स्वागत है आपका हमारे ब्लॉग में। दोस्तो, आपने कुछ बुजुर्ग लोगों को देखा होगा जो गलियों में भटकते रहते हैं और बताते हैं कि वे अपने घर का रास्ता भूल गए हैं और पूछने पर यह भी नहीं बता पाते कि वे रहते कहां है और अपनी पत्नी और बच्चों के नाम भी नहीं बता पाते। दूसरे की बात को ना समझ पाना और ना ही अपनी बात किसी को समझा पाना आदि। यह बड़ी विकट स्थिति होती है।
चश्मा रख कर भूल जाना यह बहुत आम घटना होती है, या आप ही बड़बड़ाते रहना या कभी प्रलाप करना, रोना आदि ये सब लक्षण हैं डिमेंशिया के। डिमेंशिया जोकि मस्तिष्क से संबंधित सिंड्रोम है ना कि कोई बीमारी, फिर भी यह गंभीर स्थिति होती है। अक्सर डिमेंशिया सिंड्रोम शिकार बनाता है 65 वर्ष से अधिक आयु वाले बुजुर्गों को जिसका मुख्य लक्षण स्मृति का लोप हो जाना अथवा क्षति हो जाना है। आखिर यह डिमेंशिया क्या है। दोस्तो, यही है हमारा आज का टॉपिक “डिमेंशिया क्या है?”।
देसी हैल्थ क्लब इस आर्टिकल के माध्यम से आपको डिमेंशिया के बारे में विस्तार से जानकारी देगा और यह भी बताएगा कि इसका उपचार क्या है। तो, सबसे पहले जानते हैं कि डिमेंशिया क्या है और इसके प्रकार। फिर, इसके बाद बाकी बिंदुओं पर जानकारी देंगे।
डिमेंशिया क्या है? – What is Dementia
दोस्तो, सबसे पहले हम स्पष्ट कर दें कि डिमेंशिया कोई बीमारी का नाम नहीं है बल्कि मस्तिष्क से संबंधित एक सिंड्रोम है अर्थात् अनेक लक्षणों का मिश्रण। “डिमेंशिया” शब्द लक्षणों के समूह को संदर्भित करता है जिसमें स्मरण शक्ति, सोच-विचार, तार्किक क्षमता और सामाजिक क्षमताएं प्रभावित होते हैं।
यह सिंड्रोम उत्पन्न होता है सेरेब्रल कॉर्टेक्स (मस्तिष्क का एक भाग) में गड़बड़ी की वजह से। इस सिंड्रोम में मस्तिष्क की तंत्रिका कोशिकाओं को क्षति पहुंचती है। इसमें स्मृति की क्षति, बोलचाल, संवाद, भाषा समझने में परेशानी होना, सोच विचार में क्षीणता आदि प्रमुख लक्षण प्रकट होते हैं।
65 वर्ष से अधिक आयु के लोगों में डिमेंशिया के लक्षण देखे जाते हैं। यह पुरुष और महिलाओं में लगभग समान रूप हो सकता है। यदि आंकड़ों की बात की जाए तो 65 से 74 वर्ष की आयु के लोगों में 3 प्रतिशत, 75 से 84 वर्ष की आयु के बीच 19 प्रतिशत तथा 85 वर्ष से अधिक की आयु के लगभग आधी आबादी डिमेंशिया के लक्षण देखे जा सकते हैं।
डिमेंशिया के प्रकार – Types of Dementia
डिमेंशिया कई प्रकार का होता है। इनका विवरण निम्नलिखित है –
1. अल्जाइमर (Alzheimer’s)- यह डिमेंशिया का सबसे आम प्रकार है। इसमें अल्जाइमर के विकास की गति धीमी होती है। मस्तिष्क में कुछ प्रोटीन का उत्पादन होता है जो तंत्रिका को क्षति पहुंचाता है। इससे मस्तिष्क में बदलाव आता है। इस रोग से पीड़ित व्यक्ति 4 से 8 वर्ष तक जीवित रहता है। कुछ लोग 20 वर्ष तक भी जीवित रहते हैं। डिमेंशिया में 60 से 80 प्रतिशत मामले अल्जाइमर के होते हैं।
