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डिलीवरी के बाद सेक्स कब करें – Delivery ke Bad Sex Kab Kare in Hindi

डिलीवरी के बाद सेक्स कब करें

दोस्तो, आपका स्वागत है हमारे ब्लॉग पर।  हमारा आज का टॉपिक पति-पत्नी के शारीरिक संबंध पर आधारित  है।  शारीरिक संबंध जो जिन्दगी की अहम कड़ी है, प्रेम का एक महत्वपूर्ण हिस्सा।  यदि इसमें बहुत बड़ा अंतराल आ जाये तो।  यह अंतराल प्राकृतिक है लेकिन इसका धरातल स्वयं शारीरिक संबंध ही है ना कि पति-पत्नी के बीच कोई मन-मुटाव या ना कोई अन्य समस्या।  जी हां, हम बात कर रहे हैं प्रेगनेंसी का समय और डिलीवरी के बाद के समय के अंतराल की।  यही है हमारा आज का टॉपिक कि डिलीवरी के बाद सेक्स कब करें क्योंकि प्रेगनेंसी की शुरुआती अवस्था को छोड़कर, बाद में तो सेक्स कर नहीं सकते।  वैसे तो प्रेगनेंसी की शुरुआती अवस्था में भी सेक्स नहीं करना चाहिये, और डिलीवरी के तुरन्त बाद भी सेक्स नहीं कर सकते।  तो फिर कब करें?।  यही है हमारा आज का टॉपिक कि डिलीवरी के बाद सेक्स कब करें।  आज के लेख में हम आपको इसी विषय पर जानकारी देंगे।  

दोस्तो, जिस प्रकार प्रेगनेंसी का समय गर्भवती महिला और गर्भस्थ शिशु के लिये बहुत नाजुक होता है उससे कहीं अधिक नाजुक, डिलीवरी के पश्चात् का समय होता है महिला के लिये।  डिलीवरी के तुरन्त बाद सेक्स के बारे में महिला तो क्या पुरुष भी नहीं सोचता है।  फिर, वो समय कितने दिन बाद आता है कि जब पति-पत्नी दुबारा से सेक्स जीवन की शुरुआत करते हैं।  दोस्तो, यह निर्भर करता है डिलीवरी के हालात पर, कि किस प्रकार की डिलीवरी हुई है?।  तो, दोस्तो सबसे पहले समझते हैं कि डिलीवरी कितने प्रकार की होती है?

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डिलीवरी के बाद सेक्स कब करें
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डिलीवरी के प्रकार – Types of Delivery 

दोस्तो, वैसे तो दो प्रकार से ही डिलीवरी होती है, एक सामान्य और दूसरी सिजेरियन।  इनके अतिरिक्त कुछ और भी तरीके होते हैं डिलीवरी कराने के।  जानते हैं इनके बारे में –

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1.  वैजाइनल डिलीवरी (Vaginal Delivery)- इसे सामान्य डिलीवरी कहा जाता है जो प्राचीन काल से चली आ रही है और लोकप्रिय होने के साथ-साथ सुरक्षित भी है।  इस विधि में महिला प्रसव पीड़ा को सहन करते हुऐ बच्चे को जन्म देती है।  महिला के जननांग की मांसपेशियों को हिलाकर बच्चे को बाहर की ओर धकेला जाता है।  इस विधि में महिला को किसी भी प्रकार की दवाई नहीं दी जाती जैसे कि प्रसव पीड़ा को कम करने या डिलीवरी जल्दी कराने की या अन्य कोई और। 

यह डिलीवरी घर भी की जाती है इसके लिये प्रशिक्षित नर्स या दाई की आवश्यकता होती है।  प्राचीन समय से अब तक इसे ज्यादा पसंद किया जाता है।  गांवों में तो अभी भी अधिकतर घर पर ही डिलीवरी की जाती है।  इस प्रकार की डिलीवरी में संक्रमण का खतरा भी कम होता है और महिला के स्वास्थ में बहुत जल्दी से सुधार होता है।  फिर भी चार सप्ताह तो लग ही जाते हैं स्वस्थ होने में और शारीरिक कमजोरी तो बहुत दिनों बाद ठीक होती है। 

