दोस्तो, स्वागत है आपका हमारे ब्लॉग पर। दोस्तो, “माँ” शब्द तीनों लोकों में सबसे मधुर और सुन्दर है। माँ, जिसे देवता भी नमन करते हैं क्योंकि माँ के दूध और ममता के अमृत से बच्चे का विकास होता है। ठीक इसी प्रकार “पिता” का अस्तित्व भी कम नहीं “पिता” केवल शब्द नहीं बल्कि “एक संपूर्ण रक्षात्मक व्यक्तित्व” है जो अपने जीवनकाल में अपने बच्चे और परिवार का, विषम परिस्थितियों में भी, भरण पोषण करता है, उन्हें सुरक्षा प्रदान करता है। अब इन दोनों को माता-पिता होने का अहसास कराने वाला कौन है, वो है बच्चा जिसके माध्यम से माता-पिता को “संतान” सुख का सौभाग्य प्राप्त होता है। दोस्तो, आज से कुछ दशक पहले किसी कारणवश, किसी किसी को यह सुख नहीं मिल पाता था, परन्तु विज्ञान की एक तकनीक ने यह अवसर उन दम्पति को दिया जिनके कोई बच्चा नहीं हुआ। जो महिला गर्भाशय में समस्या होने के कारण गर्भधारण नहीं कर सकती मगर अपने पति से बच्चा चाहती है तो वह इस तकनीक की मदद से अपने पति के बच्चे की मां बन सकती है, फर्क केवल इतना है कि कोख इसकी ना होकर “किसी और महिला” की होगी। इससे पति को भी उसका बच्चा मिल जायेगा।
जी हां, इस तकनीक का नाम है सरोगेसी। आखिर यह तकनीक है क्या?। दोस्तो, यही है हमारा आज का टॉपिक “सरोगेसी क्या है?”। देसी हैल्थ क्लब इस लेख के माध्यम से आज आपको सरोगेसी के बारे में विस्तार से जानकारी देगा और यह भी बतायेगा कि सरोगेसी क्या होती है, इस सरोगेसी की प्रक्रिता के कितने प्रकार होते हैं और इस तकनीक के बारे में वैधानिक स्थिति (Legal Status) क्या है? तो, सबसे पहले जानते हैं कि सरोगेसी क्या होती है। फिर इसके बाद बाकी बिन्दुओं पर जानकारी देंगे।
सरोगेसी क्या होती है?- What is Surrogacy
यह नि:संतान दम्पति को संतान सुख प्राप्त करवाने के लिये उत्तम चिकित्सा तकनीक है जो वैधानिक व्यवस्था के अंतर्गत काम करती है। एक महिला चाहती है कि वह अपने पति का बच्चा प्राप्त करे मगर उसके गर्भाशय में या अंडे में कोई समस्या है जिसके चलते वह मां नहीं बन सकती तो किसी “अन्य महिला” के गर्भाशय का उपयोग करके, अपने पति का बच्चा प्राप्त कर सकती है। इस अन्य महिला को “सेरोगेट मदर” कहा जाता है। इस स्थिति में अन्य महिला के अंडे को पुरुष के शुक्राणु से निषेचित करवाकर इसके गर्भाशय में प्रत्यारोपित कर दिया जाता है। बच्चे के जन्म के बाद सेरोगेट मदर बच्चे को उसके माता-पिता को सौंप देती है। दूसरी स्थिति यह होती है कि महिला का अंडा ठीक होता है लेकिन गर्भाशय में कमी होती है। इस स्थिति में इसी महिला के अंडे को इसी के पति के शुक्राणु से निषेचित करवाकर सेरोगेट मदर के गर्भाशय में प्रत्यारोपित कर दिया जाता है। कहने का तात्पर्य यह है कि दोनों ही स्थितियों में बच्चा को पैदा करवाने के लिये किसी अन्य महिला के गर्भाशय की आवश्यकता होती है। चिकित्सा की इस तकनीक को ही सेरोगेसी कहा जाता है। इस प्रक्रिया का विस्तार से उल्लेख हम आगे करेंगे।
