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घेंघा के घरेलू उपाय – Home Remedies for Goitre in Hindi

घेंघा के घरेलू उपाय

दोस्तो, स्वागत है आपका हमारे ब्लॉग पर। दोस्तो, आपने कुछ व्यक्तियों को विशेषकर महिलाओं को देखा होगा कि उनके गले पर गांठ या सूजन नजर आती है। ये गांठ किसी को छोटी और किसी को बहुत मोटी होती है। यद्यपि ऐसी गांठों में दर्द नहीं होता परन्तु इससे अन्य अनेक समस्याऐं होती हैं और देखने में भी बुरी लगती हैं इससे चेहरे की प्राकृतिक सुंदरता की क्षति होती है। कोई भी व्यक्ति नहीं चाहेगा उसके शरीर में कोई विकार हो और वह कुरूप नजर आये। दोस्तो, ऐसी स्थिति होती है शरीर में आयोडीन की कमी से। जब शरीर में आयोडीन की कमी से हो जाती है तो थायराइड ग्रंथि का आकार बढ़ जाता है जिसके कारण गले पर सूजन गांठ दिखाई देती है। इसी रोग को घेंघा रोग कहा जाता है। आखिर इस रोग से छुटकारा पाने के उपाय क्या हैं। दोस्तो, यही है हमारा आज का टॉपिक “घेंघा के घरेलू उपाय”। देसी हैल्थ क्लब इस आर्टिकल के माध्यम से आज आपको घेंघा के बारे में विस्तार से जानकारी देगा और यह भी बतायेगा कि इसके घरेलू उपाय क्या हैं। तो, सबसे पहले जानते हैं कि घेंघा क्या है, घेंघा के प्रकार और घेंघा के कारण।  फिर, इसके बाद बाकी बिन्दुओं पर जानकारी देंगे।  

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घेंघा के घरेलू उपाय
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घेंघा क्या है? – What is a Goitre

दोस्तो, थायराइड ग्रंथि में असामान्य रूप से होने वाली वृद्धि को घेंघा कहा जाता है। सरल भाषा में कहा जाये तो थायराइड ग्रंथि का आकार बढ़ने की स्थिति को घेंघा कहा जाता है। इसे गलगंड या गंडमाला के नाम से भी जाना जाता है। अंग्रेजी में इसे गोइटर (Goiter) कहा जाता है। थायराइड  एक तितली के आकार की ग्रंथि होती है जो गर्दन के अंदर सामने की ओर स्थित होती है। थायराइड ग्रंथि, भोजन से आयोडीन को अवशोषित करके, इसका उपयोग ट्राईआयोडोथायरोनिन यानि टी3 (T3) (Triiodothyronine) और थायरॉक्सिन यानि टी4 (T4) (Thyroxine) हार्मोंन्स् का निर्माण करने में करती है। इन हार्मोंन्स् को संगृहित करके आवश्यकतानुसार शरीर की कोशिकाओं तक भेजती है। 

थायराइड पर विस्तार से जानकारी के लिये हमारा पिछला आर्टिकल “थायराइड के देसी उपाय” पढ़ें। घेंघा रोग आयोडीन की कमी की वजह से होता है। जब थायराइड ग्रंथि को पर्याप्त मात्रा में आयोडीन नहीं मिल पाता तो यह भोजन से आयोडीन को खींचती है। इसके लिये इसे अधिक मेहनत करनी पड़ती है जिससे थायराइड ग्रंथि का आकार बढ़ने लगता है और गले में सूजन आ जाती है जोकि एक गांठ के रूप में दिखाई  देती है। गले की इसी सूजन या गांठ को “घेंघा” कहा जाता है। कभी-कभी यह गांठ या सूजन दिखाई नहीं देती, ऐसी स्थिति में केवल अनुभवी डॉक्टर ही इस समस्या को जान पाते हैं। यद्यपि घेंघा रोग में दर्द नहीं  होता लेकिन इसका आकार अधिक बढ़ने पर सांस लेने में दिक्कत होती है, खांसी रहने लगती है और भोजन निगलने में भी परेशानी होती है। विश्व में आयोडीन की कमी के कारण घेंघा रोग के मामले 90% से अधिक हैं। यद्यपि यह रोग किसी को भी हो सकता है परन्तु यह महिलाओं में अधिक होता है। इस रोग का उपचार अंतर्निहित कारणों, लक्षणों की गंभीरता और इसके आकार पर निर्भर करता है। 

