स्वागत है आपका हमारे ब्लॉग पर। दोस्तो, आपने हाई ब्लड प्रेशर का नाम तो जरूर सुना होगा परन्तु क्या आप आंखों के हाई ब्लड प्रेशर के नाम से वाकिफ़ हैं। जी हां, आंखों का भी एक प्रेशर होता है जिसे इंट्राओकुलर दबाव (Intraocular Pressure – IOP) कहा जाता है। आंखों में जब यह दबाव सामान्य से अधिक बढ़ जाता है तो इसे ऑक्युलर हाइपरटेंशन (Ocular Hypertension) कहा जाता है जो कि नेत्र से जुड़ी एक गंभीर समस्या है। इसे एक प्रकार का मोतियाबिंद भी माना जाता है। आखिर यह ऑक्युलर हाइपरटेंशन है क्या? दोस्तो, यही है हमारा आज का टॉपिक “ऑक्युलर हाइपरटेंशन क्या है?”।
देसी हैल्थ क्लब इस आर्टिकल के माध्यम से आपको हाइपरटेंशन के बारे में विस्तार से जानकारी देगा, इसका उपचार बताएगा तथा ऑक्युलर हाइपरटेंशन को कम करने के घरेलू उपाय भी बताएगा। तो, सबसे पहले जानते हैं कि ऑक्युलर हाइपरटेंशन क्या है और इंट्राओकुलर प्रेशर कितना होना चाहिये? फिर इसके बाद बाकी बिंदुओं पर जानकारी देंगे।
ऑक्युलर हाइपरटेंशन क्या है? – What is Ocular Hypertension?
ऑक्युलर हाइपरटेंशन आंखों से संबंधित एक गंभीर रोग है जिसे आंखों का हाई ब्लड प्रेशर भी कहा जाता है। आंखों में सामने के क्षेत्र में एक द्रव होता है जिसे एक्वेस ह्यूमर (Aqueous Humour) कहा जाता है। जब यह तरल पदार्थ सूखता नहीं है या इसको निकलने का रास्ता नहीं मिलता तो आंखों में दबाव बढ़ता है जिसे इंट्राओकुलर दबाव (Intraocular Pressure – IOP) कहा जाता है।
जब यह IOP सामान्य से अधिक बढ़ जाये तो इस स्थिति को ही ऑक्युलर हाइपरटेंशन कहा जाता है। यद्यपि यह समस्या किसी भी आयु में हो सकती है परन्तु अधिकतर 40 वर्ष से अधिक आयु वाले लगभग 10 प्रतिशत से अधिक लोगों में आंखों में यह समस्या पाई जाती है।
इंट्राओकुलर प्रेशर कितना होना चाहिए? – What Should be the Intraocular Pressure?
इंट्राऑक्युलर प्रेशर की सामान्य सीमा (Normal range) 10 से 21 mmHg (मिलीमीटर्स ऑफ़ मरकरी – millimeters of mercury) मानी जाती है परन्तु हाइपोटनी में यह 0 mmHg जितना कम हो सकता है और कुछ ग्लूकोमा स्थिति में 70 mmHg से अधिक हो सकता है। लगभग 90 प्रतिशत लोग 10 और 21 mmHg में रहते हैं। जिसमें आंखों का औसत दबाव लगभग 15 mmHg होगा।
यह जरूरी नहीं है कि 22 mmHg असामान्य है, यह व्यक्ति और उसकी आंख पर निर्भर करता है क्योंकि हर व्यक्ति की आंख अलग एक दूसरे से अलग होती है। परन्तु यह कहा जा सकता है कि 20-30mmHg का दबाव सामान्यतः कई वर्षों में नुकसान पहुंचाता है और 40-50 mmHg के दबाव से बहुत तेजी से नुकसान होता है।
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ऑक्युलर हाइपरटेंशन से नुकसान – Damage from Ocular Hypertension