2. वैस्कुलर डिमेंशिया (Vascular Dementia)- इसके मामले बहुत कम होते हैं, लगभग 10 प्रतिशत। यह रक्त वाहिकाओं में रुकावट, स्ट्रोक अथवा मस्तिष्क में चोट लग जाने की वजह से यह डिमेंशिया बनता है। इसे पोस्ट स्ट्रोक या मल्टी-इन्फर्क्ट भी कहते हैं।
3. लेवी बॉडी डिमेंशिया (Lewy Body Dementia)– यह कोर्टेक्स में प्रोटीन जमा हो जाने की वजह से होता है। इसमें स्मरण शक्ति में कमी, अनिद्रा, भ्रांति जैसे लक्षण प्रकट होते हैं।
4. पार्किंसंस (Parkinson’s)- यह एक ऐसी स्थिति है जिसमें तंत्रिका तंत्र की हानि हो जाती है और इसके बाद के चरणों में लक्षण अल्जाइमर की भांति हो जाते हैं। इसमें ड्राइविंग करने तथा अन्य शारीरिक गतिवधियों में दिक्कत होती है। पार्किंसंस को न्यूरोडीजेनेरेटिव स्टेज कहा जाता है।
5. फ्रंटोटेमपोरल डिमेंशिया (Frontotemporal Dementia)- यह पिक रोग (Pick’s Disease), विकासशील सुपरन्यूक्लियर पाल्सी तथा अन्य परिस्थितियों की वजह से फ्रंटोटेमपोरल डिमेंशिया होता है। वस्तुतः यह एक समूह को संदर्भित करता है जो व्यक्तित्व और व्यवहार में बदलाव को व्यक्त करता है। इसमें बोलने और समझने में दिक्कत होती है।
6. मिश्रित डिमेंशिया (Mixed Dementia)- यह अन्य प्रकार के डिमेंशिया का मिला जुला रूप है। अक्सर इसमें अल्जाइमर और वैस्कुलर डिमेंशिया अधिक शामिल होते हैं। यह मिश्रित डिमेंशिया मस्तिष्क में असामान्यताएं उत्पन्न करता है।
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डिमेंशिया के कारण – Cause of Dementia
दोस्तो, डिमेंशिया का मुख्य कारण है सेरेब्रल कॉर्टेक्स (Cerebral Cortex) में समस्या उत्पन्न हो जाना। यह समस्या मस्तिष्क कोशिकाएं नष्ट हो जाने की होती है। यहां हम बता दें कि मस्तिष्क के कई भाग होते हैं जो अपना-अपना काम करते हैं। सेरेब्रल कॉर्टेक्स भी मस्तिष्क का एक भाग है। जब इसकी कोशिकाएं क्षतिग्रस्त होने लगती हैं तो डिमेंशिया के लक्षण उत्पन्न होने लगते हैं जिनमें संज्ञानात्मक दोष (cognitive impairment) भी है।
डिमेंशिया के जोखिम कारक – Risk Factors for Dementia
निम्नलिखित कारक डिमेंशिया के विकास को ट्रिगर कर सकते हैं –
1. अल्जाइमर और वैस्कुलर डिमेंशिया (Alzheimer’s and Vascular Dementia)– इनका विवरण हम ऊपर दे चुके हैं। आमतौर पर ये डिमेंशिया के विकास में सहायक होते हैं।
2. बढ़ती उम्र (Growing Old)- उम्र बढ़ने के साथ-साथ कई बीमारियां होना आम बात है जैसे कि हाई ब्लड प्रेशर, डाइबिटीज, नजर कमजोर हो जाना, हृदय रोग आदि। इसी प्रकार छोटी-बड़ी बातें भूल जाना, याद रखने की क्षमता क्षीण हो जाना आदि भी स्वाभाविक है। यहीं से डिमेंशिया की शुरुआत हो सकती है।
3. लिंग (Gender)- पुरुष हो या महिला, डिमेंशिया होने की संभावना बराबर होती है।
4. जेनेटिक्स (Genetics)- डिमेंशिया का आधार जेनेटिक फैक्टर भी हो सकता है। अलबत्ता इस बारे में काफी जानकारी मिल चुकी है मगर बहुत कुछ जानना बाकी है।
