स्वागत है आपका हमारे ब्लॉग पर। हमारा आज का आर्टिकल महिलाओं के लिये समर्पित है क्योंकि इसकी विषय वस्तु, सामग्री केवल महिलाओं से ही संबंधित है। मासिक धर्म के समय महिलाओं को बहुत सावधानी बरतने की जरूरत होती है क्योंकि उन्हें अपने को संक्रमण से भी बचाना होता है और समाज की नज़रों से भी। यदि गलती से भी कपड़ों पर “दाग” दिखाई दे गया तो बेहद शर्म महसूस होती है। किसी महिला को किसी भी वज़ह से शर्म महसूस हो, यह भारतीय समाज में किसी को भी गवारा नहीं है। फ़ख्र की बात तो तब है जब महिला हर हालात में सिर उठाकर, बेफिक्री से चले, यह उसके लिये सम्मान की बात है। इसी बेफिक्री और सम्मान को बनाये रखने के लिये, महिलाओं को “इन दिनों” में एक विशेष वस्तु का उपयोग करना पड़ता है जो उनको दाग से बचाता है और “शरीर” को संक्रमण से भी। इसका उपयोग करने से वे एकदम बेफिक्र रहती हैं और सामान्य दिनों की तरह पूरे आत्मविश्वास से भरपूर। हम बात कर रहे हैं पैड की जिसे “सैनिटरी पैड” के नाम से जाना जाता है। यही है हमारा आज का टॉपिक “सैनिटरी पैड के फायदे”। देसी हैल्थ क्लब आज के इस लेख के माध्यम से सैनिटरी पैड के विषय में विस्तार से जानकारी देगा और यह भी बतायेगा कि सैनिटरी पैड क्या होता है, इससे पहले महिलाऐं क्या इस्तेमाल करती थीं। लेकिन इससे पहले यह जानना जरूरी है कि मासिक धर्म क्या है, इससे जुड़ी सामाजिक और धार्मिक दृष्टिकोण क्या हैं और सैनिटरी पैड क्या होता है। फिर इसके बाद बाकी बिन्दुओं पर जानकारी देंगे।
मासिक धर्म क्या है? – What is Menstruation?
मासिक धर्म, प्रजनन चक्र की प्राकृतिक प्रक्रिया है जो महिला को इस भुवन में “अद्वितीय” (Unique) बनाती है। यही प्रजनन चक्र उसे गर्भधारण कर, “माँ” बनने का अवसर देता है। यह प्राकृतिक प्रक्रिया लड़कियों में लगभग 11 से 14 वर्ष की आयु से आरम्भ होती है। यह मासिक धर्म चक्र 28 दिनों का होता है अर्थात् सामान्यतः प्रत्येक माह के 28वें दिन मासिक धर्म आरम्भ हो जाता है। इस प्रक्रिया में महिला के जननांग से रक्तश्राव होता है जो लगभग 4 से 5 या ज्यादा से ज्यादा 7 दिन तक चलता है। इसमें लगभग 20 से 60 मिलीलीटर रक्त बह जाता है।
सामाजिक और धार्मिक दृष्टिकोण – Social and Religious Perspective
इस प्राकृतिक प्रक्रिया के परिणाम स्वरूप महिलाओं को दो प्रकार की यातनाओं को सहना पड़ता है। पहली यातना होती है शारीरिक जिसमें पेट दर्द और ऐंठन की असहनीय पीड़ा को झेलना पड़ता है। यह पीड़ा कितनी दर्दनाक होती है कि इसको केवल महिला ही समझ सकती है बाकी कोई भी इसकी कल्पना तक नहीं कर सकता। दूसरी यातना होती है सामाजिक और धार्मिक प्रतिबंधों की। इन दिनों में महिलाओं को सामाजिक-सांस्कृतिक जीवन के कई पहलुओं से वंचित कर दिया जाता है। उनको “अशुद्ध” समझा जाता है। और सबसे बड़ी विडम्बना यह है कि महिला स्वयं को ही अशुद्ध समझती है। यह मानसिकता केवल किसी एक विशेष धर्म की नहीं बल्कि सभी की है जानते हैं इस बारे में –
(i) बौद्ध धर्म (Buddhism)- बौद्ध धर्म के अनुसार मासिक धर्म एक “प्राकृतिक शारीरिक विसर्जन” है जिसके लिये महिलाओं को मासिक आधार पर जाना ही पड़ता है। इसमें ना कुछ कम और ना ज्यादा होता है।
