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सिस्टोस्कोपी क्या है? – What is Cystoscopy in Hindi

सिस्टोस्कोपी क्या है?

स्वागत है हमारे ब्लॉग में। दोस्तो, कुछ बीमारियों की जानकारी बल्ड टेस्ट और इमेजिंग टेस्ट के जरिए मिल जाती है। मगर कुछ स्थितियों में सटीक जानकारी के लिए शरीर के अंदर झांकना पड़ता है जैसे कि पेट, फेफड़ों आदि के लिए। इसके लिए एंडोस्कोपी की जरूरत होती है। शरीर के विभिन्न हिस्सों की जांच के लिए एंडोस्कोपी के अलग-अलग रूप होते हैं जैसे कि ब्रोंकोस्कोपी, नासोफ़ैरेंजोलैरिंजोस्कोपी, सिग्मोइडोस्कोपी, कोलोनोस्कोपी आदि। इसी एंडोस्कोपी की कड़ी में एक और नाम जुड़ता है जिसे सिस्टोस्कोपी कहा जाता है। 

सिस्टोस्कोपी मूत्रमार्ग और मूत्राशय में होने वाली समस्याओं की जांच के लिए किए जाने वाला परीक्षण है। इसमें डॉक्टर, सिस्टोस्कोप नामक उपकरण को मूत्रमार्ग में डालकर अंदर मूत्राशय तक ले जाकर परीक्षण करते हैं। आखिर यह सिस्टोस्कोपी है क्या और यह सिस्टोस्कोपी क्यों और कैसे की जाती है। दोस्तो, इन्हीं सब सवालों का जवाब है हमारा आज का टॉपिक “सिस्टोस्कोपी क्या है?”। 

देसी हैल्थ क्लब इस आर्टिकल के माध्यम से आपको सिस्टोस्कोपी के बारे में विस्तार से जानकारी देगा और यह भी बताएगा कि यह कैसे की जाती है। तो, सबसे पहले जानते हैं कि सिस्टोस्कोपी क्या है और इसके प्रकार। फिर, इसके बाद बाकी बिंदुओं पर जानकारी देंगे।

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सिस्टोस्कोपी क्या है? – What is Cystoscopy?

दोस्तो, सिस्टोस्कोपी एक टेस्ट है जो मूत्रमार्ग (Urethra) और मूत्राशय (Urinary Bladder) के स्वास्थ्य की जांच के लिए किया जाता है। एक प्रकार से यह मूत्रमार्ग के जरिए की जाने वाली मूत्राशय की एंडोस्कोपी है। इसे सिस्टोउरेथ्रोस्कोपी (Cystourethroscopy) या ब्लैडर स्कोप (Bladder Scope) भी कहा जा सकता है। यहां हम बता दें कि मूत्रमार्ग एक ऐसी नली है जो मूत्र को मूत्राशय से शरीर के बाहर तक ले जाने का काम करती है। 

चूंकि पुरुष मूत्रमार्ग, महिला मूत्रमार्ग की तुलना में लंबाई में अधिक और व्यास में संकीर्ण होता है इसलिए सिस्टोस्कोपी के दौरान पुरुषों को अधिक दर्द हो सकता है। सिस्टोस्कोप एक उपकरण है जो कि एक ट्यूब होती है जिसमें कैमरा लगा होता है और लाइट भी। इस उपकरण में एक और औजार लग होता है जिसकी मदद से मूत्राशय से ऊतक का सेंपल लिया जा सकता है। यह दो प्रकार की होती है इसका जिक्र हम आगे करेंगे। सिस्टोस्कोप उपकरण का उपयोग करते हुए सिस्टोस्कोपी की जाती है।

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सिस्टोस्कोपी के प्रकार – Types of Cystoscopy

सिस्टोस्कोपी के दो प्रकार होते हैं – लचीली और कठोर। विवरण निम्न प्रकार है –

1. लचीली सिस्टोस्कोपी (Flexible Cystoscopy)- लचीली सिस्टोस्कोपी में, सिस्टोस्कोप पतला होता है और लचीला भी। यह सरलता से मुड़ जाता है। इसका उपयोग करने के लिए लोकल एनेस्थीसिया देकर मूत्रमार्ग को सुन्न कर दिया जाता है। सिस्टोस्कोपी प्रक्रिया में कम समय ही (लगभग 20 मिनट) लगता है। लोकल एनेस्थीसिया का प्रभाव समाप्त होने पर मरीज उसी दिन वापिस अपने घर जा सकता है। 