5. जातीयता (Casteism)- कुछ विशेष जातीय/विशेष समुदाय भी अन्य की तुलना में डिमेंशिया के अधिक शिकार होते हैं जैसे कि दक्षिण एशिया के निवासी।
6. लाइफस्टाइल (lifestyle)- खराब लाइफस्टाइल भी डिमेंशिया को ट्रिगर करती है जैसे कि शारीरिक गतिविधियां व्यायाम आदि ना करना या नहीं के बराबर शारीरिक गतिविधियां करना, बहुत ज्यादा शराब पीना, धूम्रपान करना, ड्रग्स लेना, बहुत ज्यादा जंक फूड खाना आदि।
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डिमेंशिया के लक्षण – Symptoms of Dementia
यद्यपि डिमेंशिया के लक्षण इसके कारणोँ पर निर्भर करते हैं परन्तु इसके निम्नलिखित स्पष्ट लक्षण प्रकट होते हैं –
- स्मरण शक्ति क्षींण हो जाना
- भ्रम की स्थिति बने रहना
- बातचीत करने में दिक्कत होना
- सही शब्दों को ढूंडने और उपयोग करने में कठिनाई
- डिप्रेशन
- चिंता
- उचित व्यवहार ना करना
- प्रलाप, आप ही आप रोना
- बुरे सपने आना
- घबराहट
- व्यवहार में बदलाव
- समन्वय, योजना के कार्यों और निर्णय लेने में असमर्थ होना।
- जटिल कार्य ना कर पाना।
- सिर में चोट लगना
- मेडिकल स्थिति जैसे कि ब्रेन ट्यूमर, एचआईवी, एड्स, मस्तिष्क में द्रव भर जाना, मेनिनजाइटिस, हार्मोन विकार, लिवर या किडनी रोग आदि।
डिमेंशिया के प्रभाव – Effects of Dementia
अब बताते हैं आपको कि जीवन पर डिमेंशिया के क्या-क्या प्रभाव पड़ते हैं। विवरण निम्न प्रकार है –
- सबसे बड़ा प्रभाव तो यही है कि प्रभावित व्यक्ति, अन्य व्यक्तियों की तुलना में सामान्य जीवन नहीं जी पाता।
- भूलना। यहां तक कि अपने घर का रास्ता भी भूल जाना।
- मल-मूत्र पर कंट्रोल ना कर पाना।
- खाने पीने की वस्तुओं को निगलने में दिक्कत होना।
- वार्तालाप में दिक्कत होना, भाषा और शब्दों के चयन में, उच्चारण में दिक्कत महसूस करना।
- सामाजिक क्रिया, कार्य कलापों में असमर्थ पाना। सामाजिक परिवेश में समन्वय की कमी।
- बार-बार संक्रमण का शिकार होना।
- रात में जागने की आदत।
- पढ़ने-लिखने में परेशानी।
- सरल काम करने में भी दिक्कत महसूस करना।
- कठिन काम करने में बहुत दिक्कत महसूस होना, अधिक समय लगना।
- जल्दी से हिंसक हो जाना, बहस करना, अभद्र भाषा का प्रयोग करना।
- एक समय में एक से अधिक काम ना कर पाना।
- दूसरों की देखभाल पर निर्भर रहना।
- अल्प जीवनकाल।
डिमेंशिया का निदान – Diagnosis of Dementia
डिमेंशिया के निदान के लिए निम्नलिखित टेस्ट किए जा सकते हैं –
1. संज्ञानात्मक डिमेंशिया परीक्षण (Cognitive Dementia Test)- इस परीक्षण के अंतर्गत निम्नलिखित टेस्ट किये जाते हैं –
(i) मानसिक परीक्षण स्कोर (Mental Test Scores)- इसमें प्रभावित व्यक्ति से सामान्य प्रश्न पूछे जाते हैं जैसे कि आपकी जन्म तिथि क्या है, अब कौन सा सन् है इत्यादि। सही/गलत उत्तरों के आधार पर संज्ञानात्मक हानि का पता लगाया जाता है।
