दोस्तो, स्वागत है आपका हमारे ब्लॉग पर। दोस्तो, आज हम आपको एक ऐसे रोग के बारे में बतायेंगे जिसका संबंध बचपन के टीकाकरण से जोड़ा जाता है यानी टीका लगा है तो यह बीमारी नहीं होगी परन्तु फिर भी हो जाती है। हां, बचाव काफी हद तक हो जाता है पर भविष्य में संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता। यद्यपि यह बीमारी जानलेवा नहीं है परन्तु पहले कभी इस बीमारी में बच्चों की मृत्यु दर अधिक थी, बच्चों की जान चली जाती थी। यह बीमारी वस्तुतः एक संक्रमण है जिसमें श्वसन तंत्र प्रभावित होता है। यह संक्रमण उन लोगों को भी होता है जिनकी प्रतिरक्षा प्रणाली कमजोर होती है। हम बात कर रहे हैं काली खांसी की जिसका कंसेप्ट ही आम खांसी से अलग होता है। इसके लक्षण एकदम से नजर नहीं आते बल्कि इनको प्रकट होने में 7 से 10 दिन लग जाते हैं। आखिर काली खांसी है क्या? और इसके उपचार के घरेलू उपाय क्या हैं। दोस्तो, यही है हमारा आज का टॉपिक “काली खांसी के घरेलू उपाय”। देसी हैल्थ क्लब इस लेख के माध्यम से आज आपको काली खांसी के बारे में विस्तृत जानकारी देगा और यह भी बतायेगा कि इसके घरेलू उपाय क्या हैं। तो, सबसे पहले जानते हैं कि काली खांसी क्या है इसके कारण और लक्षण क्या है। इसके बाद फिर बाकी बिन्दुओं पर जानकारी देंगे।
काली खांसी क्या है? – What is Whooping Cough?
काली खांसी श्वसन से संबंधित रोग है। इसे कुकर खांसी, पर्टुसिस (Pertussis) भी कहा जाता है। वस्तुतः यह श्वसन तंत्र में होने वाला खतरनाक संक्रमण है जो कि अत्यंत संक्रामक होता है। इसके जीवाणु संक्रमित व्यक्ति के खांसने या छींकने से हवा में फैल जाते हैं। यदि कोई अन्य स्वस्थ व्यक्ति, संक्रमित व्यक्ति के खांसते और छींकते समय उसकी रेंज में आ गया तो निश्चित रूप से वह भी संक्रमित हो जायेगा। यह बैक्टीरिया स्वस्थ व्यक्ति के फेफड़ों में बैठ जाता है और संक्रमण फैलने लगता है। यह बैक्टीरियम बोर्डटेला पर्टुसिस (Bacterium bordetella pertussis) के कारण होता है, जिसमें श्वसन नली मार्ग प्रभावित होती है। संक्रमित व्यक्ति के खांसने पर बलगम आता है और सांस लेने पर एक पैनी “वूप” जैसी आवाज आती है। माना जाता है जिन बच्चों को बचपन में काली खांसी का टीका लगा हुआ है, उनको काली खांसी होने का जोखिम नहीं रहता। बचपन में जिन बच्चों को 12 वर्ष की उम्र तक काली खांसी का टीका न लगा हो उनमें संक्रमण का जोखिम ज्यादा रहता। परन्तु वास्तविकता इस प्रकार के अनुमान से एकदम अलग है। बचपन में काली खांसी का टीका लगने से भविष्य में काली खांसी होने का जोखिम बेशक ना रहे लेकिन संभावना से इन्कार नहीं किया जा सकता। वास्तविकता यह है किसी भी आयु के व्यक्ति को हो सकती है। कुछ लोग इसे बच्चों की बीमारी मानते हैं, यह भी गलत है।
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काली खांसी के कारण – Cause of Whooping Cough
काली खांसी के निम्नलिखित कारण होते हैं –
