स्वागत है आपका हमारे ब्लॉग पर। दोस्तो, आपने कुछ ऐसे बच्चों को या बड़ों को भी देखा होगा जिनको स्पेशल कहा जाता है क्यों कि ये मानसिक रूप से सामान्य नहीं होते। इनको ऑटिस्टिक कहा जाता है। इनको अपनी बात कहने में, दूसरे को समझाने में, दूसरों की बात समझने में, पढ़ने-लिखने में और समाज में मेलजोल बनाने में अत्यंत कठिनाई का सामना करना पड़ता है। यह “ऑटिज़्म” की स्थिति होती है जो कि मस्तिष्क के पूर्ण रूप से विकसित ना होने या अन्य कारणों से उत्पन्न होती है। इनको पूरे जीवन भर विशेष देखभाल की आवश्यकता होती है। आखिर यह ऑटिज़्म है क्या जिसके चलते ऐसी कठिन समस्या का सामना करना पड़ता है। दोस्तो, यही है हमारा आज का टॉपिक “ऑटिज़्म क्या है?”।
देसी हैल्थ क्लब इस आर्टिकल के माध्यम से आज आपको ऑटिज़्म के बारे में विस्तार से जानकारी देगा और इसके उपचार के बारे में भी बताएगा। तो, सबसे पहले जानते हैं कि ऑटिज़्म क्या है और यह कितने प्रकार का होता है। फिर इसके बाद बाकी बिन्दुओं पर जानकारी देंगे।
ऑटिज़्म क्या है? – What is Autism?
दोस्तो, सबसे पहले देसी हैल्थ क्लब यह स्पष्ट करता है कि ऑटिज़्म (Autism) कोई रोग नहीं है। यह मस्तिष्क विकार है जिसमें मस्तिष्क के विभिन्न क्षेत्र एक साथ काम करने में सफल नहीं हो पाते हैं या यूं कहें कि सक्षम नहीं होते हैं। ऑटिज़्म को मेडिकल भाषा में ऑटिज़्म स्पेक्ट्रम डिसॉर्डर (Autism Spectrum Disorder – ASD) कहा जाता है।
ऑटिज़्म से पीड़ित व्यक्ति (व्यक्ति से तात्पर्य बच्चे और व्यस्क सभी हैं), सामान्य व्यक्तियों के समान ना होकर आसामान्य होते हैं। ये लोग अपने परिवार और समाज के साथ ठीक से संवाद और समन्वय स्थापित नहीं कर पाते हैं। इन लोगों को बहुत दिक्कत होती है। इनको विशेष रूप से देखभाल करनी पड़ती है बहुत लंबे समय तक, यहां तक कि कुछ लोगों को पूरी जिन्दगी भर दूसरे की देखभाल और मदद पर निर्भर रहना पड़ता है। ये ऑटिज़्म से ग्रस्त व्यक्ति एक दूसरे से भिन्न होते हैं।
इनके लक्षण एक दूसरे से अलग हो सकते हैं। सभी ऑटिस्टिक व्यक्तियों की सीखने की क्षमता, अक्षमता, मानसिक स्वास्थ्य समस्याएं, स्थितियां एक दूसरे से अलग होती हैं। इसलिए सब को विभिन्न प्रकार से उनके अनुसार देखभाल और सहायता की जरूरत होती है। इनकी अन्य समस्याएं भी अलग-अलग हो सकती हैं। इन लोगों को अधिक दिक्कत, स्कूल लेवल से ही होनी शुरु हो जाती है।
कुछ लोग पढ़ने-लिखने, सीखने, समझने में बहुत दिक्कत महसूस करते हैं तो कई पढ़ने-लिखने में बहुत होशियार होते हैं। निदान और हस्तक्षेप उपचार सेवाओं (Diagnosis and Intervention Treatment Services) के माध्यम से इनके व्यवहार और जीवनशैली में परिवर्तन से लाया जा सकता है ताकि इनके सीखने की क्षमता में सुधार लाया जा सके और ये बेहतर जीवन जी सकें।
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ऑटिज़्म के प्रकार – Types of Autism
ऑटिज़्म के निम्नलिखित तीन प्रकार होते हैं –
