स्वागत है आपका हमारे ब्लॉग में। दोस्तो, हम सब जानते हैं कि डायबिटीज एक ऐसा रोग है कि यदि इसको कंट्रोल ना किया जाए तो यह गंभीर रूप ले लेती है। इससे उत्पन्न जटिलताएं घातक सिद्ध होती हैं। डायबिटीज की जटिलताओं में से एक जटिलता है डायबिटिक कीटोएसिडोसिस। यह एक ऐसी स्थिति है जो टाइप 1 डायबिटीज के मरीजों को हो सकती है और टाइप 2 डायबिटीज के बुजुर्ग मरीजों को अपना शिकार बना लेती है। यह स्थिति दुर्लभ मामलों में पाई जाती है।
डायबिटिक कीटोएसिडोसिस की समस्या बेहद गंभीर होती है। यदि डायबिटिक कीटोएसिडोसिस का इलाज ना कराया जाए तो मरीज कोमा में जा सकता है या उसकी मृत्यु हो सकती है। क्यों कि जब रक्त में कीटोन्स की मात्रा बढ़ती है तो रक्त अम्लीय (Acidic) होने लगता है और यहीं से डायबिटिक कीटोएसिडोसिस की शुरुआत हो जाती है। आखिर ऐसा क्या है इस डायबिटिक कीटोएसिडोसिस में जो यह जानलेवा बन सकती है? दोस्तो, यही है हमारा आज का टॉपिक “डायबिटिक कीटोएसिडोसिस क्या है?”।
देसी हैल्थ क्लब इस आर्टिकल के माध्यम से आपको डायबिटिक कीटोएसिडोसिस के बारे में विस्तार से जानकारी देगा और यह भी बताएगा कि इसका उपचार क्या है और बचाव क्या है। तो, सबसे पहले जानते हैं कि डायबिटीज क्या है और डायबिटिक कीटोएसिडोसिस क्या है?। फिर, इसके बाद बाकी बिंदुओं पर जानकारी देंगे।
डायबिटीज क्या है? – What is Diabetes?
भोजन पचने के बाद इसका कार्बोहाइड्रेट भाग ग्लुकोज़ बन जाता है। इंसुलिन नामक हार्मोन इस ग्लुकोज़ को ऊर्जा में परिवर्तित करता है जो कि शरीर की कार्य प्रणाली के लिए बहुत जरूरी होती है। किसी कारणवश, जब इंसुलिन की कार्य प्रणाली में कोई रुकावट आती है तो इंसुलिन हार्मोन, ग्लुकोज़ को ऊर्जा में परिवर्तित नहीं कर पाता है।
ऐसी अवस्था में ग्लुकोज़ रक्त में जमा होने लगता है। जब रक्त में ग्लुकोज़, सामान्य स्तर से अधिक मात्रा में जमा हो जाता है तो ग्लुकोज़ की इसी अधिक मात्रा को ब्लड शुगर कहा जाता है। मेडिकल भाषा में इसे डायबिटीज कहते हैं। डायबिटीज पर विस्तार से जानकारी के लिए हमारा पिछला आर्टिकल “शुगर कंट्रोल करने के घरेलू उपाय” पढ़ें।
डायबिटिक केटोएसिडोसिस क्या है? – What is Diabetic Ketoacidosis?
