स्वागत है आपका हमारे ब्लॉग में। दोस्तो, योगा चिकित्सा पद्धति से अनेक रोगों का उपचार किया जाता है। हम यह नहीं कहते कि सभी रोगों का उपचार इस चिकित्सा पद्धति में किया जाता है लेकिन इतना तय है कि अधिकांश बीमारियों का इलाज इससे किया जा सकता है यहां तक कि हृदय रोगों का इलाज भी योगा चिकित्सा पद्धति में संभव है। जहां तक सर्जरी की बात है तो सर्जरी के मामलों में सर्जरी ही काम आती है इसका कोई विकल्प नहीं। यदि हृदय स्वास्थ्य की बात की जाए तो योगासन, ध्यान और प्राणायाम द्वारा हृदय को स्वस्थ रखा जा सकता है। योगासन के द्वारा उच्च रक्तचाप, डाइबिटीज और कोलेस्ट्रॉल जैसे हृदय को अस्वस्थ करने वाले कारकों को भी कंट्रोल किया जा सकता है ताकि हृदय स्वास्थ्य को सही रखा जा सके और भविष्य में होने वाले हृदय रोगों की संभावना को खत्म किया जा सके। दोस्तो, यही है हमारा आज का टॉपिक “हृदय स्वास्थ्य के लिए योगासन”।
देसी हैल्थ क्लब इस आर्टिकल के माध्यम से आपको हृदय के बारे में विस्तार से जानकारी देगा और यह भी बताएगा कि हृदय को स्वस्थ रखने के लिये कौन-कौन से योगासन करने चाहिएं। तो, सबसे पहले जानते हैं कि हृदय क्या है और हृदय के कार्य क्या हैं। फिर इसके बाद बाकी बिंदुओं पर जानकारी देंगे।
हृदय क्या है? – What is Heart
दोस्तो, हम पिछले आर्टिकल में हृदय के बारे में बताते रहे हैं। इस आर्टिकल में फिर से हम इसे दोहराते हैं कि हृदय क्या है। वस्तुतः हृदय, शरीर के अंदर का सबसे महत्वपूर्ण अंग है, इसके बिना मनुष्य जीवित नहीं रह सकता। हृदय मांसपेशियों से बना हुआ होता है और इसका आकृति शंख की तरह होती है।
इसके चार कक्ष (Chambers) और चार वाल्व होते हैं। ऊपर के दोनों कक्ष को एट्रिआ (Atria) तथा नीचे के दोनों कक्ष को वेंट्रिकल (Ventricle) कहते हैं। इनके बीच एक मोटी दीवार को सेप्टम (Septum) कहा जाता है। हृदय के दांये हिस्से में दांया एट्रिआ और दांया वेंट्रिकल और बाएं हिस्से में बांया एट्रिआ और बांया वेंट्रिकल उपस्थित होते हैं।
बाईं ओर के हृदय में माइट्रल वाल्व (mitral valve) और दाईं ओर के हृदय में ट्राइकसपिड वाल्व (tricuspid valve होते हैं इनको एट्रियोवेंट्रिकुलर वाल्व (atrioventricular valve) कहते हैं और महाधमनी (aorta) में महाधमनी वाल्व (aortic valve), और फुफ्फुसीय धमनी (pulmonary artery) में फुफ्फुसीय वाल्व (pulmonary valve) लगे होते हैं। ये सेमिलुनर वाल्व (semilunar valves) के नाम से जाने जाते हैं। महिलाओं में हृदय का वजन लगभग 250 से 300 ग्राम तथा पुरुर्षों में लगभग 300 से 350 ग्राम होता है। हृदय एक मिनट में लगभग 72 से 80 बार धड़कता है और एक मिनट में लगभग 70 मि,ली. रक्त पंप करता है।
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हृदय के कार्य – Functions of the Heart
हृदय के कार्य निम्न प्रकार हैं –