इंट्राओकुलर दबाव के बढ़ते रहने से धीरे-धीरे ऑप्टिक नर्व क्षतिग्रस्त होती रहती है जिससे ग्लूकोमा बनने की संभावना तेज हो जाती है। यदि इसका उपचार समय रहते ना कराया जाये तो धीरे-धीरे दृष्टि धूमिल होती जाती है और अंततः दृष्टि हमेशा के लिये जा भी सकती है।
ऑक्युलर हाइपरटेंशन के कारण – Cause of Ocular Hypertension
1. आंख का द्रव ना सूखना (Non-Drying of Eye Fluid)- आंख में मौजूद द्रव को एक्वेस ह्यूमर (Aqueous humor) कहा जाता है। इसका उत्पादन लगातार होता रहता है परन्तु इसका आंख से बाहर निकलना या सूखना भी बहुत जरूरी होता है। इस द्रव के सूखने की प्रक्रिया आंख के एक क्षेत्र में होती है जिसे ड्रेनेज एंगल के नाम से जाना जाता है। यह द्रव के निर्माण को रोक कर आंख के प्रेशर को मैनेज करता है। लेकिन जब यह द्रव सूख न नहीं पता और जमा होता रहता तब आंख का प्रेशर बढ़ने लगता है।
2. दवाओं के सेवन से (By Taking Drugs)- कुछ दवाओं के सेवन के कारण भी ऑक्युलर हाइपरटेंशन की समस्या हो सकती हैं। इन दवाओं में अस्थमा तथा अन्य गंभीर बीमारियों के उपचार में ली जाने वाली दवाएं अथवा स्टेरॉयड दवाएं आदि शामिल हो सकती हैं। इस प्रकार की दवाएं इंट्राओकुलर प्रेशर को उत्तेजित कर सकती हैं।
3. आंख में चोट (Eye Injury)- आंख में लगी चोट चाहे छोटी है या गंभीर, इंट्राओकुलर प्रेशर को उत्तेजित कर सकती हैं। परिणाम स्वरूप ऑक्युलर हाइपरटेंशन की समस्या बन सकती हैं।
4. आनुवांशिक (Genetic)- आनुवांशिकता भी ऑक्युलर हाइपरटेंशन का कारण हो सकता है। यदि परिवार में किसी को ऑक्युलर हाइपरटेंशन या ग्लूकोमा की समस्या रही है तो अन्य सदस्यों को भी 40 साल की आयु के बाद इंट्राओकुलर प्रेशर की समस्या हो सकती है।
ऑक्युलर हाइपरटेंशन के लक्षण – Symptoms of Ocular Hypertension
सामान्यतः ऑक्युलर हाइपरटेंशन के कोई लक्षण प्रकट नहीं होते। जब इंट्राओकुलर प्रेशर बढ़ता है तब भी मरीज को आंख में कोई दुख-तकलीफ नहीं होती, ना कोई दर्द, ना आंख में जलन। इसलिये मरीज को इसके बारे में कुछ भी पता नहीं चल पाता। इसका पता केवल चेक कराने पर ही चल पाता है। कई बार डॉक्टर भी संदेह में रहते हैं कि यह ऑक्युलर हाइपरटेंशन हो भी सकता है और नहीं भी क्योंकि किसी मरीज की आंखों की बनावट ही ऐसी होती है।
जो कंफ्यूज़न पैदा करती हैं। इस आर्टिकल के लेखक के साथ भी यही हुआ कि सरकारी अस्पताल के डॉक्टरों ने
कई साल तक केस रिव्यू में रखा कि कंफ्यूज़न है, यह ऑक्युलर हाइपरटेंशन का मामला हो भी सकता है और नहीं भी। हां, जब ज्यादा गंभीर स्थिति हो जाये तो आंखों से कम दिखाई देना, लालिमा, दर्द जैसे लक्षण प्रकट हो सकते हैं।
ऑक्युलर हाइपरटेंशन का निदान – Diagnosing Ocular Hypertension
ऑक्युलर हाइपरटेंशन का पता लगाने के लिये नेत्र रोग विशेषज्ञ निम्नलिखित टेस्ट कर सकते हैं –
