दोस्तो, स्वागत है आपका हमारे ब्लॉग पर। दोस्तो, आज हम आपको बतायेंगे आपको एक ऐसे संक्रमण के बारे में जो एक वायरस के कारण फैलता है और आपकी त्वचा को प्रभावित करता है। इस संक्रमण का नाम है “हर्पीस” (Herpes)। इसका नाम भी बहुत कम लोगों ने सुना होगा। हर्पीस एक ऐसा संक्रमण है जो हर्पीस सिंप्लेक्स वायरस के कारण होता है। इसके कारण शरीर पर छोटी-छोटी फुंसियों (दानों) का समूह बन जाता है। इन दानों में पानी भरा होता है। यदि इन दानों को फोड़ दिया जाये तो जहां-जहां यह पानी लगेगा, वहां ये दाने और अधिक कई गुणा मात्रा में फैल जायेंगे और समस्या गंभीर हो जायेगी। आखिर यह संक्रमण है क्या?। दोस्तो, यही है हमारा आज का टॉपिक “हर्पीस क्या है”।
देसी हैल्थ क्लब इस आर्टिकल के माध्यम से आज आपको हर्पीस के बारे में विस्तार से जानकारी देगा और यह भी बतायेगा कि इसके उपचार के क्या घरेलू उपाय हैं। तो सबसे पहले जानते हैं कि हर्पीस क्या है और इसके कितने प्रकार होते हैं। फिर इसके बाद बाकी बिन्दुओं पर जानकारी देंगे।
हर्पीस क्या है? – What is Herpes
दोस्तो, हर्पीस एक संक्रमण है जो हर्पीस सिंप्लेक्स वायरस (Herpes Simplex Virus – HSV) के कारण होता है। सबसे पहले हम आपको बताना चाहेंगे कि हर्पीस संक्रमण, करोड़ों साल पूर्व बंदरों की अलग-अलग प्रजातियों से मनुष्यों में आया है। इस संक्रमण के होने पर बाह्य, जननांग, गुदा क्षेत्र, श्लेष्म सतह तथा शरीर के दूसरे हिस्सों की त्वचा को प्रभावित हो जाती है। त्वचा पर पानी से भरे फफोले टाइप दानों की समूह उभर जाता है। इनको फोड़ने पर पानी फैलने के स्थान पर और अधिक दाने बन जाते हैं।
शुरुआत में ये दाने छोटे होते हैं परन्तु यदि इनकी रोकथाम ना की जाये तो इनका आकार बढ़ जाता है जो बाद में घाव बन सकते हैं। इन दानों की वजह से त्वचा में खुजली लगती है, जलन होती है और दर्द होता है। यद्यपि यह संक्रमण 40 वर्ष की उम्र के बाद किसी भी व्यक्ति को परन्तु जिस व्यक्ति को पहले चिकन पॉक्स हो चुका है या किसी के शरीर में पहले से ही चिकन पॉक्स का वायरस वेरिसेला जोस्टर वायरस (Varicella Zoster Virus) मौजूद है; उनको यह संक्रमण होने की संभावना अधिक हो सकती है।
हर्पीस कैसे फैलता है? – How is Herpes Spread?:
हर्पीस निम्न प्रकार से फैलता है –
1. यह संक्रमित व्यक्ति के संपर्क में आने से स्वस्थ व्यक्ति में स्थानान्तरित हो जाता है। यहां हम स्पष्ट कर दें कि “व्यक्ति” से हमारा तात्पर्य महिला और पुरुष दोनों से है।
2. हर्पीस, संक्रमित स्थानों के साथ त्वचा के साथ संपर्क हो जाने से फैलता है,
3. संक्रमित व्यक्ति के साथ यौन संबंध बनाना, अप्राकृतिक मैथुन और चुंबन से फैलता है।
हर्पीस के प्रकार – Types of Herpes
हर्पीस सिंप्लेक्स वायरस (HSV) दो प्रकार के होते हैं टाइप-1 और टाइप-2, विवरण निम्न प्रकार है –
