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ब्रह्मचर्य के फायदे – Benefits of Brahmacharya in Hindi

ब्रह्मचर्य के फायदे

स्वागत है आपका हमारे ब्लॉग पर। दोस्तो, आज के युग में शहरों और गांवों में भी जहां KG कक्षा से ही सहशिक्षा की व्यवस्था हो, ऐसे युग में ब्रह्मचर्य व्रत के बारे में सोचना ऐसा लगता है कि हम सदियों पुराने युग की कल्पना कर रहे हैं। बच्चे तो क्या इनके माता-पिता ने भी ब्रह्मचर्य व्रत का नाम नहीं सुना होगा, इसकी महिमा की जानकारी होना तो बहुत दूर की बात है। परन्तु अपवाद (Exception) हर युग में होते हैं, आज के आधुनिक काल में मिल जाएंगे। 

उत्तर भारत के उत्तर प्रदेश के गंगा किनारे के ग्रामीण क्षेत्र और दक्षिण भारत के कुछ राज्यों में जैसे कर्नाटक, केरल, चैन्नई के गांवों में गुरूकुल मिल जाएंगे जहां बच्चे संस्कृत, नैतिक और वैदिक शिक्षा ग्रहण करते हैं और ब्रह्मचर्य का पालन करते हैं। आखिर यह ब्रह्मचर्य है क्या और इसके क्या फायदे होते हैं? दोस्तो, यही है हमारा आज का टॉपिक “ब्रह्मचर्य के फायदे”। 

देसी हैल्थ क्लब इस आर्टिकल के माध्यम से आज आपको ब्रह्मचर्य के बारे में विस्तार से जानकारी देगा और यह भी बताएगा कि इसके क्या फायदे होते हैं। तो सबसे पहले जानते हैं कि जीवन व्यवस्था क्या है और ब्रह्मचर्य क्या है। फिर इसके बाद बाकी बिंदुओं पर जानकारी देंगे। 

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जीवन व्यवस्था क्या है? – What is a Living Arrangement?

दोस्तो, अथर्ववेद में सम्मलित कई सूक्तों में से, संपूर्ण रूप से शारीरिक, मानसिक और दीर्घायु के लिये प्रार्थना स्वरूप एक सूक्त मिलता है जो आठ छोटे-छोटे मंत्रों का समूह है। इन मंत्रों में एक मंत्र है “जीवेम शरदः शतम्” अर्थात् हम 100 वर्ष तक जीवित रहें। इससे पता चलता है कि वैदिक व्यवस्था, मानव की आयु 100 वर्ष मानती है और इसे सुचारु रूप से चलाने के लिये 25-25 के भागों में बांट कर चार आश्रमों का प्रावधान किया। 

ये चार आश्रम हैं – ब्रह्मचर्य आश्रम, गृहस्थ आश्रम, वानप्रस्थ आश्रम और सन्यास आश्रम। ब्रह्मचर्य आश्रम के लिये वैदिक व्यवस्था में निर्धारित आयु शुरूआत के 25 वर्ष रखी गई है। यहां हम स्पष्ट करना चाहेंगे कि बच्चे के युवा होने पर उसे ब्रह्मचर्य आश्रम को छोड़कर बाकी सभी आश्रमों के बारे में जानकारी होती है या हो सकती है। 

परन्तु बच्चा अबोध होता है उसे कुछ पता नहीं होता इसीलिये बच्चे को ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करवाने के लिए गुरूकुल/आश्रम में भेजने का उत्तरदायित्व उसके माता-पिता का होता है क्योंकि बच्चा अबोध होने के कारण अपने माता-पिता से नहीं कह सकता कि मुझे ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करना है। 

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ब्रह्मचर्य क्या है? –  What is Brahmacharya