1. हृदय का प्रमुख कार्य ऑक्सीजन युक्त तथा पोषक तत्वों से भरपूर रक्त को पूरे शरीर के लिए और ऊतकों के लिए रक्त पंप करके धमनियों के द्वारा पहुंचाना है।
2. ऑक्सीजन रहित रक्त को ग्रहण करना तथा शरीर से चयापचय अपशिष्ट उत्पादों (metabolic waste products) को ले जाना और उन्हें फेफड़ों में ऑक्सीजन के लिए पंप करना।
3. शरीर के विभिन्न अंगों में हार्मोन व अन्य महत्वपूर्ण पदार्थों को पंप करना।
4. शरीर में रक्तचाप बनाए रखना।
हृदय स्वास्थ्य के खराब होने के कारण – Reasons for Poor Heart Health
हृदय स्वास्थ्य पर खराब होने के निम्नलिखित कारण होते हैं।
- तनाव, डिप्रेशन, चिंता।
- डाइबिटीज
- हाई ब्लड प्रेशर
- बढ़ता हुआ खराब कोलेस्ट्राल (LDL)
- वसा युक्त आहार
- फास्ट फूड
- नमक तथा चीनी का अधिक सेवन
- शराब का अधिक सेवन
- धूम्रपान। तम्बाकू का किसी भी रूप में सेवन
- ड्रग्स व नशीले पदार्थों का उपयोग।
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हृदय रोगियों के लिये वर्जित योगासन? – Yogasana Prohibited for Heart Patients
दोस्तो, जो लोग हृदय से संबंधित किसी ना किसी रोग से पीड़ित हैं, उन लोगों को निम्नलिखित योगासन करने की सलाह नहीं दी जाती। इसकी वजह यह है कि इन योगासन में हाथ और पैरों को रक्त पहुंचाने के लिये हृदय को गुरुत्वाकर्षण के विरुद्ध रक्त पंप करना पड़ता है। इसके फलस्वरूप हृदय पर बहुत अधिक दबाव पड़ता है तथा हृदय को रक्त पंप करने के लिए बहुत अधिक मेहनत करनी पड़ती है –
1. चक्रासन (Chakrasana)- यह एक ऐसा योगासन है जिसमें एक संतुलित श्वास और बहुत शक्ति की आवश्यकता होती है। इससे हृदय पर बहुत ज्यादा दबाव पड़ता है और वह बहुत तेजी से रक्त पंप करता है। यह हार्ट अटैक के खतरे को जन्म दे सकता है।
2. विपरीत करणी आसन (Viparita Karni Asana)- इसे करने के लिये पीठ के बल लेटकर हाथों द्वारा पैरों और कूल्हों को ऊपर उठाना होता है। परिणाम स्वरूप शरीर के निचले हिस्से में रक्त आपूर्ति के लिए हृदय पर बहुत अधिक दबाव पड़ता है तथा रक्तचाप भी तेजी से बढ़ता है। यह भी हार्ट अटैक के जोखिम को बढ़ा सकता है।
3. शीर्षासन (Headstand)- हृदय रोगियों को शीर्षासन तो बिल्कुल भी नहीं करना चाहिए क्योंकि इसे करते समय सिर नीचे और पैर ऊपर हो जाते हैं। परिणाम स्वरूप पूरे शरीर को रक्त सप्लाई करने के लिए हृदय को पूरी तरह गुरुत्वाकर्षण के विरुद्ध रक्त पंप करना पड़ता है और सबसे अधिक दबाव में आ जाता है। इससे छाती में दर्द उठ सकता है या कोई अन्य समस्या हो सकती है।
4. हलासन (Halasana)- इस योगासन में शरीर की आकृति बैल द्वारा खेत में हल चलाने जैसी आकृति बनती है। इस योगासन में शरीर के निचले भाग में रक्त संचार होता है जिसके लिये हृदय को गुरुत्वाकर्षण के विरुद्ध रक्त तेज गति से पंप करना पड़ता है। इससे रक्तचाप एकदम से बढ़ता है जो हृदय रोगियों के लिए ठीक नहीं है।
