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किडनी को स्वस्थ रखने के घरेलू उपाय – Home Remedies to Keep Kidney Healthy in Hindi

किडनी को स्वस्थ रखने के घरेलू उपाय

दोस्तो, स्वागत है आपका हमारे ब्लॉग पर। दोस्तो, मशीनरी चाहे कोई भी हो जब तक साफ़-सफाई होती रहेगी उसके कल-पुर्जे ठीक से काम करते रहेंगे। जहां मशीनरी में गंदगी जमा हुई उसकी कार्य कुशलता, कार्य क्षमता प्रभावित होने लगती है। यही सिस्टम हमारे शरीर का है इसकी मशीनरी में गंदगी से शारीरिक गतिविधियां प्रभावित होने लगती हैं। शरीर में गंदगी यानी अपशिष्ट (Waste) को निकालने का काम एक विशेष अंग करता है जिसे गुर्दा यानी किडनी (Kidney) कहा जाता है जोकि यह जोड़े में होती है यानी शरीर में दो किडनी होती हैं। यदि ये दोनों किडनी खराब हो जाये और काम करना बंद कर दे तो समझिये कि शरीर का पूरा सिस्टम ही खराब हो जाता है ऐसी अवस्था में मरीज को बहुत तकलीफ़ होती है और उसके परिवार वाले भी परेशान होते हैं। इसके अतिरिक्त सबसे बड़ी समस्या धन (Finance) की होती है। क्योंकि मरीज को उपचार के लिये और जीवित रहने के लिये डायलिसिस पर निर्भर रहना पड़ता है। और जब बात डायलिसिस से भी नहीं बनती तब किडनी ट्रांसप्लांट करनी पड़ती है। ये दोनों ही उपचार बहुत महंगे हैं और बहुत पैसा खर्च करना पड़ता है। तो क्यों ना कुछ ऐसा किया जाये जिससे हमारी किडनी का बचाव रहे और वे स्वस्थ तथा निरोग रहें। जी हां दोस्तो, यही है हमारा आज का टॉपिक “किडनी को स्वस्थ रखने के घरेलू उपाय”। देसी हैल्थ क्लब इस लेख के माध्यम से आज आपको किडनी के बारे में विस्तार से जानकारी देगा और किडनी को स्वस्थ रखने के घरेलू उपाय भी बतायेगा। तो सबसे पहले जानते हैं कि किडनी क्या होती है और यह क्या काम करती है। फिर इसके बाद बाकी बिंदुओं पर जानकारी देंगे।

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किडनी को स्वस्थ रखने के घरेलू उपाय
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किडनी क्या है? – What is Kidney?

दोस्तो, किडनी मानव शरीर का अत्यंत महत्वपूर्ण अंग है जो कि जोड़े में होती हैं अर्थात् जन्म से ही मानव शरीर में राजमा के आकार की दो किडनी होती हैं। किडनी पेट के भीतर, पिछले हिस्से में, रीढ़ की हड्डी के दोनों ओर, कमर के भाग में स्थित होती हैं। दाईं  किडनी मध्यपट (Diaphragm) के ठीक नीचे और लिवर के पीछे स्थित होती है और बाईं किडनी मध्यपट के नीचे और प्लीहा (Spleen) के पीछे होती है। पेट की असामान्यताओं के कारण  दाईं  किडनी, बाईं किडनी की तुलना में थोड़ा नीचे होती है। किडनी का ऊपर का भाग ग्यारहवीं और बारहवीं पसलियों द्वारा आंशिक रूप से सुरक्षित होती है और पूरी तथा अधिवृक्क ग्रंथियां (Adrenal glands) वसा (पेरीरेनल और पैरारेनल वसा – Fat) और वृक्क प्रावरणी (Renal fascia) से ढकी हुई होती हैं। वयस्क पुरुषों में किडनी का वजन 125 से 170 ग्राम और महिलाओं में 115 से 155 ग्राम के बीच होता है। एक किडनी आकार में लगभग 10 सेंटीमीटर लम्बी, 6 सेंटीमीटर चौडी और 4 सेंटीमीटर मोटी होती है। सामान्यतः बाहर से छूने पर महसूस नहीं होती। किडनी से मूत्राशय तक जाने वाली नली को मूत्रवाहिनी कहते हैं जो विशेष प्रकार की लचीली मांसपेशियों से बनी हुई होती है और सामान्यत: 25 सेंटीमीटर लम्बी होती है। मूत्राशय एक स्नायु की थैली होती है जो पेट के निचले हिस्से में सामने की तरफ (पेडू में) स्थित होती है। इसी मूत्राशय में मूत्र जमा होता है। 

किडनी क्या काम करती है? – What Does the Kidney Do?

