स्वागत है हमारे ब्लॉग पर। दोस्तो, जो बच्चे प्रीमैच्योर जन्म लेते हैं उनका वजन कम होना स्वाभाविक है और अक्सर छः महीने के बाद भी उनका वजन कम ही रहता है। इसलिए उनके वजन बढ़ाने के बारे में चिंता रहना स्वाभाविक है परन्तु कुछ ऐसे बच्चे भी होते हैं जो अपने सही समय पर जन्म लेते हैं और उनका वजन छः महीने के पश्चात आदर्श वजन से कम होता है। यह वास्तव में चिंताजनक बात है। बच्चे का वजन उनकी आयु के अनुसार सही ना होना इस बात का संकेत है कि बच्चे का ग्रोथ ठीक से नहीं हो पा रहा है। बच्चे का वजन कम होने की कई वजह हो सकती हैं जिनका जिक्र हम आगे करेंगे। जरूरत है तो इस बात की कि उनका वजन बढ़ाया जाए, मगर कैसे? दोस्तो, यही है हमारा आज का टॉपिक “छोटे बच्चों का वजन बढ़ाने के उपाय”।
देसी हैल्थ क्लब इस आर्टिकल के माध्यम से आज आपको बच्चों के वजन के बारे में जानकारी देगा और उनका वजन बढ़ाने के उपाय भी बताएगा। तो सबसे पहले जानते हैं कि बच्चे का वजन कितना बढ़ना चाहिए। फिर बाकी बिंदुओं पर जानकारी देंगे।
बच्चे का वजन कितना बढ़ना चाहिए? – How much should a child’s Weight Increase
बच्चे के जन्म के बाद आयु के अनुसार बच्चे का वजन कितना बढ़ना चाहिए, इसका विवरण निम्न प्रकार है –
- पहली तिमाही में हर सप्ताह बच्चे का वजन 175 से 200 ग्राम तक बढ़ना चाहिए।
- अगले 6 महीनों में बच्चे के वजन लगभग 100 ग्राम प्रति हफ्ते की दर से बढ़ना चाहिए। 5 महीने के बच्चे का वजन उसके जन्म के वजन से दुगना होना चाहिए।
- 6 महीने के बाद एक वर्ष का होने तक बच्चे का वजन प्रति महीने लगभग 400 ग्राम बढ़ना चाहिए। 1 वर्ष के बच्चे का जन्म, उसके जन्म के वजन से 3 गुना होना चाहिए।
- 2 वर्ष की आयु में बच्चे का वजन, उसके जन्म के वजन से 4 गुना होना चाहिए।
- 2 वर्ष की आयु के बाद 6 वर्ष की आयु तक बच्चे का वजन प्रति वर्ष 2 किलो की दर से बढ़ना चाहिए। इस हिसाब से 3 वर्ष की आयु में बच्चे का वजन उसके जन्म के वजन से 5 गुना और 5 वर्ष का होने पर उसके जन्म के वजन से 6 गुना होना चाहिए।
- 7 वर्ष की आयु में बच्चे का वजन उसके जन्म के वजन से 7 गुना होना चाहिए।
- 10 वर्ष की आयु में बच्चे का वजन, उसके जन्म के वजन से 10 गुना होना चाहिए।
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कम वजन होने के दुष्प्रभाव – Side Effects of Being Underweight
बच्चे में यदि उसकी आयु के अनुसार वजन में बढ़ोत्तरी ना हो तो इसके निम्नलिखित दुष्प्रभाव देखे जा सकते हैं –
- आयु के अनुसार यदि बच्चे के औसत वजन में कमी होती है तो यह कुपोषण की ओर संकेत करता है कि बच्चा कुपोषण का शिकार है।
- बच्चे की इम्युनिटी इतनी कमजोर हो जाती है कि वह बहुत जल्दी-जल्दी बीमार पड़ता रहता है।
- बच्चे का शारीरिक और मानसिक विकास रुक जाता है।
- बच्चे की हड्डियों की भी ग्रोथ रुक जाती है।
