दोस्तो, स्वागत है आपका हमारे ब्लॉग पर। दोस्तो, आपने यह मुहावरा तो सुना होगा कि आसमान से गिरे और खजूर में अटके। अर्थात एक मुसीबत से तो निकल गये परन्तु दूसरी परेशानी में पड़ गये। आज के समय में बिल्कुल यही हो रहा है। यही मुहावरा चरितार्थ हो रहा है। हम बताते हैं कैसे। कोविड-19 से ठीक हुए लोग अभी पूरी तरह उभर भी नहीं पाए थे कि उन पर एक और संक्रमण ने हमला कर दिया। दिनांक 12 मई 2021 को bhaskar.com/ ने update किया कि भारत के राज्य उत्तर प्रदेश की सरकार, चार जिलों में ब्लैक फंगस के मरीज मिलने से अलर्ट हो गयी है। दोस्तो, यही है हमारा आज का टॉपिक “ब्लैक फंगस क्या होता है”। इस लेख के माध्यम से देसी हेल्थ क्लब आपको ब्लैक फंगस के विषय में विस्तारपूर्वक जानकारी देगा और यह भी बतायेगा कि ब्लैक फंगस से बचाव के क्या उपाय हैं।
दोस्तो, अधिकारियों के अनुसार, उत्तर प्रदेश के कानपुर में 50, लखनऊ में 8, मेरठ में 2 और वाराणसी व गाजियाबाद में एक-एक मरीज मिले हैं। इससे पहले भी अन्य राज्यों से ब्लैक फंगस के मरीज मिलने की खबरें आती रही हैं। रिपोर्ट्स के अनुसार, महाराष्ट्र में 2000, गुजरात में 100, तेलंगाना में 60, भोपाल में 50, दिल्ली में 6 ब्लैक फंगस के मरीज मिले हैं। ज्यादातर, कोविड-19 से ठीक हुऐ मरीजों में 12 से 15 दिनों के बाद ब्लैक फंगस संक्रमण शुरू हुआ। डॉक्टरों के अनुसार ब्लैक फंगस में मृत्यु दर 50 प्रतिशत तक होती है। दोस्तो, अब समझते हैं कि ब्लैक फंगस क्या होता है?
ब्लैक फंगस क्या है? – What is black fungus
डॉक्टरों के अनुसार ब्लैक फंगस अत्यंत दुर्लभ फंगल इंफेक्शन है जिसे विज्ञान की भाषा में म्यूकरमायकोसिस (Mucormycosis) कहा जाता है। यह फफूंद (Fungus, Mold) के कारण होता है जो सामान्यतः मिट्टी, पौधों, खाद, सड़े हुए फल और सब्जियों में बनता और विकसित होता है। आंखों के सर्जन, डॉक्टर अक्षय नायर, मुंबई, का कहना है कि “ये फंगस हर जगह होती है। मिट्टी में और हवा में। यहां तक कि स्वस्थ इंसान की नाक और बलगम में भी ये फंगस पाई जाती है। ” फफूंद के कण इतने हल्के और बारीक होते हैं कि जो दिखाई भी नहीं देते। ये उड़कर प्राकृतिक वातावरण में हवा में फैल जाते हैं और सांस के जरिये अंदर फेफड़ों में चले जाते हैं। यह शरीर में बहुत तेज गति से फैलता है। इससे आंखों की रोशनी भी जाने की संभावना रहती है।
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ब्लैक फंगस से किसको ज्यादा खतरा है – Who is more at risk than black fungus
आईसीएमआर Indian Council of Medical Research के अनुसार ब्लैक फंगस से निम्नलिखित व्यक्ति ज्यादा प्रभावित हो सकते हैं –
1. वे व्यक्ति जिनकी इम्युनिटी बहुत कमजोर है।
2. कोविड-19 से ठीक हुऐ व्यक्ति।
3. वे व्यक्ति जो डायबिटीज से पीड़ित हैं। उनमें शुगर लेवल बढ़ जाने पर यह संक्रमण जानलेवा हो सकता है।
4. कैंसर या एचआईवी/एड्स से पीड़ित व्यक्ति।
ब्लैक फंगस का कुप्रभाव – Side Effect of Black Fungus