यह तो स्पष्ट हो ही चुका है कि ब्रह्मचर्य, जीवन जीने की चार अवस्थाओं (आश्रमों) में से एक और पहली व्यवस्था है। यदि आधुनिक युग की भाषा में कहें तो यह समझिए कि यह जीवन जीने का पहला चरण है (It is the first face of Art of Living)। ईश्वर को मानते हुए ईश्वरत्व में विश्वास रखते हुए ध्यान करना, अपनी समस्त इन्द्रियों पर सम्पूर्ण नियंत्रण रखना, मन को नियंत्रण में रखना, भौतिक सुख सुविधाओं और काम वासना का त्याग करना, वेदों का अध्धयन करना, ब्रह्म ज्ञान प्राप्त करना और परम सत्य को जानना ही ब्रह्मचर्य है। 

ब्रह्म ज्ञान को जानकर उसी का अनुसरण और आचरण करने वाले, और वीर्य की रक्षा करने वाले पुरुष को ब्रह्मचारी कहा जाता है। जहां तक कन्याओं की बात है तो हम बता दें कि कन्याएं भी ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करती हैं और उनको ब्रह्मचारिणी कहा जाता है। कन्या अपने विचारों में सात्विकता लाए, धार्मिक प्रवृत्ति को अपनाए, प्रभु की भक्ति करे, माता-पिता, गुरुजनों और अपने से बड़ों का सम्मान करे, वाणी में मधुरता रखे और सबसे बड़ी बात कि विवाह होने तक अपने कौमार्य की रक्षा करे, यही उसका ब्रह्मचर्य व्रत है। 

ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करने वाला कैसा होता है? – What is it Like to Observe the Vow of Brahmacharya?

ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करने वाले पुरुष को ब्रह्मचारी और कन्या को ब्रह्मचारिणी कहते हैं और उनके लक्षण निम्न प्रकार होते हैं –

1. रूह सोना, जिस्म पत्थर, इरादा फौलाद का, ऐसा होता है ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करने वाला व्यक्ति। क्योंकि उसके जीवन में घृणा, क्रोध, काम वासना, मद यानि अहंकार, लोभ, मोह, माया के लिए कोई स्थान नहीं रहता। 

2. उसके मुख पर अद्भुत तेज होता है। वह एक प्रकार से “योगीपुरुष” बन जाता है। उसके जीवन का एकमात्र लक्ष्य देश सेवा और परोपकार होता है। वह किसी को अपना शत्रु नहीं समझता, सबको अपना मित्र मानता है। 

3. उसकी वाणी में ओज (vigor) होता है और मधुरता होती है। ये विशेषता लोगों को उसकी ओर आकर्षित करती है। स्वामी विवेकानन्द, श्री श्री रविशंकर, सुभाषचन्द्र बोस, दलाई लामा आदि लोग इसके उदाहरण हैं। 

4. ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करने वाले व्यक्ति को अपनी मृत्यु का साक्षात आभास हो जाता है, फिर अपनी मृत्यु को स्वेच्छा से गले लगाता है। महर्षि दयानन्द सरस्वती इसके सशक्त उदाहरण हैं। 

5. ब्रह्मचारी व्यक्ति अत्यंत धैर्यवान होता है। विषम परिस्थितियों में वह धैर्य और संतुलन नहीं खोता। 

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क्या ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करना कठिन है? – Is it Difficult to Observe the Vow of Brahmacharya

दोस्तो, आम तौर पर यह लगता है कि ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करना अत्यंत कठिन है तो हम आपको बता दें कि यह मुश्किल हो सकता है मगर नामुमकिन नहीं। चूंकि यह बचपन से लेकर यौवन तक 25 वर्ष तक की तपस्या है तो यह समझिए कि बचपन में बच्चे का शारिरिक और मानसिक विकास बहुत तेजी से होता है।

