दोस्तो, स्वागत है आपका हमारे ब्लॉग पर। दोस्तो, “बाँझ” शब्द बोलने में, सुनने में, लिखने में और पढ़ने में बहुत ही बुरा लगता है। यह शब्द नहीं अपितु समाज द्वारा रचा गया अभिशाप है। जरा सोचिये जिस दम्पति के लिये यह शब्द बोला जाता है उसके दिल पर क्या गुजरती होगी। स्त्री हो या पुरुष दोनों को ही एक जैसा अनुभव होता है, अपने आप लज्जा तो कभी आत्मग्लानि तो कभी अपने प्रारब्ध को कोसना। पर, कहते हैं ना कि सब दिन एक जैसे नहीं रहते। वैज्ञानिकों ने अपने प्रयास से बाँझ शब्द के अभिशाप को नि:संतान दम्पति के लिये “वरदान” में बदल कर चमत्कार किया। वैज्ञानिकों ने एक ऐसी तकनीक का आविष्कार किया जिसके द्वारा महिला को कृत्रिम गर्भाधान कराया जा सके। इस तकनीक के द्वारा पुरुष के खराब व अस्वस्थ शुक्राणुओं में से स्वस्थ शुक्राणु लेकर महिला के अंडे के साथ निषेचित करके गर्भाशय में प्रत्यारोपित कर दिया जाता है। यदि महिला के अंडे में खराबी होती है तो ऐसे मामले में एग डोनर की जरूरत पड़ती है। आखिर यह तकनीक है क्या। इसे इन विट्रो फर्टीलाईज़ेशन यानी आई वी एफ कहा जाता है। दोस्तो, यही है हमारा आज का टॉपिक “आई वी एफ क्या होता है?”। देसी हैल्थ क्लब इस लेख के माध्यम से आज आपको आई वी एफ के बारे में विस्तार से जानकारी देगा और यह भी बतायेगा कि आई वी एफ की प्रक्रिया क्या होती है। दोस्तो, आई वी एफ के बारे में जानने से पहले यह जानना जरूरी है कि गर्भधारण क्या होता है तभी हम समझ पायेंगे कि बाँझपन क्या होता है। तो, सबसे पहले जानते हैं कि गर्भधारण क्या होता है, बाँझपन क्या होता है, फिर आई वी एफ क्या है और इसका इतिहास। तत्पश्चात् बाद बाकी बिन्दुओं पर जानकारी देंगे।
गर्भधारण क्या होता है? – What is Pregnancy?
गर्भधारण के लिये पुरुष के शुक्राणु और महिला के अंडे की अवश्यकता होती है। हर महीने महिला के अंडाशय के द्वारा एक परिपक्व अंडा बनता है। इसे अंडोत्सर्ग यानी ओवुलेशन (Ovulation) प्रक्रिया कहा जाता है। इसी समय के आसपास एक महिला द्वारा गर्भ धारण करने की संभावना सबसे ज्यादा होती है। अंडा बनने के बाद, यह फैलोपियन ट्यूब में पहुंचता है। जोकि शुक्राणु द्वारा निषेचन के लिये तैयार होता है और इस समय यदि गर्भाशय की परत मोटी हो जाती है। यदि यह अंडा शुक्राणु द्वारा निषेचित हो जाता है तो शिशु निर्माण की शुरूआत हो जाती है जिसे भ्रूण कहा जाता है। यदि निषेचित नहीं हो पाता तो, गर्भाशय की परत खून के थक्कों के साथ, पीरियड के समय बाहर आ जाती है।
ओवुलेशन प्रक्रिया – Ovulation Process
वैसे ओवुलेशन की प्रक्रिया सीधे तौर पर मासिक धर्म चक्र पर निर्भर करती है और यह हर महिला के लिए अलग-अलग हो सकती है। सामान्यतः ओवुलेशन मासिक धर्म चक्र के 15वें दिन होता है, लेकिन यह प्रक्रिया हर महिला में अलग अलग हो सकती है। मासिक धर्म चक्र 28 से 35 दिन का होता है, मगर 20 से 35 वर्ष की महिला का मासिक धर्म चक्र 28 से 32 दिनों तक चलता है तो उसका ओवुलेशन मासिक धर्म चक्र के 10 से 19 दिनों के बीच होता है। यानी अगले पीरियड्स के 12 से 16 दिनों पहले यह प्रकिया होती है। 35 दिनों का मासिक धर्म चक्र है तो इस चक्र के 21वें दिन में ओवुलेशन होगा और 21 दिनों के मासिक धर्म चक्र के दौरान 7वें दिन ओवुलेशन होगा।
बांझपन क्या होता है? – What is Infertility?