1. बोर्डटेला पर्टुसिस बैक्टीरिया इसका प्रमुख कारण है।
2. संक्रमित व्यक्ति के संपर्क में आना। इसके विषाणु हवा में फैलते हैं। इस कारण इसकी चपेट में आने वाला व्यक्ति संक्रमित हो जाता है।
3. बचपन में काली खांसी के टीके ना लगना या पूरे टीके ना लग पाना।
4. प्रतिरक्षा प्रणाली कमजोर होना।
काली खांसी के लक्षण – Symptoms of Whooping Cough
दोस्तो, काली खांसी के लक्षण संक्रमित व्यक्ति में एकदम से प्रकट नहीं होते बल्कि 7 से 10 दिन में दिखते हैं। शुरुआत में ये सामान्य सर्दी जुकाम लगता है लेकिन बाद कुछ और लक्षण प्रकट होते हैं जो निम्न प्रकार हैं –
1. सर्दी लगना।
2. जुकाम होना, नाक बहना या नाक बंद होना।
3. हल्की खांसी होना।
4. खांसी में बलगम आना।
5. लगातार खांसी आना, खांसते-खांसते सांस फूलना।
6. सांस में वूप की आवाज आना।
7. सांस लेने में परेशानी होना।
8. कभी उल्टी हो जाना।
9. हड्डियों और मांसपेशियों में दर्द होना।
10. कमजोरी, थकावट महसूस करना।
11. कुछ बच्चों को खांसी नहीं उठती बल्कि सांस लेने में परेशानी होने लगती है।
12. आंखें लाल होना और शरीर का रंग नीला पड़ जाना।
काली खांसी के परीक्षण – Whooping Cough Test
डॉक्टर काली खांसी के परीक्षण के लिये निम्नलिखित टेस्ट कर सकते हैं –
1. नासॉफिरिन्क्स शरीर का वह हिस्सा है जिसे ऊपरी वायु-पाचन पथ कहा जाता है, इस पथ में नाक, मुंह और गला शामिल हैं। नासॉफिरिन्क्स से नोजल स्वाब के ज़रिए टेस्ट करेंगे। इससे गुर्दों के संक्रमण का पता लगाया जाता है।
2. स्पुटम कल्चर टेस्ट (Sputum Culture Test)- श्वसन तंत्र के निचले भाग में मौजूद बलगम को स्पुटम कहा जाता है। यह अक्सर खांसते समय निकलता है और यह लार से अलग होता है। इस टेस्ट में बलगम का सैंपल दिया जाता है जिसकी जांच लैब में की जाती है। इससे संक्रमण का पता लगाया जाता है।
3. ब्लड टेस्ट (Blood Test)- सफेद रक्त कोशिकाओं की मात्रा जानने के लिये यह टेस्ट करवाया जाता है। सफेद रक्त कोशिकाऐं बैक्टीरिया से लड़ती हैं। इनकी मात्रा से डॉक्टर को काली खांसी का पता लगाना आसान हो जाता है।
4. सीने का एक्स-रे (Chest x ray)- डॉक्टर खांसी की गंभीरता का स्तर जानने के लिये सीने का एक्स रे करवा सकते हैं। इससे गुर्दों की सूजन तथा अन्य समस्याएं स्पष्ट हो जाती हैं।
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काली खांसी के उपचार – Whooping Cough Treatment
1. काली खांसी की समस्या होने पर बच्चों को अस्पताल में भर्ती करवाना पड़ता है। छोटे बच्चों के लिये काली खांसी की समस्या गंभीर होती है। जो बच्चे खाना नहीं खा सकते या तरल पेय नहीं ले सकते डॉक्टर उनको नसों के माध्यम से सीधे तरल पदार्थ/दवाऐं देते हैं।
2. बड़े बच्चों और व्यस्क लोगों को अस्पताल में भर्ती होने की जरूरत नहीं होती। इनका उपचार घर पर ही हो जाता है। डॉक्टर कुछ एंटीबायोटिक दवाओं के माध्यम से बैक्टीरिया को खत्म करते हैं।