सरोगेसी के प्रकार – Type of Surrogacy
सरोगेसी प्रक्रिया दो प्रकार से की जाती है –
1. ट्रेडिशनल सरोगेसी (Traditional surrogacy) – इस प्रक्रिया में केवल पुरुष के शुक्राणुओं का उपयोग किया जाता है ना कि मां के अंडाणुओं का। अंडाणुओं का उपयोग उस महिला का किया जाता है जो ‘सरोगेट मदर’ बनना चाहती है यानी दूसरे शब्दों में यही ‘सरोगेट मदर’ बनने वाली महिला ‘अंडाणु दाता’ (Egg donor) भी होती है। इस प्रक्रिया में पुरुष के शुक्राणु को सरोगेट मदर बनने वाली महिला के अंडाणु के साथ लैब में निषेचित करके सरोगेट मदर के गर्भाशय में डाल दिया जाता है जहां भ्रूण का विकास होता है। बच्चे के जन्म के बाद, सरोगेट मदर बच्चे के माता-पिता को सौंप देती है। ट्रेडिशनल सरोगेसी में भी आईवीएफ तकनीक का उपयोग किया जा सकता है। सामान्यतः इसमें इंट्रायूटरिन इनसेमिनेशन (IUI) तकनीक का उपयोग किया जाता है जिसमें पुरुष के शुक्राणुओं को साफ़ कर, स्वस्थ शुक्राणु को चुनकर सरोगेट मदर के गर्भाशय में सीधे स्थानांतरण कर दिया जाता है। इस इंट्रायूटरिन इनसेमिनेशन प्रक्रिया में सरोगेट मदर को, पहले बहुत सारे फर्टिलिटी उपचार की जरूरत नहीं पड़ती।
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2. जेस्टेशनल सरोगेसी (Gestational surrogacy) – यह सरोगेसी की एडवांस तकनीक है। अधिकतर महिलाऐं इसी विकल्प को चुनती हैं क्योंकि इस प्रक्रिया में अंडा केवल इसी महिला का होता है, ना कि किसी अन्य महिला का। इस प्रक्रिया में मां का अंडा लेकर पिता के शुक्राणु के साथ लैब में परखनली में निषेचित करवा कर भ्रूण को सरोगेट मदर बनने वाली महिला के गर्भाशय में स्थानांतरण कर दिया जाता है। सरोगेट मदर बच्चा पैदा होने के बाद उसे उसके माता पिता को सौंप देती है।
बच्चे के साथ किसका क्या संबंध?- Who’s relationship with the child?
दोस्तो, सरोगेसी से जन्म लेने वाले बच्चे के साथ किसका क्या संबंध होता है, इस बारे में देसी हैल्थ क्लब स्पष्ट करता है कि –
1. ट्रेडिशनल सरोगेसी की स्थिति में, ‘सरोगेट मदर’, बच्चे की जैविक (Biological) मां होती है क्योंकि यह उसका अंडा है, मगर बच्चे का उसके साथ आनुवंशिक (Genetic) संबंध नहीं होता। बच्चे का आनुवंशिक (Genetic) संबंध केवल पिता से होता है ना कि मां से क्योंकि बच्चे में “मां” (दम्पति वाली महिला) के ज़ींस नहीं आते।
2. जेस्टेशनल सरोगेसी की स्थिति में बच्चे का जैविक और आनुवंशिक संबंध उसके माता-पिता से होता है। सरोगेट मदर से कोई संबंध नहीं होता क्योंकि इस प्रक्रिया में केवल सरोगेट मदर के गर्भाशय का उपयोग होता है ना कि उसके अंडे का।
सरोगेसी की जरूरत कब पड़ती है?- When is Surrogacy Needed?