1. हर्पीस सिंप्लेक्स वायरस टाइप-1 (HSV-1) – वायरस के इस प्रकार को मौखिक हर्पीस (Oral Herpes), भी कहा जाता है। इसमें मुंह और होंठों के आसपास छाले पड़ जाते हैं, ये गले में भी हो सकते हैं और चेहरे पर भी। इन्हें “कोल्ड सोर” (Cold Sore) भी कहा जाता है।
2. हर्पीस सिंप्लेक्स वायरस टाइप-2 (HSV-2) – इसे जेनिटल हर्पीस (Genital Herpes) या जननांग हर्पीस कहा जाता है। इस संक्रमण में जननांगों या मलाशय क्षेत्र के आसपास, गुदा में, कमर के नीचे, हिप्स पर छाले/घाव हो सकते हैं। यह टाइप-1 की अपेक्षा अधिक कष्टकारी होती है। इनमें खुजली अधिक होती है और जलन भी।
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हर्पीस के कारण – Cause of Herpes
दोस्तो, अब नजर डालते हैं मौखिक हर्पीस (Oral Herpes) और जननांग हर्पीस (Genital Herpes) के कारणों पर जो निम्नलिखित हैं –
1. मौखिक हर्पीस (Oral Herpes) के कारण –
(i) संक्रमित व्यक्ति के बर्तन, कपड़े, टूथब्रश इस्तेमाल करना।
(ii) संक्रमित व्यक्ति की लिप क्रीम या बाम का उपयोग करना।
(iii) संक्रमित व्यक्ति के साथ उसी की थाली में भोजन करना।
(iv) संक्रमित व्यक्ति की त्वचा के संपर्क में आना जैसे छूना, हाथ मिलाना, आलिंगन, चुंबन।
(v) संक्रमित व्यक्ति के साथ यौन क्रिया करना, मौखिक यौन क्रिया करना।
2. जननांग हर्पीस (Genital Herpes) के कारण –
(i) संक्रमित व्यक्ति के साथ यौन क्रिया, विशेषकर गुदा मैथुन और मौखिक यौन क्रिया करना।
(ii) कोल्ड सोर वाले व्यक्ति के साथ चुंबन, मौखिक यौन क्रिया करना।
(iii) कम उम्र में यौन संबंध बनाना।
(iv) अधिक व्यक्तियों के साथ यौन संबंध बनाना।
(v) सेक्स टॉयज़ शेयर करना।
हर्पीस के लक्षण – Symptoms of Herpes
दोस्तो, कई व्यक्तियों में लंबे समय तक यानि कई महीनों तक हर्पीस के लक्षण नजर नहीं आते हैं। अतः यह स्थिति गंभीर जानलेवा हो सकती है। कुछ व्यक्तियों में 10 दिनों के अंदर ही हर्पीस के लक्षण प्रकट होने लगते हैं जोकि निम्न प्रकार हैं –
1. शरीर पर दाने निकलने के पहले व्यक्ति को दर्द होता है।
2. लाल-लाल दाने निकलने लगते हैं इनमें धीरे-धीरे पानी भर जाता है।
3. मुंह के आसपास कोल्ड सोर हो जाते हैं।
4. जननांग में तथा शरीर के अन्य हिस्सों में ये दाने निकल आते हैं।
5. त्वचा में जलन और खुजली होती है।
6. पूरे शरीर में दर्द रहता है।
7. घुटने, कमर में दर्द व ऐंठन। कूल्हों और जांघों की मांसपेशियों में दर्द व ऐंठन।
8. कमर और जांघों के बीच के हिस्से में सूजन आ जाना।
9. लिम्फ नोड्स बढ़ जाना।
10. तेज या हल्का बुखार होना।
11. गले की नसों में सूजन।
12. मूत्र विसर्जन के समय दर्द होना।
13. जोड़ों में दर्द, सिर में दर्द।
14. थकान और कमजोरी महसूस करना।
हर्पीस का परीक्षण – Herpes Test