5. सर्वांगासन (Sarvangasana)- इस योगासन में पीठ के बल लेटकर कंधों के बल शरीर को ऊपर उठाना होता है। इसमें भी शीर्षासन के समान लगभग पूरे शरीर के लिये गुरुत्वाकर्षण के विरुद्ध हृदय को रक्त पंप करना पड़ता है। जिससे हृदय पर बहुत अधिक दबाव पड़ता है और रक्तचाप भी बढ़ जाता है। यह स्थिति हृदय रोगियों के लिये जोखिम भरी हो सकती है।
6. कर्णपीड़ासन (Karnapidasana)- यह योगासन कुछ-कुछ हलासन की तरह है परन्तु इसमें अधिक एनर्जी की आवश्यकता होती है। इस आसन में पीठ के बल लेटकर हिप्स वाले हिस्से को ऊपर उठाना पड़ता है और पैरों को कानों पास घुटनों के बल लाना होता है। इसके करने में हृदय पर अत्याधिक दबाव पड़ता है।
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हृदय स्वास्थ्य के लिए योगासन – Yoga for Heart Health
और अब बताते हैं आपको कुछ निम्नलिखित योगासन जिनके करने से हृदय स्वस्थ रहता है –
1. बद्धकोणासन (Baddhakonasana)- यह बैठकर किये जाने वाला योगासन है। यह रक्त संचार में सुधार करता है जिससे रक्त के थक्के नहीं बनते। इससे ब्लड प्रेशर/हाइपरटेंशन जैसी स्थितियों में सुधार आता है। कूल्हे, पेट की मसल्स और जांघों को स्ट्रेच भी करता है। यह हृदय को स्वस्थ रखता है।
बद्धकोणासन करने की विधि –
- सबसे पहले मैट बिछाकर पैरों को सामने सीधा फैला कर बैठ जाएं।
- सांस छोड़ते हुए घुटनों को मोड़कर दोनों एड़ियों को अपने पेट के नीचे की तरफ लाएं।
- दोनों एड़ियां एक-दूसरे को छूती रहें। अब घुटनों को बाहर की और नीचे ले जाएं।
- जितना हो सके दोनों एड़ियों को पेट के नीचे और नजदीक लाएं।
- अपने हाथों के अंगूठे और पहली अंगुली से दोनों पैर के अंगूठे को पकड़ें और सुनिश्चित करें कि पैर का बाहरी भाग मैट को छूता रहे। इस पोजिशन में 1 से 5 मिनट रहने का प्रयास करें।
- सांस भरते हुए अपने घुटनों को ऊपर उठाएं तथा पैरों को पहले की स्थिति में वापस लाएं।
2. सेतुबंधासन (Setubandhasana)- सेतुबंधासन मन और शरीर के बीच पुल का काम करता है। यह तनाव और उच्च रक्तचाप रूपी ट्रैफिक को सरलता से गुजार देता है। इसके करने से तनाव खत्म होता है और उच्च रक्तचाप कम होने लगता है। ये दोनों ही हृदय के लिए घातक होते हैं। साथ ही इससे रक्त संचार भी सुधरता है।
सेतुबंधासन करने की विधि
- मैट बिछाकर पीठ के बल लेट जाएं। बाजुओं को मैट पर सीधे रखें। हथेलियां नीचे की ओर।
- दोनों घुटनों को मोड़ें, हिप्स के पास लाएं। अब जितना हो सके हिप्स को ऊपर उठाएं। छाती और पेट भी ऊपर उठे रहें। सांस रोक कर रखें। कुछ सेकेन्ड इसी अवस्था में रहें।
- अब सांस छोड़ते हुए वापस पहली अवस्था में आ जाएं पैरों को सीधा रख कर आराम करें।
- 10-15 सेकेंड बाद फिर से यह प्रक्रिया करें।
