स्वागत है आपका हमारे ब्लॉग पर। दोस्तो, कई लोगों को ऐसा होता है कि वे जितनी बार भी खाएंगे चाहे कम खाएं या ज्यादा, उनको शौच जाना पड़ता है। कई लोगों को कब्ज की शिकायत रहती है उनका खाना नहीं पचता और पेट साफ़ नहीं होता और भी पेट की अन्य समस्याएं होती हैं। इस समस्या को इरिटेबल बाउल सिंड्रोम कहा जाता है यह एक आम विकार है जिससे बड़ी आंत प्रभावित होती है। यह विकार सामान्य तौर पर पेट दर्द, सूजन, गैस, दस्त, कब्ज आदि का कारण बनता है। इस विकार का कोई समुचित उपचार नहीं है केवल जीवन शैली, भोजन शैली में बदलाव करके और कुछ दवाओं के सहारे इसके लक्षणों को नियंत्रित किया जा सकता है। आखिर यह कैसा विकार है और क्या है इसका उपचार, दोस्तो, यही है हमारा आज का टॉपिक “इरिटेबल बाउल सिंड्रोम क्या है?”।
देसी हैल्थ क्लब इस आर्टिकल के माध्यम से आज आपको इरिटेबल बाउल सिंड्रोम के बारे में विस्तार से जानकारी देगा और यह भी बताएगा कि इसका उपचार क्या है। तो, सबसे पहले जानते हैं इरिटेबल बाउल सिंड्रोम क्या है और इसके कारण। फिर इसके बाद बाकी बिंदुओं पर जानकारी देंगे।
इरिटेबल बाउल सिंड्रोम क्या है? – What is Irritable Bowel Syndrome?
दोस्तो, इरिटेबल बाउल सिंड्रोम (Irritable Bowel Syndrome – IBS) कोई रोग नहीं है बल्कि गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल (Gastrointestinal – GI) विकार है जो कोलन यानि बड़ी आंत को प्रभावित करता है। यह श्लेष्म मल (mucous stools), अनियमित मल त्याग, पेट दर्द, ऐंठन, सूजन, गैस जैसे लक्षणों को उत्पन्न करता है। चूंकि इरिटेबल बाउल सिंड्रोम लंबे समय तक चलने वाली स्थिति है इसलिए इसके लक्षणों में परिवर्तन आता रहता है। इसका कोई समुचित उपचार नहीं है। इसमें लंबे समय तक देखभाल की जरूरत पड़ती है।
हां, जीवन शैली में बदलाव, आहार में बदलाव और तनाव को प्रबंधित करके इसके लक्षणों को कंट्रोल किया जा सकता है। यह विकार अधिकतर 45 वर्ष से कम आयु के लोगों में उत्पन्न होता है तथा पुरुषों की तुलना में महिलाओं में अधिक होता है। इरिटेबल बाउल सिंड्रोम को स्पास्टिक कोलाइटिस (spastic colitis) नर्वस कोलन (nervous colon) और म्यूकस कोलाइटिस (mucous colitis) भी कहते हैं।
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इरिटेबल बाउल सिंड्रोम के कारण/जोखिम कारक – Causes/Risk Factors of Irritable Bowel Syndrome
इरिटेबल बाउल सिंड्रोम के सटीक और प्रमाणिक कारण अज्ञात हैं परन्तु डॉक्टर/विशेषज्ञ निम्नलिखित कारकों को इसका जिम्मेदार मानते हैं। इनका मानना है ये कारक इरिटेबल बाउल सिंड्रोम को विकसित करने में सहायक होते हैं –
1. आनुवंशिकता (Heredity)- कुछ शोधकर्ता जीन को IBS को विकसित करने के लिए जिम्मेदार ठहराते हैं। परिवार में कोई सदस्य या करीबी रिश्तेदार IBS से ग्रसित है तो आप या रिश्तेदार के परिवार का सदस्य IBS से पीड़ित हो सकता है।
2. कोलन की गतिशीलता (Motility of Colon)- कोलन की असामान्य गति यानि जब गति कम हो जाए या बहुत तेज हो जाए तो IBS की समस्या हो जाती है। गति कम होने पर कब्ज की शिकायत होती है और तेज होने पर दस्त लग सकते हैं।
3. हार्मोन (Hormones)- पुरुषों की तुलना में महिलाओं में IBS की समस्या अधिक होती है। इसकी वजह एस्ट्रोजन और प्रोजेस्टेरोन हार्मोन हैं। महिलाओं में मासिक धर्म के समय IBS के लक्षण विकसित होने की प्रबल संभावना होती है।
4. तनाव (Tension)- शरीर और मस्तिष्क में असंतुलन की वजह से तनाव पैदा होता है। मस्तिष्क और आंत के बीच जटिल जैविक संपर्क, गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल प्रतिक्रिया उत्पन्न होती है। तनाव, चिंता, डिप्रेशन, गुस्सा आदि के प्रतिक्रिया स्वरूप IBS की समस्या बनती है।