उसे जो कुछ सिखाया जाता है उसे हमेशा याद रहता है क्योंकि उसकी स्मरण शक्ति और स्मरण क्षमता का बहुत तेज से विस्तार होता है। इस दौरान धीरे-धीरे उसका शारीरिक विकास भी होता रहता है और वह शारीरिक कष्टों को सहन करने समर्थ होता जाता है। 

इसलिए आठ, दस वर्ष की आयु से ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करने में बच्चे को कोई कठिनाई नहीं होती और ना ही बहुत कष्ट होता है। रही बात किशोर अवस्था की तो इस आयु में मन चंचल होने लगता है, तो उसे मन को स्थिर करने में, शांत रखने में कुछ कठिनाईयां आती हैं मगर माता-पिता के दिये अच्छे संस्कार और गुरूजनों की शिक्षा से ये कठिनाईयां भी दूर हो जाती हैं और ब्रह्मचर्य व्रत का मार्ग प्रशस्त हो जाता है। 

ब्रह्मचर्य व्रत का पालन कैसे करें? – How to Observe Brahmacharya Fast?

दोस्तो, आज के युग में शिक्षा से लेकर जीवनशैली तक हर क्षेत्र में बदलाव आया है। गुरुकुल की बजाय मॉडर्न आधुनिकतम सुविधाओं से लैस विद्यालय, सहशिक्षा ये सब नज़र आता है। पढ़ाई का तरीका भी बदल रहा है, बहुत कुछ मोबाइल फोन कर पढ़ाया जाता है। गांवों में मिट्टी के अखाड़ों की बजाए आधुनिक अखाड़े नज़र आते हैं। सिनेमा का आकर्षण है, नशे का बोलबाला है, तो क्या ऐसे में ब्रह्मचर्य व्रत का पालन किया जा सकता है? तो इसका उत्तर है “हां”। आज भी ब्रह्मचर्य व्रत का पालन किया जा सकता है। इसके लिये निम्नलिखित नियमों को स्वेच्छा और ईमानदारी से अपनाना होगा –

1. चूंकि प्रातः ब्रह्म मुहूर्त में उठना होता है इसलिये रात को जल्दी सोएं और कम से कम आठ घंटे की नींद लें। इससे आपकी नींद पूरी हो जाएगी।

2. रात को सोने से पहले हाथ, पैर और मुंह धोकर, प्रभु का ध्यान कर, प्रणाम करके सोएं। इससे डरावने सपने नहीं आएंगे।

3. सुबह ब्रह्म मुहूर्त में उठें और नित्य कर्म से निवृत हो जाएं।

4. ध्यान, प्राणायाम, योग, व्यायाम करें। इससे सारे दिन आपके शरीर में चुस्ती स्फूर्ती बनी रहेगी। सुबह के अतिरिक्त ध्यान संध्याकाल में भी कर सकते हैं।

5. स्नानकर स्वच्छ वस्त्र पहनें। पूजा पाठ करें। ईश्वर का मनन करें। इससे मन एकाग्र होगा, भटकेगा नहीं। 

6. सात्विक भोजन करें। याद रखिए, राजसी और तामसिक प्रवृत्ति अथवा मांसाहार के लिये ब्रह्मचर्य व्रत में कोई स्थान नहीं है। 

7. सप्ताह में एक दिन उपवास रखें। इससे आपका पेट ठीक रहेगा। इससे अपने आप पर नियंत्रण रखना सीखते हैं। आपका मन दृढ़ होगा और  संकल्प शक्ति को बल मिलेगा।

8. कुछ समय प्रकृति के साथ बिताएं और प्राकृतिक सौंदर्य का आनन्द लें और इसे अपने अंदर आत्मसात करें।

9. दिन में कुछ समय मौन धारण करें। इससे आत्मशक्ति बढ़ती है।

10. धार्मिक ग्रंथों का अध्धयन करें जैसे वेद, पुराण, उपनिशद्, भागवतगीता, रामायण आदि। हो सके तो अन्य धर्मों के धार्मिक ग्रंथों का भी अध्धयन करें। इससे व्यापक रूप से ज्ञान बढ़ेगा।