3. गोमुखासन (Gomukhasana)- गोमुखासन करने से फेफड़ों की सफाई होती है, इसकी कार्य प्रणाली में सुधार होता है। इसके अतिरिक्त, मांसपेशियों को आराम मिलता है, तनाव दूर होता है हृदय भी स्वस्थ होता है।
गोमुखासन करने की विधि –
- मैट बिछाकर आलथी-पालथी (टांगें क्रॉस करती हुई) मार कर बैठ जाएं।
- अब दाएं हाथ को कंधे के ऊपर ले जाकर कोहनी से मोड़ कर जितना अधिक हो अपनी पीठ के पीछे ले जाएं।
- अब बाएं हाथ को भी कोहनी से मोड़ कर पीछे ले जाएं।
- अब एक हाथ से दूसरे हाथ को पकड़ें और कुछ सेकेन्ड इसी अवस्था में रहें।
- फिर वापिस अपनी सामान्य अवस्था में आ जाएं और थोड़ी देर आराम करके दुबारा से करें।
4. भुजंगासन (Bhujangasana)- भुजंगासन, सूर्य नमस्कार के 12 आसनों में से 7वां योगासन है। इसमें शरीर की आकृति फन उठाए सांप के समान बन जाती है। इसीलिए इसको कोब्रा पोज (Cobra Pose) भी कहा जाता है। इस योगासन के करने से तनाव और डिप्रेशन की स्थिति में सुधार होता है, ये हृदय स्वास्थ्य को खराब करने वाले कारक हैं। इससे रक्त संचार में भी सुधार होता है, कुल मिलाकर इसके करने से हृदय ठीक रहता है। रीढ़ की हड्डी मजबूत होती है, इसमें लचीलापन आता है। कमर दर्द दूर होता है और पाचन तंत्र में सुधार होता है।
भुजंगासन करने की विधि –
- जमीन पर मैट बिछाकर पेट के बल लेट जाएं। बाजू आप आगे भी रख सकते हैं या शरीर के समानान्तर भी। पैरों के बीच का फासला कम करें, दोनों टखने एक दूसरे को छूते हुए रहें।
- अब हाथों को सीने पास लाएं, हथेलियां जमीन की तरफ।
- हथेलियों पर दबाव डालते हुऐ, सांस भरते हुए अपनी छाती को जितना हो सके ऊपर उठाएं, पेट भी ऊपर उठा हुआ रहे और सिर पीछे की ओर। शरीर का सारा दबाव हथेलियों पर रहे।
- हिप्स, जांघों और पैरों से जमीन पर दबाव बढ़ाएं। इस पोजीशन में 10-15 सेकेन्ड तक रहें।
- धीरे-धीरे सांस छोड़ते हुए वापिस अपनी सामान्य अवस्था में आएं और कुछ सेकेन्ड का विश्राम कर दुबारा शुरू करें। इसे चार-पांच बार कर सकते हैं।
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5. ताड़ासन (Tadasana)- ताड़ासन करने से हाई ब्लड प्रेशर में सुधार आता है। हाई ब्लड प्रेशर हृदय के लिये घातक है इससे हार्ट अटैक की संभावना रहती है। इसके करने से हृदय गति में सुधार होता है तथा हृदय स्वस्थ रहता है। इसके अतिरिक्त इसके करने से कमर में दर्द, मांसपेशियों में अकड़न व दर्द, पैरों और घुटनों के दर्द में आराम मिलता है।
ताड़ासन करने की विधि :-
- मैट बिछाकर सीधे खड़े हो जाएं। पैरों की एड़ियों को मिला लें।
- अब दोनों बाजुओं को ऊपर ले जाकर दोनों हाथों की उंगलियों को आपस में फंसा लें।
- सांस भरते हुए पैर के पंजों पर दबाव डालते हुऐ शरीर को ऊपर की ओर खींचें। बाजू कान से सटी रहें। अपने को इस पोजीशन में रखते हुए सामान्य रूप से सांस लेते रहें और 10 सेकेन्ड तक इसी तरह रहें।