दोस्तो, किडनी के निम्नलिखित कार्य करती      है –  

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1. मुख्य काम होता है शरीर में स्थित हानिकारक अपशिष्ट उत्पादों (Harmful waste products) और विषैले कचरे (Toxic wastes) को शरीर से बाहर निकालना।

2. किडनी फिल्टर का काम करती है। यह हमारे रक्त को साफ करके मूत्र बनाती है। देसी हैल्थ क्लब यहां स्पष्ट करता है कि प्रत्येक किडनी में लगभग एक लाख छोटे फिल्टर होते हैं जिनको नेफ्रोन कहा जाता है। शरीर का  रक्त दिन में कई बार किडनी से गुजरता है। किडनी रक्त को फिल्टर करके शरीर में वापिस भेज देती हैं। फिल्टर करने पर रक्त में से जो अपशिष्ट निकलता है वह मूत्र में परिवर्तित हो जाता है। दोस्तो, दोनों किडनी में से प्रति मिनट 1200 मिली लीटर रक्त साफ होकर गुजरता है। यह, हृदय द्वारा हमारे शरीर में पहुंचने वाले रक्त के 20% के बराबर होता है। इस प्रकार किडनी 24 घंटे में लगभग 1700 लीटर रक्त को शुद्ध करती हैं। 

3. शरीर में पानी, द्रव्यों, खनिजों (इलेक्ट्रोलाइट्स के रूप में सोडियम, पोटेशियम आदि) का नियमन करना।

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4. किडनी भोजन से प्राप्त मिनरल्स को सोखती है। 

5. ऐसिड लेवल को नियंत्रित करती है।

6. किडनी रेनिन नामक हार्मोन का निर्माण करती है जो ब्लड प्रैशर को कंट्रोल करने के लिये जरूरी है।  

किडनी खराब होने के कारण – Cause of Kidney Failure

दोस्तो, किडनी खराब होने के मुख्य रूप से तीन ही कारण होते हैं – डायबिटीज़, उच्च रक्तचाप और पारिवारिक इतिहास। लेकिन इनके अतिरिक्त कुछ और भी कारण होते हैं। सबका विवरण निम्न प्रकार है –

1. डायबिटीज़ (Diabetes)- रक्त में ग्लुकोज़ की मात्रा बढ़ जाने पर किडनी के फिल्टर खराब होने लगते हैं। ऐसी स्थिति में किडनी रक्त का शुद्धिकरण कर पाने में, प्रोटीन को रक्त में प्रवाहित करने में, अपशिष्ट पदार्थों को मूत्र के जरिये शरीर से बाहर निकालने में असमर्थ होने लगती है। 

2. उच्च रक्तचाप (High Blood Pressure)- रक्त में सोडियम की मात्रा अधिक हो जाने से रक्तचाप का स्तर असंतुलित होने लगता है अर्थात् उच्च रक्तचाप की समस्या होने लगती है। उच्च रक्तचाप का दबाव जब किडनी पर बढ़ने लगता है तब किडनी की कार्यप्रणाली प्रभावित होने लगती है। ऐसी स्थिति में रक्त में प्रोटीन, क्षार और अन्य रसायन असंतुलित हो जाते हैं। 

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3. अन्य बीमारियों का प्रभाव (Effects of Other Diseases)- किडनी में पथरी, प्रोस्टेट बढ़ जाने, यूरीनरी ट्रैक्ट में ब्लड क्लॉट्स, ब्लैडर को कंट्रोल करने वाली नसों का कमजोर हो जाना, किडनी के आसपास ब्लड क्लॉट, बॉडी में जरूरत से ज्यादा विषाक्त पदार्थों का होना आदि, इन सब से किडनी की कार्यप्रणाली और कार्य क्षमता प्रभावित होती है। 

4. पानी की कमी (Insufficiency of Water)- उचित मात्रा में पानी ना पीने से शरीर में पानी की कमी बनी रहती है। ऐसी अवस्था में शरीर में सोडियम, यूरिया और विषैले पदार्थ जमा होते रहते हैं। जब शरीर में पानी की कमी होगी तो मूत्र भी कम ही बनेगा और ये सब मूत्र के जरिये पूरी तरह बाहर नहीं निकल पाते। परिणामस्वरूप किडनी अस्वस्थ रहने लगती है। 

5. शारीरिक गतिविधि ना होना (Lack of Physical Activity)- शारीरिक गतिविधि का ना होना या नहीं के बराबर होना, एक ही जगह पड़े रहना, सुबह कोई एक्सरसाइज ना करना, मॉर्निंग वॉक  ना करना, इन सब का असर शरीर के अंदर की मशीनरी पर प्रत्यक्ष रूप से पड़ता है। किडनी के साथ-साथ लीवर जैसे अंगों की कार्यप्रणाली पर भी बुरा प्रभाव पड़ता है।

6. बदलती जीवन शैली (Changing Lifestyle)- भाग दौड़ भरी ज़िन्दगी में अपने लिये समय ना निकाल पाना और फिर “जो मिला खा लिया” वाली शैली का शरीर पर हावी हो जाना, किडनी की कार्यप्रणाली और कार्य क्षमता को प्रभावित करती है। घर से बाहर का खाना, जंक और फास्ट फूड, तले, भुने, वसायुक्त खाद्य पदार्थ जैसे, छोले-भटूरे, समोसे, ब्रैड पकोड़ा, चाट-पकौड़ी, केक, पेस्ट्री, आदि इन सब का लंबे समय तक सेवन से किडनी प्रभावित होती है। 