5. खाद्य पदार्थ (Food Ingredient)- कुछ खाद्य पदार्थ जैसे कि अधिक वसा युक्त, तीखे तेज मिर्च मसाले वाले खाद्य पदार्ध, जंक फूड आदि IBS को ट्रिगर कर सकते हैं। इसके अतिरिक्त कुछ लोगों को बीन्स, फूलगोभी, पत्तागोभी, दूध और डेयरी उत्पाद, चॉकलेट, शराब आदि IBS को विकसित कर सकते हैं।
6. चिकित्सीय स्थितियां (Medical Conditions)- बैक्टीरिया में बेहद बढ़ोतरी, गैस्ट्रोएंटेराइटिस भी IBS को विकसित कर सकते हैं।
इरिटेबल बाउल सिंड्रोम के लक्षण – Symptoms of Irritable Bowel Syndrome
इरिटेबल बाउल सिंड्रोम की समस्या में निम्नलिखित के लक्षण प्रकट हो सकते हैं –
- अनियमित मल त्याग मुख्य लक्षण है
- मल त्याग करने में काफी कठिनाई महसूस होना
- पेट में दर्द, ऐंठन
- पेट में गैस बनना
- कब्ज की शिकायत
- दस्त लगना
- आलस्य महसूस करना
- व्यवहार में चिड़चिड़ापन
- पैर और हाथ में सूजन
- अचानक से मल त्याग की जरूरत महसूस होना।
इरिटेबल बाउल सिंड्रोम का परीक्षण – Irritable Bowel Syndrome Test
इरिटेबल बाउल सिंड्रोम के परीक्षण के लिए निम्नलिखित टेस्ट किए जा सकते हैं –
1. एक्स-रे (X-Ray)- एक्स-रे के जरिए ओलन के चित्र मिल जाते हैं।
2. लोअर गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल (Lower Gastrointestinal)- इसे बेरियम एनीमा के रूप में जाना जाता है। इसमें कोलन को एनीमा के माध्यम से बेरियम सल्फेट से भर देते हैं। इससे एक्स-रे पर कोलन अधिक दृश्यमान हो जाता है।
3. कोलोनोस्कोपी (Colonoscopy)- कोलोनोस्कोप के सिरे पर एक कैमरा और एक लाइट लगी होती है, यह 4 फुट लंबी ट्यूब होती है। इसे गुदा के जरिए मलाशय में डाला जाता है।
4. लचीली सिग्मायोडोस्कोपी (Flexible Sigmoidoscopy)- यह एक पतली लचीली ट्यूब होती है। इससे कोलन के निचले हिस्से की जांच की जाती है।
5. सीटी स्कैन (CT Scan)- इसके जरिए शरीर के आंतरिक हिस्सों जैसे पेट और श्रोणि के सटीक चित्र मिल जाते हैं। इससे पेट दर्द के कारणों का पता लग जाता है।
5. रक्त परीक्षण (Blood Test)- बल्ड टेस्ट के जरिए अन्य चिकित्सा स्थितियों की जानकारी में मदद मिल जाती है।
6. लैक्टोज असहिष्णुता परीक्षण (Lactose Intolerance Test)- शरीर में लैक्टोज नामक एंजाइम का उत्पादन ना होने से IBS के लक्षण प्रकट हो सकते हैं। लैक्टोज असहिष्णुता की जानकारी के लिए यह टेस्ट किया जाता है।
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इरिटेबल बाउल सिंड्रोम का उपचार – Treatment of Irritable Bowel Syndrome
इरिटेबल बाउल सिंड्रोम के अधिकतर मामलों में डॉक्टर, तनाव प्रबन्धन, आहार में परिवर्तन और जीवन शैली में बदलाव की सलाह देते हैं। कुछ विशेष मामलों में इन सलाहों के अतिरिक्त डॉक्टर, निम्न प्रकार की दवाएं दे सकते हैं –
- फाइबर सप्लीमेंट
- डायरिया रोधी दवाएं जैसे कि लोप्रामाइड (इमोडियम), पित्त एसिड बाइंडर्स, जैसे कि कोलेस्टेरामाइन (प्रीवेलाइट), कोलेस्टीपोल (कोलेस्टाइड) या कोलेसेवेलम।
- एंटी कोलिनेर्जिक और एन्टीस्पैस्मोडिक दवाएं जैसे कि हायोसैसिमिन (लेवसिन) और डीसाइक्लोमिन (बेंटिल)।
- ट्राइसाइक्लिक एंटीडिप्रेसेंट दवाएं
- एंटीबायोटिक्स
इरिटेबल बाउल सिंड्रोम से बचाव के घरेलू उपाय – Home Remedies to Prevent Irritable Bowel Syndrome
दोस्तो, निम्नलिखित घरेलू उपाय अपनाकर इरिटेबल बाउल सिंड्रोम से बचाव कर सकते हैं –
1. पानी (Water)- प्रतिदिन 2 लीटर पानी पीने की सलाह तो डॉक्टर भी देते हैं। इससे शरीर हाइड्रेट रहता है, विषाक्त पदार्थ बाहर निकलते हैं, पाचन तंत्र सही रहता है और IBS की समस्या से भी बचाव होता है।