- बच्चा हड्डियों का ढांचा बन कर रह जाता है।
- बार-बार बीमार पड़ने से एक स्थिति ऐसी भी आती है कि जब दवाएं काम नहीं करतीं क्योंकि पोषक तत्वों युक्त भोजन के अभाव में उनके शरीर में जान नहीं रहती। ऐसी स्थिति में बच्चे की मृत्यु भी हो जाने की संभावना रहती है।
बच्चों का वजन ना बढ़ने के कारण –
दोस्तो, प्रीमैच्योर जन्म लेने वाले बच्चों का वजन कम होना तो समझ आता है परन्तु अपने पूरे समय पर पैदा हुए बच्चों का वजन यदि आयु के अनुसार नहीं बढ़ रहा है तो इसके निम्नलिखित कारण हो सकते हैं –
- अत्यंत गरीबी के कारण पौष्टिक आहार तो क्या सामान्य आहार का भी समय पर ना मिल पाना।
- बच्चे के पेट में कीड़े होना।
- जीन संबंधी विकार
- हार्मोन से जुड़ी समस्या
- तन्त्रिका तंत्र संबंधी विकार
- अंगों का ग्रोथ रुक जाना
- एनीमिया
बच्चों का आहार – children’s Diet
दोस्तो, यहां हम स्पष्ट कर दें कि छः महीने तक शिशु के लिए केवल उसकी माता का दूध ही अमृत होता है जिसका कोई विकल्प नहीं है। क्योंकि शिशु के लिये आवश्यक सभी विटामिन और खनिज मां के दूध में होते हैं। मां को अपने बच्चे को हर दो घंटे बाद स्तनपान कराना चाहिए। यदि शिशु मां का दूध नहीं पी पा रहा है तो मां, ब्रेस्ट पम्पिंग मशीन से अपना दूध निकाल कर चम्मच से या बोतल से दूध पिलाए। मां के स्तनों में दूध ना उतरने अथवा पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध ना होने के कारण, डॉक्टर की सलाह पर फार्मूला दूध शिशु को पिलाना चाहिए।
छः महीने के बाद शिशु का काम केवल दूध से नहीं चलता। डॉक्टर की सलाह पर शिशु को ठोस आहार जो नरम हो और सरल पचने वाला हो, खिलाना चाहिए। इसमें दूध के अतिरिक्त दाल, सब्जियां, फल, अनाज, अंडे, साबूदाना, खिचड़ी, दलिया, दही, स्मूदी आदि को शामिल करना चाहिए।
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छोटे बच्चों का वजन बढ़ाने के उपाय – Ways to Increase Weight of Small Children
अब बताते हैं आपको कुछ निम्नलिखित घरेलू उपाय जिनको अपना कर आप अपने छः महीने से अधिक आयु वाले बच्चों का वजन बढ़ा सकते हैं –
1. केला (Banana)- केला एक ऐसा फल है जो तुरन्त शक्ति देता है तथा बच्चे तो क्या बड़ों का भी वजन बढ़ाने में मदद करता है। यह प्राकृतिक ऊर्जा का उत्तम स्रोत है। एनर्जी, कार्बोहाइड्रेट और फैट वजन बढ़ाने में मदद करते हैं। इसके अतिरिक्त इसमें उपस्थित विटामिन विटामिन-सी और विटामिन-बी6 तथा पोटेशियम, फाइबर, कैल्शियम आदि खनिज दैनिक जरूरतों के पौष्टिक तत्वों को पूरा करते हैं। आप बच्चे को केला ऐसे ही खिला सकते हैं, बनाना शेक बना सकते हैं, स्मूदी या पुडिंग के रूप में भी बच्चे को खिला सकते हैं।