सरोगेसी की जरूरत निम्नलिखित परिस्थितियों में होती है –
1. जब दम्पति खुद का बच्चा पैदा नहीं कर पाती।
2. बच्चा पैदा करने के लिये महिला के स्वास्थ की स्थिति ठीक ना हो जैसे शरीर बेहद कमजोर होना या कोई गंभीर बीमारी।
3. डॉक्टरी रिपोर्ट के अनुसार बच्चा पैदा करने में मां और बच्चे की जान को खतरा होना।
4. बार-बार गर्भपात होना।
5. महिला में अंडे की गुणवत्ता खराब होना।
6. गर्भाशय में समस्या होना।
7. बार-बार आई वी एफ तकनीक का असफल होना।
सरोगेसी के लिये पात्रता – Eligibility for Surrogacy
1. विवाहित दम्पति भारत के नागरिक होने चाहिऐं, या अनिवासी भारतीय, भारतीय मूल के व्यक्ति या भारत के विदेशी नागरिक होने चाहिऐं।
2. पत्नी की उम्र 23 से 50 वर्ष और पति 26 से 55 वर्ष के बीच हो।
3. उनका कोई जीवित बच्चा ना हो (जैविक, दत्तक या सरोगेट); इसमें ऐसा बच्चा शामिल नहीं है जो मानसिक या शारीरिक रूप से विकलांग हो या जानलेवा बीमारी या घातक बीमारी से पीड़ित हो।
4. भारतीय एकल (Single) महिला सरोगेसी व्यवस्था का विकल्प नहीं चुन सकती है। लेकिन, 35 से 45 वर्ष की आयु के बीच की केवल विधवाओं और तलाकशुदा महिलाओं को कुछ शर्तों को पूरा करने पर नैतिक सरोगेसी की अनुमति दी जाएगी।
5. सरोगेसी बिल 2020 के प्रावधानों के आधार पर सभी एकल / अविवाहित व्यक्तियों को सरोगेसी व्यवस्था शुरू करने के लिए स्वचालित रूप से बाहर रखा गया है। इसी प्रकार, अविवाहित ‘लिव-इन’ रिलेशन वाले लोग भी बहिष्कृत हैं।
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सरोगेट मदर के लिये पात्रता – Eligibility for Surrogate Mother
1. सरोगेसी बिल 2019 के मुताबिक सरोगेट मदर इच्छुक जोड़े की करीबी रिश्तेदार होनी चाहिये, जिसकी उम्र 25-35 के बीच हो और विवाहित हो, उसका स्वयं का बच्चा हो। वह महिला अपने जीवनकाल में केवल एक बार सिर्फ ही सरोगेट मदर बन सकती है।
2. सरोगेसी के लिए चिकित्सा और मनोवैज्ञानिक फिटनेस का प्रमाण पत्र हो।
3. सरोगेट मदर सरोगेसी के लिये स्वयं के युग्मक (Gametes) प्रदान नहीं कर सकती है।
4. नये सरोगेसी बिल 2020 के प्रावधान के अन्तर्गत इस विधेयक के ‘करीबी रिश्तेदारों’ वाले खंड को हटा दिया गया है और अब यह विधेयक किसी ‘इच्छुक’ (Willing) महिला को सरोगेट मदर बनने की अनुमति प्रदान करता है।
भारत में सरोगेसी केन्द्र – Surrogacy Center in India
भारत के लगभग सभी बड़े शहरों में सरोगेसी की सुविधा है जैसे दिल्ली, दिल्ली एन।सी।आर, चेन्नई, मुम्बई, पुणे, बंगलौर, कोलकाता, हैदराबाद, इंदौर, लखनऊ, आदि। लेकिन दोस्तो, आपको जानकर आश्चर्य होगा कि गुजरात में दुग्ध कैपिटल के नाम से विख्यात आणंद भारत का सबसे बड़ा सरोगेसी केन्द्र बन चुका है। इस शहर में 150 से भी ज्यादा फर्टिलिटी सेंटर सरोगेसी की सुविधा देते हैं। यह शहर कभी “बेबी फैक्ट्री” के नाम से जाना जाता था। कमर्शियल सरोगेसी पर प्रतिबंध लगने से पहले, बी।बी।सी। न्यूज़ वेबसाइट पर प्रकाशित लेख के अनुसार भारत में “सरोगेसी का व्यापार” 63 अरब (Billion) रुपये से भी ज्यादा था। अमेरिका में सरोगेसी का खर्चा 50 लाख रुपए से भी आता है तो भारत में यह सुविधा सभी खर्चों को मिलाकर मात्र 10 से 15 लाख में मिल जाती थी।
सरोगेसी के सबसे अधिक मामले – Most Cases of Surrogacy