3. बलगम कम करने के लिए कोई विशेष दवा नहीं होती, इसलिये डॉक्टर की सलाह के बिना अपनी मर्जी से कोई दवा ना लें।
4. डॉक्टर निम्नलिखित सलाह दे सकते हैं –
(i) ऐसे कमरे में रहें जहां डिस्टर्बेंस ना हो, कमरा शांत हो और ठंडक हो।
(ii) कमरे में मास्क लगाए रखें ताकि परिवार के अन्य सदस्य संक्रमित न हो। सांस लेने में दिक्कत हो तो, ऑक्सीजन मास्क लगायें।
(iii) घर में तंबाकू, आग आदि का धुआँ न होने दे, साफ सफाई रखें। कमरे में हवा दूषित ना हो।
(iv) तरल पेय पदार्थों का अधिक सेवन करें जैसे फलों का जूश, सूप, नारियल पानी, सादा पानी आदि।
(v) रात को हल्का भोजन करें ताकि उल्टी की समस्या न हो और खांसी भी कम आये।
काली खांसी के घरेलू उपाय – Home Remedies for Whooping Cough
1. तुलसी (Basil)- तुलसी में बैक्टीरिया खत्म करने वाले एंटीमाइक्रोबियल गुण होते हैं जो काली खांसी के बैक्टीरिया के विरुद्ध लड़कर राहत दिला सकते हैं। साथ ही तुलसी के इम्यूनोमॉड्यूलेटरी गुण इम्यून सिस्टम को रेगुलेट करते हैं। तुलसी के पत्तों और काली मिर्च को बराबर मात्रा में पीस कर छोटी-छोटी गोलियां बना लें। इस गोली को दिन में तीन बार चूसें। खांसी में आराम लग जायेगा और गला भी साफ हो जायेगा। तुलसी पर अधिक जानकारी के लिये हमारा पिछला आर्टिकल “तुलसी के फायदे” पढ़ें।
2. लहसुन (Garlic)- लहसुन एक प्राकृतिक एंटीबायोटिक है जो सर्दी, खांसी, जुकाम के इलाज के लिये अत्यंत लाभदायक होता है। लहसुन में एंटीबैक्टीरियल और एंटीवायरल गुण होते हैं जो काली खांसी के पर्टुसिस बैक्टीरिया से लड़ते हैं। लहसुन की 5-6 कलियों को छीलकर, बारीक काटकर पानी में उबालें और इस पानी की भाप लें। यह क्रिया प्रतिदिन करें। कुछ ही दिनों में काली खांसी से मुक्ति मिल जायेगा। इसके अतिरिक्त लहसुन की 4-5 कलियों को पीसकर, इनका जूस निकाल कर पीयें, चाहें तो इसमें हल्का सा शहद मिला सकते हैं।
3. अदरक (Ginger)- अदरक में एंटीऑक्सीडेंट और एंटीबैक्टीरियल गुण होते हैं जो रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने और बैक्टीरिया से लड़ने का काम करते हैं। अदरक को बहुत अच्छा कफोत्सारक (Expectorant) माना जाता है जो काली खांसी को खत्म करने में मदद करती है। अदरक का दो बड़े चम्मच रस निकाल कर इसमें दो चम्मच शहद मिलाकर दिन में दो बार सेवन करें। या दो बड़े चम्मच अदरक के रस में दो बड़े चम्मच नींबू का रस और दो बड़े चम्मच प्याज का रस मिलाकर दिन में तीन बार एक-एक चम्मच यह मिश्रण का सेवन करें।
4. प्याज (Onion)- प्याज के औषधीय गुणों को देखते हुऐ इसका उपयोग आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धति में किया जाता रहा है विशेषकर अस्थमा, ब्रोंकाइटिस और काली खांसी के उपचार में। प्याज के एंटीमाइक्रोबियल काली खांसी के बैक्टीरिया के प्रभाव को कम करने मदद करता है। प्याज का रस निकाल कर इसमें एक चौथाई चम्मच शहद मिलाकर कुछ-कुछ घंटों के बाद सेवन करें। प्याज को भूनकर भी शहद के साथ खा सकते हैं।