- सांस छोड़ते हुए वापिस अपनी सामान्य अवस्था में आ जाएं।
6. वृक्षासन (Vrikshasana)- वृक्षासन शरीर का संतुलन बनाए रखने के लिए किया जाता है इसके करने छाती, जांघें, कंधों और ग्रोइन एरिया पर खिंचाव पड़ता है, पिंडलियां, पसलियां तथा रीढ़ की हड्डी मजबूत बनती हैं। इसके अतिरिक्त वृक्षासन करने से हृदय गति तथा सिस्टोलिक ब्लड प्रेशर में सुधार होता है।
वृक्षासन करने की विधि –
- मैट बिछाकर इसके ऊपर सावधान की अवस्था में सीधे खड़े हो जाएं। नजर सामने और दोनों बाजू एकदम सीधे।
- अब धीरे-धीरे दाएं घुटने को मोड़ते हुए पैर का तलवा बायीं जांघ पर रख दें। बाएं पैर को मजबूती से जमीन पर टिकाए रखें।
- सांस खींचते हुए दोनों बाजुओं को ऊपर ले जाएं और दोनों हाथों को मिलाकर नमस्कार की मुद्रा बनाएं। नजर एकदम सामने, रीढ़ की हड्डी सीधी, गहरी सांस लेते हुए शरीर का संतुलन बनाए रखें। कुछ सेकेन्ड इसी अवस्था में रहें।
- सांस छोड़ते हुए वापिस अपनी सामान्य अवस्था यानि सावधान मुद्रा में आ जाएं।
- कुछ सेकेन्ड के बाद अपनी बाईं जांघ पर दाएं घुटने को मोड़कर, पैर का तलवा रखें, बाजू ऊपर ले जाकर नमस्कार मुद्रा बनाएं। कुछ सेकेन्ड इसी अवस्था में रहने पर वापिस सावधान मुद्रा में आएं और बाएं, दाएं पैर की प्रक्रिया दोहराएं।
7. उत्कटासन (Utkatasana)- उत्कटासन करने पर शरीर की मुद्रा कुर्सी के समान बन जाती है, इसीलिये इसको कुर्सीआसन यानि chair pose भी कहा जाता है। इसके करने से एड़ियों और पिंडलियों को मजबूती मिलती है। इससे हिप्स, रीढ़ की हड्डी और सीने की मांसपेशियां स्ट्रेच होती हैं, शरीर में स्थिरता आती है और पेट के अंगों की अच्छी तरह मसाज होती है। इसके अतिरिक्त उत्कटासन करने से अच्छे वाले कोलेस्ट्रॉल (HDL) में वृद्धि होती है, सिस्टोलिक ब्लड प्रेशर डायस्टोलिक ब्लड प्रेशर में सुधार होता है।
उत्कटासन करने की विधि –
- मैट बिछाकर इस पर खड़े हो जाएं। दोनों पैरों के बीच एक फीट का फासला रखें।
- अब अपने बाजुओं को कंथों के समानांतर फैलाएं। बाजू एकदम सीधी और हथेलियां जमीन की तरफ। अब धीरे-धीरे अपने घुटनों को मोड़ते हुए नीचे इतना झुकें कि लगे कि आप कुर्सी पर बैठे हैं। रीढ़ की हड्डी एकदम सीधी। बाजू भी एकदम सीधे, मुड़ने नहीं चाहिएं।
- धीरे-धीरे गहरी सांस लेते, छोड़ते रहें। आधा या हो सके तो एक मिनट तक इसी पोजीशन में रहें।
- फिर वापिस अपनी सामान्य अवस्था में आकर थोड़ा विश्राम करें और फिर से शुरू करें।
8. वीरभद्रासन (Virabhadrasana)- वीरभद्रासन योगासन की रचना, वीर योद्धा की संकल्पना (Concept) को ध्यान में रख कर की गई है। इस योगासन को करते हुए शरीर की मुद्रा एक योद्धा की तरह बन जाती है इसीलिए इसे योद्धा की मुद्रा (Warrior pose) कहा गया है। इसके करने से योद्धा हिप्स, पिंडलियों, जांघों की मांसपेशियां मजबूत बनती हैं। तथा रीढ़ की हड्डी के आसपास की मांसपेशियों को भी मजबूती मिलती है। वीरभद्रासन करने के दौरान गर्दन, कंधों, कुहनी, हिप्स, घुटनों, टखनों और पूरी रीढ़ को मोड़ना होता है जिससे इनके मोड़ भी मजबूत हो जाते हैं। वीरभद्रासन करने से रक्त प्रवाह में सुधार होता है जो हृदय स्वास्थ्य के लिये जरूरी है।