1. टोनोमेट्री (Tonometry) – इंट्राऑक्युलर प्रेशर को तुरन्त मापने के लिये यह एक सरल टेस्ट है। इसे टोनोमेट्री कहा जाता है। इससे आंखों के इंट्राऑक्युलर प्रेशर का पता चल जाता है। चूंकि इंट्राऑक्युलर प्रेशर हर व्यक्ति में प्रति घंटे अलग-अलग हो सकता है, इसलिये मरीज की आंखों का इंट्राऑक्युलर प्रेशर का माप दो या तीन बार लिया जाता है। साथ ही डॉक्टर ग्लूकोमा के संकेत को भी चेक करते हैं, ऑप्टिक नर्व (Optic nerve) और पेरिफेरल विजन (Peripheral vision) को भी। दोनों आंखों के प्रेशर के बीच 3 mmHg या इससे अधिक ग्लूकोमा का संकेत हो सकता है।
2. गोनियोस्कोपी (Gonioscopy) – इस टेस्ट में आंख के उस हिस्से को देखा जाता है जहां से द्रव निकलता है। आंख के इस हिस्से को ड्रेनेज एंगल कहते हैं। इससे यह पता चलता है कि हिस्सा खुला है या बन्द है। इस टेस्ट से ग्लूकोमा का पता चलता है जो कि मरीज की आयु और ग्लूकोमा के हाई रिस्क पर निर्भर करता है। यदि डॉक्टर को ग्लूकोमा का संदेह है तो यह टेस्ट किया जा सकता है।
3. ऑप्थल्मोस्कोपी (Ophthalmoscopy) – यह एक ऐसा टेस्ट है जिसमें डॉक्टर आंख के पिछले हिस्सों को देख सकता है। इसे हिस्से को फंडस (Fundus) कहते हैं और इसमें रेटीना, ऑप्टिक डिस्क और रक्त वाहिकाएं शामिल होते हैं। इस टेस्ट को करने से पहले, ऑप्टिक नर्व की बेहतर दृश्यता के लिए, पुतलियों को पतला करने के लिये आंख में दवाई डाली जाती है जो कुछ क्षण के लिये चुभती है। यह टेस्ट ऑप्टिक नर्व की जांच के लिए किया जाता है।
4. दृश्य क्षेत्र परीक्षण (Visual Field Test) – यह टेस्ट में बहुत अधिक समय लगता है और यह मरीज को थका देने वाला टेस्ट है। वस्तुतः यह टेस्ट एक कार्यात्मक विश्लेषण (Functional analysis) है जो यह बताता है कि दृश्य क्षेत्र में कोई कमी है या कोई प्रतिबंध मौजूद है या नहीं है। इस टेस्क के लिये एक समय में एक आंख का टेस्ट किया जाता है और दूसरी आंख को पैच द्वारा ढक दिया जाता है। यह टेस्ट शोर से ध्यान हटाने के एक अलग अंधेरे कमरे में किया जाता है। फिर भी टेस्ट का बेहतर परिणाम मरीज की एकाग्रता और सहयोग पर निर्भर करता है। यह टेस्ट ग्लूकोमा के मरीजों में देखे जाने वाले दृश्य क्षेत्र दोषों का पता लगाने में बहुत मदद करता है।
5. पचीमेट्री (Pachymetry) – पचीमेट्री एक उपकरण है जिसके द्वारा आंख के कॉर्निया की मोटाई को मापा जाता है। इसे कॉर्नियल पचीमेट्री प्रक्रिया कहा जाता है। आंख के कॉर्निया की मोटाई इंट्राओकुलर दबाव रिकॉर्डिंग को भी प्रभावित करती है। कॉर्नियल पचीमेट्री, ग्लूकोमा का जल्दी पता लगाने के लिये एक महत्वपूर्ण परीक्षण है।
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ऑक्युलर हाइपरटेंशन का उपचार – Ocular Hypertension Treatment
ऑक्युलर हाइपरटेंशन का उपचार शुरु करने से पहले डॉक्टर मरीज की आंखों का परीक्षण करते हैं। ऑक्युलर हाइपरटेंशन पुष्टि हो जाने पर और ग्लूकोमा की वर्तमान या संभावित स्थिति जानने के बाद (वर्तमान में ग्लूकोमा नहीं है और भविष्य में संभावित भी दूर है) डॉक्टर निम्नलिखित उपचार विधि अपना सकते हैं –