दोस्तो, डायबिटिक केटोएसिडोसिस (Diabetic Ketoacidosis – DKA) एक ऐसी अति गंभीर और दुर्लभ मामलों में पाए जाने वाली चिकित्सकीय जटिलता है जो जीवन के लिये घातक हो सकती है। इसके लक्षण प्रकट होने पर यदि इसका उपचार ना किया जाए तो मरीज कोमा में जा सकता है या उसकी मृत्यु हो सकती है। यह जटिलता टाइप 1 डायबिटीज के मरीजों में पाई जाती है।
डायबिटिक केटोएसिडोसिस, टाइप 2 डायबिटीज के मरीजों में भी पाई जा सकती है मगर इसके मामले अति दुर्लभ होते हैं। टाइप 2 डायबिटीज के उन मरीजों में यह समस्या होने की संभावना अधिक होती है जो बुजुर्ग हैं। टाइप 2 डायबिटीज के बुजुर्ग मरीजों में हाइपरसोमोलर हाइपरग्लाइसेमिक नॉनकेटोटिक सिंड्रोम Hyperosmolar Hyperglycemic Nonketotic Syndrome – HHNS) होने का जोखिम भी रहता है।
HHNS मरीज में गंभीर रूप से डिहाइड्रेशन की वजह बनता है। यदि डायबिटिक केटोएसिडोसिस की बात की जाए तो समझिए कि इंसुलिन के पर्याप्त मात्रा के उत्पादन के अभाव में कोशिकाएं ग्लूकोज़ को अवशोषित करने में असमर्थ होने पर वसा (Fat) से ऊर्जा ग्रहण करती हैं। जिससे रक्त में कीटोन्स बढ़ने लगते हैं। इसी अवस्था को डायबिटिक केटोएसिडोसिस कहते हैं। इसकी शुरुआत कैसे होती है इसका जिक्र हम आगे करेंगे।
डायबिटिक केटोएसिडोसिस की स्थिति कैसे बनती है? – How Does Diabetic Ketoacidosis Occur?
दोस्तो, शरीर को अपनी कार्य प्रणाली को सुचारु रूप से चलाने के लिए ऊर्जा की जरूरत है और यह ऊर्जा ग्लूकोज़ से मिलती है। भोजन पचने पर इसके कार्बोहाइड्रेट भाग को, इंसुलिन हार्मोन ग्लूकोज़ में बदल देता है। इंसुलिन, इस ग्लूकोज़ को कोशिकाओं में भेजने का काम करता है। यह ग्लूकोज़ मांसपेशियों और ऊतकों के लिए ऊर्जा का काम करता है।
जब शरीर में इंसुलिन का निर्माण नहीं हो पाता है तो इसके अभाव में कोशिकाओं को पर्याप्त मात्रा में उनकी ऊर्जा यानि ग्लूकोज नहीं मिल पाता है यानि कोशिकाएं ग्लूकोज को अवशोषित करने में अक्षम रहती हैं। ऐसी स्थिति में ऊर्जा के लिए शरीर, वसा (Fat) का सहारा लेता है और इसे जलाने लगता है। शरीर की इस प्रक्रिया के फलस्वरूप रक्त में कीटोन्स बढ़ने लगते हैं।
हम यहां बता दें कि कीटोन्स वे अणु हैं जो ऊर्जा बनाने के लिए वसा के कम होने की वजह बनते हैं। शरीर में पर्याप्त मात्रा में वसा कम होना भी एक समस्या है। रक्त में कीटोन्स जमा होते रहने से रक्त अम्लीय हो जाता है। इसी स्थिति से डायबिटिक केटोएसिडोसिस की शुरुआत हो जाती है। यदि समय रहते इसका उपचार ना किया जाए तो मरीज के जीवन को खतरा हो जाता है।
डायबिटिक कीटोएसिडोसिस के कारण – Causes of Diabetic Ketoacidosis
डायबिटिक कीटोएसिडोसिस होने के निम्नलिखित कारण होते हैं –
1. इंसुलिन उत्पादन के अभाव में कोशिकाओं द्वारा ग्लुकोज़ को अवशोषित ना कर पाने पर, ऊर्जा के लिए वसा का इस्तेमाल करना। ऐसा होने पर रक्त में कीटोन्स का बढ़ जाना। यह प्रमुख कारण है। इससे रक्त का संतुलन बिगड़ जाता है और शरीर की कार्य प्रणाली में परिवर्तन आ जाता है।
