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नवजात शिशु की देखभाल कैसे करें – How to Take Care of a Newborn Baby in Hindi

नवजात शिशु की देखभाल कैसे करें

स्वागत है आपका हमारे ब्लॉग पर। आज का आर्टिकल महिलाओं को समर्पित है। कहते हैं कि स्त्री तब पूर्ण होती है जब वह पहली बार मां बनती है। पहली बार मां बनने पर उसकी आंखों की चमक के सामने दुनियां के किसी भी कीमती से कीमती मोती की चमक फीकी पड़ जाती है। मां की आंखों की चमक अनमोल होती है। नवजात शिशु को गोद में लेने की खुशी का अहसास जो मां को होता है उसका कोई अंदाज भी नहीं लगा सकता। मगर, मां के लिए चुनौती अब शुरु होती है शिशु की देखभाल करने की। चुनौती यह इस लिए है कि वह पहली बार मां बनी है और शिशु के लालन-पालन के बारे में उसे कुछ पता नहीं होता। मगर, मां की ममता उसे सब सिखा देती है कि नवजात शिशु की देखभाल कैसे करें। यही है हमारा आज का टॉपिक “नवजात शिशु की देखभाल कैसे करें”। 

देसी हैल्थ क्लब इस आर्टिकल के माध्यम से आज आपको नवजात शिशु की देखभाल के बारे में विस्तार से जानकारी देगा और यह भी बताएगा कि प्रसूता तथा शिशु का आहार कैसा हो। तो, सबसे पहले जानते हैं बच्चे के आयु समूह वर्गीकरण के बारे में।  फिर इसके बाद बाकी बिंदुओं पर जानकारी देंगे।

बच्चे का आयु समूह वर्गीकरण – Child age Group Classification

बच्चे की आयु का वर्गीकरण निम्न प्रकार है –

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  •  नवजात शिशु : (उम्र 0 दिन से 4 सप्ताह)
  •  शिशु : (1 महीने -1 वर्ष)  
  • बहुत छोटा बच्चा (1 वर्ष – 2 वर्ष)
  • प्रीस्कूलर (2 वर्ष – 6 वर्ष)
  • स्कूल आयु वर्ग के बच्चे (6 वर्ष -12 वर्ष)
  • किशोर (12 वर्ष – 18 वर्ष)

नवजात शिशु की देखभाल – Newborn Baby Care

नवजात शिशु की देखभाल करना, प्रत्येक दृष्टिकोण से बहुत बड़ी जिम्मेदारी होती है जिसे बच्चे के पिता को भी निभाना होता है। नवजात शिशु की देखभाल कैसे की जाए इस बारे हम बता रहे हैं कुछ निम्नलिखित बातें जो इस विषय में आपकी मदद करेंगी –

1. नवजात शिशु को दूध पिलाना (Feeding a Newborn)- शिशु के जन्म के होने पर, उसे नहलाने के बाद मां जो पहली बार दूध पिलाती है वह उसके स्वास्थ का रक्षक होता है। यह दूध बहुत शक्तिशाली होता है। यह शिशु की इम्युनिटी के लिये बहुत आवश्यक और महत्वपूर्ण होता है। इस दूध से शिशु की इम्युनिटी बढ़ती है। शिशु कम से कम छः महीने तक केवल दूध पर ही निर्भर रहता है। उसे जल्दी-जल्दी भूख लगती है इसलिए मां को हर दो घंटे के अंतराल पर अपने शिशु को स्तनपान कराना चाहिए। 

हर दस मिनट पर स्तन बदल कर शिशु को पिलाना चाहिए। बच्चे के इस संकेत को ध्यान से समझें कि जब उसे भूख लगती है तो वह रोता है और मुंह में अपनी उंगलियां डालता है। यदि शिशु तीन घंटे से ज्यादा सो रहा है तो उसे उठाकर स्तनपान कराना चाहिए। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि शिशु को स्तनपान कभी लेट कर ना कराएं क्योंकि ऐसा करने से दूध शिशु के कान में जाने का खतरा रहता है। इसलिये बैठकर ही शिशु को गोद में लेकर स्तनपान कराएं। 