7. धूम्रपान (Smoking)- धूम्रपान करने से ऐथेरोस्कलेरोसिस नामक रोग होने की संभावना रहती है जिससे रक्त वाहिकाओं/धमनियों में रक्त का प्रवाह कम हो जाता है और किडनी के कैंसर का खतरा 50 प्रतिशत बढ़ जाता है। किडनी में रक्त प्रवाह कम जाने से किडनी की कार्य प्रणाली और क्षमता कम होने लगती है।

8. शराब व अन्य नशीले पदार्थ (Alcohol and Other Intoxicants)- शराब का अधिक मात्रा में सेवन करने से मस्तिष्क का वह हार्मोन प्रभावित होता है जो किडनी को अधिक मात्रा में मूत्र बनाने से रोकता है। लंबे समय तक ऐसी स्थिति किडनी फेलियर का कारण बनती है। इसी प्रकार ड्रग्स व अन्य नशीले पदार्थों से भी किडनी की कार्य प्रणाली को बुरी तरह प्रभावित होती है।  

9. दर्द निवारक दवाओं का सेवन (Taking Painkillers)- लंबे समय तक दर्द निवारक दवाओं का सेवन भी किडनी के लिये हानिकारक होता हे। इनका साइड इफैक्ट्स किडनी को प्रभावित करता है जिससे किडनी के रोग होने की संभावना रहती है। 

10. पारिवारिक इतिहास (Family History)- यदि किसी व्यक्ति को पॉलीसिस्टिक किडनी रोग रहा हो, तो भविष्य में उसकी संतान को पॉलीसिस्टिक किडनी रोग होने की संभावना बनी रहती है।

किडनी फेल्योर होना क्या है? – What is Kidney Failure?

दोस्तो, जब बीमारी के कारण दोनों किडनी अपना सामान्य कार्य कर पाने में सक्षम नहीं होतीं अर्थात् किडनी की कार्यक्षमता कम हो जाती है तो उस स्थिति को किडनी फेल्योर कहा जाता है। 

किडनी फेल्योर के प्रकार – Types of Kidney Failure

किडनी फेल्योर के दो प्रकार होते हैं जिनका विवरण नीचे दिया गया है – 

1. एक्यूट किडनी फेल्योर (इंज्युरी – Acute Kidney Injury, AKI) – किडनी फेल्योर के इस प्रकार में किडनी कुछ घंटों या दिनों के लिये अपना सामान्य कार्य नहीं कर पाती हैं। किडनी रक्त से अपशिष्ट पदार्थों को निकालना और शरीर में पानी की मात्रा का संतुलन बनाये रखने का कार्य करने में असमर्थ होती हैं। एक्यूट किडनी इंज्युरी की समस्या बड़ी सर्जरी, गंभीर एलर्जी, सूजन, सिरदर्द, सर्दी, फ्लू, हृदयाघात, सदमा, शरीर में पानी की कमी लीवर रोग या लो ब्लड प्रैशर (Hypotension) और दर्द निवारक दवाओं के कारण होती है। यदि मरीज को उचित समय पर उपचार मिल जाता है तो दोनों किडनी फिर से पूरी तरह काम करने लगती हैं। कुछ मामलों में कुछ दिनों के लिये डायालिसिस की जरूरत पड़ सकती है। 

2. क्रोनिक किडनी फेल्योर (Chronic Kidney Disease) – किडनी फेल्योर के इस प्रकार में किडनी के खराब होने की गति बहुत धीमी होती है। इसमें किडनी खराब होने की प्रक्रिया में कई महीने या कई वर्ष भी लग जाते हैं। किडनी खराब होने की यह समस्या बहुत गंभीर होती है क्योंकि शुरुआत में इसके कोई लक्षण नहीं आते हैं। क्रोनिक किडनी फेल्योर के मामलों में क्रिएटिनिन की बढ़ती हुई मात्रा तभी देखने को मिलती है, जब दोनों किडनी की कार्यक्षमता 50 प्रतिशत से ज्यादा कम हो जाती है। अर्थात् जब खून में क्रिएटिनिन की मात्रा 1.6 मिली ग्राम प्रतिशत से ज्यादा हो, तो इसका मतलब है कि दोनों किडनी 50 प्रतिशत से ज्यादा खराब हो चुकी हैं। इस अवस्था में किडनी का उपचार संभव होता है। क्रिएटिनिन शरीर में अपशिष्ट उत्पाद है जिसे किडनी रक्त से फिल्टर करके मूत्र के जरिए बाहर निकाल देती है। रक्त में क्रिएटिनिन की मात्रा 5.0 मिली ग्राम प्रतिशत हो जाये तो समझना चाहिये कि दोनों किडनी 80 प्रतिशत तक खराब हो चुकी हैं। इस स्थिति में भी किडनी का सही उपचार हो सकता है। जब रक्त में क्रिएटिनिन की मात्रा 8.0 से 10.0 मिली ग्राम प्रतिशत हो जाये तब यह मान लेना चाहिये कि दोनों किडनी हद से ज्यादा खराब हो चुकी हैं और यह सबसे गंभीर स्थिति है। इस अवस्था में दवाईयां, परहेज व अन्य उपचार के विकल्प समाप्त हो चुके होते हैं केवल डायलिसिस और किडनी ट्रांसप्लांट के विकल्प ही बचे होते हैं। 