1. ऑटिस्टिक डिसऑर्डर (Autistic Disorder) – ऑटिज़्म के इस वर्ग में आने वाले लोग आमतौर पर देरी से बोलते हैं तथा इनको सामाजिक स्तर पर संवाद और संचार की चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। इनकी रुचियां, इनका व्यवहार, असामान्य होता है। ये अटक-अटक कर बोलते हैं या अपनी बात बार-बार दोहराते हैं। इनमें बौद्धिक क्षमता कई मामलों में कम होती है।
2. एस्पर्जर सिंड्रोम (Asperger’s Syndrome)- यह ऑटिस्टिक डिसऑडर के वर्ग में यह सबसे हल्का डिसऑडर है। इस सिंड्रोम से ग्रस्त व्यक्तियों का व्यवहार कभी-कभी असामान्य लग सकता है। इनकी रुचियां बहुत कुछ विशेष विषयों में होती हैं। इनको कभी-कभी सामाजिक चुनौतियों का सामना करना पड़ता है मगर इनमें बौद्धिक स्तर पर कमी नहीं होती।
3. परवेसिव डेवलपमेंटल विकार (Pervasive Developmental Disorder)- सामन्यतः इसे ऑटिज़्म का प्रकार नहीं माना जाता क्योंकि इस विकार से ग्रस्त व्यक्तियों में ऑटिस्टिक व्यक्तियों की अपेक्षा ऑटिज़्म के लक्षण और उनकी तीव्रता बहुत ही कम होती है। इनमें उपस्थित लक्षण कभी-कभी सामाजिक और संचार की चुनौतियों का कारण बन सकते हैं। बौद्धिक स्तर पर ये ठीक होते हैं।
ऑटिज़्म के कारण – Cause of Autism
ऑटिज़्म के प्रमाणिक और सटीक कारण अज्ञात हैं। परन्तु कई शोध, इस डिसऑर्डर के लिए अनुवांशिकता और पर्यावरणीय कारणों को इसका जिम्मेदार मानते हैं। विवरण निम्न प्रकार है –
1.आनुवंशिकता (Heredity)- आनुवंशिकता बच्चों में अलग-अलग प्रभाव डालती है कई बच्चों में कुछ, तो कई में कुछ और। यह सब जीन पर निर्भर करता है। आनुवंशिक परिवर्तन का प्रभाव, ऑटिज्म के प्रति कई बच्चों को अतिसंवेदनशील बना सकता है। यह मस्तिष्क के विकास को नियंत्रित करने और सेल्स और मस्तिष्क के बीच सम्पर्क बनाने वाली जीन में गड़बड़ी के कारण होता है।
2. पर्यावरण (Environment)- इसमें गर्भावस्था की जटिलताएं, कोई वायरल इंफेक्शन और वायु प्रदूषण ऑटिज़्म का कारण बनते हैं।
ऑटिज़्म के जोखिम कारक – Risk Factors for Autism
निम्नलिखित कुछ जोखिम कारक भी ऑटिज़्म की वजह बन सकते हैं –
1. 26 सप्ताह से पहले जन्म लेने बच्चों में ऑटिज़्म होने की अधिक संभावना रहती है।
2. पैदा हुए, सामान्य से कम वजन वाले बच्चे को भी ऑटिज़्म होने की संभावना रहती है।
3. यदि एक परिवार में कोई बच्चा ऑटिज़्म से पीड़ित है तो दूसरे बच्चे को ऑटिज़्म होने की संभावना रहती है।
4. कुछ स्वास्थ संबंधी समस्याओं वाले बच्चों को ऑटिज़्म होने का अधिक खतरा रहता है।
5. अधिक उम्र के माता-पिता से पैदा हुए बच्चे को भी ऑटिज़्म होने का अधिक खतरा रहता है।
6. जेनेटिक/ क्रोमोसोमल से जुड़ी समस्याएं जैसे, ट्यूबरस स्केलेरोसिस या फ्रेज़ाइल एक्स सिंड्रोम भी ऑटिज़्म को ट्रिगर कर सकती हैं।
7. गर्भावस्था में ली गयीं कुछ दवाओं की प्रतिक्रियावश ऑटिज़्म हो सकता है।
8. लड़कियों की तुलना में लड़कों को ऑटिज़्म की संभावना चार गुणा अधिक होती है।
ऑटिज़्म के लक्षण – Symptoms of Autism