सबसे पहले डॉक्टर मरीज से लक्षणों के बारे में जानकारी लेते हैं फिर शरीर की जांच करते हैं। हर्पीस का संदेह होने पर डॉक्टर निम्नलिखित टेस्ट करवा सकते हैं –
1. एचएसवी टेस्ट (Hsv Test)- इस टेस्ट में डॉक्टर एक कॉटन की मदद से त्वचा पर मौजूद घाव या फफोले पर कॉटन स्वाब रगड़कर कर, द्रव का सैंपल लेते हैं, फिर इसे लैब में जांच के लिये भेज देते हैं। इस टेस्ट से जननांगों पर घाव या फफोले में वायरस की पुष्टि करता है।
2. ब्लड टेस्ट (Blood Test)- ब्लड टेस्ट के द्वारा एंटीबॉडीज़ के लेवल का पता लगाया जाता है। इससे भी हर्पीस वायरस की उपस्थिति का पता चल जाता है।
3. पोलीमरेज चेन रिएक्शन (PCR) टेस्ट – यह टेस्ट घाव या फफोले के द्रव में मौजूद वायरस के डीएनए की जांच के लिये किया जाता है। इससे एचएसवी1 और एचएसवी2 का पता लगाया जाता है।
हर्पीस का उपचार – Treatment of Herpes
1. दवाएं (Medicines)- माना जाता है कि कोई भी दवा हर्पीस के उपचार के लिये परफैक्ट नहीं है जो इस संक्रमण से राहत दिला सके, फिर भी डॉक्टर इसका प्रभाव कम करने के लिये कुछ एंटीवायरल दवाएं दे सकते हैं जैसे कि एसाइक्लोविर, फेमीक्लोविर और वैलेसीक्लोविर आदि। दर्द कम करने के लिये कुछ दर्द निवारक दवाएं दी जा सकती हैं जैसे कि एसिटामिनोफेन इबुप्रोफेन आदि।
2. सलाह (Advice)- उपरोक्त दवाओं के साथ-साथ डॉक्टर निम्नलिखित सलाह दे सकते हैं –
(i) प्रभावित त्वचा पर पेट्रोलियम जेली लगाएं।
(ii) ढीले-ढाले कपड़े पहनें ताकि प्रभावित त्वचा पर कपड़े की रगड़ ना लगे।
(iii) ठंडे पानी में हल्का सा नमक डालकर नहायें।
(iv) घाव, फफोले को ना छुएं। छू भी जाये तो हाथ अच्छी तरह से धोयें।
(v) घाव, फफोले को गीला ना करें, इन्हें सूखा रखें।
(vi) यदि मूत्र विसर्जन करते समय दर्द होता है, तो मूत्रमार्ग पर कोई क्रीम या लोशन लगाएं।
(vii) बर्फ़ को किसी कपड़े या तौलिया में लपेटकर प्रभावित स्थान की सिंकाई करें।
(viii) वायरस के लक्षण समाप्त होने तक यौन संबंध ना बनायें।
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हर्पीस में क्या खाना चाहिए? – What to Eat with Herpes?
हर्पीस संक्रमण के दौरान खाने पीने का विशेष ध्यान रखें। निम्नलिखित खाद्य पदार्थों को अपने आहार में शामिल करें ताकि संक्रमण का प्रभाव कम हो सके –
1. अंकुरित खाद्य पदार्थों का अधिक से अधिक सेवन करें।
2. साबुत अनाज विशेष रूप से बाजरे का उपयोग करें।
3. पेय पदार्थों का सेवन करें (खट्टे फलों को छोड़कर)।
4. पानी अधिक मात्रा में पीयें।
5. ताजा ऑर्गेनिक फल (खट्टे फल नहीं लेने हैं)।
6. ताजा हरी और पीली सब्जियां विशेषकर (फूल गोभी, ब्रोकली, मशरूम आदि)।
7. फलियां, मटर, बीन्स आदि।
8. लहसुन का सेवन करें।
हर्पीस में क्या नहीं खाना चाहिए? – What Should not be Eaten with Herpes?