क्रोनिक किडनी डिजीज़ के चरण – (Stages of Chronic Kidney Disease) 

दोस्तो, जैसा कि हमने ऊपर बताया है कि किडनी क्रिएटिनिन को रक्त से अलग करती है। किडनी के काम की गति के मापक को eGFR कहा जाता है। यह कोई अलग से रक्त का परीक्षण नहीं है अपितु इसकी गणना एक सूत्र का उपयोग करके की जाती है, इसीलिए इसे eGFR अर्थात् estimated Glomerular Filtration Rate कहा जाता है। इसी के आधार पर यानी ग्लोमेरुलर फिल्ट्रेशन क्रिया की दर को मापकर डॉक्टर किडनी फेल्योर के चरण (Stages) को निर्धारित करते हैं जो निम्न प्रकार हैं – 

1. पहला चरण (First Stage)- क्रोनिक किडनी डिजीज़ के पहले चरण में eGFR 90 मि।ली। प्रति मिनट होता है। शुरुआत में कोई लक्षण दिखाई नहीं देते सिवाय मूत्र में असामान्यताओं के जैसे कि मूत्र में प्रोटीन की उपस्थिति। एक्स-रे, एमआरआई, सीटी स्कैन या सोनोग्राफी आदि के माध्यम से इस चरण का मूल्यांकन किया जा सकता है।

2. दूसरा चरण (Second Stage)- दूसरे चरण में eGFR 60 से 89 मि.ली. प्रति मिनट होता है। इस चरण में भी कोई विशेष लक्षण दिखाई नहीं देते सिवाय रात को मूत्र का बार-बार आना, मूत्र में प्रोटीन की उपस्थिति और हाई ब्लड प्रैशर के।  

3. तीसरा चरण (Third Step)- इस चरण में eGFR 30 से 59 मि.ली. प्रति मिनट होता है और लक्षण भी दूसरे चरण के ही तरह होते हैं। 

4. चौथा चरण (Fourth Stage)- इस चरण में eGFR 15 से 29 मि.ली. प्रति मिनट रहता तक है। इस चरण के लक्षण किडनी की फेल्योर और उससे संबंधित रोग पर निर्भर करते हैं। इसके हल्के या बहुत तेज लक्षण सामने आने लगते हैं। 

5. पांचवां चरण (Fifth Stage)- इस चरण में eGFR 15 मि.ली. प्रति मिनट से कम हो जाता है। यह सबसे गंभीर और अंतिम चरण होता है। इस अवस्था में डायालिसिस या किडनी ट्रांसप्लांट की आवश्यकता होती है। 

किडनी खराब होने के लक्षण – Kidney Failure Symptoms

किडनी खराब होने पर सामान्यतः निम्नलिखित लक्षण दिखाई देते हैं –

1. थकान महसूस करना और कमजोरी रहना।

2. सांस फूलना।

3. पैरों और शरीर के अन्य हिस्सों में सूजन रहना।

4. सुबह के समय जी मिचलाना उल्टी होना।

5. एनीमिया। 

6. भूख कम हो जाना 

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7. मूत्र उत्पादन में एक परिवर्तन। मूत्र कम आना या रात के समय मूत्र अधिक बनना और बार-बार मूत्र विसर्जन के लिये जाना।

8. मूत्र में झाग या रक्त आना। इसका मतलब है कि मूत्र में प्रोटीन की उपस्थिति और रक्त कोशिकाओं का मूत्र में गिरना।

9. मूत्र के रंग में परिवर्तन। 

10. शरीर में एसिड का स्तर बढ़ना।

11. रक्त में पोटेशियम की मात्रा अधिक हो जाना। 

12. फेफड़ों में पानी भर जाना।

13. सूखी त्वचा और खुजली होना। शरीर में विषाक्त पदार्थों का जमा होने से त्वचा में सूखापन आ जाता है, खुजली होने लगती है और त्वचा से दुर्गंध आने लगती है। त्वचा पर रैशेज पड़ने लगते हैं। त्वचा का रंग लाल पड़ना भी किडनी खराब होने का संकेत है।

14. पेट के निचले भाग में दर्द। कमर, बाजू या पसलियों के नीचे दर्द होना किडनी की समस्या के आरंभिक लक्षण हो सकते हैं जैसे पथरी या पाइलोनफ्राइटिस। पेट के निचले भाग दर्द होने का अर्थ, मूत्राशय में संक्रमण या एक मूत्रवाहिनी (किडनीऔर मूत्राशय को जोड़ने वाली ट्यूब) में समस्या की ओर इशारा करता है। 