2. एवोकाडो (Avocado)- एवोकाडो फल में एनर्जी, फैट और कार्बोहाइड्रेट्स का परफेक्ट कम्बिनेशन देखने को मिलता है जो वजन बढ़ाने में मदद करते हैं। इसके अतिरिक्त यह विटामिन्स और खनिजों का भरपूर स्रोत होता है। छः महीने से अधिक और नौ महीने तक के बच्चे को आप एवोकाडो की प्यूरी बनाकर खिला सकते हैं तथा नौ महीने से बड़े बच्चे को एवोकाडो को थोड़ा मैश करके खिला सकते हैं।
3. मिक्स फ्रूट जूस (Mix Fruit Juice)- मिक्स फ्रूट जूस में एनर्जी, शुगर तथा कार्बोहाइड्रेट की अधिक मात्रा होती है, मगर फैट नहीं होता। वहीं इसमें कैल्शियम, पोटेशियम, सोडियम, आयरन जैसे खनिज व कई विटामिन होते हैं। ये सभी तत्व बच्चे को स्वस्थ बनाए रखने का काम करते हैं साथ ही बच्चे की ग्रोथ होती है और उसका वजन बढ़ता है। छः महीने से अधिक और नौ महीने तक के बच्चे को मिक्स फ्रूट जूस पिलाएं। यहां हम कहना चाहेंगे कि मिक्स फ्रूट जूस घर का बनाया हुआ होना चाहिए ना कि बाजार का खुला अथवा डिब्बा बंद।
4. फल (Fruit)- नौ महिने से अधिक आयु के बच्चों को सभी प्रकार के फल खिलाएं जिनको वह आसानी से खा सकता है जैसे कि केला, पपीता, चीकू आदि। विकल्प स्वरूप फलों को मैश करके बच्चे को खिलाएं। यहां हम स्पष्ट कर दें कि बहुत छोटे फल जैसे कि अंगूर, अनारदाना, बैरी आदि को बच्चे को सीधे खाने को ना दें क्योंकि ये बच्चे के गले में अटक सकते हैं। इनको मैश करके ही बच्चे को खिलाएं। फलों में मौजूद विटामिन तथा खनिज बच्चे के शारीरिक और मानसिक विकास में मदद करते हैं और बच्चे का वजन भी ग्रो करता है।
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5. शकरकंद (Sweet Potato)- शकरकंद एनर्जी और कार्बोहाइड्रेट का भरपूर प्राकृतिक स्रोत है जो वजन बढ़ाने में सक्रिय भूमिका निभाते हैं। इसमें मौजूद कैल्शियम, पोटेशियम, आयरन और मैग्नीशियम तथा नियासिन, फोलेट व अन्य विटामिन बच्चे की ग्रोथ में मदद करते हैं। शकरकंद को भूनकर या उबालकर, छीलकर सीधे खाने को दे सकते हैं या मैश करके दें।
6. आलू (Potato)- आलू एनर्जी और कार्बोहाइड्रेट का भरपूर स्रोत है जो वजन बढ़ाने में मदद करते हैं। इसमें हल्का सा फैट भी होता है। इसके अतिरिक्त इसमें केल्शियम, आयरन, पोटेशियम, मैग्नीशियम व फास्फोरस तथा विटामिन-सी, बी6, राइबोफ्लेविन, थियामिन, नियासिन और फोलेट भी उपस्थित होते हैं जो बच्चे को ग्रो करने में मदद करते हैं। बच्चे को आलू आप किसी भी रूप में दे सकते हैं, उबालकर, या भूनकर ऐसे ही या दूध में मिक्स करके या दाल, खिचड़ी, सब्जी में डालकर।
7. रागी (Ragi)- प्रोटीन, फाइबर, कैल्शियम, आयरन तथा कई विटामिनों से समृद्ध रागी एक अनाज होता है जैसे बाजरा होता है। यह बच्चे के विकास में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इसमें उपस्थित एनर्जी, कार्बोहाइड्रेट और फैट वजन बढ़ाने का काम करते हैं। डॉक्टर भी बच्चे को लिए रागी देने की सलाह देते हैं। यह आसानी से पच भी जाता है। इसे खिचड़ी या हलवा में मिक्स कर सकते हैं। एक साल से बड़े बच्चे को रागी की रोटियां बनाकर भी खिलाई जा सकती हैं।