ब्लैक फंगस का कुप्रभाव निम्नलिखित अंगों पर पड़ता है –
1. श्वसन प्रणाली
2. फेफड़े
3. चेहरा
4. नाक
5. कान
6. आंखें
7. जबड़ा
8. दांत
9. मस्तिष्क
10. त्वचा
11. नाक और जबड़े की हड्डी में गलाव।
ब्लैक फंगस के लक्षण – Symptoms of Black Fungus
1. आंख, नाक के आसपास दर्द या लालिमा।
2. बुखार
3. सिरदर्द
4. खांसी, हांफना,
5. सीने में दर्द
6. सांस लेने में परेशानी
7. खून की उल्टी
8. नाक में सूजन, नाक बंद हो जाना, नाक से खून आना
9. आंखों से धुंधला दिखाई देना
10. गाल की हड्डी में दर्द, एक तरफ के चेहरे का दर्द और सूजन
11. दांतों में ढीलापन महसूस होना, मसूढ़ों में तेज दर्द
12. मानसिक दशा में बदलाव
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ब्लैक फंगस के कारण – Causes of Black Fungus
ब्लैक फंगस का मुख्य कारण है कवक यानी या फफूंद (Fungus, Mold)। ये फफूंद के कण बहुत ही हल्के होते हैं और बहुत बारीक होते हैं जो दिखाई भी नहीं देते। ये हवा में उड़कर सांस के जरिये अंदर फेफड़ों में चले जाते हैं। ये फफूंद बनती और विकसित होती है निम्नलिखित वस्तुओं में
1. पत्तों का ढेर जो धीरे धीरे सड़ता रहता है
2. किसी चीज के सड़ने से बना हुआ खाद का बड़ा ढेर जो बहुत दिनों तक पड़ा रहे।
3. मिट्टी का ढेर जिसके हिस्सों में भी फफूंद बनने की संभावना रहती है।
4. पानी में गीली लकड़ी जो बाद में सड़ने लगती है। बाद में फफूंद बनने लगती है।
5. सीलन – घरों में आई हुई सीलन के कारण, दीवारों के कोनों पर और छत के किनारों पर फफूंद लगने लग जाती है। इसलिए समय-समय पर घर की सफाई होती रहनी चाहिए।
डॉक्टरी चिकित्सा और जटिलताऐं – Medical Treatment and Complications
1. ब्लैक फंगस यानी म्यूकरमायकोसिस के इलाज के लिये एंटीफंगल दवाओं का इस्तेमाल किया जाता है। डॉक्टरों के अनुसार मरीज में डायबिटीज को कंट्रोल करना बेहद जरूरी होता है। स्टेरॉयड दवाएं कम करनी होती हैं।
2. इस संक्रमण के लगभग सभी मामलों में इंट्रावेनस (Intravenous) दवाएं देना जरूरी होता है। ये दवाएं सीधे नस में ट्यूब के माध्यम से इंजेक्ट कर दी जाती हैं। इंट्रावेनस शब्द का अर्थ ही होता है “सीधे नसों में”। इसके लिए नसों में एक बार एक पतला सा ट्यूब फिट कर दिया जाता है और समय अनुसार आसानी से डोज दिए जाते हैं। इस ट्यूब को इंट्रावेनस कैनुला (IV cannula) के नाम से जाना जाता है।
3. जब, इंट्रावेनस थेरेपी और संक्रमित ऊतकों (Tissues) हटाने की प्रक्रिया ठीक से चल रही होती है तब एक निश्चित समय के बाद दवाएं बंद कर दी जाती हैं फिर ओरल दवाएं दी जाती हैं। ओरल वे दवाएं वे होती हैं जिनको मुंह में डालकर पानी के साथ सटका जाता है।
4. डॉक्टर्स द्वारा लिखी जाने वाली कुछ प्रमुख दवाएं इस प्रकार हैं –
(i) एम्फोटेरिसिन बी – यह केवल नसों मे इंजेक्शन के द्वारा दी जाती है।
(ii) पोसाकोनाजॉल दवाएं – ये खाने की टेबलेट और नसों में इंजेक्शन के रूप में दी जाने वाली हो सकती हैं