एक जानकारी के आधार पर जो आंकड़े मिलते हैं उनके अनुसार पूरे विश्व में एक वर्ष में 500 से ज्यादा सरोगेसी के केस होते हैं। इन 500 में से 300 केस केवल भारत में किये जाते थे। क्योंकि अन्य देशों की अपेक्षा भारत में यह सुविधा सस्ती पड़ती थी। कमर्शियल सरोगेसी पर प्रतिबंध लगने के बाद इनमें कमी आई है।
विवाद – Controversy
सरोगेसी के मामलों में निम्न प्रकार के विवाद के मामले भी देखे गये या होने की संभावना रहती है –
1. कमर्शियल सरोगेसी पर प्रतिबंध लगने से पहले पैसे के लेन-देन पर विवाद होता था। लिखित अनुबंध होने के बावजूद भी। या पैसे के लेन-देन पर मौखिक वादे पर।
2. कमर्शियल सरोगेसी पर प्रतिबंध होने के बावजूद भी, पैसे के बारे में मौखिक करारनामा (Agreement) कर लिया जाता है जो विवाद को जन्म दे सकता है।
3. कई बार ‘सेरोगेट मदर’ का बच्चे से भावनात्मक लगाव गहरा हो जाता है जिसके चलते वह बच्चे को उसके माता-पिता को सौंपने से मना कर देती है।
4. बहुत सारे मामले ऐसे भी देखे गये हैं कि गर्भावस्था के समय सरोगेट मदर की जांच के समय बच्चे में कुछ समस्या पाई गई तो, दम्पति छोड़कर चली गई और वापिस ही नहीं आई। बाद में पता चला कि जांच रिपोर्ट गलत थी। बच्चा सेरोगेट मदर को ही पालना पड़ा।
अपराध और दंड – Crime and Punishment
दोस्तो, हमारे देश भारत में सरोगेसी व्यवस्था विधेयकों (Bills) के आधार पर चल रही है। इन विधेयकों में निर्दिष्ट प्रावधानों के अंतर्गत अपराध और दंड निम्न प्रकार हैं –
1.कमर्शियल सरोगेसी का उपक्रम या विज्ञापन करना।
2. सरोगेट मदर का शोषण करना।
3. सरोगेट बच्चे का परित्याग करना, शोषण या उसे अपनाने से मना करना।
4. सरोगेसी हेतू मानव भ्रूण या युग्मक को बेचना या आयात करना।
5. ऐसे अपराधों के लिये, सेरोगेसी (विनियमन) विधेयक 2019 के अनुसार कम से कम दस साल की कैद और 10 लाख रुपये के जुर्माने का प्रावधान है। यह विधेयक, विधेयक के प्रावधानों के अन्य उल्लंघनों के लिये कई और प्रकार के अपराधों और दंडों को निर्दिष्ट करता है।
विदेशों में सरोगेसी की स्थिति – Status of Surrogacy Abroad
1. फ्रांस, जर्मनी, स्पेन, स्वीडन, इटली, नीदरलैंड्स, नॉर्वे और आइसलैंड में सरोगेसी सभी रूपों में प्रतिबंधित है।
2. रूस, यूक्रेन और थाईलैंड जैसे देशों में कमर्शियल सरोगेसी की कानूनी तौर पर अनुमति है।
3. संयुक्त राज्य अमेरिका और अर्जेंटीना में सरोगेसी अनुरोध पर “स्वतंत्र सरोगेसी समितियों” द्वारा निर्णय लिया जाता है।
4. ऑस्ट्रेलिया, कनाडा और ग्रीस में केवल परोपकारी सरोगेसी की अनुमति है।
भारत में सरोगेसी की वैधानिक स्थिति – Legal Status of Surrogacy in India
दोस्तो, अब आपको बताते हैं भारत में, सरोगेसी के बारे में सिलसिलेवार कानूनी स्थिति –
1. वर्ष 2002 – सन् 2002 में, भारत में सरोगेसी को मान्यता प्रदान की गई थी। लेकिन आज तक इस पर कोई प्रोपर कानून नहीं बन पाया। सरोगेसी व्यवस्था विधेयकों (Bills) के आधार पर चल रही है। 2002 में भारत में कमर्शियल सरोगेसी को वैध किया गया था। उचित नियमों के अभाव, प्रजनन क्लीनिक की कम लागत और गरीब महिलाओं का इस सेवा को प्रदान करने के लिए इच्छुक होना, इनकी आपूर्ति आदि के कारण भारत अंतरराष्ट्रीय सरोगेसी का बाजार बन गया। परिणाम स्वरूप सरोगेट बनने वाली महिलाओं पर अत्याचार, शोषण, हालांकि, जिन महिलाओं ने सरोगेट बनना चुना, उनका शोषण, अनैतिक व्यवहार और उनके स्वास्थ की हानि के मामले बढ़ने लगे।