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2. डकार दिलाएं (Belch) – शिशु को डकार दिलाना देखभाल का महत्वपूर्ण हिस्सा है। शिशु के दूध पीते हुए अंदर हवा भी चली जाती है जो गैस्ट्रोओसोफेगल रिफ्लक्स का कारण बन जाती है या शिशु को पेट भरा होने का अहसास कराती है। इसके लिये स्तन बदलते समय शिशु की पीठ थपथपाएं, इससे उसको डकार आ जाएगी और फिर से दूध पीने को तैयार होगा। यदि बोतल से दूध पिलाती हैं, तो हर 2 से 3 औंस दूध के बाद शिशु को डकार दिलाएं। 

3. शिशु को सुलाना (Put Baby to Sleep)- शिशु को 16 घंटे से ज्यादा की नींद की आवश्यकता होती है। सामान्य नींद 2 से 4 घंटे होती है। शिशु अपनी नींद का बहुत बड़ा हिस्सा अधिकतर दिन में पूरी करते हैं और रात को, जागते हैं, खेलते हैं, रोते हैं और बहुत कम सोते हैं। 

ऐसी स्थिति में मां की नींद पूरी नहीं हो पाती उसे शिशु के साथ जागना पड़ता है। ऐसी परिस्थिति में पिता की भी जिम्मेदारी बन जाती है कि वह शिशु को संभाले, उसके साथ खेले ताकि शिशु की मां को थोड़ा बहुत सोने को मिल जाए। बच्चे को सुलाने के लिये निम्नलिखित बातों का ध्यान रखें –

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  • शिशु को पेट के बल सुलाने की गलती कभी ना करें क्योंकि ऐसा करने से सडन इंफेंट डेथ सिंड्रोम (Sudden infant death syndrome) की संभावना बढ़ जाती है। 
  • शिशु को सीधा पीठ के बल सुलाना चाहिए। सुलाते समय शिशु के सिर पर हल्के-हल्के हाथ फेरें, दुलार करें। 
  • शिशु को रात के समय कभी अपने से अलग ना सुलाएं। 
  • दिन में शिशु को पालने में सुला सकती हैं। इसके लिए मौसम के हिसाब से पालने में बिछौना रखें। सिर के लिए बहुत हलका छोटा सा तौलिया या शिशु के हिसाब से तकिया लगा दें।
  • पालने की साइडों पर बड़ा कपड़ा लगा दें ताकि शिशु खिसक कर साइड पर ना आ जाए।
  • पालने में किसी भी प्रकार का कोई खिलौना ना रखें।
  • शिशु को मौसम के हिसाब से कपड़ा उढा दें, मगर मुंह ना ढकें। सिर ढक सकते हैं। 

4. मल-मूत्र (Excreta)- शिशु बार-बार मूत्र विसर्जन करता है, मल त्याग करता है। इसलिये उसे संक्रमण से बचाने के लिए बार-बार धुलाना चाहिए। इसके लिए हल्के गुनगुने पानी का इस्तेमाल करें और धुलाने के बाद एकदम साफ़ छोटे टावल से बहुत हल्के हाथ से साफ़ करके डायपर/पोतड़ा बदल दें। सूती कपड़े से बने त्रिकोण आकृति वाले कपड़े को आम भाषा में “पोतड़ा” कहा जाता है।

 इसका उपयोग आज भी किया जाता है क्योंकि आधुनिक डायपर बहुत मंहगे पड़ते हैं जिनको आम आदमी वहन (Afford) नहीं कर सकता। इसे हम देसी डायपर कहकर संबोधित करेंगे। गन्दे पोतड़े यानि देसी डायपर को तुरन्त धुलवा दें तथा धुलवाकर डिटोल के पानी में भी निकलवा दें। मां अपने नजदीक कम से कम लगभग 10 डायपर/देसी डायपर तथा छोटे टावल रखे। हर बार धुलाने के बाद, पोंछने के लिए नये छोटे टावल का इस्तेमाल करें। यहां हम स्पष्ट करना चाहेंगे कि मां, स्तनपान कराने के बाद या थोड़ी देर बाद शिशु को सुसकार ले तो बच्चा सू-सू कर लेगा।