दोस्तो, जैसा कि हमने ऊपर बताया कि अंडाशय के द्वारा बना एक परिपक्व अंडा फैलोपियन ट्यूब में पहुंचता है। यह पुरुष शुक्राणु द्वारा निषेचन के लिये तैयार होता है। यदि इस अंडे में या पुरुष के शुक्राणु में कोई कमी है, समस्या है तो यह अंडा निषेचित नहीं हो पाता। ऐसी स्थिति में महिला का प्राकृतिक रूप से गर्भधारण ना कर पाना ही बाँझपन कहलाता है। कई मामलों किसी दम्पति को शादी के 6 महीने बीत गये या कई साल बीत गये और असुरक्षित संभोग करने के बाद भी उनके यहां संतान नहीं हुई। बाद में जांच कराने पर पता चलता है कि स्त्री के अंडे और पुरुष के शुक्राणु दोनों में ही कमी है। इस स्थिति को युगल बाँझपन (Couple Infertility) कहा जाता है।
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आई वी एफ क्या होता है? – What is IVF?
दोस्तो, सबसे पहले तो हम आपको यह बता दें कि आई वी एफ से पूरे शब्द क्या बनते हैं, यानी इसकी फुल फॉर्म क्या है। आई वी एफ की फुल फॉर्म होती है इन विट्रो फर्टीलाईज़ेशन (In Vitro Fertilisation – I.V.F)। इन विट्रो सन्दर्भित (Refers to) करता है ‘इन-ग्लास’ को, यानी ‘कांच (Glass) के अंदर‘। अर्थात् फर्टीलाइज़ेशन की प्रक्रिया प्रयोगशाला में एक ग्लास पेट्री डिश में की जाती है। यह तो हुई आई वी एफ की शाब्दिक जानकारी। अब आपको बताते हैं कि हुई आई वी एफ से वास्तव में तात्पर्य क्या है। यदि, बहुत ही सरल और कम शब्दों में कहा जाये तो यह “कृत्रिम गर्भाधान” है जो वैज्ञानिक तकनीक द्वारा किया जाता है। इस तकनीक में महिला के अंडे और पुरुष शुक्राणु को शरीर के बाहर, प्रयोगशाला में एक ग्लास पेट्री डिश में निषेचित (Fertilize) कर के भ्रूण को महिला के गर्भाशय में प्रत्यारोपित कर दिया जाता है ताकि वह विकसित होकर शिशु का अकार ले सके। दोस्तो, आई वी एफ प्रकिया में क्या होता है, इसका जिक्र हम आगे करेंगे। पहले इस तकनीक का उद्देश्य जान लीजिये। दोस्तो, क्रत्रिम गर्भाधान द्वारा नि:संतान दम्पति को संतान प्राप्त करवाना इस तकनीक का मुख्य उद्देश्य है। अब इस तकनीक की प्रक्रिया को समझने से पहले थोड़ा यह भी समझ लेते हैं कि क्रत्रिम गर्भाधान का इतिहास क्या रहा है।
कृत्रिम गर्भाधान का इतिहास – History of Artificial Insemination
1. यदि हम प्राचीन काल की बात करें तो, आपने पढ़ा ही होगा कि अमुक राजा के इतनी रानियां थीं मगर संतान किसी से नहीं हुई, या बहुत से राजाओं के बारे में सुना/पढ़ा होगा कि वह बहुत बलशाली थे, अपार संपत्ति थी, किसी भी चीज की कोई कमी ना थी, लेकिन संतान नहीं थी, ऐसी स्थिति में वो राजे, महाराजे क्या करते थे? वे ऋषि, मुनियों, देवताओं का सहारा लेते थे। इनके “आशीर्वाद” स्वरूप संतान प्राप्ति होती थी। इस “आशीर्वाद” में क्या वैज्ञानिक तकनीक थी जिससे स्त्री को गर्भधारण हो जाता था। किसी के देखने मात्र से, छूने से, या किसी के तेज से या कोई फल खाने मात्र से, या किसी का पसीना मुंह में जाने से स्त्री का गर्भवती हो जाना, समझ से परे है और आज के युग में यह असंभव और अवैज्ञानिक लगता है। दोस्तो, यहां देसी हैल्थ क्लब स्पष्ट करना चाहता है कि हमारा उद्देश्य किसी की भावनाओं को आहत करना नहीं है बल्कि वैज्ञानिक आधार पर जानकारी देना है।