(ii) इस्लाम धर्म (Islam Religion)- इस्लाम धर्म में मासिक धर्म महिलाओं के लिए उनकी “अवधि का सम्मान” मूल्यवान माना गया है। इस मासिक धर्म चक्र में महिलाओं को प्रार्थना करने से क्षमा किया गया है। उन्हें रमजान के दिनों में उपवास नहीं करना है और अन्य दिनों के समय पूरा किया जाना चाहिये। मासिक धर्म की स्थिति में तीर्थयात्रा कर सकती हैं लेकिन काबा की परिक्रमा निषेध है।
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(iii) यहूदी धर्म (Judaism)- मासिक धर्म के वाली महिला को “निदाह” कहा जाता है और कुछ कार्यों के करने से प्रतिबंधित किया जा सकता है जैसे कि यहूदी “तोरा” (यहूदी धर्म की मूल अवधारणाओं की शिक्षा देने वाला का धार्मिक ग्रन्थ), मासिक धर्म वाली महिला के साथ संभोग करने से रोकता है। मासिक धर्म के समय महिलाओं और पुरुषों को एक-दूसरे को छूने से बचना चाहिये। एक विवाहित जोड़े को संभोग और शारीरिक अंतरंगता से बचना चाहिये।
(iv) ईसाई धर्म (Christianity)- ज्यादातर ईसाई संप्रदाय मासिक धर्म से जुड़े किसी भी विशेष अनुष्ठान या नियमों का पालन नहीं करते हैं। कुछ संप्रदाय लेविटीस के पवित्रता संहिता खंड में निर्धारित नियमों को मानते हैं, काफी हद तक यहूदी धर्म के निदाह अनुष्ठान के समान हैं।
(v) हिंदू धर्म में (Hinduism)- हिंदू धर्म में मासिक धर्म के समय महिलाओं पर सबसे अधिक प्रतिबंध देखने को मिलते हैं। इनको अपवित्र माना जाता है। सदियों से चले आ रहे प्रतिबंधों के कारण महिला खुद को इन दिनों में अपवित्र मानती है। इन दिनों में महिलाओं को रसोई और मंदिरों में प्रवेश करने, फूल पहनने, संभोग करने अन्य पुरुषों या महिलाओं को छूने की अनुमति नहीं होती। यह एक विडम्बना ही है कि एक तरफ तो कामाख्या मंदिर में माता सती के रजस्वला होने पर, रक्त से लाल हुऐ कपड़े को पवित्र मान कर भक्तों को “प्रसाद” के रूप में बांटा जाता है और दूसरी ओर महिलाओं को अपने ही घर में रसोई में जाने की अनुमति नहीं होती क्योंकि वे अशुद्ध हैं।
सैनिटरी पैड क्या होता है? – What is a Sanitary Pad?
कॉटन और अन्य सामग्रियों से बना, आयताकार, चौड़ी गद्देदार पट्टी होती है। इसके दोनों ओर विंग्स लगे होते हैं, इसके पिछले हिस्से पर गोंद लगा होता है और इसका डिजाइन ऐसा होता है जिससे कि यह पेंटी/अंडरवियर के अंदर आसानी से चिपक जाती है। लड़कियां, महिलाऐं मासिक धर्म के समय इसी गद्देदार पट्टी को सैनिटरी पैड, सैनिटरी नैपकिन, स्वच्छता पैड, मेटरनिटी पैड्स (Maternity pads) और पेरिनेल पैड (Perineal pads) के नाम से जाना जाता है।
सैनिटरी पैड का उपयोग – Use of Sanitary Pads
1. मासिक धर्म में होने वाले रक्तश्राव को सोखने के अतिरिक्त –
2. लोचिअ (Lochia) (बच्चे को जन्म देने के बाद कई सप्ताह तक रक्तश्राव होता है)। इसे सोखने के लिये भी सैनिटरी पैड का उपयोग किया जाता है। शुरु के तीन, चार दिन बहुत अधिक रक्तश्राव होता है।
3. गर्भपात होने की स्थिति में होने वाले रक्तश्राव को सोखने के लिये।
4. जननांग की यदि कोई सर्जरी हुई हो तो स्वास्थ लाभ के लिये।
5. अन्य किसी भी प्रकार स्थिति में जिसमें जननांग से रक्तश्राव हो रहा हो।
सैनिटरी पैड का इतिहास – History of Sanitary Pads