15. कमर में दर्द रहना। किडनी खराब हो जाने पर किडनी की कार्यक्षमता में कमी होना स्वाभाविक है जिसके कारण पीड़ित व्यक्ति की कमर में दर्द बना रहता है।

16. हाई ब्लड प्रैशर। हाई ब्लड प्रैशर किडनी की बीमारी का स्पष्ट कारण और लक्षण है। शरीर में सोडियम और पानी जमने पर ब्लड प्रैशर हाई होने लगता है जोकि किडनी की कार्य प्रणाली को प्रभावित करता है।  

17. ठंड लगना। किडनी खराब होने पर गर्मी में भी ठंड लगती रहती है। व्यक्ति का शरीर हमेशा ठंडा रहता है और नींद भी अधिक आती है। यह किडनी खराब होने का स्पष्ट लक्षण है।

18. चिड़चिड़ापन। किडनी के खराब हो जाने के कारण मस्तिष्क में ऑक्सीजन की कमी हो जाती है। इस वजह से पीड़ित व्यक्ति का स्वभाव चिड़चिड़ा हो जाता है। यह भी किडनी के खराब होने का स्पष्ट लक्षण है।

किडनी की जांच – Kidney Test

दोस्तो, किडनी की जांच के लिये डॉक्टर निम्नलिखित टैस्ट करवा सकते हैं –

1.  माइक्रो एल्ब्यूमिन टेस्ट (Micro Albumin Test)- यह किडनी की जांच के लिये किये जाने वाला शुरुआती टैस्ट है। इसके द्वारा यह पता चलता है कि यूरिन में ऐल्ब्यूमन प्रोटीन की मात्रा कितनी है। यदि यह कम मात्रा में है तो इसका इलाज हो जाता है। किडनी ऐल्ब्यूमन प्रोटीन के बड़े पार्टिकल को तो रोक लेती है लेकिन छोटे पार्टिकल को नहीं रोक पाती। इसकी नॉर्मल रेंज 30 से कम है। 300 से अधिक होने पर रक्त में क्रिएटिनिन की मात्रा बढ़नी शुरु हो जाती है। 

2. किडनी फंक्शन टैस्ट (KFT) – यह किडनी की जांच के लिये यह प्रमुख और सबसे कारगर टैस्ट है। इस टैस्ट के द्वारा क्रिएटिनिन, यूरिक एसिड और यूरिया के स्तर का पता चल जाता है। इस जांच से पता चल जाता है कि किडनी ठीक प्रकार से काम कर रही है या नहीं। इसमें क्रिएटिनिन का स्तर 0.8 mg/dl से 1.2 mg/dl के बीच रहना चाहिये। यदि क्रिएटिनिन का स्तर 5 या इससे अधिक हो जाये तो डॉक्टर डायलिसिस की तैयारी शुरु कर देते हैं। बाकी की नॉर्मल रेंज निम्न प्रकार है –

यूरिक एसिड: 2.4 से 6.0 mg/dl

यूरिया: 17 से 43 mg/dl

कुल प्रोटीन: 6.4 से 8.2 g/dl

3. अन्य टैस्ट(Other Test) – डॉक्टर, किडनी फेल्योर के स्टेज के आधार पर पेट का एक्स-रे,  इन्ट्रावीनस यूरोग्राफी (इन्ट्रावीनस पाइलोग्राफी), आईवीयू, एमआरआई, सीटी स्केन, सोनोग्राफी, किडनी डॉप्लर, रेडियो न्यूक्लीयर स्टडी, रीनल एन्जियोग्राफी, एन्टीग्रेड और रिट्रोग्रेड पाइलोग्राफी आदि।

किडनी के उपचार – Kidney Treatment

दोस्तो, किडनी फेल्योर के उपचार के लिये मुख्य रूप से दो विधि अपनाई जाती हैं किडनी डायलिसिस और किडनी ट्रांसप्लांट लेकिन डॉक्टर लंबे समय तक इनको अवॉइड करते हैं। इनसे पहले किडनी खराब होने के कारणों और लक्षणों को जानकर इन्हें दूर करने का इलाज करते हैं जैसे उच्च रक्तचाप, एनीमिया, यूरिया, यूरिक एसिड के स्तर में वृद्धि, क्रिएटिनिन के स्तर में वृद्धि आदि। परन्तु जब किडनी फेल्योर का अंतिम चरण आ जाये अर्थात् किडनी 85 से 90 प्रतिशत काम करना बंद कर दे और eGFR 15 मि.ली. प्रति मिनट से कम हो जाये, तो डायलिसिस और किडनी ट्रांसप्लांट के अतिरिक्त कोई विकल्प नहीं बचता। इनका विवरण निम्न प्रकार है –