2. प्राचीन काल में ना जाकर, यदि हम आधुनिक युग की बात करें तो, दुनियां में पहली बार इंग्लैंड के ऑल्डहैम शहर में 25 जुलाई 1978 को, इस तकनीक द्वारा, पहले टेस्ट ट्यूब बेबी का जन्म हुआ जिसका नाम लुईस ब्राउन था और जन्म के समय बच्चे का वजन ढाई किलो था। वर्ष 2010 में टेस्ट ट्यूब टेस्ट ट्यूब बेबी के जनक सर रॉबर्ट जेफ्री एडवर्ड्स, शरीर विज्ञानी (Physiologist) को “इन विट्रो फर्टिलाइजेशन के विकास के लिए” फिजियोलॉजी या मेडिसिन में नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया। 10 अप्रैल 2013 को 87 वर्ष की आयु में, सर रॉबर्ट जेफ्री एडवर्ड्स की मृत्यु हो गयी।
3. सर रॉबर्ट जेफ्री एडवर्ड्स के इस अद्भुत कारनामे के महज 70वें दिन बाद हमारे देश भारत के कोलकाता में डॉ. सुभाष मुखोपाध्याय ने भारत की पहली टेस्ट ट्यूब बेबी को जन्म दिलाकर विश्व में दूसरा चमत्कार कर दिखाया। चूंकि इस बच्ची का जन्म दुर्गा पूजा के दिन हुआ था इसलिये इसे दुर्गा के नाम से जाना जाने लगा परन्तु बाद में इसका नाम बदल कर कनुप्रिया अग्रवाल कर दिया गया।
4. मगर अफ़सोस, डॉ. सुभाष मुखोपाध्याय को इस चमत्कार के बदले बंगाल सरकार, मेडिकल अधिकारियों और समाज की तरफ से प्रताड़ना मिली। बंगाल सरकार और मेडिकल अधिकारियों ने डॉ मुखोपाध्याय के इस दावे को ना मानते हुऐ उनके कार्य को झूठा करार दिया और उनका स्थानांतरण करके दंडित भी किया। समाज से भी उनको विरोध, अवहेलना, प्रताड़ना झेलनी पड़ी। इन सबके परिणाम स्वरूप वह डिप्रेशन में चले गये और 19 जून 1981 को आत्महत्या करके अपनी जीवन लीला समाप्त कर ली।
5. डॉ. सुभाष मुखोपाध्याय की मृत्यु के पांच वर्ष पश्चात 1986 में मुंबई में, डॉ. टी एन आनंद कुमार और उनकी टीम ने IVF (टेस्ट ट्यूब बेबी) तकनीक से हर्षा नाम की बच्ची को जन्म दिलाकर, भारत में दूसरा चमत्कार कर दिखाया। ये वही डॉ टी एन आनंद कुमार हैं जिन्होंने अपने अथक प्रयासों से डॉ. सुभाष मुखोपाध्याय के रिसर्च वर्क को भारत और विश्व में मान्यता मिली।
6. वर्ष 1997 में जब डॉ. टी एन आनंद कुमार विज्ञान कॉन्फ्रेंस में भाग लेने कोलकाता गये तो वहां उन्होंने डॉ मुखोपाध्याय डायरी और रिसर्च पेपर देखे। उनको लगा कि डॉ. मुखोपाध्याय का सही था, वे ही भारत में IVF (टेस्ट ट्यूब बेबी) के जन्मदाता थे। फिर डॉ. आनंद कुमार, डॉ मुखोपाध्याय के रिसर्च को मान्यता दिलाने में जुट गये।
7. जब डॉ. टी एन आनंद कुमार के प्रयासों के परिणाम स्वरूप वर्ष 2003 में डॉ. सुभाष मुखोपाध्याय के कार्य को आईसीएमआर ने को मान्यता प्रदान की और वर्ष 2007 में विश्व स्तर पर उनके कार्य को मान्यता मिली। उनकी उपलब्धियों को “डिक्शनरी ऑफ मेडिकल बायोग्राफी” में सम्मलित किया गया।
आई वी एफ की आवश्यकता कब पड़ती है? – When is IVF Required?