2. ​सिजेरियन डिलीवरी (Cesarean Delivery)- इसे सी-सेक्शन (C-section) डिलीवरी भी कहा जाता है।  जब प्राकृतिक प्रसव के कराने के प्रयास सफल ना हो पा रहे हों या अन्य कारणों से डॉक्टर्स के पास कोई विकल्प ना बचे तब इस विधि को अपनाया जाता है या फिर कोई महिला पहले से ही इस विधि द्वारा डिलीवरी कराने की योजना (Planning) बना चुकी हो।  इस विधि में महिला के पेट और गर्भाशय में सर्जिकल में  चीरा लगा कर बच्चे को बाहर निकाला जाता है।  इसे बड़ा ऑपरेशन माना जाता है।  सिजेरियन  डिलीवरी कराने के निम्न कारण हो सकते हैं। 

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(i)  गर्भ में एक से अधिक बच्चे होना। 

(ii) बच्चे का आकार बड़ा होना। 

(iii) बच्चे की धड़कन में समस्या हो जिससे सामान्य डिलीवरी में उसकी जान का खतरा हो। 

(iv) गर्भ में बच्चे का उल्टा हो जाना या गलत स्थान पर आ जाना। 

(v) पहला बच्चा ऑपरेशन, सी-सेक्शन, या गर्भाशय की अन्य समस्या से हुआ हो। 

(vi) किसी भी अन्य प्रकार की समस्या जिससे बच्चे या महिला अथवा दोनों की जान को खतरा हो। 

इस स्थिती में महिला के स्वास्थ के रिकवर होने में बहुत समय लगता है।  कम से कम छः सप्ताह तक तो इंतजार करना ही होगा क्योंकि टांके और घाव भरने में समय लगता है।  छः सप्ताह के बाद भी डॉक्टर से यह जान लेना चाहिये कि टांके और घाव भरे हैं या नहीं और सेक्स करने के बारे में भी सलाह ले लेनी चाहिये।  

3. एपिसिओटोमी (Episiotomy) – बच्चे के निकास स्थान को बढ़ाने के लिए प्रसव से ठीक पहले पेरिनेम (योनि और गुदा के बीच की मांसपेशियों का क्षेत्र) में एक सर्जिकल कट को एपिसिओटोमी कहा जाता है।  अर्थात् इस विधि में योनि मुख और गुदा के बीच के ऊतक (पेरिनियम) पर एक कट लगाया जाता है।  कट लगने से पहले सुन्न करने के लिये एक इंजेक्शन दिया जाता है ताकि कट लगाते समय दर्द ना हो।  इस विधि की जरूरत निम्नलिखित परिस्थितियों में पड़ती है :-

(i)  यदि बच्चे का आकार बड़ा है।  

(ii) यदि बच्चे का कंधा जन्म नहर में फंस जाये। 

(iii) यदि की हृदय गति से पता चले वह संकट में है और उसे जल्दी जन्म लेने की आवश्यकता है। 

इस विधि में हुऐ घाव को ठीक होने में 7 से 10 दिन लग जाते हैं।  अस्पताल में एक नर्स प्रतिदिन रोजाना आपके पेरिनेम की जांच करती है कि सूजन या संक्रमण के कोई लक्षण तो नहीं हैं।   वह प्रसव के बाद साफ सफाई के बारे में भी बताती है।   डॉक्टर यह भी बता देंगे  कि आपके टांके ठीक होने के बाद सेक्स को फिर से कब शुरू कर सकते हैं।  ऐसी परिस्थिती में भी महिला को शारीरिक रूप से ठीक होने में कम से कम चार सप्ताह तो लग ही जायेंगे। 

4. एमनियोटॉमी (Amniotomy) –  एमनियोटिक गुहा गर्भाशय के भीतर एक संलग्न (Attached) जगह होती है जिसमें भ्रूण विकसित होता है और दौरान संरक्षित होता है।  यह झिल्ली से बना होता और इसकी दो परतें होती हैं आंतरिक परत को एमनियन कहा जाता है और  बाहरी परत को कोरियन के नाम से जाना जाता है।  जब भ्रूण विकासित होता है तो यह मूत्र उत्सर्जित करता है जिससे इस स्थान में तरल पदार्थ बढ़ जाता है।  अक्सर, प्रसव से पहले या प्रसव के समय यह झिल्ली फट जाती है जिससे सारा द्रव्य बह जाता है। 