1. कॉटेक्स ने 1888 में ‘सैनिटरी टावल्स फॉर लेडीज’ के नाम से सैनिटरी पैड्स का निर्माण शुरू किया था। लेकिन जॉनसन एंड जॉनसन ने 1886 में ही ‘लिस्टर्स टावल्स’ नाम से डिस्पोजेबल नैपकिन्स का निर्माण आरम्भ कर दिया था। इन पैड्स को कॉटन वूल या इसी प्रकार के दूसरे अन्य फाइबर को अब्जॉर्बेट लाइनर से कवर करके बनाया जाता था। चूंकि ये पैड इतने महंगे होते थे कि इनको रेगुलर बेसिस पर खरीद पाना अधिकतर महिलाओं के बस में नहीं था। कई वर्षों तक ये पैड्स अपनी ऊंची कीमतों के कारण आम महिलाओं की पहुंच से बाहर रहे। लेकिन इस इंडस्ट्री ने इतना ग्रो किया है कि इसमें अनेक वरायटी दिन पर दिन देखने को मिल रही हैं।
2. सैनिटरी पैड्स डायपर के समान सेनेट्री बेल्ट के रूप में थे, इसमें कॉटन पैड फ़िक्स किया जाता था और इसमें इलास्टिक बेल्ट लगी हुई होती थी। इनका निर्माण अट्ठारहवीं शताब्दी के आस-पास किया गया था जिसका चलन 1970 के दशक तक रहा।
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3. भारत में पैड्स कब आये, इस बारे में कोई अधिकृत जानकारी उपलब्ध नहीं है परन्तु कोयंबटूर, तमिलनाडु के रहने वाले श्री अरुणाचलम मुरुगनाथम, जो गरीब परिवार से संबंध रखते हैं, को “पैडमैन” कहा जाता है। 1998 में जब उनका विवाह हुआ तो उनको पता चला कि उनकी पत्नी पीरियड्स में कपड़े का इस्तेमाल करती हैं। उन्होंने पैड बनाने की मशीन बनाने का ठान ली और दो वर्ष की मेहनत के बाद कम लागत वाले सैनिटरी पैड बनाने की मशीन का आविष्कार किया। इसके लिये भारत सरकार से इनको पद्मश्री अवॉर्ड भी मिला। इन्होंने गांव-गांव जाकर महिलाओं को पैड के बारे में जानकारी दी। आज 4,500 गांव में उनके सैनिटरी पैड का किया जाता है।
4. वर्तमान स्थिति – 4 जून 2018 को भारत सरकार ने विश्व पर्यावरण दिवस की पूर्व संध्या पर ऑक्सो-बॉयोडिग्रेडेबल सैनेटरी नैपकिन (Oxo-Biodegradable Sanitary Napkins) लांच करने की घोषणा की थी। सामाजिक अभियान के अंतर्गत देशभर में 6300 से अधिक प्रधानमंत्री जन औषधि केन्द्रों (PM Jan Aushadhi Kendra) पर ये पैड उपलब्ध कराये गये हैं जिनकी कीमत केवल एक रुपया रखी गई है।
सैनिटरी पैड से पहले महिलाएं क्या इस्तेमाल करती थी – What Women used Before Sanitary Pads
1. प्रथम विश्व युद्ध के समय फ़्रांस में घायल सैनिकों के रक्त को रोकने के लिये कपड़े और रुई से बने बैंडेज का इस्तेमाल किया जाता था। इसे देखते हुऐ नर्सों ने सोचा कि इसे पीरियड्स के समय होने वाले रक्तश्राव को रोकने के लिए भी इस्तेमाल किया जा सकता है। नर्सों ने सबसे पहले बैंडेज का इसी आधार पर उपयोग किया।
2. सैनिटरी पैड के आविष्कार से पहले महिलाऐं मासिक धर्म के रक्तश्राव को रोकने के लिये कपड़े के साथ लकड़ी, रेत, काई, और घास जैसी वस्तुओं का इस्तेमाल करती थीं। महिलाओं के लिये यह कितना दर्दनाक और भयावह रहा होगा। इसकी कल्पना से ही तन सिहर उठता है।
3. मिश्र (Egypt) में महिलाऐं रक्तश्राव को रोकने के लिये पेपिरस (Papyrus – लिखने वाला पेपर) को भिगोकर सेनेट्री पैड्स के रूप में इस्तेमाल किया करती थीं।
4. अफ़्रीका और ऑस्ट्रेलिया की महिलाऐं घास को पैड के रूप में इस्तेमाल किया करती थीं।
5. रोम में महिलाऐं पीरियड्स के समय रक्तश्राव को रोकने के लिये भेड़ के बालों से ऊन का उपयोग करती थीं।