5. हल्दी (Turmeric)- हल्दी भी औषधीय गुणों की खान है। यह प्राकृतिक एंटीबायोटिक और एंटीसेप्टिक है। इसमें एंटीबैक्टीरियल और एंटीवायरल गुण होते हैं जो काली खांसी के प्रभाव को खत्म करने में मदद करते हैं। हल्दी इम्युनिटी मजबूत करने का बहुत बेहतरीन उपाय है। एक बड़े चम्मच कच्चे शहद में एक छोटी चम्मच हल्दी पाउडर मिक्स करके दिन में दो बार खायें। या दिन में दो बार एक गिलास गर्म दूध में एक छोटी चम्मच हल्दी पाउडर मिलाकर पीयें।
6. शहद (Honey)- शहद में एंटीबैक्टीरियल और एंटीसेप्टिक गुण मौजूद होते हैं जो काली खांसी के उपचार में कारगर सिद्ध होते हैं। शहद के ये गुण बैक्टीरिया को खत्म करने में मदद करते हैं और साथ ही संक्रमण के प्रभाव को भी कम करते हैं। काली खांसी से राहत पाने के लिये एक गिलास गर्म पानी में एक बड़ा चम्मच कच्चा शहद मिलाकर पीयें। दिन में दो तीन बार पी सकते हैं।
7. काली मिर्च (Black Pepper)- काली मिर्च में मौजूद पाइपराइन नामक कंपाउंड सर्दी से होने वाली बीमारियों से बचाव करता है और गले की खराश में भी आराम दिलाता है। दो ग्राम काली मिर्च के पाउडर को, मिश्री मिले हुऐ गर्म दूध में मिलाकर रोजाना पीयें। कुछ ही दिन में खांसी में आराम लग जायेगा, या एक चम्मच शहद में दो ग्राम काली मिर्च का पाउडर मिलाकर चाटें। काली मिर्च के विषय में अधिक जानकारी के लिये हमारा पिछला आर्टिकल “काली मिर्च के फायदे और नुकसान” पढ़ें।
8. दालचीनी (Cinnamon)- दालचीनी एंटीऑक्सीडेंट, एंटीडायबिटिक, एंटीबैक्टीरियल, एंटीमाइक्रोबियल, एंटीइंफ्लामेटरी गुणों से समृद्ध होती है। यह बैक्टीरिया के कारण उत्पन्न श्वसन संबंधित रोगों से छुटकारा दिलाती है। साथ ही यह सर्दी, जुकाम, खांसी, काली खांसी में भी अत्यंत लाभदायक है। दालचीनी पर अधिक जानकारी के लिये हमारा पिछला आर्टिकल “दालचीनी के फायदे और नुकसान” पढ़ें। इसका उपयोग निम्न प्रकार कर सकते हैं –
(i) हल्के सा गुनगुने शहद में एक चौथाई चम्मच दालचीनी पाउडर मिलाकर सुबह का नाश्ता करने के बाद और रात को सोने से पहले सेवन करें।
(ii) एक गिलास गुनगुने पानी में दालचीनी पाउडर और एक चम्मच शहद मिलाकर पीयें।
(iii) दालचीनी के पाउडर काली मिर्च पाउडर मिलाकर सेवन करने से पुराने कफ की समस्या दूर हो जाती है।
(iv) दालचीनी में नींबू का रस मिला कर सेवन करें।
9. मुलेठी (Mulethi)- मुलेठी में एंटीऑक्सिडेंट गुण होते हैं। यह एंटीबायोटिक भी है। इसमें मौजूद ग्लाइसिराइजिक एसिड (Glycyrrhizic acid) प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत करता है। काली खांसी के कारण जिन उत्तकों की क्षति होती है, इसके डीमुलसेंट (Demulcent) घटक उन उत्तकों की उपचार करते हैं। काली खांसी के उपचार के लिये एक चम्मच मुलेठी पाउडर शहद में मिलाकर दिन में दो, तीन बार खायें। या एक कप पानी में एक बड़ी चम्मच मुलेठी पाउडर डालकर गर्म करें। इसे छानकर ठंडा करके दिन में दो, तीन बार पीयें।