2. इंफेक्शन या कुछ बीमारियों के कारण भी डायबिटिक कीटोएसिडोसिस की स्थिति बन सकती है। इंफेक्शन में यूरीन इंफेक्शन, निमोनिया इंफेक्शन आदि हो सकते हैं।
कुछ बीमारियां एड्रेनालाईन और कोर्टिसोल का उच्च मात्रा में उत्पादन कर सकती हैं जिनसे इंसुलिन उत्पादन प्रभावित होता है, फिर रक्त में कीटोन्स की मात्रा बढ़ने लगती है।
3. तनावग्रस्त रहना।
4. किसी कारणवश इंसुलिन की प्रतिक्रिया।
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डायबिटिक कीटोएसिडोसिस के जोखिम कारक – Risk Factors for Diabetic Ketoacidosis
कुछ निम्नलिखित स्थितियां भी डायबिटिक कीटोएसिडोसिस के जोखिम को ट्रिगर कर सकती हैं –
- जिन लोगों को इंसुलिन के इंजेक्शन लगवाने की जरूरत पड़ती है उनका पर्याप्त मात्रा में इंसुलिन का इंजेक्शन ना लगवाना।
- टाइप 1 डायबिटीज़ के मरीजों में डायबिटिक कीटोएसिडोसिस होने की संभावना रहती है।
- टाइप 2 डायबिटीज के वृद्ध मरीजों में डायबिटिक कीटोएसिडोसिस होने की संभावना रहती है।
- पेट से जुड़े रोग
- फेफड़ों में रक्त का थक्का जमना
- हृदय से जुड़े रोग, हार्ट अटैक, स्ट्रोक या हार्ट सर्जरी।
- वर्तमान में, हाल ही में हुई अन्य सर्जरी।
- गंभीर रोग या ट्रॉमा।
- गर्भावस्था।
- स्टेरॉयड या एंटीसाइकोटिक्स जैसी दवाएं खाना।
- शराब का अधिक सेवन करना।
- ड्रग्स या नशीली/अवैध दवाओं का सेवन करना।
डायबिटिक कीटोएसिडोसिस के लक्षण – Symptoms of Diabetic Ketoacidosis
अब नजर डालते हैं डायबिटिक कीटोएसिडोसिस के लक्षणों पर जो बहुत तेजी से विकसित होते हैं। ये लक्षण निम्न प्रकार हैं –
- सांस से बदबू आना
- सांस लेने में दिक्कत होना
- बहुत ज्यादा प्यास लगना
- बार-बार मूत्र विसर्जन की इच्छा होना
- त्वचा में रूखापन आ जाना
- जी मिचलाना, उल्ट
- पेट में दर्द
- शुगर लेवल का बढ़ जाना
- यूरीन में कीटोन्स का हाई लेवल
- कमजोरी, थकावट
- भ्रमित रहना
- एकाग्रचित ना होना, ध्यान ना लगना
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डायबिटिक कीटोएसिडोसिस का निदान – Diagnosing Diabetic Ketoacidosis
डायबिटिक कीटोएसिडोसिस का शक होने पर या किसी मरीज में डायबिटिक कीटोएसिडोसिस के लक्षण प्रकट होने पर शारीरिक परीक्षण के बाद डॉक्टर निम्नलिखित टेस्ट करवाने की सलाह दे सकते हैं –
- ब्लड टेस्ट – ब्लड टेस्ट में शुगर लेवल, कीटोन्स लेवल और ब्लड एसिड की जानकारी ली जाती है।
- ब्लड इलेक्ट्रोलाइट टेस्ट
- यूरीन टेस्ट
- छाती का एक्स-रे
- इलेक्ट्रोकार्डियोग्राम
डायबिटिक कीटोएसिडोसिस का इलाज – Treatment of diabetic ketoacidosis
दोस्तो, डायबिटिक कीटोएसिडोसिस के इलाज का उद्देश्य केटोएसिडोसिस, इलेक्ट्रोलाइट असामान्यताएं, ग्लुकोज़ लेवल को नियंत्रित करना तथा डायबिटिक कीटोएसिडोसिस के कारकों से यथासंभव खत्म करना होता है। डायबिटिक कीटोएसिडोसिस से ग्रस्त मरीज का उपचार इमरजेंसी वार्ड में किया जाता है। द्रव प्रतिस्थापन (Fluid replacement), इलेक्ट्रोलाइट प्रतिस्थापन और इंसुलिन थेरेपी के जरिये मरीज का इलाज किया जाता है। विवरण निम्न प्रकार है –