2. कठोर सिस्टोस्कोपी (Rigid Cystoscopy) – कठोर सिस्टोस्कोपी में, सिस्टोस्कोप सख्त होता है और चौड़ा भी। इसका उपयोग मूत्राशय (Bladder) से ऊतक का सेंपल लेने के लिये किया जाता है अथवा चिकित्सा के लिए ऊतकों को हटाने या न्यूनतम इनवेसिव सर्जरी के लिए किया जाता है। इस प्रक्रिया के लिए मरीज को जनरल एनेस्थीसिया देकर सुलाना होता है या निचले हिस्से को सुन्न कर दिया जाता है। इसे स्पाइनल एनेस्थेटिक कहा जाता है। प्रक्रिया पूरी होने में अधिक समय लग सकता है तथा मरीज को तब तक अस्पताल में रहना पड़ता है जब तक कि एनेस्थीसिया का प्रभाव पूरी तरह समाप्त ना हो जाए।

सिस्टोस्कोपी क्यों की जाती है? – Why is Cystoscopy Done?

निम्नलिखित चिकित्सकीय स्थितियों में सिस्टोस्कोपी कराने की सलाह दी जाती है – 

  1. मूत्र मार्ग में बार-बार संक्रमण होने की स्थिति में। इससे मूत्रनली, मूत्राशय और किडनी को खतरा हो जाता है।
  2. हेमट्यूरिया (Hematuria) यानि मूत्र में रक्त आना
  3. बार-बार मूत्र आना, रात को भी
  4. एक ही बार में पूरी तरह मूत्र विसर्जित ना हो पाए
  5. मूत्र विसर्जन में दर्द, चुभन या जलन होना
  6. क्रोनिक पेल्विक दर्द
  7. मूत्र परीक्षण में पाई गईं असामान्य कोशिकाएं
  8. मूत्राशय की सूजन की जांच के लिए
  9. मूत्राशय से ऊतक का सेंपल निकालने के लिए
  10. मूत्राशय के कैंसर की जांच के लिए
  11. मूत्राशय में दवा डालने के लिए
  12. मूत्राशय से पथरी निकालने के लिए
  13. बढ़े हुए प्रोस्टेट की जांच के लिए
  14. छोटे ट्यूमर को निकालने के लिए
  15. ब्लॉकेज को ठीक करने के लिए स्टेंट लगाना या हटाना। एक छोटी ट्यूब जिसे मूत्र प्रणाली में लगाकर ब्लॉकेज को ठीक करते हैं।

सिस्टोस्कोपी से पहले की सलाह – Advice Before Cystoscopy

सिस्टोस्कोपी से पहले निम्नलिखित सलाह दी जाती है –

  1. मरीज को मूत्र परीक्षण के लिये कहा जा सकता है।
  2. मरीज की इम्युनिटी कमजोर होने या मूत्र पथ में संक्रमण होने के संदेह में मरीज को एंटीबायोटिक लेने को कहा जा सकता है। 
  3. डॉक्टर मरीज से हाई ब्लड प्रेशर, ब्लड शुगर, कोई रक्त विकार जैसी चिकित्सकीय स्थितियों के बारे में जानकारी लेते हैं।
  4. उपरोक्त चिकित्सकीय स्थितियों या अन्य बीमारियों में ली जाने वाली दवाओं के बारे में डॉक्टर जानकारी लेते हैं।
  5. मरीज को किसी प्रकार की एलर्जी या विशेष दवा से एलर्जी के बारे में भी जानकारी ली जाती है।
  6. चिकित्सकीय स्थिति के आधार पर डॉक्टर यह निर्धारित करते हैं कि लचीली सिस्टोस्कोपी करनी है या कठोर। इस बारे में मरीज को बता दिया जाता है। इसी के आधार पर मरीज को कुछ खाने पीने या ना खाने पीने की सलाह दी जाती है। 
  7. सिस्टोस्कोपी के दिन मरीज को अपने परिवार के किसी सदस्य, दोस्त या रिश्तेदार को साथ लाने के लिये कहा जाता है ताकि मरीज की कमजोरी की स्थिति में वे उसे घर ले जाएं। 
  8. मरीज से अस्पताल की कागजी कार्रवाई पूरा करने के लिए एक फॉर्म भरवाया जाएगा।

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सिस्टोस्कोपी कैसे की जाती है? – How is Cystoscopy Performed?