(iii) इसाव्यूकोनाजॉल दवाएं – ये भी खाने की टेबलेट और नसों में इंजेक्शन के रूप में दी जाने वाली हो सकती हैं
5. एंटी-फंगल इंजेक्शन आठ हफ्तों तक हर रोज़ देना होता है जिसकी एक डोज़ की कीमत 3500 रुपये है।
6. कई गंभीर केसों में मरीज की सर्जरी भी करने की नौबत आ जाती है।
7. सर्जरी से पहले शरीर में जल की समुचित मात्रा बनाए रखने के लिये एम्फोटेरिसिन बी देने से पहले चार-छह हफ्ते आइवी के माध्यम से सेलाइन वाटर चढ़ाना होता है।
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8. सर्जरी प्रक्रिया में म्यूकरमायकोसिस से संक्रमित ऊतकों को त्वचा से हटाना होता है ताकि संक्रमण आगे ना फैल पाये।
9. एक्सपर्ट्स के अनुसार म्यूकरमायकोसिस के इलाज में एक स्पेशल टीम को काम करना होता है जिसमें मेडिसिन एक्सपर्ट, न्युरॉलजिस्ट, आंख (Eye specialist) के डॉक्टर, कान नाक गला (ENT specialist), डेंटिस्ट और कई तरह के सर्जन शामिल होते हैं। किसी केस में मरीज को बचाने के लिए आंख भी निकालनी पड़ जाती है जैसा कि आंखों के सर्जन, डॉ। अक्षय नायर, मुम्बई, ने बताया कि उनको ईएनटी डॉक्टर का काम पूरा होने के बाद एक 25 वर्षीय महिला की आंख निकालने के लिए तीन घंटे की सर्जरी करनी पड़ी।
10. कई मामलों में संक्रमण से जबड़ा और आंख भी चली जाती है। तब डॉक्टर्स ये फिर से चेहरे की गुम हुई ये चीजें फिर से बना देते हैं।
11. चूंकि मरीज पहले से ही बहुत डरा हुआ होता है क्योंकि वह कोविड की त्रासदी को झेल चुका होता है इसलिये डॉक्टर्स को यह भी देखना होता है कि कहीं मरीज दिमागी ट्रॉमा का शिकार न हो जाये।
एड्वाइजरी – Advisory
आईसीएमआर Indian Council of Medical Research ने एडवाइजरी जारी करते हुए कहा है कि इससे बचने के लिये धूल भरी जगह पर जाते समय मास्क अवश्य लगायें। ऐसे कपड़े पहने जिनसे शरीर पूरी तरह ढक जाये। चप्पल की बजाय जूते पहनें। यदि मिट्टी या खाद का काम करना है तो हाथों में ग्लव्स पहने। और जब नहाए तो शरीर को अच्छी तरह रगड़-रगड़ कर नहाएं जिससे कि कोई भी फंगस कण चिपका ना रह जाये। ये तुरंत हट जाए। निजी साफ-सफाई का ध्यान रखें।
ब्लैक फंगस से बचने के उपाय – How to Protect Black Fungus
दोस्तो, यदि निम्नलिखित कुछ सावधानियां बरती जाएं तो ब्लैक फंगस के संक्रमण से बचा जा सकता है –
1. यदि आपको ब्लैक फंगस के लक्षण महसूस हो रहे हैं तो तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें ताकि समय रहते एंटीफंगल दवाओं से इसका उपचार किया जा सके। अपने आप, अपनी इच्छा से कोई दवाई ना लें।
2. डायबेटोलॉजिस्ट डॉ. राहुल बक्शी, मुंबई का कहना है कि म्यूकरमायकोसिस से बचाव के लिये जरूरी है कि कोविड-19 का इलाज करा रहे या जो लोग ठीक हो चुके हैं उनको स्टेरॉइड्स की उचित मात्रा सही समय अवधि के लिए दी जानी चाहिए।
3. यदि डॉक्टर ने आपको स्टेरॉयड लेने की सलाह दी है तो यह जरूरी हो जाता है कि आप इसे सही समय पर लें। इसके साथ ही आपको इसकी सही मात्रा और इसे लेने की अवधि का भी विशेष ध्यान रखना होगा। जरा सी चूक बड़ी समस्या बन सकती है।