सुबह-सुबह शिशु को सुसकारना चाहिए, इससे वह पोटी भी कर लेगा। इससे शिशु को सुबह-सुबह प्राकृतिक रूप से पोटी करने की आदत पड़ जाएगी जो जीवन भर उसे आराम देगी उसका पेट खराब होने की संभावना बहुत कम रहेगी। वैसे भी जब बच्चे को पोटी आती है तो वह मुंह बनाता है, जोर लगाता है, इस संकेत को समझकर उसे सुसकारना चाहिए, वह पोटी कर लेगा। 

5. डायपर बदलना (Changing Diapers)- यह हम ऊपर बता चुके हैं कि शिशु बार-बार मूत्र विसर्जन करता है, मल त्याग करता है, इसलिए मां अपने नजदीक लगभग 10 डायपर/देसी डायपर तथा छोटे टावल रखे। आप शिशु के लिए आधुनिक डायपर इस्तेमाल करना चाहते हैं या सूती कपड़े से बना डायपर, यह पसंद आपकी अपनी है जोकि आर्थिक स्थिति पर भी निर्भर करती है। डायपर/देसी डायपर बदलते समय निम्न बातों का ध्यान रखें –

  • डायपर बदलने से पहले शिशु के अंग को हल्के गुनगुने पानी से धोकर, साफ़ टावल से पोंछ दें। इसके लिए आप डायपर वाइप्स का भी इस्तेमाल कर सकती हैं। 
  • शिशु को पीठ के बल लिटाकर ही डायपर बदलें।  
  • डायपर बदलते समय पुरुष शिशु के मामले में ध्यान रखें कि उसका जननांग हवा के संपर्क में ना आये अन्यथा वह बहुत जल्दी-जल्दी मूत्र विसर्जन करेगा। 
  • महिला शिशु के मामले में उसके जननांग को पीछे तक अच्छी तरह साफ़ कर लें क्योंकि मूत्र पीछे तक जाता ही जाता है।
  • जननांग पर किसी भी प्रकार की सूजन या लालिमा नज़र आने की स्थिति में, इसे हल्के में ना लें तुरन्त निकटतम शिशु स्वास्थ्य देखभाल केंद्र से संपर्क करें। 

6. मसाज करना (Massage)- शिशु की रोजाना दो बार हल्के हाथ से मसाज करनी चाहिए दिन में दोपहर से पहले और रात को सोने से पहले। मसाज के लिए कौन से तेल इस्तेमाल करना है, इस बारे में शिशु विशेषज्ञ से सलाह लें। यदि सर्दियों का मौसम है तो कमरे में मसाज करके शिशु को धूप में लिटाकर उसके पास बैठे रहें या किसी को बिठाएं। शिशु को लिटाते समय ध्यान रखें कि सूरज की किरणें उसकी आंखों पर ना पड़े। 

इससे शिशु को प्राकृतिक विटामिन-डी मिलेगा जो उसकी हड्डियों के विकास, मजबूती और अस्थि खनिज घनत्व (Bone Mineral Density) में मददगार होगा। 30-45 मिनट या एक घंटे बाद उसे नहला दें। गर्मियों में मसाज करके शिशु को कमरे में ही रखें। शिशु सारे दिन हाथ पैर चलाता है इसलिये वह थक जाता है। रात में की गई मसाज उसकी सारे दिन की थकावट को खत्म कर देगी। 

7. शिशु को नहलाना (Baby Shower)- शिशु को नहलाने के लिए यदि एक टब ले लें तो बेहतर होगा। इसमें शिशु को बहुत आसानी से नहलाया जा सकता है। शिशु को नहलाने से पहले पानी में अपने हाथ पर डालकर सुनिश्चित करें कि पानी का तापमान शिशु की त्वचा के लायक हो, तभी शिशु को पानी के टब में धीरे से रखें और प्यार से नहलाएं। 

नहलाने के लिये कौन सा साबुन इस्तेमाल करना है इस बारे में शिशु विशेषज्ञ से सलाह लें। जब शिशु का सिर साफ हो जाए तो finally पानी में दो बूंद डिटोल की डालकर सिर से नीचे शरीर पर डिटोल मिश्रित पानी डालें। फिर उसे तौलिया में लपेट कर, कमरे में लाकर कपड़े पहना दें। 