दोस्तो, आई वी एफ की आवश्यकता पुरुष प्रजनन में अक्षमता और महिला बाँझपन की स्थिति में होती है। विवरण निम्न प्रकार है –
पुरुष प्रजनन में अक्षमता – Male Reproductive Dysfunction
1. पुरुष के शुक्राणुओं की संख्या में कमी। यद्यपि अंडे को निषेचित करने के लिये केवल एक स्वस्थ शुक्राणु की जरूरत होती है जो लाखों में से केवल एक ही अंडे तक पहुंच पाता है।
2. शुक्राणुओं की गति में कमी।
3. शुक्राणुओं की गुणवत्ता खराब होना अर्थात् शुक्राणु स्वस्थ ना होना।
4. वीर्यपात होने में कमी या अक्षमता।
महिला बांझपन के कारण – Causes of Female Infertility
1. महिलाओं में ओवुलेशन की समस्या
2.अनियमित मासिक धर्म
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3. मासिक धर्म में अधिक रक्त श्राव होना।
4. फैलोपियन ट्यूब में ब्लॉकेज
5. गर्भाशय में समस्या
आई वी एफ प्रक्रिया कैसे होती है? – How is IVF Procedure Done?
दोस्तो, आई वी एफ प्रक्रिया कई चरणों में की जाती है। विस्तृत विवरण निम्न प्रकार है –
1. ओवेरियन स्टुमिलेशन (Ovarian Stimulation)- यदि आपको स्वयं का अंडा इस्तेमाल करना है तो आई वी एफ साइकल के आरम्भ में आपकी अंडाशय (Ovary) को कई अंडे बनाने के लिये स्टुमिलेट यानि कि उत्तेजित (Stimulate) किया जाता है क्योंकि कुछ अंडे निषेचन के बाद सामान्य रूप से निषेचित या विकसित नहीं हो पाते हैं। इसके लिये सिंथेटिक हार्मोन के साथ उपचार शुरु किया जाता है। जिसके लिये डॉक्टर अल्ट्रासाउंड, ब्लड टेस्ट आदि करवाते हैं और कई दवाईयां देते हैं। इसमें एक या दो सप्ताह का समय लग जाता है।
2. ओवरी से अंडे निकालना (Egg Removal from Ovary)- इस प्रक्रिया में महिला को बेहोश किया जाता है और ट्रांसवेजिनल अल्ट्रासाउंड किया जाता है जिसकी मदद से एक पतली सुई को योनि में डाला जाता है। यदि ट्रांसवेजिनल अल्ट्रासाउंड से ओवेरी सही से दिखाई नहीं देती है तो सुई के मार्गदर्शन के लिए पेट के अल्ट्रासाउंड का उपयोग किया जाता है। सुई की मदद से अंडों को फॉलिकल्स से अलग करके बाहर निकाल लिया जाता है। और एक पोषक तरल तरल में रखा जाता है।
3. वीर्य लेना (Taking Semen)- पुरुष का वीर्य लिया जाता है जिसे लैब में साफ़ किया जाता है। फिर सक्रिय (अच्छे) शुक्राणुओं को खराब शुक्राणुओं से अलग कर दिया जाता है।
4. फर्टिलाइजेशन (Fertilization)- फर्टिलाइजेशन यानी निषेचन (गर्भाधान) प्रक्रिया सामान्यतः दो प्रकार से की जा सकती है –
(i) परम्परागत गर्भाधान (Conventional Insemination)- पारंपरिक गर्भाधान प्रक्रिया में लैब में पेट्री-डिश में परिपक्व अंडे के साथ एक स्वस्थ और सक्रिय शुक्राणु को रखकर प्राकृतिक रूप से प्रजनन के लिए छोड़ दिया जाता है। प्रजनन के तीसरे दिन तक भ्रूण बन जाता है।