8. ओट्स (Oats)- ओट्स को बच्चे के लिए सुपर फूड माना जाता है। यह विटामिन-बी-6, फोलेट, राइबोफ्लेविन, थियामिन और नियासिन, कैल्शियम, पोटेशियम, फास्फोरस, आयरन और मैग्नीशियम जैसे पोषक तत्वों से समृद्ध होता है जो बच्चे के विकास के लिए जरूरी तत्व होते हैं। फैट, एनर्जी और कार्बस् बच्चे का वजन बढ़ाने में सहायक होते हैं। बच्चे को नियमित रूप से ओट्स खिलाएं।
9. दालें (Pulses)- दालें प्रोटीन का भरपूर स्रोत होती हैं और बच्चे के विकास के लिए बहुत जरूरी होती हैं। विशेषकर मूंग की दाल में सबसे अधिक प्रोटीन होता है। दालों में ज़िंक, आयरन, मैग्नीशियम, फोलेट व कई विटामिन मौजूद होते हैं ये वजन बढ़ाने में भी मदद करते हैं। बच्चे को मूंग की दाल की खिचड़ी बनाकर खिलाएं। इसके अतिरिक्त अन्य बिना मिर्च मसाले वाली दालें (हल्का सा नमक डाल सकते हैं) बनाकर बच्चे को खिला सकते हैं। बच्चे के वजन में फर्क पड़ जाएगा।
10. देशी घी (Desi Ghee)- एंटीऑक्सीडेंट गुणों से भरपूर देशी घी में विटामिन-A, K और विटामिन-E, ओमेगा-3, ओमेगा-9 फैटी एसिड होते हैं। इनके अतिरिक्त यह एनर्जी और फैट से भरपूर होता है। भैंस के दूध से बना देशी घी शरीर का वजन बढ़ाकर शरीर को बलशाली बनाता है तो गाय के दूध से बना देशी घी मस्तिष्क स्वास्थ को बढ़ाता है। इसे ब्रेन टॉनिक कहा जाता है। जहां तक बच्चे का वजन बढ़ाने का प्रश्न है तो भैंस के दूध से बना देशी घी ही दें।
इसे आप बच्चे की दाल में, ओट्स में, खिचड़ी व अन्य खाद्य पदार्थों में डालकर दे सकते हैं। विद्यार्थी जीवन में गाय के देशी घी को प्राथमिकता दें। देशी घी के विकल्प स्वरूप आप बच्चे को मक्खन भी खिला सकते हैं मगर ध्यान रहे कि मक्खन बिना नमक वाला होना चाहिए और यह बहुत ही कम मात्रा में दें।
11. दही (Curd)- दही प्रोबायोटिक्स का सर्वोत्तम स्रोत है। प्रोबायोटिक्स जीवित सूक्ष्मजीव होते हैं जो शरीर के लिए “गुड बैक्टीरिया” के रूप में जाने जाते हैं। ये गुड बैक्टीरिया पाचन तंत्र को स्वस्थ रखने, इम्युनिटी को बढ़ाने, शारीरिक और मानसिक स्वास्थ को सही बनाए रखने में मदद करते हैं।
प्रोबायोटिक्स पर विस्तार से जानकारी के लिए हमारा पिछला आर्टिकल “प्रोबायोटिक्स क्या है?” पढ़ें। दही में मौजूद लैक्टोबैसिलस (Lactobacillus) नामक गुड बैक्टीरिया भोजन को पचाने में मदद करते हैं। दही के सेवन से भूख खुलकर लगती है जिसकी वजह से खुराक में बढ़ोत्तरी होती है। जब खुराक बढ़ेगी तो शरीर का वजन भी बढ़ेगा। वैसे भी दही में एनर्जी, प्रोटीन, शुगर और कार्ब्स की भरपूर मात्रा होती है।
दही में विटामिन-ए, बी कॉम्प्लेक्स, सी, डी और ई तथा कैल्शियम, आयरन, पोटैशियम और मैग्नीशियम जैसे तत्व होते हैं। बच्चे के भोजन में दही को नियमित रूप से शामिल करें।