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इससे बच्चे की हृदय गति और गतिविधियों का निरीक्षण आसान हो जाता है।  बहुत ही कम मामलों में यह झिल्ली नहीं फट पाती है तब यह एम्नियोटिक झिल्ली  प्रसव के दौरान बच्चे की हृदय गति या गर्भाशय की यह एम्नियोटिक झिल्ली मूल्यांकन के काम में एक भौतिक बाधा बन जाती है।  इसलिये इसको तोड़ना जरूरी हो जाता है।   इस प्रक्रिया में डॉक्‍टर एमनिओटिक थैली के खुलने वाली जगह पर एक छोटा प्‍लास्टिक हुक लगाते हैं जिससे योनि से पानी तेजी से निकल जाता है।  फिर यह निरीक्षण का काम आसान हो जाता है और सामान्य रूप से डिलीवरी हो जाती है।  यह सामान्य डिलीवरी में सहायक विधि होती है।  

5. फोरसेप्‍स (Forceps) – यह दो बड़े चम्‍मच या चिमटे जैसे दिखने वाली वस्तुऐं आपस में जुड़े होते हैं जैसे संडासी या कैंची जुड़ी होती हैं।  इस उपकरण की सहायता से शिशु के सिर को पकड़ कर कैनाल से बाहर खींचा जाता है।  यह विधि निम्नलिखित परिस्थितियों में अपनाई जाती है।

(i) जब शिशु बर्थ कैनाल से नीचे ना आ रहा हो। 

(ii) जब शिशु के स्वास्थ के बारे में चिंता होने लगे और उसे जल्दी बाहर निकालना हो। 

(iii) जब महिला जोर लगाते-लगाते थक जाये या जोर ना लगा पा रही हो। 

(iv) जब महिला को डॉक्टर जोर लगाने के लिये मना कर दें। 

यह भी सामान्य डिलीवरी में सहायक विधि के रूप में अपनाई जाती है।  

6. वैक्‍यूम एक्‍सट्रैक्‍शन (Vacuum Extraction)- फोरसेप्‍स की ही भांति इस विधि का प्रयोग किया जाता है।  एक उपकरण में प्‍लास्टिक कप लगा होता है जिसे शिशु के सिर पर लगा कर वैक्यूम जेनरेट किया जाता है ताकि कप शिशु के सिर को सही से पकड़े रखे फिर उसे नली के माध्यम से धीरे से बाहर निकाल लिया जाता है। यह विधि निम्न परिस्थितियों में की जाती है। 

(i) आप धक्का दे रहे हैं, लेकिन श्रम का कोई असर ना हो।  यानि  बच्चा जन्म नहर में फंस गया हो।   

(ii) धक्का देकर  थक गये हों। 

(iii) शिशु संकट का सामना कर रहा हो।  

(iv) जब  बच्चा बहुत बड़ा हो।  

यह विधि भी वैजाइनल डिलीवरी को असिस्ट करती है।  

7. पानी में डिलीवरी (Water Delivery)- यह बाथिंग टब या पानी के टैंक में डिलीवरी कराने की विधि है।   इस विधि में महिला को पानी में बिठा दिया जाता है।  इससे प्रसव पीड़ा में राहत मिलती है और पानी महिला के वजन को नियन्त्रित करता है जिससे यह महिला को आरामदायक लगता है।  डॉक्टर्स का यह मानना है कि यह विधि मां और बच्चे दोनों के लिए सुरक्षित होती है। 

डिलीवरी के बाद सेक्स कब करें – Delivery Ke Bad Sex Kab Kare

दोस्तो, भारतीय परम्परा के अनुसार जच्चा को सवा महिने तक अशुद्ध माना जाता है क्योंकि उसके शरीर से रक्तश्राव होता रहता है।  सवा महिने के बाद हवन पूजा कर शुद्धिकरण किया जाता है।  अब तक डिलीवरी के प्रकार जानने के बाद यह निष्कर्ष निकलता है महिला को स्वस्थ होने में चार से छः सप्ताह लग लग जाते हैं।   चिकित्सा की दृष्टि से (From medical point of view),  प्रसिद्ध गायनोकॉलजिस्ट डॉक्टर रेणु का कहना है कि चाहे डिलीवरी नॉर्मल हो या सिजेरियन, शरीर को ताकत हासिल करने में टाईम लगता है।  इसलिए डिलीवरी के बाद शारीरिक संबंध बनाने में जल्दबाजी नहीं होनी चाहिए।  डिलवरी के बाद सेक्स करने से पहले 4 से 6 सप्ताह तक का इंतजार करना बेहद जरूरी है। 