1. आई ड्रॉप्स (Eye Drops)- डॉक्टर कुछ आई ड्रॉप्स लिखते हैं जो इंट्राओकुलर प्रेशर को कम करने और उसको नियंत्रित करने में मदद करते हैं। इन आई ड्रॉप्स को डॉक्टर की सलाह के अनुसार डालना चाहिये। इस मामले जरा सी भी लापरवाई मरीज की दृष्टि के लिये खतरा बन सकती है।
2. निगरानी (Surveillance)- ग्लूकोमा के संभावित लक्षणों को ध्यान में रखते हुए कुछ डॉक्टर आई ड्रॉप्स देने के साथ-साथ इंट्राओकुलर प्रेशर पर निगरानी करने का विकल्प चुनते हैं। डॉक्टर मरीज को कम अंतराल पर बुलाते हैं, परीक्षण करते हैं और परिणाम के अनुसार आई ड्रॉप्स में बदलाव करते रहते हैं।
3. मौखिक दवाएं (Oral Medications)- आई ड्रॉप्स के साथ-साथ, स्थिति के अनुसार डॉक्टर कुछ मौखिक दवाएं भी दे सकते हैं जिनमें आई विटामिन्स कैप्सूल हो सकते हैं। ओमेगा-3 फैटी एसिड, ल्यूटिन (lutein), जेयाक्सान्थिन (zeaxanthin), एंटीऑक्सीडेंट्स युक्त दवाएं हो सकती हैं।
4. सर्जरी (Surgery) – ऑक्युलर हाइपरटेंशन को कम करने लिये आई ड्रॉप्स और मौखिक दवाएं यदि अच्छा परिणाम देते हैं तो यही उपचार थोड़ा बहुत बदलाव करके चलता रहता है जो कि लंबे समय तक चल सकता है। परन्तु कुछ मरीजों में इसके अपेक्षित परिणाम नहीं मिल पाते। ऐसे मरीजों के मामले में केवल सर्जरी ही एकमात्र विकल्प बचता है। सर्जरी के लिये पारंपरिक तकनीक या लेज़र तकनीक का, जैसा भी डॉक्टर उचित समझे, उपयोग किया जा सकता है। सर्जरी के द्वारा आंख के द्रव एक्वेस ह्यूमर को निकलने का मार्ग बना दिया जाता है।
ऑक्युलर हाइपरटेंशन को कम करने के घरेलू उपाय – Home Remedies to Reduce Ocular Hypertension
दोस्तो, अब बताते हैं आपको कुछ निम्नलिखित घरेलू उपाय जो ऑक्युलर हाइपरटेंशन को कम करने में मदद करेंगे –
1. इंसुलिन लेवल को कम करें (Reduce Insulin Level)- यहां हम स्पष्ट कर दें कि इंसुलिन का बढ़ा हुआ स्तर अक्सर आई प्रेशर से जुड़ा होता है। इसलिये यह जरूरी हो जाता है कि शरीर में इंसुलिन लेवल को कम किया जाये। विशेषकर डाइबिटीज़, हाई ब्ल्ड प्रेशर और मोटापे से पीड़ित लोगों के लिये इंसुलिन लेवल को कम करना और जरूरी हो जाता है। इसके लिये शुगर, ग्रेन्स (होल और ओर्गेनिक), ब्रेड, पास्ता, चावल, सेरियल (cereal) और आलू खाना अवॉइड करना चाहिये।
2. व्यायाम करें (Exercise)- प्रतिदिन सुबह की 30-45 मिनट का व्यायाम आपको स्वस्थ और निरोगी रखने में मदद करता है। इसमें मॉर्निंग वॉक, जॉगिंग, एरोबिक्स, ब्रिस्क वॉकिंग, साइकिलिंग, तैराकी आदि शामिल हैं। इससे शरीर का इंसुलिन लेवल कम होता है। इंसुलिन लेवल कम होने से ओकुलर सिंपैथिक (sympathetic) नर्व में हाइपरस्टिमुलेशन भी नहीं होगा और इस प्रकार आंखों का प्रेशर नहीं बढ़ेगा। यहां हम स्पष्ट कर दें कि ऐसी एक्सर्साइज़ ना करें जिसमें सिर की पोजीशन नीचे की तरफ होती हो क्योंकि ऐसा करने से इंट्राओकुलर प्रेशर बढ़ जाता है।