2. फल (Fruit)– मौसमी फल तथा संतरा, अनार, केला, कीवी आदि को अपने आहार में शामिल करें।
3. दही या छाछ (Curd)– दही या छाछ का सेवन आप रोजाना करें मगर भोजन करने के बाद ना कि भोजन करने से पहले। खाली पेट दही/छाछ के सेवन से एसिडिक आहार बनता है जो पेट दर्द या गैस की वजह बन सकता है। भोजन के बाद दही/छाछ का सेवन भोजन को पचाने में मदद करता है।
4. मिर्च मसाले (Chili Spices)- भोजन में लाल मिर्च का उपयोग बहुत ही कम मात्रा में करें। एक या दो हरी मिर्च का उपयोग भोजन के साथ सलाद के रूप में कर सकते हैं, इससे ज्यादा नहीं। काली मिर्च, लहसुन, जीरा, अदरक, धनियां, दालचीनी, सौंफ, मेथी, जावित्री, लोंग, जायफल, तेजपत्ता अजवायन आदि अत्यंत लाभदायक मसाले हैं, इनका उपयोग उचित मात्रा में अवश्य करें।
5. नींबू (Lemon)- पेट से जुड़ी समस्याओं जैसे गैस, अपच, कब्ज, एसिडिटी से छुटकारा पाने के लिए एक चम्मच नींबू के रस में 4 ग्राम पिप्पली और चुटकी भर सेंधा नमक मिलाकर सुबह शाम सेवन करें। इससे IBS के लक्षणों में भी सुधार होगा।
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6. हींग (Asafoetida)- हींग, अजवाइन और सोंठ को बराबर की मात्रा में लेकर पीसकर पाउडर बना लें। एक चौथाई चम्मच यह पाउडर लेकर सुबह और शाम भोजन करने के बाद, गुनगुने पानी के साथ सेवन करें। यह पाउडर सब्जियों में मिलाकर भी सेवन कर सकते हैं। इससे पेट की समस्याओं से राहत मिलेगी और IBS से बचाव भी होगा।
7. पेपरमिंट ऑयल (Peppermint Oil)- भोजन में पेपरमिंट ऑयल की एक या दो बूंद डाल कर भोजन करें या पानी में डालकर पी जाएं। यह IBS की समस्या से बचाएगा। यह हार्ट बर्न, गैस और कुपाचन जैसी समस्याओं से भी छुटकारा दिलाएगा। पेपरमिंट ऑयल के सेवन से हमारी मांसपेशियों को भी आराम मिलता है।
8. सोंठ और मिश्री (Dry Ginger and Sugar Candy)- आधा चम्मच सोंठ पाउडर में जरा सी पिसी हुई मिश्री मिलाकर सेवन करने से पेट की समस्याएं दूर होंगी। इसके अतिरिक्त भूख खुलकर लगेगी, पाचन तंत्र मजबूत होगा, मुंह की बदबू भी दूर होगी और IBS की समस्या भी नहीं होगी।
9. चबा-चबा कर भोजन करें (Chew your Food)- भोजन कभी जल्दबाजी में और जल्दी-जल्दी ना करें बल्कि तसल्ली में आराम से अच्छी तरह चबा-चबाकर करें। डॉक्टर भी भोजन के हर कौर को 32 बार चबाकर खाने की सलाह देते हैं। ऐसा करने से भोजन द्रव रूप ले लेता है जो पचने में बेहद आसान हो जाता है। इससे पाचन तंत्र को या कोलन को अधिक मेहनत नहीं करनी पड़ती। इस तरह आप IBS से बच जाते हैं।
10. भोजन के बीच समय अंतराल (Time Interval Between Meals)- भोजन उचित समय पर और उचित समय अंतराल पर करें। प्रतिदिन भोजन तीन बार करें और इनके बीच चार से छः घंटे का अंतराल रखें। इसका तात्पर्य यह है कि सुबह का भोजन आठ से दस बजे तक अवश्य कर लें, दोपहर का भोजन दो बजे तक कर लें और रात का भोजन आठ बजे तक करें। इस प्रकार भोजन का एक सिस्टम बनाएं। बीच-बीच में बिस्किट्स, स्नैक्स या कुछ भी खाने से बचें।
Conclusion –
दोस्तो, आज के आर्टिकल में हमने आपको इरिटेबल बाउल सिंड्रोम के बारे में विस्तार पूर्वक जानकारी दी। इरिटेबल बाउल सिंड्रोम क्या है?, इरिटेबल बाउल सिंड्रोम के कारण/जोखिम कारक, इरिटेबल बाउल सिंड्रोम के लक्षण, इरिटेबल बाउल सिंड्रोम का परीक्षण और इरिटेबल बाउल सिंड्रोम का उपचार, इन सब के बारे में विस्तार पूर्वक बताया। देसी हैल्थ क्लब ने इस आर्टिकल के माध्यम से इरिटेबल बाउल सिंड्रोम से बचाव के बहुत सारे घरेलू उपाय भी बताए। आशा है आपको ये आर्टिकल अवश्य पसन्द आयेगा।
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