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घेंघा रोग के प्रकार – Types of Goitre

घेंघा कई प्रकार का हो सकता है, इनमें कुछ का विवरण निम्न प्रकार है –

1. कोलाइड (स्थानिक) (Colloid)- इस प्रकार के घेंघा रोग का कारण होता है आयोडीन की कमी होना। यह उस क्षेत्र के निवासियों को अपनी चपेट में लेता है जिस क्षेत्र की मिट्टी और पानी में आयोडीन की कमी है, वहां की फसल, शाक-सब्जी में भी आयोडीन की कमी होगी। ऐसे क्षेत्रों में आयोडीन की प्राप्ति बहुत दुर्लभ होती है। 

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2. नॉनटॉक्सिक (Nontoxic)- इस प्रकार का घेंघा रोग लिथियम (lithium) जैसी दवाओं के सेवन की वजह से हो सकता है। इस प्रकार की दवाओं का उपयोग बाइपोलर डिसऑर्डर जैसे मानसिक रोग में किया जाता है। नॉनटॉक्सिक में थायराइड हार्मोन का उत्पादन अप्रभावित रहता है। वैसे नॉनटॉक्सिक घेंघा रोग मुख्य कारण अज्ञात है। बाइपोलर डिसऑर्डर पर विस्तार से जानकारी के लिये हमारा पिछला आर्टिकल “Bipolar Disorder क्या होता है” पढ़ें। 

3. विषाक्त गांठदार या मल्टीनोडुलर गोइटर (Toxic Nodular or Multinodular Goiter)- यह घेंघा रोग का सबसे आम प्रकार है। घेंघा के इस प्रकार में थायराइड के दोनों किनारों पर ठोस या तरल पदार्थ से भरी छोटी गांठें उत्पन्न होती हैं, जो परस्पर मिलकर बड़े आकार के घेंघा निर्माण करती हैं। इन गांठो को छूने पर उभार महसूस होता है। इस प्रकार के घेंघा स्थिति हाइपरथायरायडिज्म का कारण बनती है। इन गांठो के बढ़ने की दर अलग-अलग हो सकती है और यह घेंघा धीरे-धीरे बढ़ता है।  

4. डिफ्यूज़ (Diffuse)- इसमें पूरी थायराइड ग्रंथि का आकार बढ़ जाता है और छूने पर यह नरम लगती है। इसका कारण हाइपरप्लासिया (Hyperplasia) होता है। इसमें किसी अंग या ऊतक के भीतर कोशिकाओं की वृद्धि अत्याधिक होने की संभावना होती है।

घेंघा रोग के कारण – Cause of Goiter 

दोस्तो, घेंघा रोग होने के निम्नलिखित कारण होते हैं –

1. आयोडीन की कमी(Deficiency of Iodine) – थायराइड द्वारि हार्मोन उत्पादन के लिये आयोडीन एक आवश्यक आवश्यकता है जिसका सर्वाधिक श्रोत है समुद्री जल और तटीय क्षेत्रों की मिट्टी जिससे उपजने वाली फसल में आयोडीन की बहुलता होती है। भोजन में आयोडीन की कमी घेंघा रोग का प्रमुख्य कारण है। जब भोजन से पर्याप्त मात्रा में आयोडीन नहीं मिलता तो थायराइड ग्रंथि को हार्मोन बनाने के लिये अधिक मेहनत करनी पड़ती है, जिससे उसके आकार में वृद्धि हो जाती है। प्रत्येक किशोर और व्यस्क व्यक्ति के लिये रोजाना 150 माइक्रोग्राम आयोडीन की जरूरत होती है। गर्भवती और शिशु को स्तनपान कराने वाली महिलाओं के लिये क्रमशः 200 और 250 माइक्रोग्राम रोजाना आयोडीन की खुराक लेना जरूरी होता है। आयोडीन पर विस्तृत जानकारी के लिये हमारा पिछला आर्टिकल “आयोडीन की कमी पूरी करने के उपाय” पढ़ें। 