सामान्यतः ऑटिज़्म के लक्षण बचपन में ही यानि 12 से 18 महीने या इसे भी कम आयु में दिखाई देने लगते हैं। ये लक्षण सामान्य हो सकते हैं और गंभीर भी। सामान्य लक्षण बाद में गंभीर बन सकते हैं। कुछ बच्चों में ऑटिज़्म लक्षण तब दिखाई हैं जब बच्चा स्कूल जाने लगता है या वह किशोरावस्था में प्रवेश करता है तब उसके ऑटिस्टिक होने का पता चल पाता है। ऑटिज़्म के लक्षण जो अब तक नोटिस हुए हैं, निम्न प्रकार हो सकते हैं –
1. अपना नाम पुकारने पर ये प्रतिक्रिया नहीं दे पाते।
2. ये किसी के द्वारा छुए जाने, गले लगाने या पकड़ने को पसंद नहीं करते, बल्कि ये इसका विरोध करते हैं।
3. ये अकेले खेलना पसंद करते हैं, किसी के साथ नहीं।
4. ये किसी से नजरें मिलाना पसंद नहीं करते।
5. अधिकतर इनका चेहरा भावशून्य होता है।
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6. इनको बोलने में दिक्कत होती है। एक-एक शब्द को रुक-रुक कर या अटक-अटक कर बोलते हैं। ये पूरा वाक्य एक साथ नहीं बोल पाते। कई बार ये अपने शब्द को बार-बार दोहराते हैं।
7. ये परिवार में या स्कूल में या सामाजिक स्तर पर संवाद और संचार स्थापित नहीं कर पाते।
8. ये दूसरे की बातों को समझ नहीं पाते।
9. कभी-कभी ये बहुत आक्रामक हो जाते हैं, अपने को नुकसान पहुंचाने का प्रयास करना। ये अपने आप को बहुत तनाव ग्रस्त या डिप्रेस्ड महसूस करते हैं।
10. ये ऐसी गतिविधियां करते हैं जो हर किसी को नागवार गुजरती है जैसे हिलते रहना, घूमते रहना, हाथ फैलाकर पंख की तरह फड़फड़ाना।
11. ध्वनि, प्रकाश और स्पर्श के प्रति असामान्य रूप से संवेदनशील होना। इनसे इर्रिटेट होना और दर्द महसूस करना।
12. भोजन संबंधी इनकी विशेष पसंद होना। विशेष पसंद वाला भोजन ही करना।
13. किसी एक विशेष व्यक्ति की बात मानना। बाकी को इग्नोर करना।
14. कई बार हाथों के बल चलना।
15. एक ही स्थान पर जगह घंटों अकेले बैठे रहना। या किसी एक ही काम को बार-बार करना।
16. पुराना सीखा हुआ और अपना कौशल भूल जाना।
ऑटिज़्म की अन्य समस्याएं – Other Problems of Autism
ऑटिज्म से ग्रस्त व्यक्तियों को लक्षणों के अतिरिक्त निम्नलिखित समस्याएं भी होती हैं –
1. डिस्लेक्सिया (Dyslexia)- पढ़ाई, लिखाई में इन व्यक्तियों को दिक्कत आती है। अक्षर पहचाना, लिखना और पढ़ना इनके लिये बहुत मुश्किल होता है। अध्यापकों या अन्य व्यक्तियों के आदेश या निर्देश के अनुसार काम करने में दिक्कत होती है।
2. लर्निंग डिसेबिलिटी (Learning Disability)- इस समस्या में इनको सीखने, समझने, किसी विषय पर जानकारी लेने, साझा करने में दिक्कत होती है।
3. अटेंशन डेफिसिट हाइपरएक्टिविटी डिसऑर्डर (Attention Deficit Hyperactivity Disorder)- ये लोग किसी विषय वस्तु पर एकाग्र नहीं हो पाते। इनका ध्यान किसी विषय वस्तु पर स्थिर नहीं रह पाता। इनका ध्यान बार-बार भटकता है।
4. अनिद्रा (Insomnia)- ये लोग ठीक से सो नहीं पाते। इनकी नींद पूरी नहीं हो पाती। इनको इंसोमेनिया यानि अनिद्रा की समस्या होने का जोखिम रहता है।