11. किसी की आलोचना या बुराई ना करें।

12. कम बोलें और नपा तुला ही बोलें। जिसकी आवश्यता ना है उसे ना बोलें। वाणी में मधुरता रखें।

13. माता-पिता, गुरुजनों और अपने बड़ों का आदर सम्मान करें। 

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14. अच्छे और ज्ञानी लोगों की संगत करें। अज्ञानी, दुष्ट, दुराचारी, व्याभिचारी और अपराध प्रवृत्ति की संगत कभी ना करें, इनसे कोसों दूर रहें क्योंकि कुसंगत का प्रभाव अच्छे लोगों पर अवश्य पड़ता है। यहां मैं, इस आर्टिकल का लेखक उल्लेख करना चाहुंगा चार पंक्तियों का जो मेरे हिन्दी के अध्यापक ने कही थीं जब मैं कक्षा छः में पढ़ता था – 

बैठोगे आग के पास जाकर

उठोगे एक दिन कपड़े जलाकर

माना कि कपड़े बचाते रहे तुम

मगर सेक तो रोज खाते रहे तुम

15. धूम्रपान, मद्यपान तथा अन्य नशीले पदार्थों का सेवन ना करें। ब्रह्मचर्य व्रत में इनका कोई स्थान नहीं है। 

16. किसी से ईर्ष्या, द्वेष ना रखें। किसी को छोटा ना समझें, सबका सम्मान करें। 

17. वीर्य की रक्षा करें। हस्तमैथुन व स्वपनदोष के लिये ब्रह्मचर्य व्रत में कोई स्थान नहीं है। इसके लिये अपने विचारों को शुद्ध रखें। कामाग्नि महसूस होने पर ध्यान अपनी नाभि पर केन्द्रित करते हुए “ॐ नमः शिवाय” का जप करें। लंगोट पहनें, इससे स्वपनदोष की संभावना नहीं रहेगी और अंडकोष भी नहीं बढ़ेंगे।

18. कामवासना और अश्लीलता के लिए ब्रह्मचर्य व्रत में कोई स्थान नहीं है। कहते हैं कि प्रेम अंधा होता है। हम कहते हैं कि प्रेम अंधा नहीं होता बल्कि वासना अंधी होती है। प्रेम तो दो आत्माओं का मिलन है मानो कि भक्त और भगवान की आत्मा जुड़ गई हो। मीराबाई इसका सशक्त उदाहरण है। 

वासना, मनुष्य को अंधा बनाती है और कुकर्मों की ओर धकेलती है। माना कि संभोग सृष्टि रचना के लिए एक आवश्यक आवश्यकता है परन्तु उचित समय आने पर। जीव-जन्तु, पशु-पक्षी सभी अपना उचित समय आने पर संभोग करते हैं। मनुष्य के लिए संभोग का उचित समय विवाहोपरान्त गृहस्थ आश्रम माना गया है। इसलिये ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करते हुए किसी भी कन्या या परस्त्री के सान्निध्य में ना आएं। अन्यथा इससे मन में भटकाव आएगा। इनको देखकर कोई बुरा विचार अपने मन में ना लाएं। 

ब्रह्मचर्य के फायदे – Benefits of Brahmacharya

दोस्तो, अब बताते हैं आपको ब्रह्मचर्य के फायदे जो निम्नलिखित हैं –

1. व्यक्तित्व और आत्मविश्वास बढ़ता है (Personality and Self-Confidence Increases)- ब्रह्मचर्य का सबसे मुख्य फायदा यह है कि व्यक्ति का व्यक्तित्व निखर जाता है। उसमें आत्मविश्वास कूट-कूट कर भर जाता है। वह हर समस्या सुलझाने में सक्षम हो जाता है। वे किसी भी परिस्थिति में विचलित नहीं होते। 