1. डायलिसिस उपचार की एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें मशीन के द्वारा रक्त से अपशिष्ट पदार्थों और जमा हुऐ तरल पदार्थों को बाहर निकाला जाता है। डायलिसिस निम्नलिखित दो प्रकार के होते हैं –

(i)  हेमोडायलिसिस – डायलिसिस का यह सबसे सामान्य प्रकार है। इस प्रक्रिया में रक्त में मौजूद अपशिष्ट पदार्थों और अतिरिक्त तरल पदार्थ को बाहर निकालने के लिये मरीज के रक्त को बाहर निकालकर डीएलएज़ेर अर्थात् कृत्रिम किडनी के द्वारा फ़िल्टर किया जाता है। फिर फ़िल्टर्ड रक्त को डायलिसिस मशीन के द्वारा शरीर में वापस भेज दिया जाता है। इस प्रक्रिया में तीन से चार घंटे का समय लगता है और सप्ताह में तीन बार कराना पड़ता है। 

(ii) पेरिटोनियल डायलेसिस – इस प्रक्रिया में मरीज के पेट में रक्त को फ़िल्टर किया जाता है। पेरिटोनियल गुहा (Peritoneal cavity) छोटी-छोटी रक्त वाहिकाओं का बड़ा नेटवर्क होता है। मरीज के पेट पर 1 या 2 सेंटिमीटर का चीरा लगाकर पीडी कैथेटर (एक पतली ट्यूब) को पेट में डाल दिया जाता है। फिर डायलेट (एक विशेष द्रव) को कैथेटर के माध्यम से पेट के निचले हिस्से में डाल दिया जाता है। यह द्रव अंदर के सभी अपशिष्ट पदार्थों को सोख लेता है। फिर कैथेटर को बाहर निकाल लिया जाता है। इस प्रक्रिया में किसी मशीन की जरूरत नहीं पड़ती। पेरिटोनियल डायलिसिस मशीन द्वारा भी किया जाता है जिसे स्वचालित पेरिटोनियल डायलिसिस (Automated Peritoneal Dialysis) कहा जाता है। इस विधि में मशीन द्वारा काम होता है। मरीज के सोने के समय यह लगा दी जाती है। मरीज सो रहा होता है और मशीन काम कर रही होती है। अगले दिन मशीन को हटा दिया जाता है।

2. किडनी ट्रांसप्लांट कराना – किडनी फेल्योर के अंतिम चरण के उपचार के लिये अंतिम उपाय है किडनी ट्रांसप्लांट कराना। अर्थात् परिवार का सदस्य माता, पिता, भाई बहिन, पति, पत्नी या बल्ड रिलेशन वाला व्यक्ति जैसे चाचा, बूआ, मामा, मौसी में से कोई सदस्य किडनी दान करता है तो उस किडनी को या मृत व्यक्ति की किडनी को, मरीज के शरीर में प्रत्यारोपित कर दिया जाता है। देसी हैल्थ क्लब इस विषय पर निकट भविष्य में विस्तार से जानकारी देगा। 

किडनी डायलिसिस का खर्च – Kidney Dialysis Cost

किडनी डायलेसिस मंहगा अवश्य है पर इतना भी नहीं है जितना लोग सोचते हैं। यह किडनी की बीमारी के स्तर, स्टेज पर भी निर्भर करता है। फिर भी इसका खर्च लगभग 12,000/- से 20,000/- रुपये प्रति माह आता है। 

किडनी को स्वस्थ रखने के घरेलू उपाय – Home Remedies to Keep Kidney Healthy

दोस्तो, हमने ऊपर बताया है कि किडनी फिल्टर का काम करती है, विषैले पदार्थों को बाहर निकालती है। रक्त को भी छानकर साफ करती है। जब तक किडनी का फिल्ट्रेशन सिस्टम ठीक है तब तक शरीर भी स्वस्थ है जैसे ही किडनी में कोई समस्या हुई वैसे ही शरीर भी अनेक बीमारियों का घर बनने लगता है। इसलिये यह बेहद जरूरी है कि हम किडनी के स्वास्थ का ध्यान रखें। किडनी को स्वस्थ और निरोगी बनाये रखने के लिये कुछ निम्नलिखित घरेलू उपाय अपनाये जा सकते हैं –

1. अपने को फिजिकली एक्टिव रखें (Keep Yourself Physically Active)-  अपने शरीर की गतिविधियां जारी रखें, एक जगह बैठे ही ना रहें, अन्यथा शरीर में आलस समा जायेगा। प्रतिदिन सुबह के समय कम से कम आधा घंटा तेज चलें जिसे मॉर्निंग वॉक करें। हल्की फुल्की एक्सरसाइज करें, योग, प्राणायाम, एरोबिक, रनिंग, जॉगिंग आदि जो भी कर सकते हैं जरूर करें। इससे सारा दिन आप चुस्त-दुरुस्त रहेंगे और किडनी भी मजबूत और स्वस्थ रहेगी। मॉर्निंग वाक पर हमारा पिछला आर्टिकल “Morning walk के फायदे पढ़ें। 