(ii) इंट्रासाइटोप्लाज़मिक स्पर्म इंजेक्शन (ICSI) – इस प्रक्रिया में, स्वस्थ और सक्रिय शुक्राणुओं को चुनकर प्रत्येक परिपक्व अंडे में सीधे इंजेक्ट कर दिया जाता है। फिर यह प्राकृतिक रूप से फर्टिलाइज़ हो जाता है। यह प्रक्रिया उन मामलों में अपनाई जाती है जहां पुरुष के शुक्राणुओं की संख्या कम हो, गतिशीलता कम हो और गुणवत्ता कम है या इससे पहले भी आईवीएफ साइकिल के समय फर्टिलाइजेशन का प्रयास सफल ना हो पाया हो।
5. गर्भ में भ्रूण स्थानांतरण (Embryo Transfer in the Womb )- फर्टिलाइजेशन के बाद दो या तीन दिन भ्रूण बनने में लग जाते हैं फिर प्रक्रिया शुरु होती है भ्रूण को महिला के गर्भ में स्थानांतरण करने की। यद्यपि यह प्रक्रिया दर्द रहित होती है। फिर भी थोड़ी ऐंठन महसूस हो सकती है, इसके लिये पहले एक हल्का पैन रिलीवर दिया जा सकता है। फिर डॉक्टर कैथेटर (एक एक लंबी, पतली, लचीली ट्यूब) के जरिये भ्रूण को गर्भाशय में रख दिया जाता है।
भ्रूण स्थानांतरण के बाद होने वाले कुछ समस्या – Some Problems that Occur after Embryo Transfer
भ्रूण स्थानांतरण के बाद दैनिक सामान्य गतिविधियां कर सकती हैं लेकिन असमान्य गतिविधियों जैसे भारी काम करना, वजन उठाना आदि से बचना चाहिये। वैसे सामान्य तौर पर निम्नलिखित समस्याऐं हो सकती हैं –
1. गर्भाशय ग्रीवा सर्विक्स (Cervix) से थोड़ा खूनी तरल पदार्थ बह सकता है।
2. हल्की ऐंठन
3. कब्ज़ की समस्या
4. पेट फूलता महसूस होना।
5. गर्भाशय में थोड़ा या तेज़ दर्द होना (इस स्थिति में तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें)।
आई वी एफ प्रक्रिया के अन्य उपचार – Other Treatments for IVF Procedure
आई वी एफ प्रक्रिया के अन्तर्गत निम्नलिखित उपचार के तरीके भी उपयोग में लाये जाते हैं –
1. इंट्रायूटरिन इनसेमिनेशन (IUI) – इस प्रक्रिया में यदि पुरुष के शुक्राणुओं में कोई कमी है तो, लैब में सीमेन को साफ़ करके, स्वस्थ शुक्राणु को चुनकर, ओवुलेशन के दौरान, महिला के गर्भाशय में सीधे स्थानांतरण कर दिया जाता है। इसका फायदा उन महिलाओं को भी है जिनमें फेलोपियन ट्यूब बंद हो चुकी हैं।
2. ज़ायगोट इन्टराफैलोपियन ट्रांस्फ़र (ZIFT) – इस प्रक्रिया के अंतर्गत महिला के अंडाणुओं को निकाल कर उन्हें निषेचित करवा कर गर्भाशय के बजाय उसके फेलोपिन ट्यूब में स्थापित कर दिया जाता है।
3. गेमेटे इन्टराफैलोपियन ट्रांस्फ़र (GIFT) – इस तकनीक में अण्डा और वीर्य महिला की अण्डवाही ट्यूब में स्थानान्त्रित कर दिया जाता है। महिला के शरीर में ही उर्वरण होता है।