निम्नलिखित खाद्य पदार्थों को अवॉइड करें –
1. तले, भुने, और अधिक ऑयली खाद्य पदार्थ।
2. तीखा, खट्टा, चटपटा, तेज मिर्च मसाले वाले खाद्य पदार्थ।
3. मूंगफली, बादाम जैसे नट्स अधिक मात्रा में ना खायें।
4. चॉकलेट, चाय, कॉफी का उपयोग कम करें।
5. रिफाइंड शुगर को अवॉइड करें।
6. एस्पारटेम का उपयोग ना करें। यह शुगर का विकल्प है। एस्पारटेम का आर्टिफिशियल स्वीटनर के रूप में सबसे ज्यादा इस्तेमाल किया जाता है।
हर्पीस के घरेलू उपाय – Home Remedies for Herpes
अब बताते हैं आपको हर्पीस से राहत पाने के कुछ घरेलू उपाय जो निम्नलिखित हैं –
1. एलोवेरा (Aloe vera)- एलोवेरा को औषधीय गुणों का खजाना कहा जाता है। इसमें एंटीसेप्टिक, एंटी-बैक्टीरियल, एंटी-इंफ्लेमेटरी, एंटीमाइक्रोबायल आदि गुण मौजूद होते हैं। 1999 में हुए एक शोध से पता चलता है कि एलोवेरा से बनी एक क्रीम जेनिटल हर्पीस के उपचार में अत्यंत लाभदायक सिद्ध हुई थी। एलोवेरा के ठंडक देने वाले गुण, हर्पीस के लक्षणों पर अपना प्रभाव छोड़कर राहत दिलाते हैं। एलोवेरा का ताजा पत्ता काट कर इसका जैल निकाल लें और इस जैल को रुई की मदद से प्रभावित त्वचा पर लगायें। इसे कई बार लगा सकते हैं, कोई हानिकारक प्रभाव नहीं होगा।
2. बेकिंग सोडा (Baking Soda)- बेकिंग सोडा में मौजूद एंटीइंफ्लामेटरी गुण जलन, सूजन और दर्द को कम करने में मदद करते हैं साथ ही फफोलों/घावों को सुखाते हैं और खुजली में भी आराम दिलाते हैं। आधा चम्मच बेकिंग सोडा को थोड़े से पानी में भिगो दें। रुई की मदद से इसे प्रभावित त्वचा पर लगाकर थोड़ी देर के लिये छोड़ दें। इसे दिन में दो बार लगा सकते हैं।
3. लहसुन (Garlic)- लहसुन में एंटी-ऑक्सीडेंट, एंटी-बैक्टीरियल, एंटी-फंगल और एंटी-वायरल गुण मौजूद होते हैं। एंटी-वायरल गुण हर्पीस वायरस के विरुद्ध लड़ते हैं। लहसुन की 2-3 कलियों को पीसकर पेस्ट बना लें और इसमें एक चम्मच ऑलिव ऑयल डालकर अच्छे से मिक्स कर लें। इस पेस्ट को प्रभावित त्वचा पर लगाकर थोड़ी देर के लिये छोड़ दें। इसे दिन में 2-3 बार लगा सकते हैं।
4. मुलेठी (Muleti)- मुलेठी में एंटीऑक्सीडेंट, एंटीवायरल, एंटीबैक्टीरियल, एंटीमाइक्रोबियल, एंटीइंफ्लेमेटरी, एंटीकार्सिनोजेन, एंटीओबेसिटी, हाइपरग्लाइसेमिक आदि गुण मौजूद होते हैं। मुलेठी के एंटीवायरल और एंटीमाइक्रोबियल गुण वायरस से लड़ते हैं। एंटीइंफ्लेमेटरी गुण सूजन को कम करने में मदद करते हैं। मुलेठी की जड़ के पाउडर को पानी में मिलाकर प्रभावित स्थान पर लगाएं। आराम लग जायेगा। मुलेठी पर विस्तार से जानकारी के लिये हमारा पिछला आर्टिकल “मुलेठी के फायदे और नुकसान” पढ़ें।
5. ऑलिव ऑयल(Olive Oil) – ऑलिव ऑयल यानि जैतून के तेल को रुई की मदद से प्रभावित त्वचा पर लगायें। इससे संक्रमण जल्द खत्म हो जायेगा। ऑलिव ऑयल में एंटीबैक्टीरियल और एंटीऑक्सीडेंट गुण होते हैं। एंटीबैक्टीरियल गुण वायरस के विरुद्ध लड़ते हैं और एंटीऑक्सीडेंट गुण संक्रमण के विस्तार को रोकते हैं।
6. टी ट्री ऑयल (Tea Tree Oil)- टी ट्री ऑयल मेलेल्यूका अल्टरनीफोलिया (Melaleuca alternifolia) नामक पेड़ के पत्तों से प्राप्त किया जाता है। इस पेड़ को टी ट्री (Tea tree) यानि चाय के पेड़ के नाम से जाना जाता है। टी ट्री ऑयल में एंटीमाइक्रोबियल, एंटीसेप्टिक, एंटीवायरल और एंटीबैक्टीरियल गुण होते हैं। ये गुण हर्पीस वायरस के विरुद्ध लड़ते हैं और वायरस को खत्म करते हैं। इस तेल को रुई की मदद से प्रभावित त्वचा पर तीन, चार बार लगायें।