8. साफ़-सफाई (Cleanliness)– शिशु को संक्रमण आदि से बचाने के लिये, केवल बच्चे की ही नहीं बल्कि माता-पिता, कमरा, बैड, सबके कपड़े आदि सब की सफाई बेहद जरूरी है। इसके लिए निम्नलिखित बातों का ध्यान रखें – 

  • रोजाना, यदि हो सके तो दो बार, पानी में कीटाणुशोधन द्रव (Disinfection Liquid) मिलाकर कमरे में पोछा लगवाएं। 
  • रोजाना बिस्तर की बैड शीट बदलनी चाहिए।
  • रोजाना, शिशु और माता-पिता के कपड़े बदलने चाहिऐं।
  • जब भी और कोई शिशु को गोद में ले या छूए तो पहले वह अपने हाथों को अच्छी तरह एंटीबैक्‍टीरियल साबुन से हाथ धोए। शिशु की त्वचा को ना छूआ जाए तो बेहतर होगा। नहलाने, कपड़े बदलने, डायपर बदलने से पहले भी हाथों को अच्छी तरह धोना चाहिए। यहां हम स्पष्ट करना चाहेंगे कि इस काम के लिए सैनिटाइजर का उपयोग ना करें तो बेहतर होगा क्योंकि शिशु सैनिटाइजर की गंध से विचलित हो सकता है।

9. शिशु को संभालना (Handling the Baby)- शिशु को विशेषकर नवजात शिशु को संभालना आसान काम नहीं है क्योंकि उनकी मांसपेशियां विशेषतौर पर गर्दन की मांसपेशियों का अच्छी तरह विकास नहीं हुआ होता है। इसलिए इनको संभालने के लिए निम्नलिखित बातों का ध्यान रखें –

  • शिशु को गोद लेते समय सबसे पहले अपने हाथ की हथेली या कोहनी के अंदर शिशु की गर्दन को सहारा देते हुए दूसरे हाथ से आराम से उठाएं। यह सुरक्षित तरीका है। 
  • शिशु को एक स्थान से दूसरे स्थान पर रखने के लिए, उसकी गर्दन को सहारा देते हुए, गोद में उठाकर सावधानी पूर्वक उसे आराम से रखें। इस मामले में जल्दबाजी ना करें, शिशु को झटका नहीं लगना चाहिए। 
  • शिशु को गोद में लेकर हिलाना, डुलाना नहीं चाहिए क्योंकि ऐसा करने से शिशु के मस्तिष्क में रक्तस्राव हो सकता है। यह स्थिति जानलेवा हो सकती है। 
  • सोते हुए शिशु को जबरदस्ती ना उठायें जब तक कि बहुत जरूरी ना हो, जैसे कि स्तनपान कराने के लिए। उसे जगाने के लिए शिशु के गालों या पैरों पर गुदगुदी करें मगर हिलाएं ना और ना ही झटका दें। 

10. रोते हुए शिशु को चुप कराना (Pacify a Crying Baby)-  रोते हुए शिशु को चुप कराना संभवतः दुनियां का सबसे कठिन काम है। यहां पिता की सक्रिय भूमिका की आवश्यकता होती है। आपने नोटिस किया होगा कि रोते हुए शिशु को जब हर व्यक्ति चुप कराते हुए हार जाता है तो वह अपनी मां या पिता की गोद में जाकर चुप हो जाता है। इसके पीछे की वजह है शिशु का अपने माता-पिता के साथ भावनात्मक जुड़ाव जो कि आता है मां की गोद में ममता और छुअन की गंध से। 

शिशु पहले दिन से ही स्तनपान करते हुए अपनी मां की ममता की खुश्बू का अहसास करने लगता है। इसी प्रकार अपने पिता की गोदी में रहते हुए पिता के लाढ़-प्यार, दुलार, बोली, छुअन आदि की खुश्बू के अहसास से। यह जुड़ाव स्तनपान से, बाहों के झूले से, लोरी से, छुअन से फलता फूलता है। रोते हुए शिशु को चुप कराने के लिए निम्नलिखित तरीके अपना सकते हैं और शिशु के साथ इंजॉय करें –