(ii) जनरल प्रैक्टिशनर असेसमेंट ऑफ कॉग्निशन (General Practitioner Assessment of Cognition)- इसके अंतर्गत प्रभावित व्यक्ति के परिवार वालों और रिश्तेदारों से प्रभावित व्यक्ति के संबंध में प्रश्न पूछे जाते हैं कि प्रभावित व्यक्ति को किस प्रकार की दिक्कतें आती हैं, क्या उसे हर समय देखभाल की जरूरत है।
2. कुछ ब्लड टेस्ट किए जा सकते हैं।
3. इमेजिंग टेस्ट (Imaging Test)- इसके अंतर्गत प्रभावित व्यक्ति के एमआरआई, सीटी स्केन टेस्ट किये जा सकते हैं।
4. मिनी मानसिक स्थिति परीक्षा (Mini Mental Status Exam)- इस टेस्ट के जरिए प्रभावित व्यक्ति के बारे में बहुत कुछ जानने की कोशिश की जाती है जैसे कि भाषा और बातचीत करने का कौशल, प्लानिंग करने की क्षमता, निर्देशों को समझने की क्षमता, ध्यान केंद्रित रखना और उसकी सीमा आदि।
डिमेंशिया का उपचार – Dementia Treatment
डिमेंशिया का उपचार इसके कारणों और लक्षणों पर निर्भर होता है। कारणों के आधार पर दवाएं कभी पूरी तरह काम कर जाती हैं तो कभी लक्षणों को कुछ कम कर देती हैं और कुछ कारणों का इलाज नहीं हो पाता जैसे कि अल्जाइमर। उपचार की विधि निम्न प्रकार है –
1.डेडपेज़िल, रिवास्टिग्माइन, गैलेंटामाइन, मेमेंटाइन जैसी दवाएं और एंटीडिप्रेसेंट दवाएं दी जा सकती हैं।
2. थेरेपी – थेरेपी के जरिए भी डिमेंशिया के लक्षणों को कम किया जा सकता है। इसमें संगीत थेरेपी, बिहेवरियल थेरेपी, अरोमा थेरेपी, मसाज थेरेपी, आर्ट थेरेपी, पेट (pet) थेरेपी आदि सम्मलित हैं।
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डिमेंशिया में खानपान – Diet in Dementia
डिमेंशिया से प्रभावित व्यक्ति को इसके लक्षणों को कंट्रोल करने के लिए निम्नलिखित को अपने आहार में शामिल करना चाहिए –
1. ओमेगा 3 एस (Omega 3s)– इसके मुख्य स्रोत हैं मछली, जैतून का तेल और अलसी के बीज, कद्दू के बीज, सूरजमुखी के बीज, दालचीनी, हल्दी, जीरा, काजू, बादाम, अखरोट, मूंगफली।
2. सब्जियां (Vegetables)- पालक, पत्ता गोभी, सरसों का साग, फूलगोभी ब्रोकली, सीताफल, ब्रसल स्प्राउट्स, टमाटर, गाजर, चुकंदर, शतावरी।
3. फल (Fruit)- जामुन और चैरी।
डिमेंशिया में क्या नहीं खाना चाहिए – What not to Eat in Dementia
डिमेंशिया में निम्नलिखित का परहेज करना चाहिए –
- धूम्रपान
- शराब
- ड्रग्स
- तले हुए खाद्य पदार्थ
- प्रोसेस्ड मांस
- डिब्बा बंद और बाहर का भोजन
- मोनो-सोडियम ग्लूटामेट युक्त खाद्य पदार्थ।
Conclusion –
दोस्तो, आज के आर्टिकल में हमने आपको डिमेंशिया के बारे में विस्तार से जानकारी दी। डिमेंशिया क्या है?, डिमेंशिया के प्रकार, डिमेंशिया के कारण, डिमेंशिया के जोखिम कारक, डिमेंशिया के लक्षण, डिमेंशिया के प्रभाव, डिमेंशिया का निदान, डिमेंशिया का उपचार और डिमेंशिया में खानपान, इन सब के बारे में भी विस्तार पूर्वक बताया। देसी हैल्थ क्लब ने इस आर्टिकल के माध्यम से डिमेंशिया में क्या नहीं खाना चाहिए यह भी बताया। आशा है आपको ये आर्टिकल अवश्य पसन्द आयेगा।
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