2. वर्ष 2009 – विधि आयोग (Law Commission of India) ने 228वीं रिपोर्ट सिफारिश की, कि उपयुक्त कानून (Appropriate Law) के माध्यम से सरोगेसी को वैध किया जाये और कमर्शियल सरोगेसी पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगाया जाये।
3. वर्ष 2016 – भारतीय संसद के लोकसभा में 21 नवम्बर 2016 को में लोक सभा में सरोगेसी (विनियमन) विधेयक 2016 रखा गया जो ध्वनि मत से पारित हो गया। इस विधेयक को 12 जनवरी 2017 को स्टैंडिंग समिति के पास भेजा। स्टैंडिंग समिति ने अपनी रिपोर्ट 10 अगस्त 2017 को प्रस्तुत की। 19 दिसम्बर 2018 को यह बिल पास हो गया।
सरोगेसी (विनियमन) विधेयक 2016 के मुख्य नियम – Key Rules of the Surrogacy (Regulation) Bill 2016
(i) कमर्शियल सरोगेसी पर पूरी तरह प्रतिबंध लगा दिया गया यानी अब कोख बेची नहीं जा सकती। पैसों का किसी प्रकार से लेन देन नहीं हो सकता।
(ii) भारत में सरोगेसी के लिये कोई भी विदेशी, नॉन रेजिडेंट इंडियन, पर्सन्स ऑफ इंडियन ओरिजिन, ओवरसीज सिटीजंस ऑफ इंडिया सरोगेसी के लिये अधिकृत नहीं किया गया।
(iii) विवाहित दंपति जिसके विवाह को कम से कम पांच साल पूरे हो जाने चाहियें, को ही सरोगेसी की सुविधा मिलेगी।
(iv) सरोगेट मदर इच्छुक विवाहित दंपति की करीबी रिश्तेदार होनी चाहिये और वह भी केवल एक बार ही सरोगेट मदर बन सकती है।
(v) सरोगेट मदर विवाहित होनी चाहिये और खुद उसका भी कम से कम एक बच्चा होना चाहिये। उसकी उम्र 25-35 साल होनी चाहिये।
(vi) एकल (Single), अविवाहित जोड़े, होमोसेक्सुअल, लिव-इन रिलेशन में रहने वाले को सरोगेसी की अनुमति नहीं।
(vii) सरोगेसी क्लीनिक को सारे रिकॉर्ड 25 वर्ष तक रखने होंगे।
(viii) सरोगेसी विधेयक नियम तोड़ने पर 5 से 10 वर्ष तक की सजा का प्रावधान रखा गया।
4. वर्ष 2019 – सेरोगेसी (विनियमन) विधेयक 2019 कैबिनेट से पास हुआ जिसकी मुख्य नियम निम्न प्रकार थे –
(i) सरोगेसी की प्रक्रिया और कार्य प्रणाली के लिये अधिकारियों की नियुक्ति का प्रावधान रखा गया।
(ii) सभी सरोगेसी क्लीनिक के लिये रजिस्ट्रेशन अनिवार्य किया गया है।
(iii) यह विधेयक ‘कमर्शियल सरोगेसी’ या ‘सरोगेसी’ के लिये मानव भ्रूण के क्रय-विक्रय पर प्रतिबंध लगाता है।
(iv) इस विधायक में विवाहित भारतीय दम्मति के लिये केवल नैतिक परोपकारी सरोगेसी की अनुमति दी गई ना कि कमाई के श्रोत के रूप में। अर्थात् जो महिला किसी दूसरे के बच्चे को जन्म देने के लिए तैयार हो वह मदद करने के उद्देश्य से करे ना कि इसे कमाई का जरिया मानकर।
(v) परोपकारी सरोगेसी से तात्पर्य ऐसी प्रेगनेंसी से है जिसमें दवाओं और दूसरे चिकित्सा खर्च के अतिरिक्त, रूपये-पैसे का किसी भी प्रकार से कोई लेन-देन ना हो।
(vi) सरोगेट मदर इच्छुक विवाहित दंपति की करीबी रिश्तेदार होनी चाहिये और वह भी केवल एक बार ही सरोगेट मदर बन सकती है।
(vii) सरोगेट मदर विवाहित होनी चाहिये और खुद उसका भी कम से कम एक बच्चा होना चाहिये। उसकी उम्र 25-35 साल होनी चाहिये।
(viii) इच्छुक दम्पति की उम्र, पत्नी की 23-50 और पति की उम्र 26-55 वर्ष के बीच होनी चाहिये।