सिस्टोस्कोपी की सिलसिलेवार प्रक्रिया निम्न प्रकार है – 

A. लचीली सिस्टोस्कोपी – Flexible Cystoscopy

(i) सबसे पहले मरीज को मूत्र विसर्जन को कहा जाता है।

(ii) फिर मरीज के जननांग को एंटीसेप्टिक द्रव से साफ़ किया जाता है ताकि यह एरिया संक्रमण रहित हो जाए। फिर सुन्न करने के लिए दवा लगा दी जाती है और मूत्रमार्ग में भी दवा लगा दी जाती है।

(iii) अब सिस्टोस्कोप को धीरे-धीरे मूत्रमार्ग में सरकाते हुए मूत्राशय में पहुंचा दिया जाता है। 

(iv) सिस्टोस्कोप के अंतिम छोर पर एक लेंस लगा जो  दूरबीन के रूप में काम करता है। लेंस के ऊपर एक वीडियो कैमरा भी लगा दिया जाता है। डॉक्टर लेंस के जरिए शरीर के अंदर सब देखते हैं और वीडियो कैमरा के जरिए अंदर की तस्वीरें कंप्यूटर स्क्रीन पर उभर आती हैं। 

(v) सिस्टोस्कोप के जरिए डॉक्टर पानी या सेलाइन से मूत्राशय को भर देते हैं। इससे खिंचाव पैदा होता है और डॉक्टर मूत्राशय की पूरी दीवार साफ़-साफ़ देख पाता है।

(vi) अंदर कोई असमानता दिखाई देती है तो उसका विश्लेषण कर लिया जाता है। कोई गांठ या पथरी नजर आती है तो उसे निकाल दिया जाता है। फिर सिस्टोस्कोप को बाहर निकाल लिया जाता है।  

B. कठोर सिस्टोस्कोपी – Rigid Cystoscopy

(i) कठोर सिस्टोस्कोपी करने की प्रक्रिया भी लचीली सिस्टोस्कोपी की ही तरह है। इसमें लचीले सिस्टोस्कोप के बजाय कठोर सिस्टोस्कोप का उपयोग किया जाता है। इसमें भी लेंस, लाइट और वीडियो कैमरा लगे होते हैं। 

(ii) मरीज के जननांग को एंटीसेप्टिक द्रव से साफ़ करके जनरल एनेस्थीसिया देकर मरीज को सुला दिया जाता है या स्पाइनल में इंजेक्शन लगा कर नीचे के हिस्से को सुन्न कर दिया जाता है। यदि ज्यादा सुन्न करने आवश्यकता समझी गई तो बाजू की नस में इंजेक्शन लगा दिया जाता है। 

(iii) महिला मरीज के मूत्रमार्ग के विशेष भागों में सुन्न करने वाली स्प्रे और पुरुष मरीज के मूत्रमार्ग के विशेष भागों में सुन्न करने वाला जेल लगा दिया जाता है।

(iv) अब डॉक्टर सिस्टोस्कोप को धीरे-धीरे मूत्रमार्ग में सरकाते हुए मूत्राशय में पहुंचा देते हैं। मूत्राशय को साफ़-साफ़ देखने के लिए मूत्राशय में पानी पंप कर दिया जाता है। 

(v) कोई असमानता नजर आने पर उसे ठीक कर दिया जाता है जैसे कि स्टंट लगाना या निकालना। अथवा एक छोटा टुकड़ा काट कर, बाहर निकाल कर जांच के लिए लैब भेज दिया जाता है। इस विधि को बायोप्सी या ऊतक का सेंपल लेना कहते हैं। 

(vi) सिस्टोस्कोपी की प्रक्रिया पूरी हो जाने पर सिस्टोस्कोप को बाहर निकाल लिया जाता है।

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सिस्टोस्कोपी के बाद की देखभाल – Care After Cystoscopy

लचीली और कठोर सिस्टोस्कोपी के बाद की देखभाल निम्न प्रकार है –

A. लचीली सिस्टोस्कोपी – Flexible Cystoscopy

(i) यदि लचीली सिस्टोस्कोपी हुई है तो प्रक्रिया होने के बाद मरीज को मूत्र विसर्जन की इच्छा हो सकती है जो कि अच्छी बात है। यदि इच्छा नहीं भी हो तो भी डॉक्टर मरीज को मूत्र विसर्जन के लिए कह सकता है ताकि मूत्राधय खाली हो सके।

