लास्टिक का तौलिया पीठ पर रख सकता है। इससे त्वचा का एक छोटा भाग ही दिखाई देता है। सेंपल लेने वाला सिरिंज से लगी पतली सुई लगाता है जिससे मरीज तेज चुभन महसूस होती है। तरल पदार्थ सिरिंज में खींच लिया जाता है, इस दौरान मरीज को तुरंत तेज दर्द महसूस होता है। इसके बाद सुई निकालकर उस स्थान को साफ़ करके एक पट्टी लगा दी जाती है।
2. बोन मैरो बायोप्सी (Bone Marrow Biopsy)- बोन मेरो बायोप्सी एस्पिरेशन से पहले या बाद में की जाती है। हर प्रक्रिया में अलग-अलग सुई का उपयोग किया जाता है। बायोप्सी के लिये हड्डी में बड़ी सुई डालकर एक छोटा ऊतक निकाल कर लैब भेज दिया जाता है। एस्पिरेशन और बायोप्सी दोनों प्रक्रिया में लगभग आधा घंटा लग जाता है।
बोन मेरो ट्रांसप्लांट कैसे किया जाता है? – How is a Bone Marrow Transplant Done?
दोस्तो, बोन मेरो ट्रांसप्लांट दो तरीके से किया जा सकता है। एक तरीके वो है जिसमें बोन मेरो मरीज के शरीर से ही लिया जाता है, इसे ऑटोलोगस बोन मेरो ट्रांसप्लांट कहा जाता है और दूसरे तरीके में बोन मेरो किसी स्वस्थ डोनर के शरीर में से लिया जाता है, जिसे मेडिकल की भाषा में एलोजेनिक बोन मेरो ट्रांसप्लांट कहते हैं। विवरण निम्न प्रकार है –
1. ऑटोलोगस बोन मेरो ट्रांसप्लांट (Autologous Bone Marrow Transplant)- इस प्रकार के बोन मेरो ट्रांसप्लांट में मरीज के शरीर में बची हुई स्वस्थ मूल कोशिकाओं (स्टेम सेल) का उपयोग करके नई कोशिकाऐं बनाई जाती हैं। इन स्टेम सेल को कीमोथेरेपी या विकिरण चिकित्सा से पहले लिया जाता है। इसके लिये मरीज को मोजोबिल जैसी दवाइयां दी जाती हैं ताकि मूल कोशिकाओं का उत्पादन बढ़ सके और रक्त में उनकी गतिशीलता भी बढ़ जाये। यह ट्रांसप्लांट ब्लड कैंसर के उपचार के लिये किया जाता है जैसे होडग्किन लिम्फोमा, नॉन होडग्किन लिम्फोमा और मायलोमा। मरीज की बाजू की नस से रक्त का सैंपल लिया जाता है और रीढ़ या श्रोणि की हड्डी से बोन मेरो।
एक मशीन के जरिये मरीज का रक्त निकलता है जिससे मूल कोशिकाओं को निकाल कर जमाया जाता है। फिर सारा रक्त वापिस मरीज के शरीर में भेज दिया जाता है। इस दौरान यदि सब ठीक रहता है तो स्वस्थ मूल कोशिकाओं को मरीज के बोन मेरो में वापस डाल देते हैं। इससे नई रक्त कोशिकाएं बनाने लगती हैं। इस ट्रांसप्लांट का फायदा यह है कि मरीज के शरीर में वापस डाली गई मूल कोशिकाओं के फेल होने या फिर रिजेक्ट होने की संभावना बहुत कम होती है। ग्राफ्ट वर्सस होस्ट नामक बीमारी होने की संभावना नहीं होती। यह ऐसा रोग होता है जिसमें बोन मेरो मरीज के शरीर पर आक्रमण करने लगता है।
2. एलोजेनिक बोन मेरो ट्रांसप्लांट (Allogeneic Bone Marrow Transplant)- इसमें किसी स्वस्थ डोनर के शरीर से मूल कोशिकाओं को लिया जाता है और मरीज के शरीर में नई कोशिकाओं का उत्पादन करने के लिए निषेचित कर दिया जाता है। अधिकतर मामलों में डोनर मरीज का कोई करीबी रिश्तेदार ही होता है। डोनर की बांह की नस से रक्त लिया जाता है और रीढ़ की हड्डी या कूल्हे की हड्डी से बोन मेरो लिया जाता है। इस ट्रांसप्लांट में मरीज को हाई डोज कीमोथेरेपी देनी होती है जो या तो रेडिएशन के साथ या रेडिएशन के बिना, इससे शरीर में बची हुई कैंसर कोशिकाओं को मार दिया जाता है और इस मरीज की प्रति रक्षा प्रणाली को भी कमजोर कर दिया जाता है, ताकि यह मूल कोशिकाओं के ग्राफ्ट को अस्वीकार करने की संभावना ना हो।