  • गर्मी के दिनों में हो सकता है शिशु को गर्मी लग रही हो, इसलिए हल्की स्पीड पर पंखा चला दें, ए।सी। से बच्चे को दूर रखें तो बेहतर होगा, फिर शिशु को गोदी में ले लें। 
  • यदि सर्दियां हैं तो शिशु को शाल में लपेटकर गोदी में ले लें, इससे शिशु सुरक्षित महसूस करेगा।
  • शिशु के सिर पर प्यार से हाथ फेरें, उसके गालों पर हाथ फेरें, शिशु को पुचकारें, उसे चूमें, उसकी कमर थपथपाएं और हल्की सी गुदगुदी भी करें। 
  • शिशु को बाहों में हल्के-हल्के झुला झुलाएं और कोई मधुर संगीत वाला गाना खुद गाएं या रेडियो आदि से सुनाएं। म्युजिक थेरेपी यहां शिशु को चुप कराने में काम आएगी। 

11. शिशु को घुमाना (Rocking the Baby)- स्वास्थ की दृष्टि से शिशु को घर से बाहर सुबह और शाम घुमाना अच्छा है मगर इसके लिए निम्नलिखित बातों का ध्यान रखें –

  • नवजात शिशु को घर से बाहर ना ले जाएं तो बेहतर होगा क्योंकि उसे पता नहीं कब भूख लग जाए और रोने लगे। यदि ले जाना ही है तो कोशिश करें अपनी गोदी में घर के बाहर अपनी गली में ही घुमा लें।
  • एक महीने की आयु के बाद शिशु को थोड़ा दूर लेकर जा सकते हैं। इसके लिए सुनिश्चित करें कि बाहर की हवा शुद्ध हो, प्रदूषित वातावरण ना हो।
  • यदि शिशु को स्ट्रॉलर में लेकर घुमाने जाना है तो बच्चे को इसमें अच्छी तरह बांध दें ताकि वह इधर उधर ना हिले, डुले। साथ ही इस बात का भी ध्यान रखें कि उबड़ खाबड़ रास्तों और टूटी हुई सड़कों पर ना जाएं। 

12. शिशु का स्वास्थ (Baby Health)- शिशु के स्वास्थ का ध्यान रखना, शिशु की देखभाल का प्रमुख बिंदु है। शिशु के स्वास्थ बहुत कुछ मां के खानपान पर निर्भर करता है क्योंकि मां के स्तनों के दूध ही उसका आहार है। यदि मां को सर्दी, खांसी, जुकाम बुखार है तो जरूरत है कि मां बेहद सावधानी बरते क्योंकि शिशु को भी बचाना है और वह शिशु को अलग नहीं कर सकती। 

ऐसी स्थिति में शिशु को लेने के लिए, उसके कपड़े बदलने अथवा अन्य काम के लिए अपने हाथों में लेटेक्स के गल्ब्स पहने और साफ़ कपड़े पहन कर रहे। शिशु के पास जाने से पहले मुंह पर पर मास्क लगाए। शिशु को सर्दी, जुकाम, बुखार होना एक आम समस्या है इसके लिए या किसी भी प्रकार की बीमारी/समस्या में तुरन्त बाल विशेषग्य (Child specialist) से संपर्क करना चाहिए। 

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13. टीकाकरण (Vaccination)-  शिशु को अनेक बीमारियों से बचाने के लिए टीका लगवाना अनिवार्य है। यह शिशु की देखभाल का महत्वपूर्ण हिस्सा है ताकि उसके स्वास्थ की रक्षा हो सके। शिशु शुरुआत के दिनों में सुरक्षित रहता है क्योंकि उसमें गर्भ के समय से एंटीबॉडीज होती हैं जो मां के द्वारा मिलती हैं, बाद में स्तनपान द्वारा एंटीबॉडीज बनती हैं।

परन्तु बाद में ये समाप्त होने लगती हैं। ऐसे में टीके शिशु के शरीर को एंटीबॉडीज विकसित करने का काम करते हैं। इन टीकों से शिशु संक्रमणों के विरुद्ध प्रतिरक्षित  हो जाता है। किस समय कौन सा टीका लगना है इसका जिक्र हम आगे करेंगे। 

टीकाकरण का विवरण – Vaccination Details

कितनी आयु पर कौन सा टीका लगना चाहिए, राष्ट्रीय टीकाकरण के अनुसार विवरण निम्न प्रकार है –

  • बीसीजी  : 0.1 मि.ली. 