5. मिर्गी (Epilepsy)- इन लोगों को मिर्गी की समस्या होने का जोखिम रहता है। इनके हाथो-पैरों में अधिकतर झनझनाहट या सरसराहट महसूस होती है।
6. कुछ अन्य स्वास्थ समस्याएं (Some Other Health Problems)- इन लोगों में कब्ज़, अपच, दस्त, घुटनों, जोड़ों में दर्द की समस्या रहती है।
7. मस्तिष्क स्वास्थ की समस्या (Brain Health Problems)- ऑटिज्म से ग्रस्त व्यक्तियों में एक बेचैनी सी बनी रहती है। इनके मस्तिष्क में किसी काम को करने की सनक या जूनून छाया रहता है। इनमें डिप्रेशन की समस्या लगभग बनी रहती है।
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ऑटिज़्म की जटिलता – Complexity of Autism
ऑटिज़्म अपने आप में ही एक जटिल डिसऑर्डर है जिसमें पूरा जीवन ही जटिल हो जाता है। यह जटिलता जीवन भर चलती है। जीवन भर इनको विभिन्न चुनोतियों का सामना करना पड़ता है। यद्यपि इसकी सघनता थैरेपी, मनोचिकित्सकों के उपचार तथा सभी के सहयोग से कुछ कम की जा सकती है परन्तु इन व्यक्तियों माता, पिता तथा को दूसरे व्यक्ति की सहायता की आवश्यकता होती है।
ऑटिज़्म का निदान – Diagnosed with Autism
ऑटिज़्म से ग्रस्त व्यक्तियों के बोलने-चालने, उनके व्यवहार, उनकी गतिविधियां और माता-पिता के साथ हुए संवाद के आधार पर ऑटिज़्म का आकलन किया जाता है। क्यों ऑटिज़्म की जांच के लिए को विशेष टेस्ट नहीं है। इस आकलन के आधार पर व्यवहार और विकास के दृष्टिकोण से डॉक्टर, माता-पिता को सलाह देते हैं।
ऑटिज़्म का उपचार – Autism Treatment
दोस्तो, जहां तक ऑटिज़्म का उपचार का प्रश्न है तो देसी हैल्थ क्लब यह स्पष्ट करता है कि यह एक विडंबना है कि ऑटिज़्म का कोई समुचित उपचार नहीं है। हां, निदान और हस्तक्षेप उपचार सेवाओं के जरिये ऑटिज़्म से ग्रस्त व्यक्ति का जीवन काफी हद तक सरल बनाया जा सकता है परन्तु दूसरे की मदद की जरूरत इनको हमेशा बनी रहती है। उपचार संबंधी विवरण निम्न प्रकार है।
1. हस्तक्षेप उपचार सेवाओं के जरिये बच्चों को पढ़ने-लिखने तथा अन्य आवश्यक कौशल सीखने में मदद मिलती है। किसी एक क्षेत्र में निपुणता मिल जाती है। भविष्य में वे अपनी आजीविका कमाने में सक्षम हो सकते हैं।
2. बिहेवियरल थेरेपी, शिक्षा संबंधी कार्यक्रम और ओरिएंटेड ट्रेनिंग सेशन ऑटिस्टिक बच्चों बोलने, सामाजिक आचार, व्यवहार और सकारात्मक गतिविधियों के सुधार में सहायक होते हैं।
3. यद्यपि ऑटिज़्म के उपचार के लिए कोई सामान्य या विशेष प्रकार की दवाईयां निर्धारित नहीं हैं। परन्तु इसके कुछ लक्षणों जैसे तनाव, चिंता, आक्रामकता आदि को कंट्रोल करने के लिए कुछ दवाएं दी जा सकती हैं जैसे –
(i) बेचैनी कम करने के लिए एंटीएंग्जायटी दवाएं।
(ii) चिड़चिड़ापन, गुस्सा और एक ही व्यवहार को बार-बार दोहराने, सनकीपन आदि के लिए एंटीसायकोटिक दवाएं।
(iii) अशांत मन और बेचैनी युक्त व्यवहार से आराम पाने के लिए सेंट्रल नर्वस सिस्टम स्टीमुलांट्स दवाएं।
(iv) डिप्रेशन और लगातार दोहराये जाने वाले व्यवहार से राहत के लिए एंटीडिप्रेसेंट्स दवाएं।