2. इंद्रियों पर नियंत्रण (Control the Senses)- ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करने से व्यक्ति अपनी इंद्रियों को पर नियंत्रण कर लेता है। विशेषकर कामेन्द्रिय पर विजय प्राप्त करके अपने वीर्य का संरक्षण करता है। इससे उसके मुख मंडल पर अद्भुत आभा आ जाती है।

3. ओज और तेज बढ़े (Grow Stronger and Stronger)- उनके मुख पर तेज चमकता है क्योंकि वह व्यक्ति अपनी काम ऊर्जा को संरक्षित कर चुका होता है। उसकी शक्तियां उसके नियंत्रण में रहती हैं। उसकी ऊर्जा, ओज से तेज में बदल जाती है। इसी ऊर्जा के कारण वह व्यक्ति असाधारण काम कर जाता है।

4. प्रतिरक्षा प्रणाली मजबूत बने (Strengthen the Immune System)- उसकी रोग प्रतिरोधक क्षमता इतनी मजबूत हो जाती है कि बीमारियां उसके पास नहीं फटकतीं। इसी वजह से वह बहुत लंबा जीवन जीता है। 

5. शारीरिक शक्ति बढ़ें (Increase Physical Strength)- ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करने से शारीरिक शक्ति बढ़ती है। उसका शरीर फौलाद की तरह हो जाता है और वह अपने बल से ऐसे काम कर जाता है जो साधारण व्यक्ति नहीं कर सकता। यदि हम महाभारत काल के भीम जैसे योद्धाओं की बात ना भी करें तो 19वीं शताब्दी में जन्मे प्रोफेसर पहलवान राममूर्ति नायडू का उदाहरण ले सकते हैं जिनको अंग्रेजों ने “कलयुग के भीम” की उपाधि से सम्मानित किया था। इनमें इतना बल था कि वे लोहे को जंजीरों को तोड़ देते थे। 19वीं शताब्दी में ही जन्मे स्वामी दयानन्द सरस्वती ने अपने ब्रह्मचर्य की शक्ति से घोड़ा गाढ़ी को रोक दिया था। 

6. मस्तिष्क स्वास्थ ठीक रहे (Keep Your Brain Healthy)- कहते हैं मानव मस्तिष्क एक सुपर कंप्यूटर है जिसकी क्षमता विश्व के सभी कंप्यूटरों से 1000 हजार गुणा अधिक है। इसके बावजूद हमारी स्मरण शक्ति धोखा दे जाती है, कई बार हमें कुछ याद नहीं आता। ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करने वाला व्यक्ति अपनी “काम ऊर्जा” को बचाकर रखता है। उसकी यह ऊर्जा मस्तिष्क में संरक्षित हो जाती है जो उसकी स्मरण शक्ति को बढ़ाती है। 

उसे हर छोटी से छोटी और बड़ी बात हमेशा याद रहती है। उसके द्वारा पढ़ी गई पुस्तकों के संस्मरण उसे याद रहते हैं। वह मानसिक रूप से इतना सुदृढ़ हो जाता कि वह विषम परिस्थितियों में भी मानसिक संतुलन नहीं कभी नहीं खोता। उसका मस्तिष्क स्वास्थ ठीक रहता है। 

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7. सोच में पवित्रता (Purity in Thinking)- ब्रह्मचर्य के तप से व्यक्ति की सोच पवित्र और सकारात्मक हो जाती है। उसके पास नकारात्मक सोच और नकारात्मक ऊर्जा का कोई स्थान नहीं होता। उसका अपनी इंद्रियों पर पूर्ण नियंत्रण होता है। उसकी सोच, उसके विचारों से हर कोई प्रभावित होता है। उसका अपने मन के भावों पर भी नियंत्रण होता है।