क्यों लगता है इतना समय – Why does it take so long

1. प्लेसेंटा गर्भनाल के बाहर आ जाने से गर्भाशय जख्मी हो जाता है।  इस घाव को भरने में समय लगता है।  नॉर्मल डिलीवरी के दौरान संक्रमण की संभावना अधिक होता है।  ऐसे में डिलीवरी के एक माह के अधिक समय तक रुकने की सलाह दी जाती है। 

2. सिजेरियन या एपिसिओटोमी डिलीवरी के हालात में जिन महिलाओं को पेट/पेरिनियम क्षेत्र प्रसव के दौरान जहां चीरा लगाया गया हो, छह सप्ताह का इंतजार जरूरी है।  सिजेरियन के बाद जो टांके लगाये गये हैं वो ठीक से भरे हैं या नहीं, घाव भी पूरी तरह से भरा है या नहीं, ये सब डॉक्टर से जानना जरूरी हो जाता है।  

3. डिलीवरी पश्चात के बाद सेक्स करने के लिए यह बहुत ही जरूरी है कि गर्भाशय ग्रीवा पूरी तरह से बंद होनी चाहिये।  डिलीवरी होने के बाद गर्भाशय को अपने सामान्य रूप में वापस आने और गर्भाशय ग्रीवा को पूरा तरह से बंद होने में लगभग छह सप्‍ताह का समय लग जाता है।   छह सप्‍ताह के बाद भी शारीरिक संबंध बनाने से पहले पोस्‍टपार्टम चेकअप करवा लेना चाहिये।  

4. डिलीवरी पश्चात् के बदलावों के साथ तालमेल बिठाने में शरीर और दिमाग को समय लग सकता है अर्थात् महिला को शारीरिक और मानसिक तौर पर सेक्स के लिये तैयार होने में लम्बा समय लग सकता है (It may take too long time to be Physically and Mentally prepared for sex)।  अतः सेक्स के लिये किसी भी प्रकार की जल्‍दबाजी नहीं करनी चाहिये।   

5. डॉक्टर्स के अनुसार सिजेरियन ऑपरेशन बहुत बड़ी सर्जरी मानी जाती है।  इसके बाद महिलाओं को रिकवर होने में काफी समय लगता है।  महिला के स्वास्थ के साथ ही बच्चे का स्वास्थ और सुरक्षा सर्वोपरीय वरीयता (Top Priority) होती है।   सेक्स के बारे में सोचना तो अंतिम वरीयता होनी चाहिये।   

6. एक रिसर्च से यह बात सामने आयी है कि सामान्य डिलीवरी और ऑपरेशन से डिलीवरी के बाद, महिलाओं को डिलीवरी के बाद पहले तीन महीनों में सेक्स करने में समस्या हो सकती है। 

कुछ सावधानियां – Some Precautions

दोस्तो, डिलीवरी के बाद शारीरिक संबंध बनाने से पहले कुछ सावधानियां बरतनी चाहियें जो इस प्रकार हैं।

1. उतावलापन ना करें (Don’t be Rash)- दोस्तो, हम जानते हैं कि प्रेगनेंसी से लेकर डिलीवरी के बाद भी छः सप्ताह का बहुत लंबा समय होता है।  इस बात का ध्यान रखना चाहिये विशेषकर पुरुष को, कि स्त्री पूरी तरह से शारीरिक व मानसिक तौर पर सेक्स के लिये तैयार हो।  अन्यथा किसी भी समस्या से बचने के लिये, आप दोनों ही फोरप्ले का आनन्द ले सकते हैं।  