10. बादाम (Almond)- बादाम प्राकृतिक एंटीऑक्सीडेंट से समृद्ध होते हैं, इसके छिलकों में एंटीबैक्टीरियल गुण मौजूद होते हैं जो बैक्टीरिया से लड़ते हैं। बच्चों की काली खांसी के उपचार के लिये रात को तीन-चार बादाम पानी में भिगो दें। अगले दिन सुबह बादाम के छिलके उतारकर (बच्चे को छिलके से दिक्कत हो सकती है), एक लहसुन की कली और थोड़ी सी मिश्री के साथ पीस लें। इस पेस्ट की छोटी-छोटी गोलियां बना लें। इन गोलियां को बच्चे को खिलायें। इससे खांसी में आराम मिलेगा। बड़े लोगों के लिये : 5-7 बादाम रात को पानी में भिगो दें अगले दिन सुबह बादाम छिलका सहित मिक्सी में डाल दें और एक छोटी चम्मच मक्खन भी डालकर मिक्स कर लें। इस मिश्रण को दिन में दो, तीन बार खायें।
11. ग्रीन टी (Green Tea)- ग्रीन टी के एंटीवायरल गुण सर्दी, फ्लू और अन्य संक्रमणों से राहत दिलाते हैं। इसके एंटीबैक्टीरियल गुण काली खांसी पैदा करने वाले बैक्टीरिया को खत्म करने में मददगार हो सकते हैं। दिन में दो या तीन बार ग्रीन टी पी सकते हैं। चाहें तो इसमें हल्का सा शहद मिलं सकते हैं।
12. नमक के पानी से गरारे (Gargle with Salt Water)- नमक में एंटीबैक्टीरियल गुण होते हैं और यह तीव्र गति से काली खांसी के उपचार में सहायता करता है। इसे सोडियम क्लोराइड भी कहा जाता है। एक गिलास गुनगुने पानी में दो छोटी चम्मच नमक मिलाकर दिन में दो बार और रात को सोने से पहले गरारे करें।
काली खांसी से बचाव के लिए टीकाकरण – Vaccination to Prevent Whooping Cough
1. गर्भवती महिलाओं को 27 से 36 हफ्तों में पर्टुसिस का टीका लगवाना चाहिये। यह टीका शुरुआत में ही बच्चे का काली खांसी से बचाव करते हैं।
2. बच्चों को काली खांसी तथा अन्य घातक बीमारियों से बचाने के लिये बच्चों की टीकाकरण प्रक्रिया का ध्यान रखें। समय-समय पर बच्चों को टीके लगवायें।
3. काली खांसी से बचाव के लिये बच्चों को पर्टुसिस के टीके के पांच डोज लगाये जाते हैं। ये टीके बच्चों को दूसरे, चौथे, छटे महीने में, पन्द्रह से अठारह महीने के बीच और चार से छः वर्ष की उम्र में लगाये जाते हैं।
4. चूंकि 11 वर्ष की आयु में पर्टुसिस टीके का प्रभाव समाप्त हो जाता है इसलिये काली खांसी, डिप्थेरिया तथा टिटनेस से बचाव के लिये डॉक्टर, 11 वर्ष की आयु के बाद बूस्टर टीका लगवाने की सलाह देते हैं।
5. व्यस्क व्यक्तियों को हर दस वर्ष में टिटनेस का टीका लगवाना चाहिये।
Conclusion –
दोस्तो, आज के लेख में हमने आपको काली खांसी के घरेलू उपाय के बारे में विस्तार से जानकारी दी। काली खांसी क्या है, काली खांसी के कारण, काली खांसी के लक्षण, काली खांसी के परीक्षण और काली खांसी के उपचार, इन सब के बारे में भी विस्तार पूर्वक बताया। देसी हैल्थ क्लब ने इस लेख के माध्यम से काली खांसी से छुटकारा पाने के घरेलू उपाय भी बताये और काली खांसी से बचाव के लिये टीकाकरण की भी जानकारी दी। आशा है आपको ये लेख अवश्य पसन्द आयेगा।
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