1. द्रव प्रतिस्थापन (Fluid Replacement)- द्रव प्रतिस्थापन यानि फ्लूइड रिप्लेसमेंट (Fluid replacement) के अंतर्गत सोडियम क्लोराइड के घोल का अंतःशिरा आसव (intravenous infusion) का उपयोग किया जाता है। इससे प्लाज्मा ऑस्मोलैलिटी में कमी आती है तथा जल अणु इंट्रासेल्युलर कम्पार्टमेंट्स में प्रवेश कर जाते हैं। हृदय रोग और किडनी के पुराने रोग वाले मरीजों का विशेष ध्यान रखा जाता है तथा यूरिन ऑउटपुट को लगातार मॉनिटर किया जाता है।
यहां हम बता दें कि मरीज को फ्लूइड चढ़ाने से पहले, मेटाबॉलिक प्रोफ़ाइल के विश्लेषण लिए मरीज का ब्लड सैंपल लिया जाता है। इस ब्लड सैंपल के विश्लेषण के एक घंटे बाद ही फ्लूइड चढ़ाया जाता है। एक बात और कि डायबिटिक कीटोएसिडोसिस की स्थिति में शरीर में द्रवों की बहुत हानि होती है इसलिये इसे आपात स्थिति मानकर 24 घंटों में द्रवों की स्थिति को ठीक करना जरूरी होता है।
2. इलेक्ट्रोलाइट प्रतिस्थापन (Electrolyte Replacement)- शरीर में कैल्शियम, सोडियम, पोटेशियम,क्लोराइड, फॉस्फेट और मैग्नीशियम इलेक्ट्रोलाइट्स विद्यमान होते हैं। शरीर में पानी की मात्रा, द्रवों के स्तर को संतुलित रखने, नसों और मांसपेशियों के कार्य प्रणाली में सहायता करने में महत्वपूर्ण सक्रिय भूमिका निभाते हैं। इंसुलिन के कम उत्पादन के कारण रक्त में सोडियम, पोटेशियम जैसे कई इलेक्ट्रोलाइट्स की कमी हो जाती है। इनकी पूर्ति करने के लिए नस में इंजेक्शन के द्वारा इलेक्ट्रोलाइट्स दिए जाते हैं।
यहां हम बता दें कि इलेक्ट्रोलाइट रिपलेस्मेंट थेरेपी में पोटेशियम, बाइकार्बोनेट और फॉस्फेट का इनफ्यूज़न सम्मलित होता है। इंसुलिन थेरेपी की प्रक्रिया के समय अक्सर पोटेशियम लेवल कम हो जाना स्वाभाविक है तो इंसुलिन थेरेपी को रोक कर पोटेशियम को इंट्रावेनस के जरिए दिया जाता है। पोटेशियम क्लोराइड के साथ बाइकार्बोनेट इनफ्यूज़न का उपयोग, डायबिटिक कीटोएसिडोसिस के गंभीर मामलों में जहां पीएच लेवल 6 पर आ गया हो, किया जाता है जब तक कि पीएच लेवल 7 पर ना आ जाए।
3. इंसुलिन थेरेपी (Insulin Therapy)- हम ऊपर बता ही चुके हैं कि डायबिटिक कीटोएसिडोसिस के इलाज का उद्देश्य केटोएसिडोसिस, इलेक्ट्रोलाइट असामान्यताएं, ग्लुकोज़ लेवल को नियंत्रित करना तथा डायबिटिक कीटोएसिडोसिस के कारकों से यथासंभव खत्म करना होता है। इन सब को इंसुलिन के माध्यम से कंट्रोल किया जाता है।
फ्लूइड रिप्लेसमेंट, इलेक्ट्रोलाइट रिप्लेसमेंट थेरेपी के अतिरिक्त इंसुलिन थेरेपी का भी उपयोग किया जाता है। इंट्रावेनस इनफ्यूज़न के जरिये इंसुलिन की उच्च मात्रा दी जाती है। यह प्रक्रिया तब तक की जाती है जब तक कि ब्लड शुगर लेवल 200 मिलीग्राम/डीएल तक ना आ जाए तथा रक्त में अम्लीयता समाप्त ना हो जाए। इंसुलिन थेरेपी कीटोन्स के उत्पादन की रोकथाम करती है।