वीरभद्रासन करने की विधि –
- मैट बिछाकर इस पर खड़े हो जाएं। पैरों के बीच लगभग तीन फुट का फासला रखें।
- दोनों बाजुओं को ऊपर की ओर उठायें और हाथों की हथेलियों को सिर के ऊपर ले जाकर आपस मिला लें।
- अब दाएं पैर के पंजे को 90° के कोण पर घुमाएं, फिर बाएं पैर के पंजे को 45° पर घुमाएं और पैरों को स्थिर रखने का प्रयास करें।
- अब धड़ को दाएं पैर की ओर घुमाएं इससे मुंह भी 90° पर घूम जाता है। दाएं पैर के घुटने को मोड़कर 90° का कोण बनाएं, फिर दाईं जांघ को जमीन के समानांतर लाएं। बायां पैर एकदम सीधा रहना चाहिए।
- अब सिर को पीछे की ओर झुकाकर ऊपर देखें। इस पोजीशन में 30 से 60 सेकंड तक रहें और वापिस सामान्य अवस्था में आ जाएं।
- थोड़ी देर बाद यह प्रक्रिया दूसरे पैर के लिए करें।
9. मेडिटेशन (Meditation)- मेडिटेशन यानि ध्यान लगाना, ध्यान लगाने से तनाव कम होता है, मस्तिष्क शांत रहता है। इसका सीधा प्रभाव हृदय पर पड़ता है। ध्यान करने से हृदय की धड़कन और हृदय गति सामान्य रहती हैं।
मेडिटेशन करने की विधि –
- मेडिटेशन के लिये सुबह और शाम चार बजे का समय सबसे अच्छा माना जाता है। इस समय मेडिटेशन करने से पीयूष ग्रंथि (pituitary gland) और शीर्षग्रंथि (Pineal gland) पर इसका अच्छा प्रभाव पड़ता है क्योंकि इस समय सूर्य और पृथ्वी के बीच का कोण 60° पर होता है। विशेषज्ञों के अनुसार इस समय ध्यान करने से पीयूष ग्रंथि (pituitary gland) और शीर्षग्रंथि (Pineal gland) पर अच्छा प्रभाव पड़ता है। तो मेडिटेशन के लिये सुबह और शाम चार बजे का समय चुनें।
- बाहर पार्कों में बहुत शोर-शराबा होता है। इसलिये अपने घर के एक ऐसे कमरे को चुनें जहां परिवार के अन्य सद्स्यों का आना जाना कम हो। ध्यान में बैठने से पहले दरवाजा बंद कर लें।
- ध्यान में बैठने से पहले यह सुनिश्चित करें कि आपको भोजन करने से पहले ध्यान करना है। यह भी सुनिश्चित करें कि आपको बहुत जोर से भूख ना लग रही हो।
- मौसम को ध्यान में रखकर कपड़े पहनें और ढीले-ढाले कपड़े पहनें।
- ध्यान में बैठ कर आंखें बंद कर लें, चेहरे पर मुस्कान रखें और गहरी सांस लें।
- मस्तिष्क में किसी भी प्रकार के विचारों को ना आने दें। सभी तरफ से ध्यान हटाकर अपने मन पर ध्यान केन्द्रित करें। कुछ ही समय में ध्यान लग जाएगा।
- गहरी सांस लेने से रक्त प्रवाह में सुधार होता है जिससे हृदय स्वस्थ रहता है।
- ध्यान समाप्त होने के बाद आंखें धीरे-धीरे खोलें। आपको अपने अंदर स्फूर्ति, ताजगी और एनर्जी महसूस होगी।