2. उचित मात्रा में पानी पियें (Drink Plenty of Water)- शरीर को हाईड्रेट रखने के लिये प्रतिदिन डेढ़ से दो लीटर पानी अवश्य पीयें। इससे शरीर से सोडियम, यूरिया और विषैले पदार्थ मूत्र के जरिये बाहर निकलते रहेंगे और किडनी एकदम स्वस्थ और मजबूत रहेगी। पानी के विषय में विस्तृत जानकारी के लिये हमारा पिछला आर्टिकल “शरीर में पानी की कमी दूर करने के उपाय पढ़ें। 

3. नींबू पानी (Lemonade)- नींबू पानी किडनी की सफाई के लिये उत्तम और सबसे प्रभावीशाली प्राकृतिक उपाय है। नींबू का प्राकृतिक अम्‍ल (Acid) किडनी में पथरी बनने को रोकने में मदद करता है। किडनी के स्वास्थ के लिये प्रतिदिन एक नींबू को एक गिलास पानी में निचोड़कर पीयें। सुबह-सुबह खाली पेट एक गिलास गर्म पानी में नींबू निचोड़कर पीयें तो और भी बेहतर होगा, इसमें एक चम्मच शहद भी मिलाया जा सकता है। यह सम्पूर्ण स्वास्थ के लिये अत्यंत लाभकारी है। नींबू पर विस्तृत जानकारी के लिये हमारा पिछला आर्टिकल “निम्बू पानी के फायदे और नुकसान पढ़ें। 

5. अदरक (Ginger)- अदरक केवल मसाला ही नहीं बल्कि यह  एक विशेष जड़ी बूटी है जो किडनी को स्वस्थ बनाये रखने में उपयोगी होती है। क्योंकि इसमें किडनी को साफ़ करनू वाले प्रभावशाली गुण मौजूद होते हैं। इसे चाय में डालकर तो पीते ही हैं इसके अतिरिक्त इसे पानी में उबालकर भी पी सकते हैं। इसके लिये अदरक के बारीक-बारीक टुकड़े काटकर या पीसकर एक गिलास पानी में दस मिनट तक उबालकर, छानकर, ठंडा करके पीयें। अदरक के उबले पानी को दिन में दो बार पी सकते हैं।  

6. मैदा, नमक, चीनी और मैदा कम खाएं (Eat less flour, salt, sugar and flour)- छोटी उम्र से ही नमक, चीनी और मैदा वाले पदार्थ यदि कम खाये जायें तो यह सबसे अच्छी बात है परन्तु बढ़ती हुई उम्र में यानी 40 वर्ष की आयु के बाद तो इनका सेवन कम करना ही बेहतर है। ज्यादा नमक के सेवन से सोडियम असंतुलित हो जाता है, ब्लड प्रैशर हाई होने की संभावना रहती है जोकि हृदय और किडनी के लिये हानिकारक होता है। सोडियम असंतुलित होने पर इसका प्रभाव किडनी की कार्य प्रणाली पर पड़ता है और किडनी की शरीर से पानी बाहर निकालने की क्षमता कम हो जाती है। मैदा से बने पदार्थों, जैसे ब्रैड, बिस्किट्स, पास्ता, नूडल्स आदि और अधिक चीनी किसी भी रूप में, का अधिक सेवन करना डायबिटीज़ जैसी बीमारी को निमन्त्रण देने के समान है। डायबिटीज़ भी किडनी की कार्य प्रणाली के लिये खतरा है।

7. पौष्टिक आहार लें (Eat Nutritious Food)- किडनी के अच्छे स्वास्थ के लिये यह जरूरी है कि हमारा भोजन पौष्टिक हो अर्थात् ऐसे खाद्य पदार्थ भोजन में शामिल होने चाहियें जो प्रोटीन, विटामिन और खनिज पदार्थों से भरपूर हों, कम कैलोरी और कम वसा वाले हों। हरी और पत्तेदार सब्जियों, मौसमी फल, अनाज, कम वसा वाले दूध और डेयरी उत्पाद को अपने भोजन में शामिल करें। घर से बाहर का खाना, जंक और फास्ट फूड, तले हुऐ खाद्य पदार्थ जैसे, छोले-भटूरे, समोसे, ब्रैड पकोड़ा, चाट-पकौड़ी आदि को अवॉइड करें। ये सब डायबिटीज, हाई ब्लड प्रैशर, कोलेस्ट्रॉल स्तर में असंतुलन, हृदय रोग का कारण बनकर किडनी की कार्य प्रणाली को प्रभावित करते हैं। 