4. यदि आप डायबिटीज हैं तो यह बेहद जरूरी है की आप अपने ब्लड शुगर को कंट्रोल में रखें। क्योंकि ब्लैक फंगस का खतरा डायबिटीज के मरीजों पर अधिक होने की संभावना रहती है।
5. यदि आप डायबिटिक हैं और कोविड-19 से भी अभी ठीक हुए हैं तो आपको और सावधान रहना होगा। आप अपने शुगर लेवल पर नजर रखिये और नियमित रूप से शुगर की जांच करते रहिये।
6. ऑक्सीजन की थेरेपी के समय आपको एकदम स्वच्छ पानी का इस्तेमाल करना जरूरी है।
7. एंटीबायोटिक्स और एंटीफंगल के इस्तेमाल के समय भी आपको महत्वपूर्ण सावधानियां बरतना जरूरी है।
8. धूल, मिट्टी वाले वातावरण, जगह पर जाने से बचें।
9. यदि आपको धूल, मिट्टी वाले वातावरण, जगह पर जाना पड़ता है जैसे बिल्डिंग कॉन्सट्रक्शन साइट पर तो पूरी बाजू की शर्ट और फुल पैंट, जूते, हाथों में ग्लव्स आदि पहने होना चाहिए। टी-शर्ट, हाफ पैंट ना पहने। और सबसे बड़ी बात मास्क अवश्य लगायें।
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10. खेत खलिहान, बाग, बगीचे में काम करने के लिए भी जाना है तो भी मास्क अवश्य लगाकर जायें। पूरी बाजू की शर्ट और फुल पैंट/पायजामा, जूते, हाथों में ग्लव्स आदि पहने होना चाहिए। कहने का तात्पर्य यह है कि आपका शरीर पूरी तरह कवर होना चाहिए। ताकि मिट्टी,खाद, पानी, पौधे आदि छूते हुए यह खतरनाक संक्रमण शरीर में ना जाने पाये।
11. वापिस घर आ कर सबसे पहले मास्क, ग्लव्स को सैनिटाइज करके डस्टबिन में फेंक दें, अपने जूते भी सैनिटाइज करें। कपड़े उतारकर, बाल्टी/वाशिंग मशीन में डिटर्जेंट मिलाकर, डाल दें।
12. नहाने के लिये, पानी में डेटॉल लिक्विड, एक ढक्कन भरकर डाल दें। फिर साबुन से अच्छी तरह शरीर को रगड़कर नहायें। नहाने के बाद, अंडरवियर और बनियान साबुन से धो दें क्योंकि यह आपकी निजी स्वच्छता का हिस्सा हो।
Conclusion
दोस्तो, आज के लेख में हमने आपको ब्लैक फंगस यानी म्यूकरमायकोसिस (Mucormycosis) के विषय में विस्तृत जानकारी दी। ब्लैक फंगस क्या होता है?, यह किन लोगों को हो सकता है, इसके होने से किन अंगों पर प्रभाव पड़ता है। इसके क्या लक्षण होते हैं, ब्लैक फंगस के क्या कारण होते हैं, इस बारे में भी विस्तारपूर्वक बताया। इस लेख के माध्यम से यह जानकारी भी दी कि इस रोग की डॉक्टरी चिकित्सा क्या होती है और क्या जटिलताएं आती हैं। दोस्तो, देसी हेल्थ क्लब ने आईसीएमआर द्वारा जारी की गई एडवाइजरी भी बताई तो ब्लैक फंगस से बचाव के कुछ उपाय भी बताये। आशा है आपको ये लेख अवश्य पसन्द आयेगा। आप इस पोस्ट को अपने दोस्तों और सगे – सम्बन्धियों के साथ भी शेयर करें। ताकि सभी इसका लाभ उठा सकें। दोस्तो, हमारा आज का यह लेख आपको कैसा लगा, इस बारे में कृपया अपनी टिप्पणियां (Comments), सुझाव, राय अवश्य भेजिये ताकि हमारा मनोबल बढ़ सके। और हम आपके लिए ऐसे ही Health- Related Topic लाते रहें। धन्यवाद।
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