12. पनीर (Cheese)- पनीर बहुत नरम होता है इसे छोटा बच्चा भी बहुत आसानी से खा लेता है। एनर्जी, फैट, कार्ब्स और शूगर से भरपूर पनीर बच्चे के वजन को बढ़ाने में मदद करता है। कैल्शियम,आयरन, फास्फोरस, पोटेशियम, सोडियम और फैटी एसिड जैसे तत्व स्वास्थ के लिए लाभकारी होते हैं।
यदि बच्चे को पहली बार पनीर खिला रहे हैं तो तीन दिन का इंतजार करें। कोई एलर्जिक रिएक्शन ना होने की स्थिति में, पनीर को आगे जारी रखें। बच्चे को पनीर के छोटे-छोटे टुकड़े करके खिला सकते हैं या पनीर को कद्दूकस करके बच्चे के ओट्स, खिचड़ी, दाल आदि में मिक्स करके खिला सकते हैं।
13. ड्राई फ्रूट्स (Dry Fruits)- ड्राई फ्रूट्स भी बच्चे का वजन बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इनमें एनर्जी और कार्ब्स भरपूर मात्रा में पाए जाते हैं तथा कई विटामिनों और खनिजों से सम्पन्न होते हैं। ड्राई फ्रूट्स शरीर को अंदर से मजबूत बनाते हैं और मस्तिष्क स्वास्थ के लिए भी फायदेमंद होते हैं। छोटे बच्चे ड्राई फ्रूट्स खाने में सक्षम नहीं होते इसलिये उनको भीगे, छिलका उतारे हुए बादाम, रात भर के भीगे छुहारे या काजू, पिस्ता आदि ग्राइंड करके उनके भोजन में मिलाकर दिए जा सकते हैं। यह बच्चे के लिए सुपर फूड बन जाएगा।
14. अंडा (Egg)- एनर्जी, प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट्स और फैट से भरपूर अंडे में विटामिन-ए, बी2, बी5, बी12, डी और सोडियम, पोटेशियम, आयरन फास्फोरस, मैग्नीशियम तथा सेलेनियम जैसे पोषक तत्वों मौजूद होते हैं। ये तत्व वजन बढ़ाने के साथ-साथ शारीरिक और मानसिक स्वास्थ के लिए भी लाभदायक होते हैं। बच्चे को एक दिन अंडा खिलाकर देख लें, यदि तीन दिन तक कोई एलर्जिक इफैक्ट नोटिस में नहीं आता है तो इसे जारी रख सकते हैं अन्यथा अंडा ना खिलाएं।
एलर्जिक इफैक्ट में त्वचा में सूजन, मितली, उल्टी, दस्त, खांसी, छींकें आना जैसे लक्षण नोटिस किए जा सकते हैं। 10 महीने से ऊपर के बच्चे को अंडे को उबालकर इसका पीला भाग खिलाएं। बच्चे के एक वर्ष का हो जाने पर उसे पूरा अंडा खिलाया जा सकता है। अंडों पर विस्तार से जानकारी के लिए हमारा पिछला आर्टिकल “अंडे खाने के फायदे” पढ़ें।
Conclusion –
दोस्तो, आज के आर्टिकल में हमने आपको बच्चों के वजन के बारे में विस्तार से जानकारी दी। बच्चे का वजन कितना बढ़ना चाहिए, कम वजन होने के दुष्प्रभाव, बच्चों का वजन ना बढ़ने के कारण और बच्चों का आहार, इन सब के बारे में भी विस्तार पूर्वक बताया। देसी हैल्थ क्लब ने इस आर्टिकल के माध्यम से छोटे बच्चों का वजन बढ़ाने के बहुत सारे घरेलू उपाय भी बताए। आशा है आपको ये आर्टिकल अवश्य पसन्द आयेगा।
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