7. अजवाइन का तेल (Celery oil)- अजवाइन के तेल में पाये जाने वाला कार्वाक्रोल नामक तत्व इसे एंटीवायरल गुण प्रदान करता है जो हर्पीस के वायरस को खत्म करने में मदद करते हैं। रुई की मदद से इस तेल की कुछ बूंद प्रभावित क्षेत्र पर लगायें। यह तेल दिन में दो बार लगा सकते हैं।
8. सेब का सिरका (Apple vinegar)- सेब के सिरके में एंटीइंफ्लामेटरी और एंटीवायरल गुण मौजूद होते हैं। ये गुण वायरस को खत्म कर के संक्रमण से छुटकारा दिलाते हैं। आधा चम्मच सेब का सिरका लेकर इसमें दो चम्मच गर्म पानी मिलायें और रुई की मदद से प्रभावित त्वचा पर लगायें। पांच मिनट के बाद पानी से साफ़ कर लें। दिन में दो बार से ज्यादा ना लगायें क्योंकि सेब का सिरका एसिडिक होता है।
9. ब्लैक टी (Black Tea)- ब्लैक टी में कुछ एंटी-इंफ्लेमेटरी और एंटी-वायरल गुण मौजूद होते हैं जिन्हें थियाफ्लेविन के नाम से जाना जाता है। ये हर्पीस संक्रमण के प्रभाव को कम करने में मदद करते हैं। ब्लैक टी बनाते समय आप इसमें नींबू, पुदीना, दालचीनी, अदरक और कैमोमाइल आदि मिला सकते हैं। इस ब्लैक टी को प्रभावित त्लचा पर लगायें। आराम लग जायेगा।
10. गर्म सिकाई (Hot Compress)- हर्पीस के शुरुआत में ही लक्षणों के प्रकट होने पर गर्म सिकाई करने से, इसके प्रभाव से छुटकारा पाया जा सकता है। गर्म सिकाई से त्वचा नर्म पड़ जाती है और दर्द में आराम मिलता है। इसके लिये तवा गर्म करके, तौलिया या कोई कपड़ा इस पर रख कर सहन करने लायक गर्म करें और त्वचा की सिकाई करें कम से कम 20 मिनट तक। गर्म सिकाई दिन में दो, तीन बार कर सकते हैं।
11. ठंडी सिकाई (Cold Compress)- गर्म सिकाई के ही समान ठंडी सिकाई भी दर्द और सूजन से आराम दिलाती है, मगर कुछ समय के लिए ही। इससे खुजली भी कम हो जायेगी और जलन भी। ठंडी सिकाई बर्फ़ के द्वारा की जाती है। इसके लिये कुछ बर्फ़ के टुकड़ों को किसी कपड़े में लपेट लें और प्रभावित क्षेत्र की सिकाई करें। इसे दिन में तीन, चार बार कर सकते हैं।
12. चंदन और गुलाब जल (Sandalwood and Rose Water)- चंदन और गुलाब जल दोनों की ही शीतल प्रकृति होती है। जलन में शीतलता प्रदान करना इनका गुण है। इसके लिये चंदन को गुलाब जल में घिसकर प्रभावित त्वचा पर लगायें। इससे सूजन, दर्द और खुजली में भी कमी आयेगी।
Conclusion –
दोस्तो, आज के आर्टिकल में हमने आपको हर्पीस के बारे में विस्तार से जानकारी दी। हर्पीस क्या है?, हर्पीस कैसे फैलता है, हर्पीस के प्रकार, हर्पीस के कारण, हर्पीस के लक्षण, हर्पीस का परीक्षण, हर्पीस का उपचार, हर्पीस में क्या खाना चाहिए और हर्पीस में क्या नहीं खाना चाहिए, इन सब के बारे में भी विस्तार पूर्वक बताया। देसी हैल्थ क्लब ने इस आर्टिकल के माध्यम से हर्पीस से राहत पाने के लिये हर्पीस के बहुत सारे घरेलू उपाय भी बताये। आशा है आपको ये आर्टिकल अवश्य पसन्द आयेगा।
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Disclaimer – यह आर्टिकल केवल जानकारी मात्र है। किसी भी प्रकार की हानि के लिये ब्लॉगर/लेखक उत्तरदायी नहीं है। कृपया डॉक्टर/विशेषज्ञ से सलाह ले लें।
Nice Article