(ii) लोकल एनेस्थीसिया का प्रभाव खत्म होने पर मरीज को घर भेज दिया जाता है तथा आराम करने को कहा जाता है। 

B. कठोर सिस्टोस्कोपी – Rigid Cystoscopy

(i) कठोर सिस्टोस्कोपी की प्रक्रिया के मामले में मरीज को लंबे समय तक अस्पताल में रुकना होता है जब तक कि जनरल एनेस्थीसिया का असर पूरी तरह खत्म ना हो जाए।

(ii) सर्जरी के परिणाम मरीज को थोड़े समय में बता देते हैं परन्तु बायोप्सी के परिणाम आने में दो, तीन सप्ताह लग जाते हैं।

(iii) मरीज के मूत्राशय में कैथीटर लगा देते हैं ताकि मूत्र विसर्जन होता रहे।

(iv) कुछ दिनों तक एंटीबायोटिक्स दी जाती हैं, वृद्ध मरीजों, कमजोर इम्युनिटी वाले, पौष्टिकता की कमी वाले और धूम्रपान करने वाले मरीजों को अधिक समय तक एंटीबायोटिक्स लेनी होती हैं।

(v) 24 घंटे तक ड्राइव ना करने की सलाह दी जाती है।

सिस्टोस्कोपी की जटिलताएं – Complications of Cystoscopy

दुर्लभ मामलों में सिस्टोस्कोपी की निम्नलिखित जटिलताएं हो सकती हैं –

  1. मूत्रमार्ग में संक्रमण
  2. बायोप्सी के स्थान से रक्तस्राव 
  3. मूत्र में भी रक्त दिखाई दे सकता है
  4. मूत्रमार्ग, मूत्रनली या मूत्राशय का क्षतिग्रस्त हो जाना
  5. ऊतकों में सूजन की वजह से मूत्र विसर्जन में कठिनाई
  6. मूत्र विसर्जन के समय जलन या दर्द होना
  7. पेट में दर्द होना
  8. शरीर में सोडियम के प्राकृतिक संतुलन में परिवर्तन होना।

सिस्टोस्कोपी का खर्च –  Cost of Cystoscopy

भारत में सिस्टोस्कोपी पर आने वाला खर्च, अलग-अलग राज्यें के अलग-अलग अस्पताल, सुविधाओं, परामर्श, ओटी शुल्क, चिकित्सकीय स्थिति विशेषकर बायोप्सी; पर निर्भर करता है। वैसे सामान्य तौर पर सरकारी अस्पतालों में यह खर्च 3000/- से 4000/- रुपये आता है तो प्राइवेट अस्पतालों में यह खर्च 20,000/- से 2,00,000/- रुपये हो सकता है।

डॉक्टर के पास कब जाना चाहिए? – When Should one go to the Doctor?

1. सिस्टोस्कोपी के बाद एक, दो दिन मूत्र विसर्जन में कुछ असुविधा हो सकती है जैसे कि जलन या दर्द महसूस होना या थोड़ा रक्त आना। यह सामान्य है, परन्तु दो दिन बाद भी यही स्थिति बनी रहे या मूत्र में अधिक रक्त आए तो डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए।

2. मूत्र विसर्जन के बाद भी मूत्राशय भरा महसूस होना।

3. मूत्र में रक्त के थक्के या गाढ़ा रक्त होना।

4. तेज बुखार होना।

Conclusion –

दोस्तो, आज के आर्टिकल में हमने आपको सिस्टोस्कोपी के बारे में विस्तार से जानकारी दी। सिस्टोस्कोपी क्या है?, सिस्टोस्कोपी के प्रकार, सिस्टोस्कोपी क्यों की जाती है, सिस्टोस्कोपी से पहले की सलाह, सिस्टोस्कोपी कैसे की जाती है, सिस्टोस्कोपी के बाद की देखभाल, सिस्टोस्कोपी की जटिलताएं और सिस्टोस्कोपी का खर्च, इन सब के बारे में भी विस्तार पूर्वक बताया। देसी हैल्थ क्लब ने इस आर्टिकल के माध्यम से यह भी बताया कि डॉक्टर के पास कब जाना चाहिए। आशा है आपको ये आर्टिकल अवश्य पसन्द आयेगा।

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Disclaimer – यह आर्टिकल केवल जानकारी मात्र है। किसी भी प्रकार की हानि के लिये ब्लॉगर/लेखक उत्तरदायी नहीं है। कृपया डॉक्टर/विशेषज्ञ से सलाह ले लें।

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