6. भारत में शुरु से ही कपड़े का इस्तेमाल होता चला आया है। आज भी बहुत सारी महिलाऐं गांवों और छोटे शहरों में ऐसे बहुत से घर हैं जहां महिलायें सैनिटरी पैड का इस्तेमाल ना करके सूती कपड़े का इस्तेमाल करना ज्यादा पसंद करती हैं। भारत में ऐसी बहुत सी जगह हैं जहां सैनिटरी पैड का चलन नहीं है। आदिवासी क्षेत्रों में तो बिलकुल नहीं।
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सैनिटरी पैड के प्रकार – Types of Sanitary Pads
सैनिटरी पैड निम्नलिखित तीन प्रकार के होते हैं –
1. प्लास्टिक सैनिटरी पैड (Plastic Sanitary Pads)- भारतीय बाजार में अधिकतर सिंथेटिक फाइबर जैसे प्लास्टिक युक्त सैनिटरी पैड होते हैं। ये पैड अपनी प्लास्टिक वाली क्षमता के कारण रक्त को बाहर तो नहीं से रोकते हैं। ये पैड रक्त को सोखते तो हैं मगर इन पैड में मौजूद केमिकल को त्वचा एब्जॉर्ब कर लेती है जिसकी वजह से कुछ महिलाओं को रैशेज़ और खुजली की समस्या हो जाती है। इसको ज्यादा समय तक लगाये रखने से बैक्टीरिया पनपने लगता है जिससे संक्रामक बीमारियों की संभावना बढ़ जाती है। लंबे समय तक इनके उपयोग से हार्मोन में असंतुलन, इंफर्टिलिटी और सर्वाइकल कैंसर जैसी समस्याएं हो सकती हैं। इनका सही से डिस्पोजल करना बहुत बड़ी चुनौती होती है।
2. रियूजेबल कॉटन क्लॉथ पैड्स (Reusable Cotton Cloth Pads)- डॉ. चारु पंत स्त्री रोग विशेषज्ञ, निदान क्लीनिक, लक्ष्मी नगर, नई दिल्ली के अनुसार बाजार में विंग्सवाले और लीक प्रूफ कॉटन क्लॉथ पैड उपलब्ध हैं, जिनको आप अपनी ड्रेस के अनुसार पैड्स भी पसंद कर सकते हैं। ये पैड अंदर से कॉटन के होते हैं और इनके बाहर लीकप्रूफ कपड़ा लगा होता है और इनको 4 से 6 घंटे तक उपयोग में लाया जा सकता है। इनको फोल्ड करके आसानी से लाया ले जाया सकता है। धोकर फिर से उपयोग में लाया जा सकता है। धोने के लिये नल के बहते पानी के नीचे 15 सेकेन्ड रखकर साबुन से धोयें। ब्रुश से नहीं रगड़ना है। और गर्म पानी का भी इस्तेमाल नहीं करना है। धोकर धूप में सुखाना है। कोई फ़ैब्रिक सॉफ्टनर का उपयोग नहीं करना है। ये, एक जोड़ी रियूजेबल कॉटन पैड 3, 4 वर्ष आराम से चल जायेगा। चूंकि ये इकोफ्रेंडली क्लॉथ पैड्स हैं इसलिये इनसे पर्यावरण को कोई खतरा नहीं होता। मिट्टी में दबाने से ये अपने आप ही खत्म हो जाते हैं।
3. बायोडिग्रेडेबल सैनिटरी पैड (Biodegradable Sanitary Pads)- बायोडिग्रेडेबल से तात्पर्य है कि कोई ऐसा पदार्थ या वस्तु जिसे किसी बैक्टिरिया या जीव जंतु द्वारा नष्ट किया जा सके या कुछ समय पश्चात अपने आप समाप्त हो जाये और पर्यावरण को कोई नुकसान भी ना हो। इसी आधार पर बायोडिग्रेडेबल सैनिटरी पैड का निर्माण किया गया है। ये केले के पेड़ के रेशों (Banana Fiber) से बनाये गये हैं। इस्तेमाल करने में बहुत मुलायम होते हैं। इनसे किसी भी प्रकार का कोई संक्रमण या त्वचा रोग या कैंसर नहीं होता। उपयोग होने के बाद इनको मिट्टी के नीचे, ऊपर कहीं डाल दो, ये आसानी से नष्ट हो जाते हैं। पर्यावरण के लिये कोई खतरा नहीं होता, और ना ही वायु में कार्बन डाइआक्साइड (Carbon dioxide) फैलती है। विशेष बात यह है कि ये खाद और बायोगैस की भांति उपयोग में आ जाते हैं। यद्यपि कुछ वर्षों में कुछ संस्थानों ने इन बायोडिग्रेडेबल पैड्स को बनाना तो शुरू किया है लेकिन अभी भी आम महिलाओं तक इनकी पहुंच बहुत सीमित है।
ये कहां मिलेंगे? – Where can I find these?