2. ग्रेव्स रोग (Graves Disease) – ग्रेव्स रोग  हाइपरथाराइडिज्म का सबसे आम प्रकार है। ग्रेव्स रोग एक प्रकार से ऑटोइम्यून रोग है स्व-प्रतिरक्षित रोग इसके कारण थायराइड ग्रंथि बहुत अधिक मात्रा में थायराइड हार्मोन बनाने लगती है। इसे  हाइपरथायराइडिज्म कहा जाता है। ग्रेव्स रोग में प्रतिरक्षा प्रणाली एक विशेष प्रकार के एंटीबॉडीज़ बनाने लगती है, जिसे “थायराइड स्टीमुलेटिंग इम्युनोग्लोबुलिन” कहते हैं। ये एंटीबॉडीज थायराइड कोशिकाओं से मिल जाते हैं। ऐसी स्थिति में थायराइड ग्रंथि बहुत ज्यादा थायराइड हार्मोन बनाने लगती है। ये एंटीबॉडीज़ थायराइड ग्रंथि पर हमला करते हैं, और अतिरिक्त थायरोक्सिन हार्मोन के निर्माण का कारण बनती है, जिसके फलस्वरूप थायराइड में सूजन आ जाती है। 

3  हाशिमोटो रोग (Hashimoto’s Disease)-  यह भी ऑटोइम्यून रोग है जिसमें प्रतिरक्षा प्रणाली थायराइड ग्रंथि पर हमला कर थायराइड को नुकसान पहुंचाती है इससे बहुत कम थायराइड हार्मोन का निर्माण होता है।  थायराइड हार्मोन का कम उत्पादन होने पर, पिट्यूटरी ग्रंथि अधिक मात्रा में थायराइड उत्तेजक हार्मोन (TSH) का उत्पादन करने लगती है, जो थायराइड ग्रंथि के फैलाव का कारण बनती है।

4. थायराइड कैंसर (Thyroid Cancer)- कैंसर की समस्या थायराइड को  प्रभावित करती है और थायराइड ग्रंथि में सूजन का कारण बनती है। थायराइड कैंसर की समस्या थायराइड में नोड्यूल्स के उत्पादन की भांति आम नहीं होती है। थायराइड कैंसर का नोड्यूल्स के रूप में विकास हो सकता है, जिसका निर्धारण थायराइड नोड्यूल की बायोप्सी (biopsy) करने के बाद ही सटीकता से किया जा सकता है। 

5. गर्भावस्था (Pregnancy)- गर्भवती महिलाओं में थायराइड के आकार में वृद्धि की संभावना होती है।। गर्भावस्था के गर्भवती महिलाओं में उत्पादित होने वाला हार्मोन (ह्यूमन कोरियोनिक गोनाडोट्रोपिन – HCG) थायराइड ग्रंथि की वृद्धि का कारण बन सकता है। 

6. सूजन (Swelling)- थायराइड ग्रंथि में गांठ के बजाये सूजन भी हो सकती है। थायरॉइडाइटिस सूजन-संबंधी ऐसी ही स्थिति है, जो थायराइड में दर्द और सूजन का कारण है। यह थायरोक्सिन हार्मोन के कम या ज्यादा मात्रा में उत्पादन होने का कारण भी बन सकती है। 

7. नोड्यूल्स (Nodules)- ठोस या तरल पदार्थ युक्त अल्सर (cysts) या गांठ थायराइड की वृद्धि में सहायक हो सकते हैं और सूजन का कारण भी बन सकते हैं। ये नोड्यूल कैंसर रहित या सौम्य होते हैं और समान्यतः घेंघा रोग का कारण बनते हैं।

घेंघा रोग के लक्षण – symptoms of Goiter Disease

घेंघा रोग के लक्षण निम्न प्रकार हैं –

1. गर्दन में सूजन घेंघा रोग का शुरुआती लक्षण है। यदि थायराइड में गाठें (नोड्यूल) बनती हैं तो इनका आकार बहुत छोटा या बड़ा हो सकता है। ये गले की सूजन को बढ़ाने का काम कर सकती हैं। 

2. यदि घेंघा रोग हाइपोथायरायडिज्म या हाइपरथायरायडिज्म की वजह से है तो ये लक्षण देखे जा सकते हैं – 