4. सरोगेसी (Surrogacy)- यह तकनीक उन महिलाओं के लिये वरदान है जो गर्भाशय में कमी या किसी अन्य कारणवश बच्चे को जन्म नहीं दे सकतीं। इसके लिये एक अन्य महिला की जरूरत पड़ती है जो अपने गर्भाशय में उस महिला के पति के शुक्राणु को रखवाकर माँ बनती है। इसे सेरोगेट मदर कहा जाता है। इसका बच्चे के साथ कोई आनुवंशिक सम्बन्ध नहीं होता। बच्चा पैदा होने के बाद बच्चे को उस दम्पति को सोंप देती है। सरोगेसी एक लिखित अनुबंध होता है।
आई वी एफ का खर्च – IVF Cost
आई वी एफ उपचार का खर्चा भारत के शहरों में अलग-अलग आता है। इनका विवरण निम्न प्रकार है –
1. मुंबई – लगभग दो से तीन लाख रुपये।
2. नागपुर – लगभग 75,000 से 90,000 रुपये
3. पुणे – 65,000 से 85,000 रुपये
4. बैंगलोर – 1, 60000 से 1,75000 रुपये
5. चेन्नई – 1,45,000 से 1,60,000 रुपये
6. दिल्ली – 90,000 से 1,25,000 रुपये
7. हैदराबाद -70,000 से 90,000 रुपये
8. कोलकाता – 65,000 से 80,000 रुपये
कुछ सावधानियां – Some Precautions
दोस्तो, आई वी एफ उपचार के बाद महिलाओं को कुछ निम्नलिखित सावधानियां बरतने की आवश्यकता होती है –
1. सेक्स करने से बचें (Abstain from Having Sex)- यह सबसे महत्वपूर्ण है कि आप सेक्स करने से बचें, इसे आप परहेज भी कह सकती हैं क्योंकि ऐसा करने से योनि में संक्रमण हो सकता है और गर्भपात होने की भी संभावना बनी रहती है।
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2. कठिन व्यायाम से बचें (Avoid Strenuous Exercise)- ऐसा कोई भी व्यायाम जिसमें बहुत अधिक मेहनत लगती है, करने से बचें। जॉगिंग या एरोबिक्स भी ना करें। इन सबके बजाये सुबह शाम की सैर बेहतर है। बहुत हल्का-फुल्का योगा जिसमें पेट पर दबाव ना पड़े कर सकती हैं। इसके अतिरिक्त मेडिटेशन कर सकती हैं।
3. भारी वजन ना उठाएं (Do not Lift Heavy Weights)- ऐसा को भी सामान ना उठायें जिसके भार के कारण पेट पर जोर पड़ता हो। इससे गर्भपात होने की संभावना रहती है।
4. ठंडे/गर्म पानी से बचें (Avoid Cold/Hot Water)- नहाने के लिये बहुत अधिक ठंडे या बहुत अधिक गर्म पानी का उपयोग ना करें। स्विमिंग तो बिल्कुल भी ना करें। इससे प्रत्यारोपित अंडा अपनी जगह छोड़ सकता है। नहाने के लिये सामान्य तापमान वाले पानी का उपयोग करें।
5. कैफीन तथा गैर जरूरी दवाएं ना लें (Do not take Caffeine and Non-Essential Drugs)- कॉफी और चॉकलेट विशेषकर डार्क चॉकलेट का सेवन ना करें। चाय ले सकती हैं। कॉफी और चॉकलेट में मौजूद कैफीन प्रत्यारोपित अंडे को हानि पहुंचा सकते हैं। सामान्य चॉकलेट की तुलना में डार्क चॉकलेट में कैफीन की मात्रा अधिक होती है। इसी प्रकार वे दवाईयां जो जरूरी नहीं हैं उनको लेने से बचें। केवल वही दवाऐं लें जो आई वी एफ उपचार में डॉक्टर ने निर्धारित की हैं।