(i) प्लास्टिक सैनिटरी पैड –
गांव-गांव, शहर-शहर, कूचा, मोहल्ला, गली-बाजार, छोटे-बड़े बाजार, दुकानों पर सब जगह मिल जाते हैं। ऑनलाइन शॉपिंग साइट्स से भी मंगवा सकते हैं।
(ii) रियूजेबल कॉटन क्लॉथ पैड्स –
ऑनलाइन शॉपिंग साइट्स पर ये पैड्स मिल जायेंगे।
(iii) बायोडिग्रेडेबल सैनिटरी पैड –
भारत में “साथी पैड” के नाम से एक संस्थान है जो बायोडिग्रेडेबल सैनिटरी पैड का उत्पादन करती है। इनको ऑनलाइन मंगवाया जा सकता है। इसके अतिरिक्त “आनंदी” और “इकोफेम” नामक संस्थान भी बायोडिग्रेडेबल सैनिटरी पैड बनाती हैं। ऑनलाइन शॉपिंग साइट्स पर ये पैड्स मिल जायेंगे।
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सैनिटरी पैड्स को डिस्पोजल – Disposal of Sanitary Pads
1. रियूजेबल कॉटन क्लॉथ पैड्स और बायोडिग्रेडेबल सैनिटरी पैड्स का निपटारा (Disposal) करना कोई समस्या नहीं है क्योंकि ये मिट्टी में दबाने से, पर्यावरण को बिना नुकसान पहुंचाये, अपने आप ही नष्ट हो जाते हैं।
2. प्लास्टिक सैनिटरी पैड्स का निपटारा करना बेहद गंभीर समस्या और बहुत बड़ी चुनौती है। क्योंकि पैड्स न तो गीले कूड़े की श्रेणी में आते हैं और न ही सूखे कूड़े की श्रेणी में। इनको ना रिसाइकिल किया जा सकता है और ना ही इनसे कम्पोस्ट खाद बनाई जा सकती है। ये कूड़ेदान में 400 वर्षों तक ऐसे ही “ज़िंदा” रह सकते हैं। जलाने से ये वायु में कार्बन डाइआक्साइड के रूप में ज़िंदा रहकर पर्यावरण को बहुत हानि पहुंचाते हैं। अक्सर देखा गया है कि इस्तेमाल करने के बाद ये पैड्स को कचरे के रूप में खुले में फेंक दिये जाते हैं, जमीन में दबा दिये जाते हैं या फिर इनको फ्लश के ज़रिए बहा दिये जाते हैं। इन पैड्स पर लगे रक्त से सूक्ष्म जीवाणु अर्थात् माइक्रो ऑर्गनिज़्म्स फैलने लगते हैं जो सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिये हानिकारक होते हैं। निष्कर्षतः ये पैड्स किसी ना किसी रूप में ज़िंदा रहते हैं। यहां श्रीमद्भागवत का यह श्लोक एकदम फिट बैठता है “नैनं छिन्दन्ति शस्त्राणि नैनं दहति पावकः। न चैनं क्लेदयन्त्यापो न शोषयति मारुतः । आखिर इस समस्या का हल क्या है?।
3. इस समस्या का हल निकाला नागपुर स्थित नेशनल एन्वायरन्मेंटल इंजीनियरिंग रिसर्च इंस्टीट्यूट ‘नीरी’ के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. नितिन लाभसेटवार ने। इन्होंने बताया कि “दो वर्ष पहले तक प्रति माह लगभग 33 से 35 करोड़ सैनिटरी पैड्स उपयोग में लाये जाते थे जो अब 50 करोड़ हो चुके हैं। आज के हिसाब से देखा जाये तो प्रति महीने यह आंकड़ा 55 से 60 करोड़ तक पहुंच गया होगा”। इन्होंने बिजली से चलने वाली एक नन्ही सी भट्ठी (मशीन) बनाई जो मानव और पर्यावरण दोनों के स्वास्थ का ख़्याल रखने में सक्षम है। डॉ. नितिन ने बताया कि “ये ठीक से जले, इसलिए हमने जो नई मशीन बनाई है उसमें दो एयरवेज़ दिये हैं। साथ ही सेकेंडरी हीटर भी लगाया है जो एक्ज़हॉस्ट का तापमान बढ़ाता है। यहां से निकलने वाली वायु को नष्ट करने के लिये लगभग दो मिनटों के लिये तापमान का एक हज़ार डिग्री पर होना ज़रूरी है जिससे एमिशन (उत्सर्जन) का कोई ख़तरा नहीं रहेगा। लेकिन बिजली ज़्यादा खर्च न हो, ये देखना भी ज़रूरी था। इसलिए एक अच्छी परफॉर्मेंस वाला हीटर डिज़ाइन किया गया। इस तरह की प्रक्रिया से मिली राख का भी परीक्षण किया गया और इस बात की पुष्टि की गई कि उसमें भी हानिकारक तत्व नहीं हैं।” डॉ. नितिन द्वारा निर्मित इस भट्ठी में एक बार में 5 से 15 पैड, 12 से 15 मिनट में जलाए जा सकते हैं। इस हिसाब से 10 घंटों में 300 से 600 पैड्स आसानी से और सुरक्षित ढंग से नष्ट किए जा सकते हैं। ‘नीरी’ के वैज्ञानिकों के अनुसार यह इन्सीनरेटर यानी बिजली से चलने वाली ‘ग्रीन डिस्पो’ स्वास्थ्य और प्रदूषण संबंधी सभी मानकों पर खरी उतरती है। डॉ.