(0.5 मि.ली. 1 महीने तक)

जन्म के समय या एक वर्ष की

आयु से पहले।

  • हेपेटाइटिस बी : 0.5 मि.ली.

जन्म के समय या 24 घंटे के भीतर।

  • ओपीवी-0 : दो बूंद 

जन्म के समय या 15 दिन के भीतर।

ओपीवी-1,2,3 : दो बूंद 

6 सप्ताह, 10 सप्ताह, 14 सप्ताह।

  • डीपीटी-1,2,3 : 0.5 मि.ली.

6 सप्ताह, 10 सप्ताह, 14 सप्ताह।

  • हेपेटाइटिस बी : 0.5 मि.ली 

6 सप्ताह, 10 सप्ताह, 14 सप्ताह।

  • खसरा : 0.5 मि.ली 

9 महीने से 12 महीने तक।

विटामिन-ए, पहली खुराक : 1 मि.ली 

9 महीने पर खसरा के टीके के साथ।

  • डीपीटी बूस्टर-I : 0.5 मि.ली 

16 से 24 महीने।

  • ओपीवी बूस्टर : दो बूंद 

16 से 24 महीने।

  • विटामिन-ए : 2 मि.ली 

दूसरी से नौवीं खुराक तक

16 महीना, उसके बाद प्रत्येक

6 महीने के अंतराल पर

5 वर्ष की आयु तक एक खुराक

  • डीपीटी बूस्टर-II : 0.5 मि.ली 

5 से 6 वर्ष की आयु तक।

  • टीटी : 0.5 मि.ली 

10 तथा 16 वर्ष।

शिशु को स्तनपान कब तक कराना चाहिए? – How Long Should the Baby be Breastfed?

1. विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) और स्वास्थ्य मंत्रालय,के अनुसार छः महीनों तक शिशु को केवल स्तनपान  (exclusive breastfeeding) कराना चाहिए। 

2. शिशु को स्तनपान कब तक कराना चाहिए यह निर्भर करता है स्तनों में दूध बने रहने पर। कुछ महिलाओं में शुरु में ही दूध नहीं उतरता इसलिये उनको शिशु को डॉक्टर की सलाह पर डिब्बे वाला दूध पिलाना पड़ता है।

3. यह बच्चे के मन पर भी निर्भर करता है। कुछ बच्चे बहुत जल्दी यानि एक साल से पहले ही मां का दूध पीना छोड़ देते हैं तो कुछ दो साल तक भी पीते हैं।

4. शिशु को स्तनपान कराना मां के समय पर भी निर्भर करता है। यदि मां कामकाजी महिला है तो उसके लिये छः महीने से अधिक स्तनपान कराना संभव नहीं हो पाएगा।

5. शिशु को स्तनपान मां की इच्छा पर भी निर्भर करता है। यदि वह कामकाजी महिला नहीं है और बच्चे को लंबे समय तक स्तनपान कराना चाहती है और दूध आ रहा है तो वह पांच वर्ष तक भी स्तनपान करा सकती है। 

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कैसे जानें कि शिशु का पेट भर गया है? – How to Know if the Baby is Full?

यह कैसे पता चलेगा कि शिशु का पेट भर गया है? इस प्रश्न का उत्तर, केवल अंदाज पर निर्भर करता है जो हमेशा सही नहीं होता। इसके साथ ही एक और प्रश्न उठता है कि शिशु को कितनी देर और कितनी मात्रा में दूध पिलाया जाए। इन सभी प्रश्नों का उत्तर जानने का कोई मानदंड या तरीका नहीं है। केवल शिशु ही इन सबका उत्तर जानता है, मगर अफ़सोस वह बता नहीं सकता क्योंकि वह बोल नहीं सकता। बस, अंदाज को समझकर अनुकरण करना पड़ता है। कुछ इस प्रकार की निम्नलिखित घटनाएं होती रहती हैं –

(i) मां स्तनपान कराते हुए नोटिस करती है कि शिशु की स्तनपान करने की गति कम हो रही है और थोड़ी देर बाद वह स्तनपान करना बंद कर देती है। मां समझती है कि बच्चे का पेट भर गया है और जैसे ही उसे हटाती है वह रोने लगता है, उसे फिर से दूध में लगाना पड़ता है।