(i)  गले में खिंचाव महसूस होना, दर्द रहना।

(ii)  सांस लेने में दिक्कत होना। 

(iii) खांसी होना।

(iv) आवाज बैठ जाना।

(v)  खाना निगलने में दिक्कत होना।

(vi) गर्मी ज्यादा लगना, पसीना अधिक आना।

(vii) थकावट महसूस होना।

(viii) हाथ सिर से ऊपर उठाने पर चक्कर आना।

(ix)  घबराहट होना।

(x)  वजन कम होना।

(xi)  गर्दन ऊपर उठाने या नीचे झुकाने में परेशानी होना।

(xii) मांसपेशियों में ऐंठन।

(xiii) मल बार-बार आना।

(xiv) महिलाओं के मासिक धर्म में अनियमितता।

घेंघा रोग का परीक्षण – Test of Goitre Disease

सबसे पहले डॉक्टर मरीज से लक्षणों के बारे में जानकारी लेकर गर्दन का परीक्षण करके सूजन का पता लगाते हैं फिर निम्नलिखित टेस्ट कराने की सलाह दे सकते हैं –

1. थायराइड फंक्शन टेस्ट (Thyroid Function Test)- बल्ड सेंपल के माध्यम से ब्लड में थायराइड ग्रंथि द्वारा बनाए गए हार्मोन और थायराइड ग्रंथि को उत्तेजित करने वाले हार्मोन (Thyroid-Stimulating Hormone – TSH) के स्तर की जांच की जाती है। ब्लड में थायराइड हार्मोन कम मात्रा में या टीएसएच अधिक मात्रा में मिलने का अर्थ होता है कि व्यक्ति  हाइपोथायरायडिज्म से ग्रस्त है। जब ब्लड में टीएसएच का स्तर सामान्य से कम और थायराइड हार्मोन का स्तर सामान्य से अधिक हो तो इसका अर्थ हाइपरथायरायडिज्म होता है और ऐसा ग्रेव्स रोग के मामलों में होता है। 

2. एंटीबॉडीज़ टेस्ट (Antibodies Test)- ब्लड सेंपल के जरिये हाइपरथायरायडिज्म के कारण की जांच करने के लिये एक विशेष प्रकार का ब्लड टेस्ट किया जाता है जिससे शरीर में एंटीबॉडीज़ के उत्पादन में वृद्धि का पता लगाया जाता है। एंटीबॉडीज़ का बढ़ा हुआ स्तर ऑवरएक्टिव थायराइड को इंगित करता है।

3. थायराइड स्कैन (Thyroid Scan)- स्कैन के जरिये घेंघा के आकार और स्थिति का पता लगया जाता है। इसके लिये मरीज की कोहनी की नसों में एक रेडियोएक्टिव आइसोटोप इंजेक्शन लगाकर मरीज को एक विशेष प्रकार की टेबल पर लेटा दिया जाता है जिसमें एक कैमरा के जरिये  कंप्यूटर स्क्रीन पर थायराइड की इमेज़ ली जाती हैं। 

4. अल्ट्रासाउंड (Ultrasound)- अल्ट्रासाउंड के जरिये गर्दन में घेंघा के आकार के आकार का पता लगाया जाता है और नोड्यूल की इमेज़ को प्राप्त किया जाता है। इसके लिये डिवाइस को गर्दन के ऊपर रखा जाता है और ध्वनि तरंगों के जरिये कंप्यूटर स्क्रीन पर गर्दन और थायराइड ग्रंथि के आकार का पता लगाने के लिये इमेज को प्राप्त किया जाता है।  

5. रेडियोएक्टिव आयोडाइड टेस्ट (Radioactive Iodide Test)- डॉक्टर अक्सर सामान्य अल्ट्रासाउंड कराने या रेडियोएक्टिव आयोडाइड अपटेक स्कैन कराने की सलाह देते हैं। इस टेस्ट के लिये एक विशेष प्रकार की फिल्म का उपयोग किया जाता है, जिससे विशेष प्रकार की इमेज़ प्राप्त होती हैं। इन इमेजिज़ के जरिये रेडियोएक्टिव आयोडाइड की सटीक जगह की जानकारी मिल जाती है। 