3. ओमेगा-3 फेटी एसिड (Omega-3 Fatty Acid)- अपने भोजन में ओमेगा-3 फेटी एसिड युक्त खाद्य पदार्थों को स्थान दें विशेषकर डॉकसैहेक्साइनॉइक एसिड (Docosahexaenoic acid/DHA) को, जो एक प्रकार से ओमेगा-3 फेटी एसिड होता है। यह स्वस्थ रेटिनल फ़ंक्शन को बनाए रखने में मदद करता है और इंट्राओकुलर प्रेशर को बढ़ने से रोकने में मदद करता है।
सप्ताह में दो या तीन बार सैल्मन, टूना, सार्डिन, शैलफिश और हेरिंग मछली का सेवन करें, इनमें डॉकसैहेक्साइनॉइक एसिड पर्याप्त मात्रा में मौजूद होता है। विकल्प स्वरूप डॉक्टर की सलास पर फिश ऑइल कैप्सूल या एल्गी- बेस्ड डीएचए (DHA) सप्लिमेंट्स ले सकते हैं।
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4. ल्यूटिन और जेयाक्सान्थिन का उपयोग करें (Use Lutein and Zeaxanthin)- शरीर में फ्री रेडिकल्स, प्रतिरक्षा प्रणाली को कमजोर करने के साथ-साथ ऑप्टिक नर्व को क्षति पहुंचाने का काम करते हैं। ल्यूटिन और जेयाक्सान्थिन एंटीऑक्सीडेंट्स के समान रेडिकल्स से बचाव करते हैं और ऑप्टिक नर्व के आसपास, ऑक्सीडेटिव स्ट्रेस को कम करके इंट्राओकुलर प्रेशर को बढ़ने से रोकने में मदद करते हैं। इसलिये अपने भोजन में ऐसे खाद्य पदार्थों को शामिल करें जो ल्यूटिन और जेयाक्सान्थिन भरपूर हों। इसके लिए अपने एक बार के भोजन में केल (kale), पालक, कोलार्ड ग्रीन्स (collard greens), ब्रूसेल स्प्राउट्स (Brussels sprouts), ब्रोकली और कच्चा अंडा आदि शामिल करें। विकल्प के तौर पर ल्यूटिन और जेयाक्सान्थिन युक्त कैप्सूल डॉक्टर की सलाह पर इस्तेमाल कर सकते हैं।
5. एंटीऑक्सीडेंट्स का सेवन करें (Consume Antioxidants)- एंटीऑक्सीडेंट्स आंखों के संपूर्ण स्वास्थ के लिये फायदेमंद होते हैं, इसलिये ऐसे खाद्य पदार्थों का सेवन करें जो एंटीऑक्सीडेंट्सरसे भरपूर हों। ब्लूबेरी और बिल्बेरी जैसी डार्क कलर बेरी ऑप्टिकल नर्व और मसल्स तक न्यूट्रीएंट्स को लेकर जाने वाली कोशिकाओं को मजबूती प्रदान करती हैं और ऑप्टिकल नर्व तथा ब्लड वेसल्स को किसी भी क्षति से रोकने में मदद करती हैं। इनका सेवन करें।
Conclusion –
दोस्तो, आज के आर्टिकल में हमने आपको ऑक्युलर हाइपरटेंशन के बारे में विस्तार से जानकारी दी। ऑक्युलर हाइपरटेंशन क्या है?, इंट्राओकुलर प्रेशर कितना होना चाहिये, ऑक्युलर हाइपरटेंशन से नुकसान, ऑक्युलर हाइपरटेंशन के कारण, ऑक्युलर हाइपरटेंशन के लक्षण, ऑक्युलर हाइपरटेंशन का निदान और ऑक्युलर हाइपरटेंशन का उपचार, इन सब के बारे में भी विस्तार पूर्वक बताया। देसी हैल्थ क्लब ने इस आर्टिकल के माध्यम से ऑक्युलर हाइपरटेंशन को कम करने के घरेलू उपाय भी बताये। आशा है आपको ये आर्टिकल अवश्य पसन्द आयेगा।
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