नितिन का कहना है कि “घरों और रिहाइशी इलाकों से इनको इकट्ठा करना और फिर सुरक्षित और वैज्ञानिक ढंग से निपटारा करना बड़ी चुनौती है।
सैनिटरी पैड के फायदे – Benefits of Sanitary Pads
1. दाग लगने से बचाएं (Prevent Stains)- सैनिटरी पैड का सबसे बड़ा फायदा तो यही है कि यह कपड़ों पर रक्त के दाग लगने से बचाता है। पीरियड्स के समय रक्तश्राव को फैलने से रोकने के लिये इसको सोखना जरूरी होता है अन्यथा सारे कपड़े खराब हो जायेंगे। सैनिटरी पैड एक अच्छे अवशोषक के रूप में इस काम को बखूबी करता है। रात को सोते समय करवट भी बदलनी पड़ती है, कई बार टांगों की मूवमेंट भी होती है जिसके चलते कपड़ों पर या बिस्तर पर रक्त के दाग लगने की संभावना बढ़ जाती है, ऐसे में सैनिटरी पैड सुरक्षा प्रदान करता है।
2. आरामदायक अनुभव कराएं (Make you feel Comfortable)- सैनिटरी पैड का उपयोग करने पर तरल पदार्थ एक प्रकार से लॉक हो जाते हैं जिससे जननांग क्षेत्र पर गीलापन नहीं रहता। इसलिये इस क्षेत्र पर या इसके आसपास जलन, खुजली जैसी समस्याऐं नहीं होतीं। यह आरामदायक स्थिति का अनुभव कराता है।
3. महिलाएं भयमुक्त रहती हैं (Women Remain Fearless)- पीरियड्स के दिनों में सैनिटरी पैड लगाने के बाद आप भयमुक्त और टेंशन फ्री हो जाती हैं। स्कूल, ऑफिस, खेलकूद या कहीं आना जाना सब बड़े आराम से हो जाता है। कपड़ों पर दाग लगने का कोई डर नहीं रहता। जैसी गतिविधियां आप सामान्य दिनों में करती हैं, ठीक उसी प्रकार इन दिनों में भी सभी गतिविधियां बेफिक्र होके कर सकती हैं।
4. यूरिनरी ट्रैक्ट इंफेक्शन्स (UTI) से बचाव (Preventing Urinary Tract Infection (UTI))- पीरियड्स के दिनों में गंदगी बढ़ जाने की संभावना रहती है। मूत्राशय और मूत्र नली बैक्टीरिया से संक्रमित हो जाने पर यह इंफेक्शन्स हो जाता है। यह तब होता है जब मूत्र मार्ग में इंफेक्शन्स हो जाये। इसकी संभावना तब और बढ़ जाती है जब पीरियड्स के दिनों में रक्तश्राव को रोकने के लिये कपड़ा उपयोग में लाया जाता है। कपड़ा बेशक दिखाई तो साफ़ देता है लेकिन उस पर कीटाणु लगे हैं या नहीं, इसका पता नहीं चलता। सैनिटरी पैड ऐसी संभावनाओं को खत्म करता है, और सुरक्षित रखता है।
5. अन्य बीमारियों से बचाएं (Protect Against other Diseases)- सैनिटरी पैड में जीवाणुरोधी गुण होते हैं जो यूरिनरी ट्रैक्ट इंफेक्शन्स की संभावनाओं को खत्म करने के अतिरिक्त यह अन्य प्रकार के बैक्टीरिया से सुरक्षा प्रदान करते हैं। जिसके कारण संक्रमण के कारण होने वाली बीमारियों से बचाव होता है।
6. गंध और रैशिस से राहत दिलाए (Relieves Odor and Rash)- कॉटन से बने सैनिटरी पैड जननांग क्षेत्र में वायु प्रवाह को बनाये रखते हैं जिसके कारण पीरियड्स के समय गंध नहीं आती और पसीना आना, चकत्ते बनना जैसी समस्याऐं भी नहीं होतीं। जिससे आप स्वाभाविक तौर पर सामान्य और कंफ़र्टेबल महसूस करती हैं।
7. पैसे बचाये (Save Money)- कपड़ा इस्तेमाल करने के से यदि किसी भी प्रकार का जननांग में संक्रमण होता है तो अनेक बीमारियां होने की संभावना रहती है जिनके इलाज में बहुत पैसे खर्च होते हैं। सैनिटरी पैड इस मामले में सुरक्षा देकर परोक्ष (Indirect) रूप में संभावित बीमारियों पर होने वाले खर्च को बचाकर पैसे बचाने में मदद करता है।
पीरियड्स में हाईजीन मेंटेन करने के उपाय – Tips to Maintain Hygiene During Period