​6. बायोप्सी (Biopsy)- इसे फाइन नीडल एस्पिरेशन साइटोलॉजी कहा जाता है। इसके लिये एक पतली सुई के जरिये थायराइड ग्रंथि से ऊतक का टुकड़ा सेंपल के तौर पर लेकर प्रयोगशाला भेज दिया जाता है। प्रयोगशाला में सेंपल की माइक्रोस्कोप के द्वारा जांच की जाती है।

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घेंघा रोग का उपचार – Treatment of Goitre Disease 

घेंघा रोग के उपचार के लिये डॉक्टर निम्नलिखित प्रक्रिया अपना सकते हैं – 

1. दवाईयां (Medicines)-  हाइपोथायरायडिज्म या हाइपरथायरायडिज्म के कारण उत्पन्न हुऐ घेंघा रोग के लिये डॉक्टर कुछ दवाओं की सिफ़ारिश कर सकते हैं ताकि हार्मोन के स्तर को सामान्य किया जा सके और घेंघा का आकार सिकुड़ सके। लेवोथायरोक्सिन (लेवोक्सिल, सिन्थ्रोइड, टिरोसिन्ट) दवाएं हाइपोथायरायडिज्म के लक्षणों को कम करने में मदद करती हैं और साथ ही साथ थायराइड-उत्तेजक हार्मोन के स्तर को भी सामान्य करने में मदद कर सकती हैं।  यदि थायरॉइडाइटिस की स्थिति की वजह से घेंघा है तो डॉक्टर सूजन कम करने वाली दवाओं जैसे एस्पिरिन या कॉर्टिकोस्टेरॉइड्स लेने की सलाह दे सकते हैं। 

2. रेडियोएक्टिव आयोडीन (Radioactive Iodine)- विषैले बहुकोशिकीय घेंघा (toxic multinodular goiters) के उपचार के लिये रेडियोएक्टिव आयोडीन (RAI) आवश्यक हो जाता है। मरीज को डॉक्टर द्वारा, रेडियोएक्टिव आयोडीन (RAI) की निर्धारित मात्रा को निगलना होता है। यह रेडियोएक्टिव आयोडीन रक्त के माध्यम से थायराइड ग्रंथि तक पहुंचता है और थायराइड कोशिकाओं को नष्ट करके घेंघा रोग के आकार को भी छोटा कर देता है।  

3. सर्जरी (Surgery)- दुर्लभ मामलों में डॉक्टर सर्जरी की सिफारिश करते हैं जैसे थायराइड का आकार बहुत ज्यादा बढ़ जाना, सांस लेने दिक्कत होना और भोजन, पानी निगलने में कठिनाई होना या दवाओं द्वारा किये गये उपचार के अपेक्षित परिणाम ना मिलना। इन स्थितियों में सर्जरी के माध्यम से थायराइड ग्रंथि के कुछ हिस्सों को हटाना पड़ता है या पूरी थायराइड ग्रंथि को निकालना पड़ता है। इसे थायराइडेक्टॉमी (thyroidectomy) कहा जाता है। 

घेंघा के घरेलू उपाय – Home Remedies for Goitre

दोस्तो, अब बताते हैं आपको कुछ निम्नलिखित घरेलू  उपाय जिनको अपनाकर घेंघा से मुक्ति पाई जा सकती है।

1. जलकुंभी (Watercress) – दोस्तो, जलकुंभी जो पोखरों और तालाबों में अपने आप हो जाती है, इसकी भस्म घेंघा और थायराइड के मरीजों के लिये रामबाण उपाय माना जाता है। जलकुंभी की भस्म बनाने के लिये मिट्टी की हांडी (छोटा मटका) में जलकुंभी बेल भरकर आग पर रख दें। मिट्टी की हांडी के जरिये ये अंदर ही अंदर धीरे-धीरे पकने के बाद राख में परिवर्तित हो जाएगी। इस भस्म का कई वस्तुओं के साथ मिलाकर छः महीने तक सेवन करें।  वैज्ञानिकों के अनुसार जलकुंभी में 0.20%  कैल्शियम, 0.6% फास्फोरस होता है तथा विटामिन-ए, बी और सी की भरपूर मात्रा होती है। भस्म का सेवन करने से पहले किसी आयुर्वेद चिकित्सक से सलाह ले लें। जलकुंभी की भस्म के विकल्प स्वरूप मुट्ठी भर जलकुंभी काटकर सलाद के रूप में भी खा सकते हैं। 