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4. डेक्सट्रोज इनफ्यूज़न (Dextrose Infusion)- डायबिटिक कीटोएसिडोसिस से पीड़ित कुछ मरीजों का ब्लड शुगर लेवल 70 मिलीग्राम / डीएल से नीचे पहुंच जाता है। इस स्थिति को हाइपोग्लाइसीमिया कहा जाता है। यह स्थिति डायबिटिक कीटोएसिडोसिस के कारण ही बनती है।
ऐसे मरीजों के ब्लड शुगर लेवल को लगातार मॉनिटर करने की जरूरत पड़ती है। ऐसे मरीजों की समस्या का समाधान डेक्सट्रोज इनफ्यूज़न या 15 से 20 ग्राम कार्बोहाइड्रेट के मौखिक सेवन के जरिए किया जाता है।
डायबिटिक कीटोएसिडोसिस से बचाव के उपाय – Ways to Prevent Diabetic Ketoacidosis
दोस्तो, यह डायबिटिक कीटोएसिडोसिस जरूरी नहीं है कि हर टाइप 1 डायबिटीज़ के मरीज को डायबिटिक कीटोएसिडोसिस की जटिलता हो जाए परन्तु इसके होने की संभावना से इंकार भी नहीं किया जा सकता। इसलिए यदि डायबिटीज़ के मरीज थोड़ा सावधान रहें और निम्नलिखित बातों का ध्यान रखें तो डायबिटिक कीटोएसिडोसिस से बचाव किया जा सकता है –
- डायबिटीज़ के मरीज नियमित रूप से अपने ब्लड शुगर लेवल को मॉनिटर करें। इसके लिए समय समय पर जांच कराते रहें।
- यूरीन की भी जांच कराते रहें।
- यदि दवाएं ले रहे हैं तो डॉक्टर की सलाह के अनुसार दवाएं और इंसुलिन लेते रहें।
- अपने खाने पीने का विशेष तौर पर ध्यान रखें और निर्धारित आहार के प्रति प्रतिबद्ध रहें।
- आहार में कम वसा और अधिक फाइबर वाले खाद्य पदार्थों को अपने आहार में सम्मलित करें।
- स्टार्च और चीनी युक्त खाद्य पदार्थों को अवॉइड करें।
- यदि शुगर लेवल लो में जाता है और आपको हाइपोग्लाइसीमिया महसूस होती है तो ऐसे हालात से निपटने के लिए मिस्री या चॉकलेट हमेशा अपने पास रखें। जरूरत महसूस होने पर इनका सेवन करें।
- शारीरिक गतिविधियां करते रहें।
- सुबह के समय योग, ध्यान, प्राणायाम, व्यायाम करें।
- सुबह कम से कम एक घंटे का व्यायाम करें।
- यदि व्यायाम नहीं करना है तो कम से कम 45 मिनट की मॉर्निंग वॉक अवश्य करें।
- डॉक्टर की सलाह के अनुसार दवाएं लेने पर भी यदि आपकी तबियत बिगड़ रही है तो यूरीन में कीटोन्स की भी जांच कराएं।
- यदि यूरीन में कीटोन्स का पता चलता है तो व्यायाम ना करें और तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें।
Conclusion –
दोस्तो, आज के आर्टिकल में हमने आपको डायबिटिक कीटोएसिडोसिस के बारे में विस्तार से जानकारी दी। डायबिटीज क्या है, डायबिटिक केटोएसिडोसिस क्या है, डायबिटिक केटोएसिडोसिस की स्थिति कैसे बनती है, डायबिटिक कीटोएसिडोसिस के कारण, डायबिटिक कीटोएसिडोसिस के जोखिम कारक, डायबिटिक कीटोएसिडोसिस के लक्षण और डायबिटिक कीटोएसिडोसिस का निदान, इन सब के बारे में भी विस्तार पूर्वक बताया। देसी हैल्थ क्लब ने इस आर्टिकल के माध्यम से डायबिटिक कीटोएसिडोसिस के इलाज के बारे में भी बताया और डायबिटिक कीटोएसिडोसिस से बचाव के बहुत सारे उपाय भी बताए। आशा है आपको ये आर्टिकल अवश्य पसन्द आयेगा।
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