हमने अपने पिछले आर्टिकल “सेक्सुअल हाईजीन मेंटेन करने के उपाय“ में महिलाओं के लिये कुछ टिप्स दिये थे जिसमें बताया गया था कि पीरियड के समय में हाईजीन का विशेष ध्यान कैसे रखा जाये। इनको हम फिर से दोहरा देते हैं कुछ नये टिप्स के साथ जो निम्न प्रकार हैं –
नये टिप्स – New Tips
1. सैनिटरी पैड खरीदने से पहले पैड की क्वालिटी सुनिश्चित कर लें कि यह हाइजिनिक है या नहीं क्योंकि चार से छह घंटों के दर्मियान पैड बदलना भी है। क्वालिटी से कोई समझौता ना करें। प्रयोग में लाने के लिये इसके नियमों को पढ़कर अच्छी तरह पालन करें।
2. सैनिटरी पैड में इस्तेमाल की गई सामग्री पर भी ध्यान दें। यह सामग्री त्वचा पर संक्रमण और रैशेस का करण ना बन जाये। अपनी त्वचा के अनुकूल पैड का विकल्प चुनें। संवेदनशील त्वचा पर संक्रमण होने की संभावना अधिक रहती है। इसके लिये आप स्त्री रोग विशेषज्ञ या त्वचा विशेषज्ञ से सलाह ले सकती हैं।
3. सुनिश्चित करें कि आप अपने साइज के हिसाब से ही परफैक्ट पैड खरीदें। कई महिलाओं को पूरा पीरियड साइकिल निकल जाने के बाद भी अपने सही साइज का पता नहीं चल पाता। आप पहली बार पीरियड्स आने पर आप रेगुलर साइज का पैड इस्तेमाल कर सकती हैं। यदि यह जल्दी भर जाता है तो आप लंबे पैड का उपयोग करें।
4. खूशबू वाले सैनिटरी पैड खरीदने से बचें क्योंकि इनमें ऐसे कैमिकल हो सकते हैं जिससे त्वचा पर रैशेस पड़ सकते हैं, खुजली हो सकती है या संक्रमण हो सकता है। बिना खूशबू वाले सैनिटरी पैड से ऐसी समस्याओं की संभावना नहीं रहती।
5. रात के समय विशेष ध्यान रखें। संभवतः रेगुलर पैड इस्तेमाल करने से नींद में बाधा उत्पन्न हो जाये। इसलिये कोशिश करें कि सैनिटरी पैड के डिफरेंट टाइप को अच्छे से समझ कर अलग-अलग पैड का उपयोग करें। नींद में हिलने डुलने से, करवट बदलने से पैड खिसकने की संभावना रहती है जिससे नींद भी खराब होती है और कपड़े भी। बाजार में रात के लिये विशेष पैड भी उपलब्ध हैं। ये सैनिटरी पैड पीछे की तरफ से अधिक लंबे और चौड़े होने के कारण नींद में पूरी तरह सुरक्षा देते हैं।
पुराने टिप्स – Old Tips
1. हर बार मूत्र विसर्जन के बाद जननांग की अच्छी तरह साफ करें इससे आप वेजाइनल इंफेक्शन (vaginal infection) से बची रहेंगी। इस इंफेक्शन में अधिक खुजली, जलन, दर्द के अतिरिक्त बहुत असहजता महसूस होती है और घर के दैनिक काम करने में भी दिक्कत होती है।
2. पीरियड के समय के लिये बिलकुल अलग से पैन्टी या अंडरवियर रखें, इनको पीरियड्स के दिनों में ही पहनें। इनको धोने के बाद, पानी में डिटॉल मिलाकर, डिटॉल वाले पानी में निकाल देना चाहिये ताकि किसी भी प्रकार के संक्रमण की संभावना ना हो।
3. पीरियड्स में सैनिटरी पैड को प्रत्येक छः घंटे बाद इनको बदलना चाहिये यह पैड बदलने का आदर्श समय माना जाता है। परन्तु यदि पैड जल्दी भर जाता है तो तीन या चार घंटे बाद पैड बदल लेना चाहिये।
4. पीरियड के समय गुनगुने पानी से नहाना अच्छा होता है। इससे आपकी थकावट तो दूर होती है और पीरियड/पैड से हुई शरीर की बदबू से भी राहत मिलेगी।
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5. पीरियड के समय अपने कपड़े बदलने के साथ-साथ अपने बिस्तर की चादर (Bed sheet) को भी धोयें और बदलें।
6. पीरियड के दिनों में सेक्स करना आपकी और अपके पार्टनर की इच्छा पर निर्भर करती है। देसी हैल्थ क्लब का मानना है कि इन दिनों में सेक्स ना किया जाये तो अच्छा है। क्योंकि इससे आपके पार्टनर में संक्रमण फैलने की आशंका रहती है।
कुछ ब्रांडेड सैनिटरी पैड – Some Branded Sanitary Pads