(ii) कई बार शिशु दूध पीते हुए सो जाता है मां आश्वस्त हो जाती है, उसे बिस्तर पर या पालने में सुला देती है। मगर थोड़ी ही देर में वह रोते हुए दूध ढूंडने लगता है। यह इस बात का संकेत है कि उसका अभी पेट नहीं भरा है। 

(iii) कई बार शिशु दूध पीते-पीते अपने आप बंद हो जाता है और स्तनों से हट जाता है, दुबारा दूध में लगाने से भी नहीं लगता, फिर या तो वह सो जाएगा या खेलेगा या आराम से लेटा रहेगा। यह इस बात का संकेत है कि उसका पेट भर गया है।

प्रसूता का भोजन कैसा होना चाहिए? – What Should be the Diet of Pregnant Women?

प्रसव के बाद महिला को ऐसे भोजन की जरूरत होती है जो शरीर का घाव जल्दी भर दे, भूख मिटे और शिशु को मां के स्तनों से पर्याप्त मात्रा में दूध मिले। मां के स्तनों का दूध ही शिशु का आधार होता है। इसलिए लिये मां का ऐसा भोजन होना चाहिये जिसमें कैलोरी भी हों। मां के भोजन में 50 प्रतिशत कार्बोहाइड्रेट, 20 से 30 प्रतिशत प्रोटीन हेल्‍दी फैट्स होने चाहिऐं।  

हरी पत्तेदार सब्जियां, लहसुन, दलिया, गाजर, ब्राउन राइस, तिल और तुलसी को भोजन में शामिल करें। सौंफ, जीरा और अजवाइन को बराबर एक समान मात्रा में लेकर हल्‍का सा भूनकर गुड़ में मिलाकर पाउडर बना लें। इस पाउडर को एक चम्‍मच लेकर दूध में डालकर सुबह और शाम पिएं, इससे स्तनों में दूध ज्यादा बनेगा। ऐसा भोजन करने से बचें जो कफ़ बनाता हो या कब्ज और खांसी करे। तीखे तेज मिर्च-मसाले वाला, ऑयली, तले, खट्टे खाद्य पदार्थों से बचें। यदि कब्ज की शिकायत है तो पपीता और दूध का सेवन करें। प्रसूता का भोजन कैसा हो इस बारे में घर की बुजुर्ग महिलाएं बेहतर जानती हैं। 

वे शुरुआत के दिनों में गुड़ की पात बनाकर पीने को देती हैं इससे प्रसूता के अंदर की सारी गंदगी निकल जाती है, दूध में गुड़ और देसी घी डालकर देती हैं, ब्रेड भी ली जा सकती है। कुछ दिन (लगभग छः) बाद दलिया, खिचड़ी, प्रोटीन से भरपूर मूंग की दाल, तरी वाली सब्जी में देसी घी डालकर देती हैं, ड्राई-फ्रुट्स को भूनकर जिसमें कमरकस (पलास वृक्ष का गोंद) भी होता है, आटे को भूनकर, जीरा आदि भूनकर इसमें गुड़ की पात डालकर लड्डू बनाए जाते हैं, गुड़ के बजाय बूरा मिलाकर भी लड्डू बनाए जाते हैं। इससे प्रसूता के शरीर में ताकत आती है और स्तनों में दूध भी बनता है। पलास और देसी घी पर अधिक जानकारी के लिए हमारे पिछले आर्टिकल “देसी घी खाने के फायदे पढ़ें।

शिशु का आहार कैसा होना चाहिए? – What Should be the Diet of the Baby?

हमने ऊपर बताया है कि शिशु के छः महीने तक केवल स्तनपान कराना चाहिए। विकल्प स्वरूप डिब्बे वाला दूध पिलाया जाए। छः महीने के बाद शिशु का काम केवल दूध से नहीं चलता, उसे पोषण और आयरन प्रदान करने के लिए तरल व अर्ध ठोस आहार की आवश्यकता होती है। छः महीने बाद शिशु का आहार कैसा होना चाहिए, इसका विवरण निम्न प्रकार है –