2. अलसी के बीज का सेवन (Flax Seed Consumption)- अलसी के बीज में एंटीइंफ्लेमेटरी और एंटीऑक्सीडेंट गुण होते हैं जो घेंघा  की वजह से होने वाली सूजन को कम करने और थायराइड स्वास्थ्य को बनाये रखने में अपनी सक्रिय भूमिका निभाते हैं। अलसी के बीजों को थोड़े से पानी के साथ पीस कर पेस्ट बना लें। इस पेस्ट को गले पर सूजन वाली जगह पर लगाकर छोड़ दें। आधा घंटे बाद जब यह सूख जाये तब इसे पानी से धोकर साफ़ कर लें। इसे दिन में दो बार करें। 

3. अनानास का जूस (Pineapple Juice)-  अनानास में मौजूद एंटीइंफ्लेमेटरी गुण सूजन को कम करने और ग्रंथियों को नियंत्रण करने में अपनी सक्रिय भूमिका निभाते हैं और  घेंघा रोग को ठीक करने में मदद करते हैं। यह विटामिन और खनिज से भरपूर होता है। प्रतिदिन अनानास के साथ एक गाजर और दो टमाटर का जूस मिक्स करके पीयें। आप चाहें तो इसमें हल्का सा पानी भी मिला सकते हैं। 

4. चुकंदर (Beetroot)-  चुकंदर में सोडियम, पोटेशियम, फॉस्फोरस, क्लोरीन, आयोडीन तथा महत्वपूर्ण विटामिन मौजूद होते हैं। इसके एंटीमाइक्रोबियल और एंटीऑक्सीडेंट गुण शरीर को संक्रमण व अन्य रोगों से लड़ने की क्षमता प्रदान करते हैं। चुकंदर के उपयोग से घेंघा रोग को दूर किया जा सकता है। चुकन्दर के पत्तों के रस में शहद मिलाकर सूजन वाले स्थान पर लगायें। इससे घेंघा से होने वाली सूजन में आराम लगेगा।  इसके अतिरिक्त चुकंदर का जूस निकाल कर पीयें। इसे सलाद के रूप में खायें। चुकंदर पर विस्तार से जानकारी के लिये हमारा पिछला आर्टिकल “चुकंदर के फायदे और नुकसान” पढ़ें। 

5. नींबू का रस (Lemon Juice)- नींबू विटामिन-सी का भरपूर श्रोत है जो अपने आप में एक शक्तिशाली एंटीऑक्सीडेंट होता है। यह हमें रोगों से लड़ने की ताकत देता है। नींबू के एंटीमाइक्रोबियल गुण संक्रमण फैलाने वाले बैक्टीरिया को खत्म करते हैं और इसके एंटीइंफ्लेमेटरी गुण सूजन को कम करते हैं। ये सभी गुण घेंघा रोग को खत्म करने में मदद करते हैं। घेंघा के उपचार के लिये रोजाना सुबह खाली पेट एक चम्मच नींबू के रस में एक कली लहसुन का पेस्ट और एक चम्मच शहद मिलाकर पीयें। चाहें तो इसमें कुछ बूंद पानी भी मिला सकते हैं।

6. जौ का पानी (Barley Water)- जौ अनाज की श्रेणी में आता है, इसे उबालकर जौ का पानी बनाया जाता है। इसलिये जौ के सभी गुण पानी में आ जाते हैं। जौ के पानी में मौजूद लिगानिन नामक तत्व एंटीऑक्सीडेंट के रूप में काम करता है। इसके अतिरिक्त इसमें कई विटामिन होते हैं। घेंघा रोग के उपचार के लिये प्रतिदिन एक बार 200 मि.ली. जौ का पानी पीना चाहिये। इससे इम्यूनिटी भी स्ट्रोंग होती है।

7. ग्रीन टी (Green Tea)- ग्रीन टी में मौजूद प्राकृतिक फ्लूयोराइड थायराइड ग्रंथि को स्वस्थ रखने में अपनी सक्रिय भूमिका निभाता है। ग्रीन टी के एंटीमाइक्रोबियल गुण बैक्टीरिया को पनपने से रोकते हैं और खत्म करने में मदद करते हैं। ग्रीन टी पीने से संक्रमण के कारण होने वाले घेंघा रोग से राहत मिल सकती है। एक कप ग्रीन टी में आधा चम्मच शहद मिलाकर जरूर पीयें। बेहतर होगा यदि सुबह के नाश्ते और दोपहर के भोजन के एक घंटे के बाद ग्रीन टी का सेवन किया जाये। 