2. असहजता (Discomfort)- यदि सेक्स करने में कोई असहजता (Discomfort) महसूस होती है, दर्द, ब्‍लीडिंग या किसी अन्य प्रकार की समस्या हो रही है (विशेषकर सिजेरियन ऑपरेशन के बाद सेक्स करने की स्थिती में) तो इसे नजरअंदाज न करें और डॉक्टर से संपर्क करें।  

3. टांकों का ध्‍यान रखें (Take Care of Stitches)- सेक्स करते समय इस बात का ध्यान रखें कि पेट पर बिल्कुल भी दबाव ना पड़े, जिससे कि टांकों में कोई समस्या ना हो।  इसलिये टांकों का ध्‍यान रखें।  

4. गलत पोजीशन ना लें (Don’t take the wrong position)- डिलीवरी के बाद महिला के शरीर में कई परिवर्तन होते हैं।  इसलिये ऐसी पोजीशन से बचना चाहिये जिससे स्त्री के गर्भाशय पर दबाव पड़ता हो।  क्योंकि गर्भाशय पूरी तरह स्वस्थ नहीं होता।  

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5. दोबारा गर्भवती होने की संभावना (Chances of Getting Pregnant Again)- यद्यपि स्तनपान कराने वाली महिलाओं में डिंबोत्सर्जन (Ovulation) आमतौर पर 6 महीने के बाद ही होता है परन्तु जो महिलाएं स्तनपान नहीं करवाती हैं उनके डिलीवरी के बाद 6 सप्ताह के आसपास पहला ओव्यूलेशन शुरू हो सकता है।  यह प्रक्रिया कुछ महिलाओं में और भी जल्दी आरम्भ हो जाती है।  स्तनपान कराने वाली महिलाओं में 4 में से 1 महिला गर्भवती होती है।  इसलिये सेक्स में सावधानी बरतनी चाहिये कि महिला दुबारा से जल्दी गर्भवती ना हो।  

हो सकती है कुछ निराशा – There may be some disappointment

1. योनि में सूखापन (Vaginal Dryness)- योनि में सूखापन आ जाने के कारण सेक्स करने में कठिनाई हो सकती है।  डिलीवरी के बाद योनि में सूखापन आ जाना स्वाभाविक है।  प्रेगनेंसी से पहले अलग से ल्‍यूब्रिकेशन की जरूरत नहीं होती लेकिन डिलीवरी के बाद सेक्स का आनन्द लेने में  लुब्रिकेंट्स की आवश्यकता पड़ती है।  ऐसा इसलिये होता है कि डिलीवरी के बाद एस्‍ट्रोजन हार्मोन्स् कम हो जाते हैं।  ये हार्मोन्स् ही लुब्रिकेंट्स को बनाये रखते हैं।   यदि 

कॉन्डोम का उपयोग कर रहे हैं तो अलग से चिकनाई का इस्तेमाल न करें। 

2. योनि का फैलाव (Vaginal Dilatation)- डिलीवरी के बाद योनि का फैल जाना स्वाभाविक है।  विशेषतौर पर पहली डिलीवरी के बाद।  इसलिये सेक्स में निराशा हो सकती है।  विशेषकर पुरुष को, क्योंकि योनि में पहले जैसी टाइटनेस नहीं रहती। 

सुरक्षित सेक्स पोजीशन – Safe Sex Position

दोस्तो, हम पहले ही बता चुके हैं कि सेक्स करते समय इस बात का ध्यान रखें कि पेट पर दबाव ना पड़े।  हम आपको बता रहे हैं कुछ निम्नलिखित सेक्स पोजिशन जो सहज होने के साथ-साथ, आरामदायक, आनन्द दायक और सुरक्षित हैं।  पेट और पेरीनियम पर कोई दबाव भी नहीं पड़ेगा। 

1. स्पूनिंग पोजिशन (Spooning Position)- यह डिलीवरी के बाद सेक्स करने के लिए बहुत ही उत्तम विधि है।  जिस प्रकार दो चम्मच आगे पीछे आपस में मिल जाती हैं मगर आमने सामने नहीं आतीं उसी प्रकार स्त्री-पुरूष आमने सामने नहीं होते।  इस पोजिशन में स्त्री बेड पर करवट से लेटी होती है और पुरूष उसके पीछे आकर उसी साइड पर स्त्री के पीछे लेटकर सेक्स करता है।  इससे ना तो स्त्री के शरीर पर, पेट और ना ही पेरीनियम पर किसी तरह का कोई दबाव पड़ता है।  इस पोजिशन में, स्त्री पेनिट्रेशन की गहराई और स्पीड को आराम कंट्रोल कर सकती है। 