8. जीवन शैली में परिवर्तन (lifestyle Changes)- ब्रह्मचर्य के तप से व्यक्ति के आचार, विचार और व्यवहार में परिवर्तन आता है। उसका आचार, विचार और व्यवहार लोगों को भाता है। उसी वाणी में मधुरता होती है। बोलने से पहले वह सौ बार सोचता है। वह इस बात का ध्यान रखता है कि है उसके मन, वचन और कर्म से किसी की हानि ना हो।

9. परोपकार (Charity)- ब्रह्मचर्य के तप से वह सहिष्णु हो जाता है। वह सदैव अपने और अपने परिवार से पहले औरों के बारे में सोचता है। औरों के दुख-दर्द में हमेशा उनके साथ खड़ा रहता है और यथासंभव उनकी मदद करता है। उसमें परोपकार की भावना आ जाती है। कभी अकारण किसी पर क्रोध नहीं करता, किसी को अपना शत्रु नहीं मानता। वह एक प्रकार से समाज की भलाई के लिए जीता है। 

10. मृत्यु के भय से मुक्ति (Freedom from Fear of Death)- ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करने वाला व्यक्ति मृत्यु के भय से मुक्त हो जाता है। उसके तप के बल पर उसकी श्वसन प्रणाली स्वस्थ रहती है और प्रतिरक्षा प्रणाली मजबूत होने के नाते लंबी आयु तक जीता है। हां, समय से पहले मृत्यु का आभास भी हो जाता है और वे स्वेच्छा से अपनी मृत्यु को गले लगा लेते हैं।  स्वामी दयानन्द सरस्वती और राम प्रसाद बिस्मिल इसके सशक्त उदाहरण हैं जिन्होंने मृत्यु के भय पर विजय प्राप्त की थी। 

Conclusion –

दोस्तो, आज के आर्टिकल में हमने आपको ब्रह्मचर्य के बारे में विस्तार से जानकारी दी। जीवन व्यवस्था क्या है?,  ब्रह्मचर्य क्या है?, ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करने वाला कैसा होता है, क्या ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करना कठिन है और ब्रह्मचर्य व्रत का पालन कैसे करें, इन सब के बारे में भी विस्तार पूर्वक बताया। देसी हैल्थ क्लब ने इस आर्टिकल के माध्यम से ब्रह्मचर्य के बहुत सारे फायदे बताए। आशा है आपको ये आर्टिकल अवश्य पसन्द आयेगा।

दोस्तो, इस आर्टिकल से संबंधित यदि आपके मन में कोई शंका है, कोई प्रश्न है तो आर्टिकल के अंत में, Comment box में, comment करके अवश्य बताइये ताकि हम आपकी शंका का समाधान कर सकें और आपके प्रश्न का उत्तर दे सकें। और यह भी बताइये कि यह आर्टिकल आपको कैसा लगा। आप इस पोस्ट को अपने दोस्तों और सगे – सम्बन्धियों के साथ भी शेयर कीजिये ताकि सभी इसका लाभ उठा सकें। दोस्तो, आप अपनी टिप्पणियां (Comments), सुझाव, राय कृपया अवश्य भेजिये ताकि हमारा मनोबल बढ़ सके। और हम आपके लिए ऐसे ही Health-Related Topic लाते रहें। धन्यवाद।
Disclaimer – यह आर्टिकल केवल जानकारी मात्र है। किसी भी प्रकार की हानि के लिये ब्लॉगर/लेखक उत्तरदायी नहीं है। कृपया विशेषज्ञ से सलाह ले लें।

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अंगूर खाने के फायदे
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दोस्तो, आज के आर्टिकल में हमने आपको ब्रह्मचर्य के बारे में विस्तार से जानकारी दी। जीवन व्यवस्था क्या है?,  ब्रह्मचर्य क्या है?, ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करने वाला कैसा होता है, क्या ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करना कठिन है और ब्रह्मचर्य व्रत का पालन कैसे करें, इन सब के बारे में भी विस्तार पूर्वक बताया।
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