10. भस्त्रिका प्राणायाम (Bhastrika Pranayama)- श्वसन प्रणाली में सुधार के लिये भस्त्रिका प्राणायाम को सबसे अच्छा माना जाता है। इस प्राणायाम के जरिये रक्त का शुद्धिकरण होता है, डिप्रेशन समाप्त होता है, हार्ट अटैक की संभावना दूर होती है, हृदय से संबंधित रोगों के खतरे भी कम हो जाते हैं तथा शरीर में एनर्जी आती है।
भस्त्रिका प्राणायाम करने की विधि –
- मैट बिछाकर पद्मासन में बैठ जाएं। हाथ की उंगलियां ज्ञान मुद्रा में।
- रीढ़ की हड्डी, गला और सिर एकदम सीधे रहें, आंखें और मुंह बंद।
- अब नाक के दोनों छिद्रों से गहरी, तेज और आवाज करती हुई सांस अंदर खींचें, फेफड़े पूरी तरह फूलने चाहिएं।
- फिर सांस को तेज गति से एक ही झटके में इस तरह छोड़ें कि पेट पिचक जाए। ऐसा करने से नाभि पर दबाव पड़ता है।
- सांस लेने और छोड़ने की प्रक्रिया का यह एक चक्र पूरा होता है। इस प्रक्रिया के 10-12 चक्र करें।
11. कपालभाति प्राणायाम (Kapalbhati Pranayama)- कपालभाति प्राणायाम करने से शरीर में एनर्जी आती है, विषाक्त पदार्थ बाहर निकलते हैं, किडनी और लिवर की कार्य प्रणाली में सुधार होता है, पाचन तंत्र सुधरता है। इसके अतिरिक्त रक्त संचार में सुधार होता है, खराब कोलेस्ट्रॉल (LDL) कम होता है जिससे हृदय धमनियों में रुकावट दूर होती है और रक्त प्रवाह सामान्य गति से होता है।
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कपालभाति प्राणायाम करने की विधि –
- मैट बिछाकर सुखासन मुद्रा में बैठ जाएं। दोनों हथेलियां घुटने पर, हथेलियां आकाश की ओर खुली हुई और रीढ़ की हड्डी सीधी रहनी चाहिए।
- अब गहरी सांस अंदर खींचें और सांस छोड़ें। सांस छोड़ते समय, पेट पर अंदर की ओर दबाव डालें और नाभि को रीढ़ की हड्डी की तरफ ले जाने का प्रयास करें। ऐसा करने से सांस फेफड़े में अपने आप चली जाएगी।
- यदि पेट पर दबाव डालने से तकलीफ होती है तो पेट को हाथ का सहारा दे सकते हैं। कुछ ठीक लगने पर पेट और नाभि को ढीला छोड़ दें।
- इस प्रक्रिया के 20 बार करने पर एक चक्र पूरा होता है। इसके तीन चक्र पूरे करें।
Conclusion –
दोस्तो, आज के आर्टिकल में हमने आपको हृदय के बारे में जानकारी दी। हृदय क्या है?, हृदय के कार्य, हृदय स्वास्थ्य के खराब होने के कारण और हृदय रोगियों के लिये वर्जित योगासन, इन सब के बारे में विस्तार पूर्वक बताया। देसी हैल्थ क्लब ने इस आर्टिकल के माध्यम से हृदय को स्वस्थ रखने के लिए बहुत सारे योगासन बताए। आशा है आपको ये आर्टिकल अवश्य पसन्द आयेगा।
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Disclaimer – यह आर्टिकल केवल जानकारी मात्र है। किसी भी प्रकार की हानि के लिये ब्लॉगर/लेखक उत्तरदायी नहीं है। कृपया डॉक्टर/विशेषज्ञ से सलाह ले लें।
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