कीमोथेरेपी के बाद नसों के माध्यम से मरीज के शरीर की मूल कोशिकाओं को निषेचित किया जाता है। डोनेट की हुई मूल कोशिकाऐं बोन मेरो में जाकर नई कोशिकाओं का उत्पादन शुरू करने लगती देती हैं। इस एलोजेनिक बोन मेरो ट्रांसप्लांट का फायदा यह है कि डोनेट की हुई कोशिकाऐं मरीज के शरीर में नयी प्रतिरक्षा प्रणाली का निर्माण करती हैं और सफेद रक्त कोशिकाओं का निर्माण करती हैं जो शरीर में बची हुई कैंसर कोशिकाओं पर आक्रमण करती हैं। इसको ग्राफ्ट वर्सेस ट्यूमर इफेक्ट कहते हैं।
बोन मेरो ट्रांसप्लांट के बाद की देखभाल – Care After Bone Marrow Transplant
1. बोन मेरो ट्रांसप्लांट के बाद नई कोशिकाओं को मरीज के शरीर में काम करने के लिये 14 से 28 दिन तक का समय लग जाता है। इसलिये मरीज को अस्पताल में कम से कम 28 दिन रहना पड़ता है। इस दौरान डॉक्टर और अन्य कर्मी मरीज की हैल्थ स्टेटस को मॉनिटर करते हैं। मरीज को एंटीबायोटिक दवाऐं दी जाती हैं।
2. एलोजेनिक बोन मेरो ट्रांसप्लांट के मामले में ग्राफ्ट वर्सेस होस्ट डिजीज होने की संभावना रहती है इसलिये मरीज को ऐसी जटिलताओं से बचाने के लिये कम से कम 40 से 50 दिनों तक अस्पताल में रहना होता है।
3. बोन मेरो ट्रांसप्लांट के बाद संक्रमण का खतरा रहता है इसलिये डॉक्टर के निर्देश/सलाह का पालन करना चाहिये। फॉलो अप के लिये डॉक्टर से संपर्क करते रहना चाहिये।
4. शारीरिक कमजोरी बहुत अधिक होती है। इसलिये पौष्टिक आहार लेना चाहिये। फलों का जूस, फल, दूध, अंडे, पनीर, पीनट बटर आदि को भोजन में शामिल करना चाहिये।
5. तेज मिर्च मसाले वाला, ऑयली और तला भुना भोजन ना करने की सलाह दी जाती है।
6. मरीज को पूरी तरह ठीक होने तक व्यायाम न करने की सलाह दी जाती है क्योंकि कुछ मरीजों को चक्कर आता है, जी मिचलाता है, सांस फूलती है या फिर उनका प्लेटलेट काउंट 10,000 माइक्रोलीटर से कम होता है।
बोन मेरो ट्रांसप्लांट का खर्च – Bone Marrow Transplant Cost
बोन मेरो ट्रांसप्लांट का खर्च भारत के हर राज्य में, अस्पताल की श्रृंखला जैसे मैक्स, फोर्टीज़, मैट्रो आदि व डॉक्टर की पर निर्भर करता है। यह सब जगह अलग-अलग हो सकती है। अनुमातः बोन मेरो ट्रांसप्लांट पर लगभग 10 लाख रुपये से 20 लाख रुपये तक हो सकता है। विदेशियों के लिये यह खर्च और भी अधिक हो जाता है क्योंकि मरीज को कम से कम 21 दिन अस्पताल व या 21 दिन होटल में रिकवरी के लिए रहना होता है। उनके भोजन और लोकल ट्रांसपोर्ट का भी खर्च अलग से होता है।
Conclusion –
दोस्तो, आज के लेख में हमने आपको बोन मेरो ट्रांसप्लांट के बारे में विस्तार से जानकारी दी। बोन मेरो क्या है, स्टेम सेल क्या है, बोन मेरो ट्रांसप्लांट क्या है?, बोन मेरो कौन डोनेट कर सकता है, डोनर से स्टेम सेल कैसे लिए जाते हैं, बोन मेरो ट्रांसप्लांट क्यों किया जाता है, बोन मेरो परीक्षण और बोन मेरो ट्रांसप्लांट कैसे किया जाता है, इन सब के बारे में भी विस्तार पूर्वक बताया। देसी हैल्थ क्लब ने इस लेख के माध्यम से बोन मेरो ट्रांसप्लांट के बाद की देखभाल और बोन मेरो ट्रांसप्लांट के खर्च के बारे में भी बताया। आशा है आपको ये लेख अवश्य पसन्द आयेगा।
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Disclaimer – यह लेख केवल जानकारी मात्र है। किसी भी प्रकार की हानि के लिये ब्लॉगर/लेखक उत्तरदायी नहीं है। कृपया डॉक्टर/विशेषज्ञ से सलाह ले लें।
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