2. मिशनरी पोजिशन (Missionary Position)- यह स्थिती सबसे प्राचीन, लोकप्रिय और महिलाओं के लिए सबसे आरामदायक होती है।  इस पोजिशन में महिला कमर के बल लेटी हुई होती है और पुरुष, सामने पैरों की तरफ से महिला की टांगों के बीच बैठकर, महिला के शरीर पर अपना वजन डाले बिना, थोड़ा झुक कर संभोग करता है।  इस पोजिशन में भी महिला पेनिट्रेशन के लेवल और स्पीड को आराम से कंट्रोल कर लेती है। 

3. वीमेन ऑन टॉप पोजिशन (Women on Top Position)- इस पोजिशन में महिला के पेट पर किसी प्रकार का दबाव नहीं पड़ता।  सारा कंट्रोल महिला के हाथ में उसकी इच्छा के अनुरूप होता है और वह पूरी तरह अपने को संतुष्ट पाती है।  इस पोजिशन में पुरूष बैड पर सीधा लेटा हुआ होता है और महिला उसके ऊपर आकर संभोग करती है और पेनिट्रेशन का लेवल और स्पीड महिला की इच्छा पर होती है।  यह महिलाओं के लिये बेहद सुरक्षित तरीका है।  

4. रिवर्स चेयर पोजिशन (Reverse Chair Position)- इस पोजिशन में पुरुष चेयर पर बैठ जाता है और महिला उसके ऊपर कमर करके बैठ जाती है और संभोग करवाती है।  इस स्थिती में महिला के पेट पर दबाव नहीं पड़ता।  वह सामने मुंह करके भी बैठ सकती है परन्तु यह सुनिश्चित करना होगा कि पेट पर दबाव ना पड़े। 

5. मैन ऑन स्टेन्डिंग पोजिशन (Man on Standing Position)- इस पोजिशन में महिला टेबल या बैड पर लेटी हुई होती है और पुरुष सामने से खड़े होकर संभोग करता है।  इस स्थिती में भी महिला के शरीर पर कोई दबाव नहीं पड़ता।  यह एक आरामदायक पोजिशन होती है जिसमें महिला भरपूर आनन्द का अनुभव करती है।  

भूल कर भी ना करें डॉगी स्टाइल।  क्योंकि इस पोजिशन में महिला के पेट और पेरीनियम पर दबाव पड़ता है और महिला को दर्द भी हो सकता है।  इस पोजिशन से कोई भी समस्या होने की संभावना रहती है।  

Conclusion

दोस्तो, आज के लेख में हमने आपको डिलीवरी के बाद सेक्स कब करें के बारे में विस्तार से जानकारी दी।  डिलीवरी कितने प्रकार से की जाती है इस विषय में भी बताया।   डिलीवरी के कितने दिनों के बाद सेक्स करना चाहिये, क्या क्या सावधानियां बरतनी चाहियें, और किस पोजिशन में सेक्स करना चाहिये जिससे कि महिला सुरक्षित रहे उसे किसी प्रकार की कोई नुकसान ना हो, इस बारे में भी विस्तार से बताया।  

आशा है आपको ये लेख अवश्य पसन्द आयेगा।  आप इस पोस्ट को अपने दोस्तों और  सगे – सम्बन्धियों के साथ भी शेयर करें।  ताकि सभी इसका लाभ उठा सकें।  दोस्तो, हमारा आज का यह लेख आपको कैसा लगा, इस बारे में कृपया अपनी टिप्पणियां (Comments), सुझाव, राय अवश्य भेजिये ताकि हमारा मनोबल बढ़ सके।  और हम आपके लिए ऐसे ही Health- Related Topic लाते रहें।  धन्यवाद। 

Disclaimer- यह लेख केवल जानकारी मात्र है।  किसी भी प्रकार की हानि के लिये ब्लॉगर उत्तरदायी नहीं है।  कृपया डॉक्टर/विशेषज्ञ से सलाह ले लें। 

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