6. धूम्रपान से बचें (Avoid Smoking)- धूम्रपान सभी के लिये सभी स्थितियों में हानिकारक है। आई वी एफ उपचार के बाद धूम्रपान करना बिल्कुल बंद कर दें क्योंकि धूम्रपान के द्वारा विषाक्त पदार्थ शरीर के अंदर जाते हैं और धूंआ भी गर्भाशय में जाकर नुकसान पहुंचा सकता है जिससे गर्भपात होने का जोखिम बढ़ जाता है।
7. शराब और ड्रग्स ना लें (Do not take Alcohol and Drugs)- धूम्रपान की ही तरह शराब और ड्रग्स का सेवन भी गर्भ को नुकसान पहुंचा सकता हैं। ड्रग्स तो बिल्कुल भी ना लें। यदि किसी कारणवश शराब नहीं छोड़ सकते तो अपने डॉक्टर से गर्भावस्था के दौरान इसकी उचित मात्रा जानकर ही सेवन करें।
8. शुरुआत में सफर ना करें (Don’t Travel in the Beginning)- आई वी एफ उपचार के बाद शुरुआत के 2 से 3 दिनों तक सफर करने से बचें। यदि एक सप्ताह तक सफर नहीं करते हैं तो बहुत ही अच्छा है। यदि सफर करना बेहद जरूरी है जैसे की मरीज को दूसरे शहर से अपने घर लौटना है तो वह बहुत सावधानी पूर्वक यात्रा करे और घर जाकर पूरी तरह आराम करे।
Conclusion –
दोस्तो, आज के लेख में हमने आपको आई वी एफ क्या होता है? के बारे में विस्तार से जानकारी दी। गर्भधारण क्या होता है, ओवुलेशन प्रक्रिया क्या है, बाँझपन क्या होता है, आई वी एफ क्या है, क्रत्रिम गर्भाधान का इतिहास, आई वी एफ की आवश्यकता कब पड़ती है, आई वी एफ प्रक्रिया कैसे होती है, भ्रूण स्थानांतरण के बाद होने वाली समस्याऐं, आई वी एफ प्रक्रिया के अन्य उपचार, इन सब के बारे में भी विस्तार पूर्वक बताया। देसी हैल्थ क्लब ने इस लेख के माध्यम से आपको देश के मुख्य शहरों में, आई वी एफ के खर्च के बारे में बताया और आई वी एफ प्रक्रिया के बाद कुछ सावधानियां भी विस्तार से बतायीं। आशा है आपको ये लेख अवश्य पसन्द आयेगा।
दोस्तो, इस लेख से संबंधित यदि आपके मन में कोई शंका है, कोई प्रश्न है तो लेख के अंत में, Comment box में, comment करके अवश्य बताइये ताकि हम आपकी शंका का समाधान कर सकें और आपके प्रश्न का उत्तर दे सकें। और यह भी बताइये कि यह लेख आपको कैसा लगा। आप इस पोस्ट को अपने दोस्तों और सगे – सम्बन्धियों के साथ भी शेयर कीजिये ताकि सभी इसका लाभ उठा सकें। दोस्तो, आप अपनी टिप्पणियां (Comments), सुझाव, राय कृपया अवश्य भेजिये ताकि हमारा मनोबल बढ़ सके। और हम आपके लिए ऐसे ही Health-Related Topic लाते रहें। धन्यवाद।
Disclaimer – यह लेख केवल जानकारी मात्र है। किसी भी प्रकार की हानि के लिये ब्लॉगर/लेखक उत्तरदायी नहीं है। कृपया डॉक्टर/विशेषज्ञ से सलाह ले लें।
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