(ix) यह विधेयक सरोगेसी से जन्मे बच्चे के सभी अधिकार उसी प्रकार सुनिश्चित करता है जैसे किसी जैविक बच्चे के जन्म के साथ से ही होते हैं।
(x) यह विधेयक सरोगेसी द्वारा जन्मे बच्चे को लेने से मना करने की प्रक्रिया को रोकता है अर्थात् दम्पति बच्चा लेने से मना नहीं कर सकती।
(xi) इस विधेयक के अनुसार अविवाहित पुरुष या सिंगल महिला, लिव-इन रिलेशनशिप में रहने वाले जोड़े और समलैंगिक जोड़े सरोगेसी के लिये पात्र नहीं हैं यानी ये सरोगेसी के लिये आवेदन नहीं कर सकते।
(xii) नियमों का उल्लंघन करने पर कम से कम दस साल की कैद और 10 लाख रुपये के जुर्माने का प्रावधान है।
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5. वर्ष 2020 – केंद्रीय मंत्रिमंडल ने सेरोगेसी की प्रक्रिया को विनियमित करने से संबंधित सेरोगेसी (विनियमन) विधेयक, 2020 को स्वीकृति दे दी। इसके मुख्य बिंदु निम्न प्रकार हैं –
(i) इस विधेयक में सेरोगेसी से संबंधित प्रभावी विनियमन सुनिश्चित करने हेतू केंद्रीय स्तर पर राष्ट्रीय सेरोगेसी बोर्ड (National Surrogacy Board ) और राज्य स्तर पर राज्य सरोगेसी बोर्ड (State Surrogacy Board) के गठन का प्रावधान है।
(ii) इस विधेयक में सेरोगेसी (विनियमन) विधेयक 2019 में उल्लिखित ‘करीबी रिश्तेदारों’ (Close Relatives) वाले खंड को हटा दिया गया है। अब यह विधेयक किसी भी ‘इच्छुक’ (Willing) महिला को सरोगेट मदर बनने की अनुमति देता है जिससे विधवा और तलाकशुदा महिलाओं के अतिरिक्त निःसंतान भारतीय दम्पति लाभान्वित होंगे।
(iii) इस विधेयक के द्वारा पांच साल के असुरक्षित संभोग के बाद गर्भ धारण करने में असमर्थता के रूप में “बांझपन” की परिभाषा को इस आधार पर हटा दिया गया है कि एक दम्पति के लिये बच्चे की चाहत की बहुत लंबी प्रतीक्षा है।
(iv) इस विधेयक में सरोगेट मदर्स के लिये बीमा कवर 16 महीने से बढ़ाकर 36 महीने कर दिया गया है।
(v) मानव भ्रूण और युग्मक के क्रय विक्रय पर और कमर्शियल सरोगेसी पर प्रतिबंध जारी रहेगा।
(vi) कुछ शर्तों को पूरा करने पर ही भारतीय विवाहित दम्पति, भारतीय मूल के विवाहित युगल (Couple) और भारतीय एकल (Single) महिला (केवल विधवा या तलाकशुदा जिसकी उम्र 35 से 45 वर्ष के बीच हो) को ही नैतिक सरोगेसी की अनुमति होगी।
(vii) इस विधेयक में सभी एकल / अविवाहित व्यक्तियों को सरोगेसी व्यवस्था शुरू करने के लिए स्वचालित रूप से बाहर रखा गया है। इसी तरह, अविवाहित ‘लाइन-इन’ संबंधों में लोग भी बहिष्कृत हैं।
(viii) यह विधेयक नवजात शिशु के अधिकारों को भी सुरक्षित करता है।
Conclusion –
दोस्तो, आज के लेख में हमने आपको सरोगेसी क्या होता है? के बारे में विस्तार से जानकारी दी। सरोगेसी क्या होती है, सरोगेसी के प्रकार, बच्चे के साथ किसका क्या संबंध, सरोगेसी की जरूरत कब पड़ती है, सरोगेसी के लिये पात्रता, सरोगेट मदर के लिये पात्रता, भारत में सरोगेसी केन्द्र, सरोगेसी के सबसे अधिक मामले, विवाद जो हुऐ या होने की संभावना, इन सब के बारे में भी विस्तार पूर्वक बताया। देसी हैल्थ क्लब ने इस लेख के माध्यम से अपराध और दंड, विदेशों में सरोगेसी की स्थिति और भारत में सरोगेसी की वैधानिक स्थिति के बारे में भी विस्तारपूर्वक बताया। आशा है आपको ये लेख अवश्य पसन्द आयेगा।
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