1. व्हिस्पर अल्ट्रा क्लीन XL (Whisper Ultra Clean XL)– इसकी विशेषता है कि ये पैड किनारों से होने वाले रिसाव को भी नहीं होने देते। इसके विंग्स अधिक सुरक्षा देते हैं। ज्यादा रक्तश्राव होने पर भी आप सुरक्षित रहती हैं।
2. व्हिस्पर अल्ट्रा नाईट XL (Whisper Ultra Night XL)- रात के लिये बेहतरीन पैड्स। रात भर लीकेज नहीं होने देता। सुरक्षित रखे। आरामदायक भी बहुत है।
3. व्हिस्पर चॉइस रेगुलर विंग्स (Whisper Choice Regular Wings)- ये सैनिटरी पैड्स कम बहाव के दिनों के लिये ही ठीक हैं। यह सॉफ्ट होने के कारण बहुत आरामदायक हैं
4. स्टेफ्री (Stayfree)– सैनिटरी पैड्स की दुनियां में यह जाना पहचाना नाम है। इसके कई पैड्स बाजार में आते हैं जैसे कि –
(i) स्टेफ्री ड्राई मैक्स आल नाईट (Stayfree Dry Max All Night)- यह रात के लिये उत्तम पैड है। यह बेशक बहुत पतला है मगर चौड़ा पैड है जिससे रात के समय रिसाव होने का कोई डर नहीं रहेगा क्योंकि इसके सोखने की क्षमता बहुत अधिक है। पतला होने की वजह से बहुत आरामदायक हैं।
(ii) स्टेफ्री ड्राई मैक्स अल्ट्रा थिन (Stayfree Dry Max Ultra Thin)– यह सारा दिन सूखा रखता है। दिन के लिये बेहतरीन और आरामदायक सैनिटरी पैड है।
5. डॉन’टी वोरी अल्ट्रा थिन XL(Don’t Worry Ultra Thin XL) – इसकी विशेषता है कि यह पीरियड्स के दिनों की बदबू से बचाता है। यह तरल पदार्थ को जैल में बदल देता है जिससे ज्यादा प्रवाह होने पर भी आप अपने को आरामदायक महसूस करती हैं।
6. कॉटेक्स सॉफ्ट स्मूथ जेंटल विंग्स (Cotex Soft Smooth Gentle Wings)- जिनको रैशेस की समस्या है उनके लिये ये पैड्स ठीक हैं। ये बेहद कोमल और मुलायम होते हैं जिससे शरीर पर रैशेस की समस्या नहीं होती। ये रक्तश्राव के कम प्रवाह के लिये ठीक हैं।
7. सोफी साइड वाल्स (Sophie Side Walls) – इसे सैनिटरी पैड्स बनाने वाली एक अच्छी कम्पनी माना जाता है। इन पैड्स में विशेष प्रकार की वाल्स बनाई है जो अधिक सुरक्षा प्रदान करती है। इसमें लगी नेट शीट से आप सूखा महसूस करती हैं।
8. शी अल्ट्रा (She Ultra)- शी अल्ट्रा के अनेक प्रकार के सैनिटरी पैड्स बाजार में उपलब्ध हैं। इनकी सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इसका कवर प्लास्टिक हाइड्रोफोबिक है जिसे प्लास्टिक से नहीं बनाया है। यह कवर पैड को सोखने की बेहतरीन क्षमता प्रदान करता है।
Conclusion –
दोस्तो, आज के लेख में हमने आपको सैनिटरी पैड के बारे में सम्पूर्ण जानकारी विस्तार से दी। इससे संबंधित मासिक धर्म के बारे में बताया कि मासिक धर्म क्या है, सामाजिक और धार्मिक दृष्टिकोण क्या है, सैनिटरी पैड क्या होता है, सैनिटरी पैड का उपयोग, सैनिटरी पैड का इतिहास, सैनिटरी पैड से पहले महिलाऐं क्या इस्तेमाल करती थीं, सैनिटरी पैड के प्रकार, ये कहां मिलेंगे, सैनिटरी पैड्स का डिस्पोजल, इन सब के बारे में भी विस्तार पूर्वक बताया। देसी हैल्थ क्लब ने इस लेख के माध्यम से यह भी बताया कि सैनिटरी पैड के फायदे क्या होते हैं। पीरियड्स में हाईजीन मेंटेन करने के उपाय और कुछ ब्रान्डेड सैनिटरी पैड के बारे में भी बताया। आशा है आपको ये लेख अवश्य पसन्द आयेगा।
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Disclaimer – यह लेख केवल जानकारी मात्र है। किसी भी प्रकार की हानि के लिये ब्लॉगर/लेखक उत्तरदायी नहीं है। कृपया डॉक्टर/विशेषज्ञ से सलाह ले लें।
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