8. सेब का सिरका (Apple vinegar)- सेब के सिरके में एंटीमाइक्रोबियल गुण मौजूद होते हैं जो संक्रमण उत्पन्न करने वाले बैक्टीरिया को पनपने से रोकते हैं और उनको खत्म करते हैं। इसके एंटीइंफ्लामेटरी गुण घेंघा की सूजन को कम करते हैं। इसका उपयोग घेंघा के उपचार के लिये किया जा सकता है। रोजाना खाली पेट एक गिलास गुनगुने पानी में एक चम्मच सेब का सिरका और आधा चम्मच शहद मिलाकर पीयें। घेंघा में आराम लग जायेगा। 

9. लहसुन (Garlic)- लहसुन को ‘प्राकृतिक एंटीबायोटिक’ माना जाता है। लहसुन में एंटीऑक्सीडेंट, एंटीबैक्टीरियल, एंटीफंगल और एंटीवायरल गुण मौजूद होते हैं और  एलिसीन (Allicin) और सल्फर यौगिक तथा एजोइन (Ajoene)  यौगिक भी पाये जाते हैं। लहसुन में मौजूद एलिसिन और फ्लेवोनोइड्स (Flavonoids) थायराइड बढ़ने की प्रक्रिया को धीमा करने में मदद करते हैं। 

लहसुन के एंटीऑक्सीडेंट, एंटीबैक्टीरियल गुण बैक्टीरिया को खत्म करके घेंघा रोग की समस्या से छुटकारा दिलाने में मदद करते हैं। घेंघा रोग के उपचार के लिये रोजाना सुबह खाली पेट तीन,चार लहसुन की कलियां खायें। चाहें तो इनको शहद के साथ भी खा सकते हैं। लहसुन पर विस्तृत जानकारी के लिये हमारा पिछला आर्टिकल “लहसुन के फायदे और नुकसान” पढ़ें। 

10. हल्दी और काली मिर्च (Turmeric and Black Pepper)- हल्दी में एंटीबायोटिक, एंटीऑक्सीडेंट, एंटीइंफ्लेमेटरी आदि गुण होते हैं जो बैक्टीरिया को खत्म करते हैं और सूजन को भी खत्म करते हैं। इसी प्रकार काली मिर्च में एंटीऑक्सीडेंट, एंटीफ्लैटुलेंस, ड्यूरेटिक, एंटीइंफ्लेमेटरी, डाइजेस्टिव, मैमोरी इनहेंसर और पेन रिविलर गुण मौजूद होते हैं। इनके मिलाप से घेंघा रोग से मुक्ति पाई जा सकती है।

 घेंघा से छुटकारा पाने के लिये एक कप पानी में आधा कप हल्दी पाउडर, आधा चम्मच काली मिर्च पाउडर और 70 मि।ली। ऑलिव या कैकोनट ऑयल मिलाकर गर्म करके गाढ़ा पेस्ट बना लें। इस पेस्ट को घेंघा वाली जगह पर लगायें। इसे दिन में दो बार लगा सकते हैं।

11. नारियल तेल (Coconut Oil)- नारियल तेल में एंटीवायरल, एंटीबैक्टेरीयल, एंटीऑक्सीडेंट और एंटीइंफ्लेमेटरी गुण पाये जाते हैं। नारियल तेल में लॉरिक एसिड प्रचुर मात्रा में होता है जोकि इसका सेवन करने से यह मोनोलॉरिन में परिवर्तित हो जाता है जिसमें एंटीवायरल, एंटीबैक्टेरीयल गुण होते हैं। अतः भोजन में नारियल तेल का इस्तेमाल करके घेंघा रोग से छुटकारा पाया जा सकता है। इसके लिये नारियल तेल से रात को सोने से पहले घेंघा प्रभावित जगह की मालिश करें। 