8. धूम्रपान ना करें (Do not Smoke)- यह सब जानते हैं कि तंबाकू का किसी भी रूप में सेवन करना हानिकारक है और किसी भी दृष्टिकोण से उचित नहीं है, परन्तु मानते नहीं हैं। धूम्रपान हृदय और किडनी दोनों के लिये ही रोग का कारण बनता है। धूम्रपान से ऐथेरोस्कलेरोसिस रोग होने की संभावना रहती है जिससे रक्त वाहिकाओं/धमनियों में रक्त का प्रवाह कम हो जाता है जिससे किडनी के कैंसर का खतरा 50 प्रतिशत बढ़ जाता है। किडनी में रक्त प्रवाह कम जाने से किडनी की कार्य प्रणाली और क्षमता कम हो जाती है। धूम्रपान पर विस्तृत जानकारी के लिये हमारा पिछला आर्टिकल “धूम्रपान छोड़ने के घरेलू उपाय पढ़ें।

9. शराब व अन्य नशीले पदार्थों का सेवन ना करें (Do not consume alcohol and other intoxicants)- जिस प्रकार धूम्रपान किडनी कार्य प्रणाली को बाधित करता है उसी प्रकार अधिक मात्रा में शराब भी फेफड़ों के साथ-साथ किडनी को भी खराब करती है। शराब अधिक मात्रा में और रोजाना पीने से मस्तिष्क का वह हार्मोन प्रभावित होता है जो किडनी को अधिक मात्रा में मूत्र बनाने से रोकता है। अर्थात् शराब पीने से बार-बार मूत्र विसर्जन की जरूरत महसूस होती है। यदि लंबे समय तक ऐसी स्थिति बनी रहे तो किडनी फेलियर की संभावना रहती है। इसी प्रकार ड्रग्स व अन्य नशीले पदार्थ भी किडनी की कार्य प्रणाली को बुरी तरह प्रभावित करते हैं। अतः किडनी के स्वास्थ के लिये शराब व अन्य नशीले पदार्थों का सेवन ना करें।

10. अपनी मर्जी से दवा ना लें (Do not Take Medicine on Your Own)- अक्सर देखा गया है कि सामान्य प्रकार की बीमारियों में हम अपने आप ही दवाई ले लेते हैं जो कई बार घर में ही रखी होती हैं या मेडिकल स्टोर से लाकर ले लेते हैं, बिना डॉक्टर की सलाह लिये। यह एकदम गलत है क्योंकि दवाईयों की गहराई से जानकारी डॉक्टर को होती है ना कि एक सामान्य व्यक्ति को। इसलिये कोई भी दवा डॉक्टर की सलाह के बिना ना लें विशेषकर दर्व निवारक दवाऐं क्योंकि इनके साइड इफैक्ट्स किडनी को प्रभावित करते हैं। 

11. समय-समय पर किडनी का चेकअप कराएं (Get kidney check up Done from time to time)-  तीन-चार वर्ष के अंतराल पर फुल बॉडी चेकअप होना चाहिये विशेषकर 35 वर्ष की आयु के बाद। क्योंकि शरीर के किस अंग में क्या समस्या है और किस स्तर पर है यह सामान्यतः पता नहीं चलता है। इसका पता केवल तब चलता है जब हम अपने शरीर का चेकअप कराते हैं। उम्र बढ़ने के साथ-साथ किडनी की कार्य क्षमता का कुछ प्रतिशत तक प्रभावित हो जाने की संभावना होती है। इसलिये तीन-चार वर्ष के अंतराल पर एक बार किडनी फंक्शन टैस्ट अवश्य करवायें। 

Conclusion – 

दोस्तो, आज के लेख में हमने आपको किडनी को स्वस्थ रखने के घरेलू उपाय के बारे में विस्तार से जानकारी दी। किडनी क्या है, किडनी क्या काम करती है, किडनी खराब होने के कारण, किडनी फेल्योर होना क्या है, किडनी फेल्योर के प्रकार, क्रोनिक किडनी डिजीज़ के चरण, किडनी खराब होने के लक्षण, किडनी की जांच, किडनी के उपचार और किडनी डायलिसिस का खर्च, इन सब के बारे में भी विस्तारपूर्वक बताया। देसी हैल्थ क्लब ने इस लेख के माध्यम से किडनी को स्वस्थ रखने के उपाय भी विस्तार से बताये। आशा है आपको ये लेख अवश्य पसन्द आयेगा। 

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Disclaimer – यह लेख केवल जानकारी मात्र है। किसी भी प्रकार की हानि के लिये ब्लॉगर/लेखक उत्तरदायी नहीं है। कृपया डॉक्टर/विशेषज्ञ से सलाह ले लें।

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किडनी को स्वस्थ रखने के घरेलू उपाय
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दोस्तो, आज के लेख में हमने आपको किडनी को स्वस्थ रखने के घरेलू उपाय के बारे में विस्तार से जानकारी दी। किडनी क्या है, किडनी क्या काम करती है, किडनी खराब होने के कारण, किडनी फेल्योर होना क्या है, किडनी फेल्योर के प्रकार, क्रोनिक किडनी डिजीज़ के चरण, किडनी खराब होने के लक्षण, किडनी की जांच, किडनी के उपचार और किडनी डायलिसिस का खर्च, इन सब के बारे में भी विस्तारपूर्वक बताया।
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