4. लाइफस्टाइल में परिवर्तन बच्चों के दैनिक जीवन को आसान बना सकता है। इसके लिए निम्नलिखित तरीके अपना सकते हैं
(i) बच्चे के साथ उनसे धीमी आवाज में धीरे-धीरे मगर स्पष्ट रूप से बात करें।
(ii) बच्चे के साथ सरल शब्दों का प्रयोग करें जिनको वह आसानी से समझ सके। बीच-बीच में बच्चे का नाम बोलें ताकि बच्चे को लगे कि उसी से बात की जा रही है।
(iii) बच्चे के साथ बात करते समय हाथ के इशारों का तथा चित्रों का भी उपयोग करें।
(iv) इसके लिए स्पीच थेरेपिस्ट की मदद भी ली जा सकती है।
(v) बच्चे को सही से भोजन करना सिखाएं। उसे सभी प्रकार का भोजन करने की आदत डालें ताकि वह किसी एक प्रकार के भोजन पर ही ना अटक जाए।
(vi) बच्चे को सोने और जागने के सही समय के बारे में बताएं, इसके फायदे बताएं। गलत समय पर सोने और जागने के नुकसान बताएं।
(vii) सुनिश्चित करें कि बच्चे का कमरा शांत हो और बहुत अधिक प्रकाश ना हो। प्रकाश से जरा भी परेशानी होने पर कमरे में एकदम अंधेरा कर दें।
(viii) बच्चे की पसंद और नापसंद को समझकर उचित और अनुचित को निर्धारित करें और बच्चे को समझाने का प्रयास करें।
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ऑटिज़्म से बचाव – Prevention of Autism
दोस्तो, यद्यपि ऑटिज़्म होने को रोक नहीं सकते जिस बच्चे को होना है, तो उपरोक्त कारणों के आधार पर होगा ही होगा, परन्तु निम्नलिखित उपाय अपनाकर इसके खतरे से बचाव किया जा सकता है –
1. गर्भावस्था में अपनी मर्जी से कोई दवा ना लें। डॉक्टर की सलाह पर ही कोई दवा लें।
2. अपने स्वास्थ की नियमित रूप से जांच करवाती रहें। विटामिन तथा सप्लीमेंट डॉक्टर की सलाह पर लें।
3. संतुलित और पौष्टिक आहार लें। फल और ड्राई फ्रूट्स लें। हल्का-फुलका व्यायाम भी करें।
4. गर्भावस्था में शराब ना पीएं तथा कोई भी नशीले पदार्थों का सेवन ना करें।
5. धूम्रपान ना करें अथवा किसी भी रूप में तम्बाकू का उपयोग ना करें।
6. कोई भी रोग होने पर उसका समुचित इलाज करवाएं।
7. गर्भवती होने से पहले आपको जर्मन खसरा (German Measles) यानि रुबेला (Rubella) का टीका लगा हो। यह रूबेला-संबंधित आटिज्म को रोक पाने में मददगार हो सकता है।
Conclusion –
दोस्तो, आज के आर्टिकल में हमने आपको ऑटिज़्म के बारे में विस्तार से जानकारी दी। ऑटिज़्म क्या है?, ऑटिज़्म के प्रकार, ऑटिज़्म के कारण, ऑटिज़्म के जोखिम कारक, ऑटिज़्म के लक्षण, ऑटिज़्म की अन्य समस्याएं, ऑटिज़्म की जटिलता और ऑटिज़्म का निदान, इन सब के बारे में भी विस्तार पूर्वक बताया। देसी हैल्थ क्लब ने इस आर्टिकल के माध्यम से ऑटिज़्म के उपचार बताये और ऑटिज़्म से बचाव के कुछ उपाय भी बताये। आशा है आपको ये आर्टिकल अवश्य पसन्द आयेगा।
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Disclaimer – यह आर्टिकल केवल जानकारी मात्र है। किसी भी प्रकार की हानि के लिये ब्लॉगर/लेखक उत्तरदायी नहीं है। कृपया डॉक्टर/विशेषज्ञ से सलाह ले लें।
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