12. अरंडी का तेल (Castor oil)– अरंडी के तेल में एंटीइंफ्लामेटरी और एंटीबैक्टीरियल गुण पाये जाते हैं जो सूजन को खत्म करने में मदद करते हैं और बैक्टीरिया को खत्म करके हमारे स्वास्थ की रक्षा करते हैं। घेंघा रोग से राहत पाने के लिये अरंडी का तेल से पूरी गर्दन की हल्के हाथ से मालिश करें। रात को सोने से पहले भी इस प्रक्रिया को दोहरायें। इससे घेंघा के कारण हुई सूजन को कम करने में मदद मिलेगी। अरंडी के तेल पर विस्तार से जानकारी के लिये हमारा पिछला आर्टिकल “अरंडी के तेल के फायदे और नुकसान” पढ़ें। 

घेंघा रोग में क्या खाना चाहिए? – What to Eat in Goiter Disease?

घेंघा के मरीज को अपने भोजन में निम्नलिखित आयोडीन युक्त खाद्य पदार्थों को शामिल करना चाहिये – 

1. आयोडीन युक्त नमक

2. सी फूड

3. कम वसा वाला दूध और दही।

4. मछली (बेक्ड कॉड)

5. सफेद ब्रेड

6. कॉर्न (मकई) क्रीम

7. चॉकलेट आइसक्रीम

8. उबली हुई मैकरोनी

9. सूखा आलूबुखारा

10. सेब का जूस

11. सेब

12. केला

13. मटर

14. अंडा

15. चीज़

घेंघा रोग में क्या नहीं खाना चाहिए? – What Should not be Eaten in Goiter Disease? 

घेंघा रोग के मरीजों को हार्मोन-अवरोधक खाद्य पदार्थों को ना खाने की सलाह दी जाती है क्योंकि इनसे आयोडीन की कमी की आरंभिक स्थिति और खराब हो सकती है इनमें निम्नलिखित खाद्य पदार्थ में शामिल हैं –  

1. फूलगोभी

2. पत्ता गोभी

3. ब्रोकोली

4. आड़ू

5. मूंगफली

6. पालक

7. मूली

8. मक्का

9. कॉफी

10. शराब 

Conclusion – 

दोस्तो, आज के आर्टिकल में हमने आपको घेंघा के घरेलू उपाय के बारे में विस्तार से जानकारी दी। घेंघा क्या है, घेंघा रोग के प्रकार, घेंघा रोग के कारण, घेंघा रोग के लक्षण, घेंघा रोग का परीक्षण और घेंघा रोग का उपचार, इन सब के बारे में भी विस्तार पूर्वक बताया। देसी हैल्थ क्लब ने इस लेख के माध्यम से घेंघा के बहुत सारे घरेलू उपाय बताये और घेंघा रोग में क्या खाना चाहिये और क्या परहेज करना चाहिये, यह भी बताया। आशा है आपको ये आर्टिकल अवश्य पसन्द आयेगा। 

दोस्तो, इस आर्टिकल से संबंधित यदि आपके मन में कोई शंका है, कोई प्रश्न है तो आर्टिकल के अंत में, Comment box में, comment करके अवश्य बताइये ताकि हम आपकी शंका का समाधान कर सकें और आपके प्रश्न का उत्तर दे सकें। और यह भी बताइये कि यह आर्टिकल आपको कैसा लगा। आप इस पोस्ट को अपने दोस्तों और सगे – सम्बन्धियों के साथ भी शेयर कीजिये ताकि सभी इसका लाभ उठा सकें। दोस्तो, आप अपनी टिप्पणियां (Comments), सुझाव, राय कृपया अवश्य भेजिये ताकि हमारा मनोबल बढ़ सके। और हम आपके लिए ऐसे ही Health-Related Topic लाते रहें। धन्यवाद।


Disclaimer – यह आर्टिकल केवल जानकारी मात्र है। किसी भी प्रकार की हानि के लिये ब्लॉगर/लेखक उत्तरदायी नहीं है। कृपया डॉक्टर/विशेषज्ञ से सलाह ले लें।

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दोस्तो, आज के आर्टिकल में हमने आपको घेंघा रोग के बारे में विस्तार से जानकारी दी। घेंघा क्या है, घेंघा रोग के प्रकार, घेंघा रोग के कारण, घेंघा रोग के लक्षण, घेंघा रोग का परीक्षण और घेंघा रोग का उपचार, इन सब के बारे में भी विस्तार पूर्वक बताया।
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