1. 6 से 9 महीने तक – छः महीने बाद शिशु को हल्का तरल आहार देना चाहिए। इसके लिए –

  • मूंग की दाल को बॉईल करके उसका पानी दिया जा सकता है। 
  • गाजर , मटर , टमाटर को साफ़ करके, छिलके निकालकर, बॉईल करके प्यूरी बनाकर दी जा सकती है।
  • छिले और बीज निकले हुए सेब, चीकू, पपीता, केला को मसल कर खाने को दें।
  • बहुत पतला दलिया, ओट्स और खिचड़ी दे सकते हैं। सूजी, गेहूँ का आटा, रागी, बाजरा, चावल आदि में पानी या दूध डालकर दलिया बना सकते हैं। दलिया में चीनी या गुड़ और घी का उपयोग जरूर करें क्योंकि यह एनर्जी को बढ़ाता है और शिशु को वसा भी मिल जाएगी। 

2. 9 से 12 महीने – इस अवधि में शिशु के दांत भी आने लगते हैं और उसकी रूचि खाने में बढ़ने लगती है। अतः आहार को थोड़ा गाढ़ा बनाने की जरूरत है। इसके लिए –

  • दलिया और खिचड़ी को थोड़ा गाढ़ा बनाकर खिलाएं।
  • केला, पपीता, चीकू, आम आदि फलों को भी मसलकर दे सकते हैं या इन फलों के बहुत छोटे-छोटे टुकड़े करके खाने को दें।
  • आलू, पालक, मटर, गाजर आदि सब्जियों और शक्करकन्द को बॉईल करके मोटा-मोटा मसल कर खिलाएं। 
  • शिशु को घर पर बनाए आटे की सेंवियां बनाकर भी दे सकते हैं परन्तु उसे बाजार के तरह-तरह के नूडल्स से बिल्कुल दूर रखें।
  • आधा कप गुनगुने दूध या चीनी और देसी घी पानी में भिगोकर अच्छी तरह मसल कर तथा चीनी और देसी घी मिलाकर, चपाती के छोटे-छोटे टुकड़ों को भिगोकर और छलनी में छानकर शिशु को खिलाएं। 
  • चपाती के बहुत छोटे-छोटे टुकड़ों को दाल या तरी वाली सब्जी में भी भिगोकर शिशु को खिला सकते हैं। 

3. 12 महीने के बाद – 12 महीने के बाद बच्चे को वो सब कुछ खिलाएं जो आप सब परिवार के सदस्य खाते हैं। कोई स्पेशल आहार की जरूरत नहीं है। हां, इतना अवश्य ध्यान रखें कि नमक, मिर्च, मसाले चीनी आदि ज्यादा ना हों।

Conclusion –

आज के आर्टिकल में हमने आपको नवजात शिशु की देखभाल कैसे करें, के बारे में विस्तार से जानकारी दी। बच्चे का आयु समूह वर्गीकरण, नवजात शिशु की देखभाल, टीकाकरण का विवरण, शिशु को स्तनपान कब तक कराना चाहिए, कैसे जानें कि शिशु का पेट भर गया है और प्रसूता का भोजन कैसा होना चाहिए, इन सब के बारे में भी विस्तार पूर्वक बताया। देसी हैल्थ क्लब ने इस आर्टिकल के माध्यम से यह भी बताया कि शिशु का आहार कैसा होना चाहिए। आशा है आपको ये आर्टिकल अवश्य पसन्द आयेगा।

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Disclaimer – यह आर्टिकल केवल जानकारी मात्र है। किसी भी प्रकार की हानि के लिये ब्लॉगर/लेखक उत्तरदायी नहीं है। कृपया डॉक्टर/विशेषज्ञ से सलाह ले लें।

Summary
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नवजात शिशु की देखभाल कैसे करें
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नवजात शिशु की देखभाल कैसे करें
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आज के आर्टिकल में हमने आपको नवजात शिशु की देखभाल कैसे करें, के बारे में विस्तार से जानकारी दी। बच्चे का आयु समूह वर्गीकरण, नवजात शिशु की देखभाल, टीकाकरण का विवरण, शिशु को स्तनपान कब तक कराना चाहिए, कैसे जानें कि शिशु का पेट भर गया है और प्रसूता का भोजन कैसा होना चाहिए, इन सब के बारे में भी विस्तार पूर्वक बताया।
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Desi Health Club
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